अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एशोसियेशन के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन (8-9 फरवरी, 2020) में भाग लेने के लिये समूचे देश के विभिन्न राज्यों से आ रही महिला प्रतिनिधियों का स्वागत करने के लिये राजस्थान के उदयपुर की सड़कें ऐपवा के झंडों, महिला आंदोलन के बैनरों व फेस्टूनों से पटी पड़ी थीं. सम्मेलन के सभी भागीदारों के दिल की गहराई में कामरेड श्रीलता स्वामीनाथन के लिये गहरी आत्मीयता का बोध था. कामरेड श्रीलता ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं और 5 फरवरी 2017 को उनका निधन हुआ था. वे हमेशा चाहती थीं कि ऐपवा का एक सम्मेलन राजस्थान में आयोजित किया जाए, क्योंकि इसी राज्य में उन्होंने कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के बतौर अपना अधिकांश जीवन गुजारा था. उनकी स्मृति को श्रद्धांजलि देने के लिये ऐपवा का सम्मेलन उनकी बरसी के सप्ताह में उदयपुर में आयोजित किया गया. इस अवसर पर आयोजन स्थल राजस्थान काॅलेज ऑफ एग्रिकल्चर का मुख्य सभागार, जहां सम्मेलन सम्पन्न हुआ, कामरेड श्रीलता के नाम समर्पित था, जबकि मंच का नाम शहीद कालीबाई मंच था. शहीद कालीबाई एक युवा आदिवासी महिला थीं जो सामंती प्रतिबंधों को तोड़ते हुए आदिवासियों के स्कूल में पढ़ाई करने के अधिकार की रक्षा के लिये लड़ी थीं और जून 1947 में पुलिस की गोली से शहीद हुई थीं.
सम्मेलन की शुरूआत में उदयपुर की सड़कों पर महिलाओं की एक विशाल रैली निकाली गई, जिसके दौरान ऐपवा नेताओं ने डा. अम्बेडकर की मूर्ति पर जाकर माल्यार्पण करके श्रद्धा निवेदन किया. जुलूस के दौरान ऐपवा के सदस्यों ने महिलाओं की आजादी और स्वायत्ता के नारे लगाये, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा, लिंग-आधारित हिंसा के पीड़ितों को न्याय के लिये तथा अत्याचारी सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ जोरदार नारे लगाये.
ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रोफेसर भारती एस. कुमार ने सम्मेलन कक्ष के बाहर ऐपवा का झंडा फहराया, और सभी ने महिला आंदोलन के सभी दिवंगत और शहीद कामरेडों की स्मृति में एक मिनट का मौन पालन किया.
उद्घाटन सत्र का आरम्भ “ऐपवा जिन्दाबाद” गीत की प्रस्तुति के साथ हुआ, जिस गीत की रचना स्वयं कामरेड श्रीलता ने 2016 में पटना में आयोजित ऐपवा सम्मेलन के लिये की थी. गीत की प्रस्तुति राजस्थान की युवा महिलाओं की एक टीम ने की. इस सत्र की अध्यक्षता ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. ई. रति राव ने की और संचालन ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कामरेड कविता कृष्णन ने किया. ऐपवा की महासचिव ने सभी प्रतिनिधियों एवं अतिथियों का राजस्थान में स्वागत किया जो विद्रोही कवि मीरा बाई की भूमि है जिन्होंने अपने अंतर्मन और विवेक की राह पर चलने के लिये राजरानी का अत्यंत प्रतिबन्धित जीवन त्याग दिया और संत-कवि बन गईं. उन्होंने फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले की साझी विरासत की भी चर्चा की, जिन्होंने लड़कियोें और महिलाओं की शिक्षा हासिल करने के लिये मनुवादी प्रतिक्रिया का साथ-साथ मिलकर सामना किया और उसके खिलाफ लड़ाई चलाई. उन्होंने कहा कि जिन मनुवादियों ने सावित्री और फातिमा पर टट्टी फेंकी थी, वही आज संविधान को हटाकर उसकी जगह मनुस्मृति को लाना चाहते हैं. इसी कारण आज भारत में फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध में महिलाएं और लड़कियां अगली कतार में खड़ी हो गई हैं, क्योंकि उनको पता है कि इसके फलस्वरूप सबसे ज्यादा उनको ही नुकसान भोगना होगा.
