वर्ष - 29
अंक - 19
02-05-2020

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह पहला मौका है जब कोरोना जैसी महामारी की चपेट में पूरा देश आ गया है. राजस्थान भी इससे अछूता नहीं रहा बल्कि यह देश के सबसे प्रभावित राज्यों में चौथे स्थान पर है.

लाॅकडाउन: मुसीबतों के बीच एक और मुसीबत

केंद्र व राज्य सरकार द्वारा इस बीमारी के फैलने से रोकने व पीड़ितों के उपचार हेतु उठाए गए कदम कतई नाकाफी साबित हुए उल्टे संक्रमण को रोकने के प्रशासनिक उपाय के रूप में लगाए गए लाॅकडाउन व अन्य कदमों ने आम जनता की मुसीबतें बढ़ा दी हैं.

बिना किसी पूर्व तैयारी के और जनता के जानने-समझने व अपने स्तर पर कोई व्यवस्था करने का मौका दिए बिना सख्ती से लागू किए गए लाॅकडाउन ने सब व्यवस्था ठप कर दी. इसका सबसे अधिक शिकार गरीब मेहनतकश लोग हुए, जिसमें प्रवासी मजदूर बड़ी तादाद में हैं. इनमें सिर्फ छोटी बड़ी फैक्ट्रियों में काम करने वाले ही नहीं बल्कि रोजमर्रा की दिहाड़ी मजदूरी करने वाले, ठेला-रिक्शा चलाने वाले, कचरा बीनने वाले, फुटपाथ पर सोने वाले इत्यादि शामिल हैं जो लाखों की संख्या में हैं. इनकी कोई समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई है और सरकार के प्रयास भी सब को राहत नहीं पहुंचा पा रहे हैं.

प्रवासी मजदूर: जायें तो जायें कहां

प्रवासी मजदूरों का दर्द समझने के लिए भी समर्थ हेल्पलाइन के साथियों ने कई इलाकों में काॅलोनियों में जाकर वहां मजदूरों की हालत देखी और पाया कि एक-एक कमरे में 20 से लेकर 70 लोग तक रहने को मजबूर हैं. उनके रहने की जगहों पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है. इनमें सबसे ज्यादा बिहार व बंगाल के मजदूर हैं जो घर वापसी चाहते हैं. प्रशासन द्वारा की जा रही खाद्य सामग्री 2 दिन में खत्म हो जाती है और सभी मजदूरों के पास बचा हुआ पैसा भी खत्म हो गया है.

बिहार के रहने वाले हाशिम ने जो कि नाहरीका नाका में रहते हैं, बताया कि हमारे पास न पैसा बचा है ना खाने को राशन. कई-कई दिन भूखे रहकर समय गुजारना पड़ रहा हैं. बच्चों को भी पानी पिला कर रखना पड़ता है. ऐसे में अगर कोई सड़क पर निकलकर खाना मांगने के लिए आता है तो पुलिस द्वारा डंडे भी खाने पड़ते हैं. इस डर की वजह से हमारे सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. हम वापस घर जाना चाहते हैं. कृपया हमें हमारे परिवार तक पहुंचाएं. अगर मरना ही है तो क्यों ना परिवार के पास जाकर मरे.

अभी हाल ही में सीकर में वहां के स्थानीय दबंगों ने पुलिस के साथ मिलकर प्रवासी मजदूरों को जिन घरों में वे रहते थे वहां से खदेड़ दिया. ये मजदूर जब नजदीकी पटरियों पर जाकर डेरा डालने लगे तो वहां से भी इन्हें मार मार कर भगा दिया गया. इस दौरान बच्चों और महिलाओं को भी नही बख्शा गया. यह भी दर्शाता है कि जो मजदूर हमें हमारे काम करने के लिए चाहिए होता है आज उसकी फिक्र किसी को नही है, न ही उन्हें जिनके यहां यह काम करते थे और न ही सरकार को. फैक्ट्री मालिकों ने भी मजदूरों के फोन तक उठाने बन्द कर दिये हैं.

