भारत में फेक न्यूज की महामारी “सोशल मीडिया” की तथाकथित गैर-जवाबदेह प्रकृति के चलते नहीं है. यह “अराजकता” की वजह से भी नहीं है. फेक न्यूज प्रणालीबद्ध ढंग से ‘संघ’ के फेक न्यूज और फोटोशाॅप उद्योग में उत्पादित होता है और इसे उसी राजनीतिक तंत्र के द्वारा फैलाया जाता है जिसके जरिए मोदी प्रधानमंत्री चुने गए. इस तंत्र में खुद मोदी समेत राजनीतिक रहनुमा शामिल हैं और इनके साथ-साथ टेलिविजन चैनल तथा इनके एंकर और सोशल मीडिया पर सक्रिय भाजपा का आइटी सेल शामिल हैं.
प्रसिद्ध नेताओं ने हमेशा अपनी उपलब्धियों के बारे में, इतिहास के बारे में, तथ्यों के बारे में झूठ बोला है. अतीत में राजनीतिक शक्तियों ने प्रिंट मीडिया में और अपने भाषणों में अक्सरहां झूठी खबरें फैलाकर सांप्रदायिक हिंसा पैदा की है. लेकिन मोदी सरकार भारत की पहली सरकार है जो इतने बड़े पैमाने पर शासन के स्थायी औजार के बतौर फेक न्यूज का इस्तेमाल कर रही है. निश्चय ही, सोशल मीडिया टेक्नोलाॅजी ने इतने भारी पैमाने पर फेक न्यूज की वृद्धि को सहज बना दिया है और मनोरंजन बनते जा रहे टेलिविजन ‘न्यूज’ कार्यक्रम खोजी पत्रकारिता से कहीं ज्यादा एंकरों के प्रदर्शन पर निर्भर हो गए हैं. लेकिन आज मोदी सरकार तथा भाजपा का आइटी सेल भारत में फेक न्यूज की महामारी के पीछे की संचालक शक्ति बन गए हैं.
इस आलेख में हम भारत में फेक न्यूज की मुख्य श्रेणियों के बारे में पाठकों को आगाह करेंगे, सरकारी उपलब्धियों के बारे में फेक, फेकू और फोटोशाॅप-कृत दावे.
इस मामले में मोदी सबसे बड़े रहनुमा हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने “गुजरात माॅडल” के बारे में लंबे-चौड़े अतिशयोक्तिपूर्ण दावे किए थे. तथ्य खोजने वालों ने इस “मॉडल” का बारंबार भंडाफोड़ किया था, लेकिन फिर भी इसे मोदी के भाषणों में और साथ ही टीवी एंकरों और भाजपा के सोशल मीडिया “योद्धाओं” के प्रचार में बारंबार दुहराया गया.
प्रधान मंत्री बनने के बाद मोदी और उनकी सरकार इस झूठबाजी के सहारे आगे बढ़ते रहे. एक उदाहरण देखिए: फरवरी 2017 में बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) की एक रैली में प्रधान मंत्री मोदी ने दावा किया, “हमने प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के नाम से एक ऐसी फसल बीमा योजना शुरू की है – जहां अगर प्राकृतिक कारणों से बुवाई के समय भी फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है, तो किसानों को बीमा का लाभ मिलेगा. क्या किसी ने पहले ऐसी योजना देखी है?” ऑल्टन्यूज ने पाया कि “प्रधान मंत्री मोदी का यह दावा गुमराह करने वाला था. जैसा कि ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में खबर छपी है, किसानों के लिए पहले की एक बीमा योजना के अंतर्गत ‘मौसम-आधारित फसल बीमा योजना’ नामक एक उप-योजना होती थी.”
मोदी के मंत्रियों ने उनकी सरकार की उपलब्धियों के सबूत के बतौर दूसरे देशों के फोटो ट्वीट किए हैं. एक ‘शाइनिंग’ उदाहरण देखिए – 2017 में बिजली, कोयला, नई व नवीकरणीय ऊर्जा और खान मंत्री पीयूष गोयल ने इस दावे के समर्थन में रूस से एक फोटो ट्वीट किया कि “सरकार ने भारत की 50,000 किमी. सड़कों पर 30 लाख पारंपरिक स्ट्रीट लाइट्स की जगह एलईडी बल्ब लगाकर उन सड़कों को जगमगा दिया है.” पीयूष गोयल ने एक फोटो का इस्तेमाल कोयला खनन के संवर्धन के लिए कोयला खदानों द्वारा नष्ट किए गए लैंडस्केप को दिखाने और अपने मंत्रालय की उपलब्धियों का बखान करने में किया.
गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय सीमाओं पर फ्लडलाइटिंग (चकाचौंध रोशनी) दिखाने के लिए स्पेन-मोरक्को बोर्डर की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है.
केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने 2017 में एक आदर्श बस स्टैंड का ‘प्रतिनिधिमूलक फोटो’ ट्वीट करते हुए दावा किया कि वह राजकोट में एक नया बस स्टैंड है. ‘यह हवाई अड्डा नहीं है ? यह लंदन या न्यूयाॅर्क में नहीं है? यह राजकोट, गुजरात में शुरू किया गया नया बस स्टैंड है ???’
2015 में प्रेस सूचना ब्यूरो ने मोदी की एक फोटोशाॅप-कृत तस्वीर ट्वीट की, जिसमें उन्हें चेन्नै के बाढ़-ग्रस्त इलाकों का दौरा करते दिखाया गया है.
इस काम में भी मोदी अग्रणी हैं और वे विरोधियों, आलोचकों और यहां तक कि ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और पूर्व प्रधान मंत्रियों के बारे में भी लगातार झूठी खबरें परोसते रहते हैं.
गुजरात चुनाव के दौरान उन्होंने पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पर यह झूठा आरोप लगाया (इस आरोप को झूठा साबित किया जा सकता है) कि वे गुजरात में भाजपा को पराजित करने के लिए मणिशंकर अय्यर के घर पर एक पाकिस्तानी राजनयिक से मिले थे! आर्मी स्टाफ के पूर्व अध्यक्ष दीपक कपूर, जो उस मुलाकात की जगह पर मौजूद थे, ने यह स्पष्ट कहा था कि उस दौरान गुजरात चुनाव पर कोई चर्चा नहीं हुई थी. लेकिन मोदी ने अपने इस झूठ के लिए कभी माफी नहीं मांगी.
कर्नाटक में एक चुनावी भाषण में मोदी ने दावा किया कि फ्1948 में हमने जनरल तिमैया के नेतृत्व में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीता. लेकिन युद्ध के तुरंत बाद, तत्कालीन प्रधान मंत्री (जवाहर लाल) नेहरू और तत्कालीन प्रतिरक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने बार-बार जनरल थिमैया का अपमान किया.” तथ्य क्या हैं ? थिमैया 1948 में सेना-प्रमुख थे ही नहीं, वे नौ वर्ष बाद 1957 में सेनाध्यक्ष बने थे; और कृष्णमेनन भी 1948 में भारत के रक्षा मंत्री नहीं थे. यहां भी मोदी ने न माफी मांगी, न अपनी गलती सुधारी.
भाजपा के आइटी सेल ने कई बार यौनवादी संदेशों के साथ झूठी तस्वीरें प्रसारित की हैं, जिनमें यह बताया गया है कि नेहरू और सोनिया गांधी “पतित” यौन नैतिकता वाले इंसान हैं. भाजपाई आइटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने एक महिला के साथ नेहरू की तस्वीरों का एक कोलाॅज ट्वीट करके यह कहना चाहा है कि नेहरू व्यभिचारी थे. इस फोटो में नेहरू को अपनी बहन और भांजी को आलिंगन करते, नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई (जो उनके साथी स्वतंत्रता सेनानी अम्मू स्वामीनाथन की बेटी थी) को गले लगाते, अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी जैकलिन केनेडी को परंपरागत ‘तिलक’ लगाते, माउंटबेटन की सबसे छोटी बेटी पामेला को विदा करते, और एडविना माउंटबेटन के साथ हंसते दिखाया गया है. इसी तरह, मोदी और योगी का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया द्वारा पन्नों में नायिकाओं उर्सुला एंड्रेस, रीस विदरस्पून, और मर्लिन मुनरो की तस्वीरें दिखाकर यह दावा किया गया कि ये सोनिया गांधी की तस्वीरें हैं जिसमें वे “भारतीय सांस्कृतिक मानकों” के प्रति अ-सम्मान जता रही हैं. इन पन्नों में सोनिया गांधी और मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के मुलाकात की एक फोटोशाॅप-रचित तस्वीर पेश की गई है, जिसमें सोनिया गांधी को गयूम की गोद में बैठी दिखाया गया है.
