‘नए बिहार के तीन आधार, शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमि सुधार’ के नारे के साथ बिहार में रोजगार की मांग तेज हो रही है. इंकलाबी नौजवान सभा ने इस मांग पर बजट सत्र में विधानसभा को घेरने की कर रहा तैयारी कर रही है.
विगत बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार का सवाल जो अब तक सड़कों पर उठ रहा था चुनावी मुद्दा बना. इस सवाल पर नौजवानों की बड़ी सक्रियता दिखी. विपक्षी दलों (महागठबंधन) ने रोजगार के सवाल को चर्चा में लाया और राजद ने अपनी सरकार बनने पर 10 लाख सरकारी नौकरियां देने का वायदा किया. इस मुद्दे पर जब नौजवान गोलबंद होने लगे तो भाजपा-जदयू (एनडीए) ने 19 लाख रोजगार देने का वादा किया. अब चुबाव बाद एनडीए सरकार में है लेकिन रोजगार पर किए गए वादे को भूल गई है. यहां तक कि विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण में ‘रोजगार’ शब्द का प्रयोग करने से भी परहेज किया गया.
बिहार में बेरोजगारी का मुद्दा इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि इस राज्य में बेरोजगारी की दर भारत के औसत बेरोजगारी दर से दोगुनी और देश में सबसे अधिक है.
इसके अलावा यहां की उच्च शिक्षा और भर्ती व्यवस्था भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक लेट-लतीफी का शिकार है. हाल में हुए कोरोना लाॅकडाउन में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक प्रवासी मजदूर बिहार मे ही लौटे और अब फिर वापस जा रहे हैं. जनसंख्या के औसत के रूप में देखा जाए तो यह संख्या भी पूरे देश में सबसे अधिक है.
सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (सीएमआइई) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में बेरोजगारी की दर (11.9%) देश के बाकी राज्यों और देश के राष्ट्रीय औसत (7.1%) से काफी अधिक है. जनवरी, 2018 के बाद से ही लगातार ऐसा हाल है. पिछले 5 सालों में ऐसा लगातार चलता आ रहा है और सिर्फ 2017 ही ऐसा साल था, जब बिहार की बेरोजगारी का दर राष्ट्रीय औसत से कुछ कम हुआ हो. बेरोजगारी की यह दर शिक्षित बेरोजगारी, संगठित क्षेत्र की बेरोजगारी और असंगठित क्षेत्र की बेरोजगारी तीनों क्षेत्रों में सबसे अधिक है.
अगर प्रवासी मजदूरों की बात करें तो उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक प्रवासी मजदूर बिहार से ही पलायन करते हैं और जनसंख्या की दृष्टिकोण से देखा जाए तो औसतन यह संख्या भी सबसे अधिक है. इसलिए बेरोजगारी बिहार में एक अहम मुद्दा है. लेकिन यह भी एक तथ्य है कि चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, बिहार में यह कभी भी एक चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है. हालांकि इस बार सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर केंद्रित नजर आए.
एक सर्वे के अनुसार 2014 से ही बिहार में शिक्षकों की बहाली नहीं हुई है, जबकि बिहार में शिक्षकों के ही सिर्फ 1.5 लाख से अधिक पद खाली हैं. राज्य में 4.5 लाख सरकारी पद खाली हैं. बिहार में पिछले 15 साल में सिर्फ 6 लाख की संख्या में सरकारी भर्तियां हो सकीं. बिहार के पुलिस विभाग में 50 हजार से अधिक पद खाली हैं, लेकिन सरकारी मानक और राष्ट्रीय औसत को देखा जाए तो बिहार में सामान्य नागरिकों और पुलिस बल का अनुपात 1 लाखः 77 है यानी 1 लाख नागरिकों पर सिर्फ 77 पुलिस कर्मी हैं. जबकि राष्ट्रीय औसत 1 लाख नागरिकों पर 151 पुलिसकर्मी का है. अगर इस राष्ट्रीय औसत के हिसाब से ही भर्ती किया जाए तो बिहार पुलिस में ही सवा लाख से अधिक भर्तियां निकल आएंगी.
बिहार के स्वास्थ्य विभाग की बात की जाए तो नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 90 फीसदी से भी अधिक की संख्या में सामुदायिक स्वास्थ्य क्षेत्रों की कमी है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आंकड़ें भी कहते हैं कि बिहार में एक लाख लोगों पर सिर्फ 26 बेड हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 138 बेड का है. अगर ये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनते हैं, तो उसी हिसाब से डाॅक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती की जाएगी, इससे बेरोजगारी भी दूर होगी और स्वास्थ्य व्यवस्था भी सही होगी. एनआरएचएम के ही आंकड़ों के अनुसार बिहार में 7800 डाॅक्टरों, 13800 नर्सों और 1500 फाॅर्मासिस्टों की कमी है.
शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में 2 लाख 75 हजार 255 शिक्षकों की कमी है. अगर इन सभी पदों को राष्ट्रीय औसत और मानकों के अनुसार भरा जाए तो 10 लाख सरकारी पदों को आसानी से सृजित किया जा सकता है. हालांकि इससे बेरोजगारी का एक तिहाई हिस्सा ही दूर होगा. सीएमआईई के डाटा के अनुसार 11.9» बेरोजगारी दर और 38.5% श्रम भागीदारी के साथ बिहार में 36 लाख से अधिक बेरोजगार हैं.
इस नारे के साथ आरवाईए पूरे बिहार में नौजवानों के बीच रोजगार के सवाल पर विभिन्न जिलों में युवा कन्वेश्न व युवा संवाद आयोजित कर रहा है जिसमें सैकड़ो युवाओं की उत्साहजनक भागीदारी देखने को मिल रही है.
इस अभियान के पहले चरण में आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार और बिहार राज्य सचिव सुधीर कुमार के नेतृत्व में 28 दिसंबर से 10 जनवरी तक अलग-अलग जिलों का दौरा किया गया. पहले चरण में अरवल, पटना, आरा, समस्तीपुर, बेतिया, गोपालगंज, सिवान, जहानाबाद और कटिहार का दौरा किया गया और युवा कन्वेंशन कर युवाओं से संगठन का विस्तार करने, रोजगार के सवाल पर नौजवानों को गोलबंद करने और बजट सत्रा में विधानसभा को घेर लेने का आह्वान किया गया. 29 दिसंबर को पटना के फुलवारी शरीफ में आयोजित हुए राज्य स्तरीय युवा कन्वेंशन और बैठक में इस अभियान को राज्य भर के नौजवानों के बीच ले जाने, संगठन का विस्तार करने व निर्णायक आंदोलन खड़ा करने की योजना बनाई गई.
अभियान के पहले चरण में 2 दिसम्बर 2020 को आरा के क्रांति पार्क में आयोजित युवा कन्वेशन को संबोधित करते हुए इंकलाबी नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व नवनिर्वाचित विधायक का. मनोज मंजिल ने कहा कि शिक्षा, स्वस्थ और रोजगार के लिए सदन से सड़क तक लड़ाई लड़ी जायगी, युवाओं से शिक्षा,स्वस्थ और रोजगार के लिए संगठित होने और आंदोलन में सरीख होने का आह्वान किया. वही अरवल में का. महानन्द प्रसाद, बेतिया में का. बीरेंद्र गुप्ता, जहानाबाद के काको में का. रामबली सिंह यादव आदि भाकपा(माले) विधायकों ने कन्वेंशन में शिरकत की. गोपालगंज में आयोजित कन्वेंशन को आरवाईए के राज्य उपाध्यक्ष व भोरे विधानसभा से भाकपा(माले) उमीदवार का. जितेंद्र पासवान ने संबोधित किया.
अभियान के दूसरे चरण में आरवाईए के राज्य सचिव सुधीर कुमार और शाहाबाद सारण प्रभारी शिवप्रकाश रंजन के नेत्तृव में छपरा, बक्सर, कैमूर, नालंदा, सहरसा, भागलपुर दरभंगा व बेगूसराय में युवा कन्वेशन और बैठकें आयोजित हुईं. 22 दिसम्बर 2020 को बक्सर जिले के डुमरांव में आयोजित युवा संवाद को आरवाईए के राज्य अध्यक्ष व डुमरांव के विधायक का. अजीत कुशवाहा ने संबोधित किया.
अभियान के तीसरे चरण में 10 जनवरी 2021 को रोहतास जिले के बिक्रमगंज में युवा संवाद आयोजित हुआ जिसे किसान नेता व भाकपा(माले) विधायक का. अरूण सिंह व का. मनोज मंजिल और 10 जनवरी को ही पटना जिले के बिक्रम में आयोजित युवा संवाद को विधायक का. संदीप सौरभ और आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने संबोधित किया.
आरवाईए ने पूरे बिहार में 1 लाख नौजवानों को सदस्य बनाने, राज्य के कई जिलों में सम्मेलन आयोजित करने और शिक्षा, स्वास्थ्य और 19 लाख रोजगार के सवाल पर आगामी बजट सत्र में दसियों हजार नौजवानों को पटना के सड़कों पर उतारने की योजना बनाई है.
– शिवप्रकाश रंजन