फैक्ट्री मजदूरों की हालत और खराब है. बिहार निवासी सद्दाम ने बताया कि जिस फैक्ट्री में वह काम करता था वहां का मालिक भी फोन नहीं उठा रहा है. काम बंद हो गया है. खाने के लाले पड़े हैं. फोन उठाना तो दूर जो उसका बकाया था उसका भुगतान भी वह नहीं कर रहा है. ऐसे हजारों मजदूर जयपुर की सड़कों पर है जिनके फैक्ट्री मालिकों ने उनसे मुंह मोड़ लिया है और इन मजदूरों को भूख से मरने के लिए छोड़ दिया है. सरकार ने इस पर कई कानून बनाए हैं पर वे कानून किसी भी तरह से लागू नहीं हो रहे हैं.

सरकारी राहत: यानी ऊंट के मुंह में जीरा

बिहार के कटिहार जिले के रहने वाले लतीफ ने बताया कि अगर कभी-कभार राशन आता भी है तो केवल स्थानीय लोगों को दिया जाता है जो यहां के पार्षदों में नेताओं के वोट बैंक हैं. पूरे जयपुर की स्थिति यही है कि जो यहां का वोटर नहीं है और जो लाखों की संख्या में बिहार, बंगाल, यूपी का मजदूर यहां हैं, उनकी किसी को भी चिंता नहीं है. उन तक जो सरकारी राहत सामग्री पहुंच रही है वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. सरकारी राहत सामग्री 5 किलो आटा उन्हें एक महीने के लिए दिया गया है जबकि घर में लोगों की संख्या कमे से कम 5 है. राज्य सरकार भी अब हाथ खड़े करने लगी है क्योंकि केंद्र से उन्हें कोई राहत पैकेज नहीं दिया जा रहा है. इस वजह से स्थिति और विकट होती जा रही है.

समर्थ हेल्पलाइन: राहत पहुंचाने का संकल्प

ऐसे में अनेकों संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर पीड़ित लोगों को राहत पहुंचाने में सामने आई हैं. अनेक शिकवे शिकायतों और कमजोरियों के बाद भी इन संस्थाओं ने अपने-अपने स्तर पर अपनी क्षमता के अनुसार काम किया है और कर रही हैं.

जयपुर शहर में राहत कार्य में जुड़ी सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाओं में से एक समर्थ हेल्पलाइन ने अपनी क्षमताओं से परे जाकर सराहनीय कार्य किया है और 22 मार्च के बाद से हजारों भूखे परिवारों को पका हुआ भोजन, खाद्य सामग्री, पीने का पानी, बच्चों के लिए दूध, बिस्किट, फल, दवाईयां, कैश हेल्प, मास्क आदि उपलब्ध कराए हैं.

समर्थ हेल्पलाइन से जुड़े अग्रणी कार्यकर्ता भाकपा, माकपा और भाकपा(माले) से हैं. इनमें से माकपा की सुमित्रा चोपड़ा पार्टी की जयपुर जिला सचिव हैं. राहुल चौधरी भाकपा(माले) के जयपुर जिला सचिव हैं तथा निशा सिद्धू भाकपा की राज्य नेता हैं. साथ ही भाकपा(माले) के राज्य सचिव महेंद्र चौधरी भी हैं जिन्होंने इस हेतु डोनेशन दिलवाया. इनके अलावा इन संगठनों से जुड़े ईशा शर्मा, अमरजीत सिंह, सनी सुमित शर्मा, संजू, मिनाक्षी, मंजू लता, ममता जाखड़, नवीन कुमार, संजय माधव, रितांश व अन्य कई युवा साथी हैं. इसमें एआइआरएसओ, एआइएसएफ, आइसा, ऐडवा, ऐपवा व ऐक्टू भी शामिल हैं. यह पूरी टीम एक केंद्र समर्थ हेल्पलाइन से जो रात-दिन कार्यरत है जो राहत कार्य हेतु राशि व राहत सामग्री एकत्र करने के अलावा जरूरतमंदों की सूची बनाने और उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का काम करती है. इसके अलावा यह राज्य सरकार व प्रशासनिक अधिकारियों से जनता की समस्याओं व मांगों को लेकर भी संपर्क बनाए रखे हुए हैं ताकि प्रशासनिक स्तर पर जो संभव हो सके किया जा सके.