ऑन लाइन ‘संघियों’ ने पत्रकार राणा अयूब को बदनाम करने के लिए अश्लील वीडियो का इस्तेमाल किया है और संघी साइटों (जो अश्लील तस्वीरों के जरिए पैसा कमाते हैं) ने भाकपा(माले) नेता कविता कृष्णन को बदनाम करने के लिए झूठी अश्लील खबरें प्रसारित की हैं.
भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगडे ने ट्वीटर पर जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया को एक महिला मित्र के साथ वाला फोटो दिखाकर यह दावा किया कि एक शिक्षिका के साथ कन्हैया की अनुचित अंतरंगता है. इस सांसद को कौशल विकास राज्य मंत्री बना दिया गया !
बेशक, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले फेक न्यूज ने सबसे बड़ा नुकसान किया है, क्योंकि ऐसी झूठी खबरों से हिंसा और लिंचिंग को उकसावा मिलता है. दक्षिण-पंथी प्रचार वेबसाइट ‘पोस्ट कार्ड न्यूज’, जिसका हवाला मोदी के मंत्रीगण और भाजपा नेता अक्सरहा दिया करते हैं, में लगातार ऐसी झूठी खबरें प्रसारित की जाती हैं. इसके संस्थापक महेश हेगडे को एक बार गिरफ्तार भी किया गया था, क्योंकि उसने मोटर सायकिल दुर्घटना में घायल हुए एक जैन साधु की तस्वीर को ट्वीट करते हुए दावा किया कि कांग्रेस-शासित कर्नाटक में उस पर एक मुस्लिम नौजवान ने हमला किया था. भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा और मोदी के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगडे ने ट्वीटर पर महेश हेगडे को रिहा करने की मांग की. मजेदार बात तो यह है कि फेक न्यूज विषय पर गोदी मीडिया के कार्यक्रमों में महेश हेगडे को बुलाया जाता है.
यकीनन, मंत्री अनंत कुमार हेगडे का भी सांप्रदायिक फेक न्यूज फैलाने का एक इतिहास रहा है. उसने ट्वीट किया कि इस्लाम की नकेल थामनी होगी; कि चर्च व्यावसायिक रूप से संचालित धर्म परिवर्तन संस्था मात्र है; और कि अगर बौद्ध धर्म आड़े न आता तो अखंड भारत को साकार किया जा सकता था. अपने ट्वीट्स में वह इंदिरा गांधी व मैमूना बेगम और ममता बनर्जी को मुमताज बताता है – पोस्ट कार्ड न्यूज प्रायः इन महिला नेताओं के साथ ये नाम यह बताने के लिए लगाता है कि ये ‘छिपे तौर पर मुस्लिम’ हैं. 2015 में एक ट्विटर हैंडल अमितेश सिंह बीजेपी, जिसे प्रधान मंत्री फाॅलो करते हैं, ने हैशटैग गोधरा एगेन का इस्तेमाल करते हुए शामली शहर में एक रेल रोको प्रतिवाद को मुस्लिम भीड़ द्वारा एक पैसेंजर ट्रेन पर हमला करते हुए चित्रित किया. जब दिल्ली में कचरा चुनने वालों ने एक पुराना मृत मोर्टार-गोला पाया, तो प्रधान मंत्री द्वारा फाॅलो किए जाने वाले एक ट्विटर हैंडल में इस खबर को “प्रधान मंत्री मोदी पर हमले की योजना” बताया गया, जो “200 मीटर की दूरी पर (सभा) संबोधित करने वाले थे.”