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने कहा कि अभी जो संघर्ष चल रहा है वह केवल इसलिये नहीं कि हमारी नागरिकता को स्वीकार किया जाये और उसका सम्मान किया जाये, बल्कि इसलिये कि आज नागरिकता पर संदेह जाहिर किया जा रहा है और उसे चुनौती दी जा रही है. यह संघर्ष हम सभी को नागरिक होने के नाते राज्य को हमारे सम्पूर्ण अधिकार तथा समस्त प्राप्य सुविधाएं देने की जो जिम्मेदारी है, उसके लिये दावेदारी भी है – हमें सम्मानजनक रोजगार मिले, स्वतंत्र और सर्वोत्तम शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो, तथा सभी को न्याय एवं समानता हासिल हो. राजस्थान में ऐडवा की पूर्व नेता सुमित्रा चोपड़ा, एनएसयूआई की नेता निशा सिद्धू ने भी पूरी गर्मजोशी के साथ ऐपवा सम्मेलन का अभिनन्दन किया.
अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की कानून की छात्रा सुमैय्या ने बताया कि किस तरह से एएमयू के छात्र-छात्राएं शैतानीभरे दमन के बरखिलाफ प्रतिरोध संघर्ष चला रहे हैं. उसके बाद, जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्राओं अख्तरिस्ता अंसारी एवं चन्दा यादव ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया और तमाम प्रतिकूलताओं का मुकाबला करते हुए जामिया में आंदोलन किस प्रकार जारी है, इसके बारे में सम्मेलन को बताया. ये दोनों छात्राएं उन चार महिलाओं में थीं जिन्होंने पुलिस की लाठियों से एक छात्रा की रक्षा की थी और उनके इस कारनामे ने समूचे देश को प्रेरणा दी.
कविता कृष्णन ने अपने वक्तव्य में सम्मेलन के प्रतिनिधियों को याद दिलाया कि असम में एनआरसी में जिन लोगों को बहिष्कृत कर दिया गया उनमें सत्तर फीसदी महिलाएं हैं जिसका कारण है कि उनके पास कोई दस्तावेज नहीं थे. उन्होंने कहा कि दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता साबित करने की अनिवार्यता का परिणाम महिलाओं के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक है.
सम्मेलन की एक अतिथि चर्चित कन्नड़ लेखिका एवं रंगमंच की कलाकार डी सरस्वती ने दलित एवं मजदूर वर्ग की महिलाओं के जीवन और संघर्षों के बारे में सम्मेलन को विस्तार से बताया. उन्होंने बुद्ध के जीवन की दो घटनाएं बताईं और आज हमारे जमाने में उनकी प्रासंगिकता के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि पितृसत्ता पूंजीवाद और कौमवाद में अच्छी तरह पनपती है इसलिए पितृसत्ता के विरुद्ध आंदोलन करते हुए पूंजीवाद और कौमवाद को समाप्त करना भी आवश्यक है. उन्होंने कहा कि संघर्षों में सबसे दलित और दमनित को सबसे आगे रखना चाहिए. महिलाओं की भागीदारी के बिना कोई भी आंदोलन अधूरा ही रहेगा. सफाईकर्मियों और कपड़ा मजदूरों के साथ काम करने वाली इस लेखिका ने कहा कि जो सफाईकर्मी हमारी सारी गंदगी को साफ करते हैं, वे हमारे समाज के आईने की तरह हैं.
उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि चर्चित पत्रकार राणा अय्यूब ने खुद अपने जीवन की दो घटनाएं सुनाकर इस बात पर चर्चा की कि लड़कियों को किस किस्म के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, साथ ही साम्प्रदायिक हिंसा भारत के मुसलमानों के जीवन पर जो अमिट घाव छोड़ जाती है उसके बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि 26 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी खोजी पत्रकारिता के जरिये नकली मुठभेड़ में मारे गये शेख सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी का सामूहिक बलात्कार और ठंडे दिमाग से हत्या के मामले का पर्दाफाश किया था, जिसके परिणामस्वरूप गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह को हत्या के आरोप में जेल भेजा गया था. उन्होंने समूचे भारत में शाहीनबागों में चल रहे महिलाओं के संघर्ष को सलाम किया, जो भारत के लोकतंत्र और अस्तित्व के संकट के लिये जीवन-मरण का संघर्ष लड़ रही हैं. उन्होंने कहा कि देश की महिलाओं का जमीर जाग गया है. अब जो दिल्ली में बैठै हैं उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि कब उनकी कुर्सी चली गयी.