समर्थ हेल्पलाइन का अस्तित्व में आना भी एक अत्यंत दुखद घटना के बाद हुआ जब समर्थ सिंह सिद्धू की 15 मार्च को एक दर्दनाक सड़क हादसे में अपने दोस्त रौनक ठाकुर के साथ मृत्यु हो गई. वह एक होनहार युवा कम्युनिस्ट जो समाज के प्रति समर्पित था और एक रंगकर्मी, फोटोग्राफर व सामाजिक कार्यकर्ता भी था. इन तीन वामपंथी आदरणीय कार्यकर्ताओं ने अपने प्रिय समर्थ सिद्धू की दर्दनाक मौत के दुःख को सीने में लिए हुए 23 मार्च को शहीद-ए-आजम भगत सिंह और साथियों की शहादत दिवस पर समर्थ को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी याद में पीड़ित परिवारों की सहायतार्थ समर्थ हेल्पलाइन शुरू करने का निर्णय लिया और उसमें समर्थ के फोन नंबर दिए ताकि उसके अपने मित्र भी जुड़ सकें तथा एक बैंक अकाउंट नंबर (पंजाब एंड सिंध बैंक का) भी दिया.

दुख को बनाया ताकत

समर्थ हेल्पलाइन को शुरुआत से ही सहयोग मिला और 500 से लेकर 1000 तक की राशि व सामग्री मित्रों, दोस्तों, हमदर्द लोगों और दानदाताओं की तरफ से आनी शुरू हो गई. शुरुआती तौर पर नंदपुरी जयपुर के गुरुद्वारा साहिब ने 600 लोगों का खाना तैयार कर रोजाना देना शुरू किया जो कि 15 अप्रैल तक जारी रहा. किसी अन्य गुरुद्वारे में कोरोना वायरस पाॅजिटिव के पाए जाने के बाद इस लंगर पर प्रशासन ने पाबंदी लगा दी. इसके अलावा केसर कान्हा रेस्टोरेंट, आर्य समाज राजा पार्क, शाहीन बाग की कार्यकर्ता सबीहा जी, सोडाला से गिरीश कुमार शर्मा, राजकुमार बागड़ा, संजीव खुनेजा का भी सराहनीय सहयोग रहा. इसके अलावा अन्य अनेक जगहों से खाना बनाकर देने की शुरुआत हुई. जिन लोगों का हमसे कोई संपर्क नहीं था उन लोगों ने भी अपने आप से परिवार के साथ मिलकर खाना बना कर दिया. कईयों ने यह भी पेशकश की कि यदि आप हमारे यहां से पका हुआ खाना ले जा कर सकते हो तो हम खाना बना कर दे सकते हैं. कार्यकर्ताओं के अभाव में इस तरह का भोजन संकलित करना व वितरित करना मुश्किल काम था.

समर्थ हेल्पलाइन न सिर्फ दिन-रात एक करके जरूरतमंदो तक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए सराहनीय कार्य कर रही है बल्कि तीनों वामपंथी पार्टियों के तीन अग्रणीय नेताओं का एक साथ एक ध्येय के लिए दिन-रात काम करना भी प्रेरणादायक है. इस हेल्पलाइन को ईटीवी न्यूज़, न्यूज़ 18, आकाशवाणी ने भी दिखाया और उन्होंने समर्थ हेल्प लाइन के इस कार्य को ‘दुख को बनाया ताकत’ कहकर प्रशंसित किया.