दिल्ली के एडवोकेट प्रशांत पटेल उमराव, जो हिंसा और लिंचिंग भड़काने वाली झूठी खबरों तथा नफरत-भरी प्रचार सामग्रियों के नियमित आपूर्तिकर्ता हैं, एक चुनिंदा “सोशल मीडिया योद्धा” हैं. ये जनाब 21 जून 2018 को दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील प्रशांत पटेल उमराव ने एक ट्वीट में झूठा दावा किया कि “280 अनाथ नाबालिग लड़कियों को टेरेसा मिशनरी में गर्भवती बनाया गया और उनके बच्चों को व्यापार के लिए विदेश भेज दिया गया.” 6 जुलाई 2018 को उमराव ने झूठा दावा किया कि “मुस्लिम समुदाय ने सार्वजनिक स्थलों पर ‘माता की चौकी’ तथा अन्य हिंदू रस्मों को मनाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है.” 28 जुलाई 2018 को उमराव ने वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई पर यह झूठा आरोप लगाया कि उन्होंने बयान देकर एक हजार हिंदुओं को मार डालने का आह्वान किया था – सरदेसाई ने उमराव के खिलाफ पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई.
गोदी मीडिया ने भी बारंबार झूठी खबरें फैलाई हैं और न तो कभी इसका खंडन किया, और न कभी माफी मांगी. ‘रिपब्लिक टीवी’ ने पोस्ट कार्ड न्यूज द्वारा गढ़ी गई झूठी खबर प्रसारित कर दी कि बिजली बिल का भुगतान न करने की वजह से जामा मस्जिद अंधेरे में पड़ी हुई है. ‘आज तक’ ने एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी पर आधारित एक झूठी खबर चलाई – “सउदी अरब में फतवा कि अगर भूख लगे तो पुरुष अपनी पत्नियों को खा सकते हैं.” ‘टाइम्स नाऊ’ ने केरल में क्रिश्चियन मिशनरी द्वारा जारी “धर्मांतरण दर कार्ड” के बारे में एक झूठी कहानी प्रसारित की.
‘रिपब्लिक’ और ‘टाइम्स नाऊ’ जैसे झूठी खबरें फैलाने वाले चैनल फेक न्यूज साइट ‘पोस्ट कार्ड न्यूज’ के संस्थापक महेश हेगडे को झूठी खबरों के खिलाफ टीवी कार्यक्रम में ‘एक्सपर्ट’ के बतौर बुलाते हैं ! इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी ?
अप्रैल 2018 में कम से कम 13 केंद्रीय मंत्रियों ने एक वेबसाइट ‘दट्रूपिक्चर.इन’ पर एक लिंक को ट्वीट किया जिसमें “चार बड़ी झूठी खबरों” का भंडाफोड़ करने का दावा किया गया था. सात मंत्रियों ने एक ही टिप्पणी लिखी “फेक न्यूज के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं.” इस वेबसाइट ने अपना लैंडलाइन टेलिफोन नंबर ब्लू कार्ट डिजिटल फाउंडेशन के साथ साझा किया है, जो परीक्षा-तनाव का मुकाबला करने में बच्चों की मदद करने के लिए प्रधान मंत्री मोदी द्वारा लिखित नवीनतम पुस्तक “एग्जाम वारियर्स” का ‘टेक्नोलाॅजी एवं ज्ञान’ पार्टनर है.
इस वेबसाइट के अनुसार, गुजरात में एक घोड़ा रखने के लिए एक दलित की हत्या के बारे में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी कहानी झूठी थी – इस मामले में दर्ज एफआइआर का हवाला देते हुए वेबसाइट में कहा गया कि यह “फेक न्यूज” है, क्योंकि यह “दलित बनाम ऊंची जाति का मुद्दा” नहीं था.
इस प्रकार, झूठी खबरें फैलाने वालों को ही मोदी सरकार और इसके प्रचारक सच की खोज करने वालों के बतौर उछाल रहे हैं. इसी बीच, फेक न्यूज पर अंकुश लगाने के नाम पर मोदी सरकार ने पत्रकारों की मान्यता से संबंधित गाइडलाइन में संशोधन किया है जिसके अनुसार अगर किसी पत्रकार को पफेक न्यूज “बनाते और/ अथवा फैलाते” पाया जाएगा, तो उस पत्रकार की मान्यता निलंबित या हमेशा के लिए खारिज कर दी जाएगी. इसमें कहा गया है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और समाचार प्रसारण संघ (एनबीए) – क्रमशः प्रिंट और टेलिविजन मीडिया के लिए दो नियामक निकाय – यह निर्धारित करेंगे कि कोई खबर झूठी है या नहीं. यह बात सर्वविदित है कि भाजपा और इसकी सरकार ने भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली खबरों को हमेशा ही ‘फेक न्यूज’ घोषित किया है और यहां तक कि पत्रकारों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर कर दिया है.