राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के बाद अब पंजाब में पुरानी पेंशन योजना की बहाली हुई है. यह एनपीएस व निजीकरण के खिलाफ संघर्ष की जीत है और जरूर ही इसमें वहां के स्थानीय संघर्ष की एक बडी भूमिका रही है. लेकिन हमें इस जीत का जश्न बनाते हुए यह बात जरूर याद रखनी होगी कि जब हमें यह जीत हासिल हुई तो वहां शासन कर रही सरकार किसकी थी. गौर तलब है कि आरएसएस-भाजपा की सरकारें जहां भी सत्ता में आई, उन्होंने आते ही (त्रिपुरा व असम इसका उदाहरण है) सबसे पहले पुरानी पेंशन योजना को खत्म किया और वे अभी भी जहां सत्ता में है, यानी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक इत्यादि, वहां अब भी एनपीएस लागू हैअब यह सवाल उठता है कि देश भर में केंद्रीय कर्मचारियों के साथ मिलकर उपरोक्त राज्यों में एनपीएस के खिलाफ संघर्ष कम हो रहा है क्या? इसका उत्तर होगा, नहीं.
हमें पश्चिम बंगाल को भी याद रखना चाहिए जहां पुरानी पेंशन योजना बहाली के लिए कोई भी संघर्ष नहीं करना पड़ा है, क्योंकि वहां पुरानी पेंशन व्यवस्था कभी खत्म ही नहीं हुई. इससे भी इसी बात की पुष्टि होती है कि जहां पुरानी पेंशन योजना बहाल हो रही है वहां शासन कर रही सरकारों की विचारधारा का भी बड़ा मतलब है.
जिन राज्यों में पुरानी पेंशन योजना बहाल हो रही है वहां कार्यरत कर्मचारियों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. उन्हें अब सार्वजनिक क्षेत्र में वर्षों से रूकी कर्मचारियों की भर्ती की प्रक्रिया को तत्काल शुरू करवाने, संविदा/ठेका और मानदेय प्रथा और सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में अपनी भूमिका बढ़ानी होगी. जब तक सार्वजनिक क्षेत्र बचा रहेगा तभी तक कर्मचारियों के हित की योजनाएं भी बची रहेंगी.
– कमल उसरी