वर्ष - 29
अंक - 28
15-07-2020

10 जुलाई को मैसूर में कामरेड बुद्ध (मरिदंडैया) का ब्रेन ट्यूमर से निधन हो गया. भाकपा(माले) उन्हें सलाम करती है और उनकी स्मृति में अपना लाल झंडा झुकाती है.

कामरेड बुद्ध ने 1990-दशक के अंत में कर्नाटक से लोकसभा चुनाव लड़ा था. वे न केवल कर्नाटक से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले भाकपा(माले) के पहले उम्मीदवार थे, बल्कि पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पार्टी का लाल शाॅल लेकर पूरा चुनाव लड़ा. उसके बाद, यह लाल शाॅल कुलकों और धनी किसानों के हरे शाॅल के खिलाफ गरीब किसानों और खेत मजदूरों के लाल आन्दोलन की पहचान बन गया.

कर्नाटक में किसी उल्लेखनीय पार्टी संगठन की गैर-मौजूदगी और वामपंथी आन्दोलन की अनुपस्थिति में उन्हें मिले लगभग 5,000 वोट काफी उल्लेखनीय हैं, जो कामरेड बुद्ध की अपनी लोकप्रियता के चलते ही हासिल हुए थे. इससे हमें कर्नाटक में पार्टी का काम आगे बढ़ाने का हौसला मिला, क्योंकि तब तक इस राज्य में हमारी पार्टी का कामकाज न के बराबर था. चुनाव में हमारी वह भागीदारी कामरेड बुद्ध की अपनी लोकप्रियता के साथ मिलकर पार्टी की क्रांतिकारी राजनीति की अग्रगति के लिए शुरूआती आवेग बन गया.

कर्नाटक में अपने पार्टी कार्यों के आरंभ में जब हमने खेत मजदूरों, शहरी असंगठित मजदूरों और झुग्गी-झोपड़ी वासियों के बीच पार्टी कार्य केंद्रित करने का फैसला लिया, तब मैंने खासकर कामरेड बुद्ध के साथ मैसूर में काफी वक्त गुजारा. अशोकापुरम और आसपास के इलाके हमारी प्रयोगभूमि थे. बंगलोर के बाहर कर्नाटक में हमारे काम के पहले चरण में कामरेड बुद्ध ने मैसूर में जो जन कार्य किया, वह हमारा पहला प्रयोग था.

कामरेड बुद्ध मैसूर के सफाईकर्मियों और अन्य असंगठित मजदूरों समेत मेहनतकश दलित समुदायों के सबसे प्रिय नेता थे. शहर की एक सबसे बड़ी दलित बस्ती अशोकापुरम से आने के चलते वे पूरे शहर में काफी जाने-पहचाने चेहरा थे.

चुनावों के दौरान भी, जब हम उन्हें चुनाव अभियान के लिए खोज रहे होते थे, वे किसी सरकारी दफ्तर में वार्ता के लिए पहुंचे होते थे, क्योंकि किसी वृद्ध महिला ने उनसे कहा था कि उसे पेंशन नहीं मिल रहा है. अशोकापुरम स्थित उनके छोटे से दफ्तर में, जिसे कुछ वर्षों तक हमने पार्टी कार्यालय के बतौर भी इस्तेमाल किया था, जो कोई भी जाता था उसे उनकी मदद जरूर मिलती थी. उनके लिए यह हमेशा दुविधा का विषय बना रहता था कि वे पार्टी बैठकों में आएं और दूरगामी संघर्षों की योजना बनाएं, या कि गरीब असहाय कामगारों के सवालों को लेकर सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाएं, ताकि उनकी कुछ समस्याओं का निराकरण हो सके.

कम्युनिस्ट दर्शन को लेकर उनकी समझदारी के बारे में सवाल हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा सादगी-भरा जीवन जिया, कठोर मेहनत की और जनता के कल्याण के लिए ही समय व्यतीत किया. गरीबों और पद-दलितों की सेवा के प्रति उनकी संकल्पबद्धता पर कोई सवाल पैदा नहीं हो सकता है. वे एक समर्पित, निःस्वार्थ, अनुशासित, ईमानदार और मौन सेवक थे, और जनता के कल्याण के लिए लड़ने वाले योद्धा थे.

लाल सलाम कामरेड बुद्ध !