वर्ष - 33
अंक - 50
07-12-2024

पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील के गांव राहुलनगर (मजदूर बस्ती) में शारदा नदी के बाढ़-कटाव पीड़ितों का 5 अक्टूबर 2024 से अनिश्चतकालींन धरना शुरू हुआ था जो 19 अक्टूबर से अनिश्चित कालीन क्रमिक भूख हड़ताल के रूप में आज भी जारी है. अनशन कारियों की मांग है कि धनारा घाट से खिरकिया तक पक्का तटबंध बनाया जाए, नदी कटान से कटी जमीन के बदले जमीन ढ़ी जाए व बाढ़-कटाव से बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा दिया जाए, साथ ही, चैनलाइजेशन मशीन से कम से कम 5 किलोमीटर तक शारदा नदी के शिल्ट को साफ कर नदी को पुरानी धार में पहुंचाया जाए.

उपरोक्त मांगों पर जारी इस आंदोलन के दौरान एक बार उप जिलाधिकारी पूरनपुर व तहसीलदार पूरनपुर आंदोलन स्थल पर गए थे. वे आश्वासन देकर इस आंदोलन को खत्म करवाना चाहते थे. लेकिन, आंदोलनकारी इसके लिए तैयार नहीं हुए. इसके बाद बाढ़ खंड के अधिकारियों के अलावा अभी तक कोई उच्च अधिकारी यहां नहीं पहुंचा है.

मालूम हो कि शारदा नदी के दोनों तरफ का यह पूरा क्षेत्र 70 के दशक में उत्तर प्रदेश सरकार की ‘गवर्नमेंट ग्रांट योजना’ नाम की एक योजना के तहत पूर्वांचल के बेरोजगारों को जमीन देकर यहां बसाया गया था. इसके लिए समाजवादियों व वामपंथियों ने जोरदार आंदोलन चलाया था. बाद में बांग्लादेश बनने के दौरान बहुत सारे लोग जब विस्थापित होकर भारत आए तो उनको उपनिवेशन योजना के तहत बड़ी संख्या में यहां बसाया गया था. इसी क्षेत्र में भाकपा(माले) द्वारा 1992 में 700 एकड़ से अधिक जमीन पर जन आंदोलन के द्वारा भूमिहीन मजदूरों को बसाया गया था. इस गांव को नाम दिया गया – राहुल नगर (मजदूर बस्ती). गांव का नामकरण प्राख्यात विद्वान राहुल सांकृत्यायन के नाम पर किया गया था.

यह पूरा क्षेत्र वर्षों से नदी कटान व बाढ़ की विभीषिका को झेल रहा है. दर्जनों गांवों की हजारों एकड़ जमीन और वन भूमि का बड़ा हिस्सा नदी कटान की भेंट चढ़ चुके हैं. नदी के दोनों तरफ ततरगंज से बहरोसा तक व बैजरिया से चंडिया हजारा तक का क्षेत्र इसकी चपेट में है. भाकपा(माले) ने इस क्षेत्र की कटान की समस्या को हल करने के लिए कई बार बड़े-बड़े आंदोलन चलाये हैं. आंदोलन की मुख्य मांग नदी के दोनों तरफ  पक्का तटबंध बनाने की रही है.

वर्ष 2018-19 में जब राहुल नगर में 9 घरों समेत सैकड़ों एकड़ जमीन कट गई तो यहां के निवासियों ने 52 दिनों तक क्रमिक भूख हड़ताल चलायी थी. भूख हड़ताल के दबाव में सरकार ने गांव बचाने के लिए नदी किनारे तिगड़ी लगायी थी. इस तिगड़ी की वजह से कटाव रुक गया और गांव बच गया.

2022-23 में एक बार फिर चंडिया हजारा व राहुल नगर में कटान शुरू हो गया. करीब 200 एकड़ जमीन नदी से कट गई. इसके बाद चंडिया हजारा, जो पंचायत का मुख्य गांव है और जहां बाजार है और बड़ी संख्या में बांग्ला भाषी आबादी है, के खेल मैदान में चंडिया हजारा क्षेत्र बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया. यह संगठन भाकपा(माले) की पहल पर बना था. आगे चलकर इस संगठन के बैनर तले 102 दिनों तक क्रमिक भूख  हड़ताल चलाई गई. इस आंदोलन को तोड़ने के लिए भाजपा के लोग, विधायक व प्रशासन बहुत सक्रिय रहे और अंततः नदी किनारे तटबंध बनाने, 5 किलोमीटर तक चैनलाइजेशन मशीन के द्वारा नदी का शिल्ट साफ कर नदी को मुख्य धारा में पहुंचाने व कटी हुई जमीन का मुआवजा देने की बात तय हुई थी. इसके बाद ही आंदोलन खत्म किया गया था.