उन्होंने कहा कि जिस समय में हम रह रहे हैं उसमें चुप रहना संभव नहीं है. समान्यतया पत्रकार का काम होता है खबरों को लोगों तक पहुंचाना. उसका काम अपनी राय व्यक्त करना नहीं होता. किन्तु हम जिस समय में रह रहे हैं उसमें चुप रहना एक विकल्प नहीं है. पत्रकार एक इंसान भी होता है और जब सड़क पर चलते किसी शख्स की हत्या कर दी जाती है तो हमें भी दर्द होता है. इस समय चुप रहना एक आप्शन नहीं है. उन्होंने कहा कि यह गांधी का देश है मगर दुर्भाग्य यह है कि आज यहां “वैष्णव जन तो तेने कहिए” की बजाय “गोली मारो सालों को” जैसे जुमले सत्ता में बैठे लोग प्रयोग कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी के इस कार्यकाल में यह हुआ है कि इसमे हमारी कड़ुवाहट को बाहर निकाल दिया है. अब यह सामने आ गया है कि कौन किधर है. यहां बैठे हम सभी देशप्रेमी हैं क्योंकि हम सभी को साथ रखना चाहते हैं. राणा अय्यूब ने कहा कि हिंदुस्तान मेरा मुल्क है और मैं इसे छोडकर कहीं नहीं जाने वाली.
राजस्थान के कामरेडों ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें सम्मेलन के स्मृतिचिन्ह भेंट किये. ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राजस्था की सचिव कामरेड सुधा चौधरी ने सभी अतिथियों एवं भागीदार प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया जिन्होंने उद्घाटन सत्र को शानदार ढंग से सफल बनाया.
ऐपवा सम्मेलन ने वरिष्ठ ऐपवा एवं भाकपा(माले) कार्यकर्ता कामरेड मीरा को भी सम्मानित किया, जिन्होंने सदन को सम्बोधित करते हुए यह दृढ़ विश्वास जाहिर किया कि फासीवाद के खिलाफ लड़ी जा रही मौजूदा लड़ाई को केवल सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिये सच्चे क्रांतिकारी संघर्ष के जरिये ही जीता जा सकता है.
8 फरवरी की रात को एक सांस्कृतिक समारोह आयोजित किया गया जिसमें राजस्थानी तीरा ताली ट्रूप ने राजस्थान के परम्परागत संगीत और नृत्य का प्रदर्शन किया. डी. सरस्वती ने अपनी बहु-प्रशंसित सान्तिम्मी रामायण का प्रदर्शन किया, जिसमें रामायण और सीता की कथा को एक दलित महिला मजदूर के परिप्रेक्ष्य से कहा गया है. उनका प्रदर्शन दिल में गर्मजोशी पैदा करने वाला था, जिसमें रामायण महाकाव्य की सुपरिचित कथा में कई सूक्ष्म बदलावों के जरिये दुनिया में पुरुष जो युद्धों को थोप देते हैं उसकी निन्दा की गई और सीता एवं शूर्पणखा के बीच नारीवादी मित्रता को महिमामंडित किया गया.
का. ई. रति राव, भारती एस. कुमार, कृष्णा अधिकारी, शशि यादव, प्रतिमा इंग्हिपी, इन्द्राणी दत्ता, सुवर्ण तालेकर और गीता कुमारी प्रतिनिधि सत्र के अध्यक्षमंडल के सदस्य थे. कामरेड मीना तिवारी ने पिछले तीन साल के कामकाज की रिपोर्ट पेश की और आज हम जिन चुनौतियों और हमलों का मुकाबला कर रहे हैं उनसे निपटने के लिये योजनाओं का ब्यौरा दिया.
सम्मेलन में असम, कार्बी आंग्लांग, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा अन्य राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने प्रतिनिधि सत्र में भाग लिया और प्रस्तुत दस्तावेज पर चर्चा की.
पटना से आई सांस्कृतिक टीम ‘कोरस’ ने सम्मेलन के दौरान जोशीले गीत प्रस्तुत किये और सीएए-एनपीआर-एनआरसी के साजिशाना एजेंडे का भंडाफोड़ करते हुए एक लघु नाटिका प्रस्तुत की.
सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने 117-सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद और 41-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव किया तथा का. मीना तिवारी को महासचिव एवं का. रतिराव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पुनर्निवाचित किया. सम्मेलन ने 25 फरवरी से लेकर 2 मार्च तक एक जन जागरूकता अभियान चलाने का फैसला लिया जिसके दौरान सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खतरों को रेखांकित करते हुए जन-जन तक प्रचार ले जाया जायेगा और हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी समेत तमाम समुदायों एवं धार्मिक समूह के लोगों के बीच आपसी सद्भावना एवं एकजुटता कायम रखने पर जोर दिया जाएगा.