सबने साथ निभाया, सबने हाथ बंटाया

जयपुर के पास किसान सभा से जुड़े किसान कार्यकर्ताओं ने 5 क्विंटल गेहूं दिया और उन्होंने इस क्षेत्रा से गेहूं एकत्रित कराने का भी कहा. लेकिन कृषि लाॅकडाउन के कारण आटा चक्कियों के बंद होने से उनके प्रस्ताव को छोड़ना पड़ा. इसके अलावा लोगों को यहां से आने जाने के लिए ट्रांसपोर्ट, लीगल हेल्प और आवश्यकता पड़ने पर पुलिस व प्रशासन से सहायता प्रदान करने का काम भी किया.

सूखा राशन में 17 अप्रैल तक 2250 किलो चावल, 3000 किलो आटा, आधा लीटर खाने के तेल के 500 पैकेट, 1265 पैकेट दलिया व अन्य सामग्री वितरित किया. समर्थ हेल्पलाइन को आम जन सहयोग से आर्थिक सहायता भी प्राप्त हुई है. पका हुआ भोजन व खाद्य सामग्री के अलावा देश की अन्य नामी-गिरामी संस्थाओं अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की तरफ से 700 राशन किट तथा जोमैटो की तरफ से 70 किट जो क्रमशः 5 लाख रु. व 50 हजार रु. की थी, 17 अप्रैल 2020 के बाद प्राप्त हुई.

समर्थ हेल्प लाइन ने 1000 भूखे परिवारों को चिन्हित किया. प्राथमिकता उनको दी जिनके यहां कोई सुविधा नहीं है. दैनिक मजदूर फुटपाथ वाले, कचरा बीनने वाले व अन्य जिनके पास कोई साधन नहीं था तथा उन तक कोई पहुंचता नहीं था. प्रतिदिन 1000 लोगों का भोजन विभिन्न जगहों से एकत्रित करना और फिर उन्हें जरूरतमंदो तक पहुंचाने का काम 23 मार्च के बाद से 17 अप्रैल तक निरंतर जारी रखाप्रमुख क्षेत्र जहां भोजन वितरण किया जाता रहा उनमें करतारपुरा नाला, नाहरी का नाका, टोरडी हरमाड़ा, त्रिवेणी नगर, प्रताप नगर, सांगानेर, सीतापुरा, मानसरोवर, खातीपुरा, जगतपुरा, पालड़ी मीणा, जवाहर नगर, आदर्श नगर, झोटवाड़ा, हथरोई, सुभाष चौक, महाराष्ट्र मंडल भवन (चाणक्य मार्ग), ब्रह्मपुरी कागजीवाड़ा, जालूपुरा हैं. इसके अलावा चौड़ा रास्ता, संजय काॅलोनी, आरपीए रोड, रामगंज, तोपखाना हजूरी, कोहिनूर सिनेमा इत्यादि क्षेत्र हैं जहां नियमित पका हुआ भोजन वितरित करने का काम किया गया. इसके अलावा जहां से टेलीफोन के जरिए सहायता मांगी गई वहां-वहां सामग्री पहुंचाने का काम किया जाता रहा. पका हुआ भोजन वितरण करने के अलावा समर्थ हेल्प लाइन ने खाद्य सामग्री जिसमें आटा, दाल, चावल, तेल, दलिया, फल, फ्रूट और इसके अलावा पीने का पानी, साबुन, दूध, मेडिकल हेल्प मास्क, सैनिटाइजर, बच्चों के लिए बिस्कुट इत्यादि भी वितरित किए. इस काम को करने के लिए तीन गाड़ियों का परमिशन प्रशासन से शुरू में ही ले ली गई और गाड़ियों में खाने के अलावा अन्य सामग्री भी साथ रखी जाती रही ताकि जहां, जिसे, जिस चीज की आवश्यकता हो, वह दी जा सके.

– तारा सिंह सिद्धू