लेकिन, आगे चलकर सिर्फ 1.5 किलोमीटर तक ही तटबंध बना और चैनलाइजेशन मशीन के जरिये सिर्फ एक किलोमीटर तक की शिल्ट साफ की गई. पूरा काम न होने के कारण जहां तक तटबन्ध बना था इस बार उसके आगे नदी ने और फैलाव लेकर राहुल नगर की करीब सौ एकड़ और खिरकिया-बरगदिया पंचायत की करीब दो सौ एकड़ जमीन काट ली. नदी के गांव के मुहाने पर आ जाने के बाद ही खिरकिया में ग्रामीणों ने धरना देना शुरू कर दिया. धरना के दौरान ही बाढ़ ने भयंकर रूप धारण कर लिया और गांव के लोगों को धरना खत्म कर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा. राहुल नगर, 6 नम्बर कालोनी समेत पूरा क्षेत्र जलमग्न टापू में तब्दील हो गया. लोगों के समान व मवेशी बह गए. तब जाकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हवाई सर्वे किया और चंडिया हजारा आये. बाढ़-कटाव से पीड़ित लोगों से उन्होंने बाढ़-कटाव रोकने का स्थायी समाधान करने का वायदा तो किया लेकिन पिछली बार चंडिया-हजारा आंदोलन के साथ जिन बिंदुओं पर समझौता किया गया था और उन बिंदुओं पर कोई काम नहीं हुआ था, इसकी उन्होंने कोई कैफियत नहीं द़ी.

दरअसल यह पूरा क्षेत्र पीलीभीत टाइगर प्रोजेक्ट के लिए अधिसूचित वन क्षेत्र के भीतर का आबाद इलाका है जिसे सरकार उजाड़ने की मंशा रखती है. इसलिए इस क्षेत्र को बचाने में योगी सरकार की कोई रुचि नहीं है. दूसरे, यहां आनेवाली बाढ़-कटाव से बचाव के नाम पर अधिकारियों को हर साल करोड़ो रूपये हजम करने का अवसर भी मिल जाता है जिस वजह से वे इसकार स्थायी निदान नहीं करते.

भाकपा(माले) व अखिल भारतीय किसान महासभा ने इस क्षेत्र को बचाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में पहले धरना और फिर जो क्रमिक अनशन शुरू की है, उसके प्रति सरकार ने भरपूर उपेक्षा प्रदर्शित की है. इस आंदोलन के समर्थन में 13 नवम्बर को पूरनपुर तहसील मुख्यालय में प्रदर्शन अयोजित हुआ. शेरपुर रेलवे फाटक से तहसील कार्यालय तक निकले जुलूस में सैकड़ों की संख्या में कटाव पीड़ित शामिल थे. भाकपा(माले) केंद्रीय कमेटी सदस्य का. कृष्णा अधिकारी, जिला सचिव का. देवाशीष राय, राज्य कमेटी सदस्य का. अफरोज आलम समेत कई पार्टी नेताओं ने इसका नेतृत्व किया था.

इस प्रदर्शन में एसडीओ बाढ़ खंड व नायब तहसीलदार के साथ बाढ़ पीड़ितों की जो वार्ता हुई उसमें प्रशासन द्वारा खिरकिया तक तटबन्ध बनाने पर रजामंदी बनी. लेकिन, फिर पैसे के अभाव का रोना रोकर जून महीने के बाद ही काम शुरू करने की बात की जाने लगी. आंदोलनकारियों ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए वार्ता खत्म कर दी.

आंदोलन के दबाव को देखते हुए बाढ़ खंड के इंजिनीयरों ने अगले दिन राहुल नगर पहुंचकर तटबंध बनाने के लिए जमीन की नापी करना शुरू कर दिया. आंदोलनकारी काम शुरू होने तक अनशन-धरना जारी रखने का संकल्प लेकर वे अब भी डटे हुए हैं. उन्हें मालूम है कि अगर तटबंध न बना तो अगली बारिश में गांव का वजूद ही समाप्त हो जाएगा.

आंदोलन को और तेज करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर 26 नवम्बर को जिला मुख्यालय पर हुए किसान-मजदूरों के प्रदर्शन के दौरान जिलाधिकारी कार्यलय पर राहुल नगर के लोगों की बड़ी भागीदारी के साथ इस मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया गया. अगर फिर भी बात नहीं बनी तो आगे चलकर इस आंदोलन को राज्यव्य स्तर भी उठाया जायेगा.

कटाव पीड़ित अपनी मांगें पूरी होने तक सन्दोलन जारी रखने का संकल्प लेकर लड़ रहे हैं और भाकपा(माले) इस क्षेत्र को बचाने के लिए जारी कटाव पीड़ितों के इस संघर्ष की अगुआई कर रही है.

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