“दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 में हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या की निर्भया घटना को आज 12 वर्ष हो गए. इस घटना के बाद पूरा देश महिला हिंसा के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन में लग गया. पूरे देश में आंदोलन होने के बाद वर्मा कमीशन बना और वर्मा कमीशन की रिपोर्ट आई. सरकार नई आई लेकिन नई सरकार आने के बावजूद भी इन 12 सालों में महिलाओं के ऊपर होने वाले हिंसा और बर्बरता में न ही कोई कमी आई और न ही वर्मा कमिश्नन के नसीहतों को लागू किया गया.
बल्कि हमारे देश की जो केंद्र की सरकार है उसने उल्टे बलात्कार की संस्कृति को संरक्षण देने में ही अपनी शक्तियों को लगाया. स्थिति यह हो गई है कि आज भारत में बलात्कारियों को संस्कारी बताया जाने लगा है.
बलात्कारी को फूल माला और मिठाई के साथ स्वागत किया जाने लगा है, न्याय मांगती लड़कियों को सड़क पर घसीटा जाने लगा है. पुलिस थानों में इसकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाने लगा है. हमारे देश के प्रधानमंत्री खुद बलात्कारियों के लिए चुनाव प्रचार करने लगे. अब ऐसी स्थिति में हम महिलाओं के पास क्या उत्तरदायित्व बचता है प्रधानमंत्री जब किसी बलात्कारी के समर्थन में उतरें तब हमें यह समझ लेना चाहिए कि महिला हिंसा और अत्याचार और बलात्कार की संस्कृति को हमारे समाज में बचाए रखने के लिए संरक्षण कहां से और कैसे मिल रहा है.
लेकिन हम महिलाएं कब हार मानीं हैं? इसीलिए यह जंग जारी है और यह जंग जारी रहेगी. बलात्कार की संस्कृति के खिलाफ यह जंग जारी रहेगी – निर्भय से अभया तक. और यह जंग जारी रहेगी पीड़िता को दोषी ठहराने के खिलाफ.”