वर्ष - 33
अंक - 52
21-12-2024
मेरे परिवार को इजरायली ड्रोन द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, और जो बचे हैं, उन्हें भूख से मौत का सामना करना पड़ रहा है – शहद अबुसलामा

अमेरिकी चुनाव के चरम पर एक नाटकीय कदम में, जो बिडेन ने धमकी दी थी कि अगर एक महीने के भीतर गाजा में अधिक मानवीय सहायता नहीं पहुंचाई गई तो इजरायल को सैन्य आपूर्ति प्रतिबंधित कर दी जाएगी.

उनकी समय-सीमा बीत गई, और घेराबंदी जारी रही, जिससे फिलिस्तीनियों को ‘तत्काल’ भुखमरी का खतरा है.

इसके बावजूद, व्हाइट हाउस ने इजरायल पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया, जबकि स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने दावा किया कि सहायता के पहुंचने में ‘कुछ प्रगति’ हुई है.

उत्तरी गाजा में अपने जीवित रिश्तेदारों से बात करके, मैं यह समझती हूं कि यह आकलन उस प्रलयंकारी हकीकत से बिल्कुल दूर है, जिनसे वे गुजर रहे हैं.

इजरायल की दमघोंटू नाकाबंदी तीसरे महीने में प्रवेश कर चुकी है, जिसने जबालिया, बेत लाहिया और बेत हनून को गाजा शहर के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया है. इस दौरान बड़े पैमाने पर सामूहिक हत्या और तबाही के भयानक दृश्य सामने आ रहे हैं.

अक्टूबर 2024 से अब तक वहां लगभग 4,000 लोग मारे जा चुके हैं, क्योंकि इजरायल फिलिस्तीनियों के हर बचे हुए ठिकाने को निशाना बना रहा है. उन्हें या तो जगह छोड़ने या मरने पर मजबूर किया जा रहा है, चाहे वह बमों से हो या भुखमरी से.

हम पहले से कहीं ज्यादा डरे हुए हैं कि कहीं हमारा अंजाम 1948 की नकबा पीढ़ी जैसा न हो जाए, जिन्हें बेघर और विस्थापित कर दिया गया था और फिर कभी लौटने नहीं दिया गया.

हत्यारे रोबोट

उत्तरी गाजा में हमारे पांच मंजिला पारिवारिक घर को पूरी तरह से नष्ट कर मलबे में तब्दील कर दिया गया है. यह भयानक खबर हमारे पड़ोसी ने बड़ी कीमत चुकाकर दी.

थोड़ी सी शांति के पल में, उन्होंने हिम्मत जुटाकर अल-सफतावी स्ट्रीट पार की, जिसे अक्सर गोलाबारी का निशाना बनाया जाता है, और हमारे घरों की हालत का पता लगाने गए. उन्होंने पाया कि सारे घर पूरी तरह से तबाह किए जा चुके हैं.

वापसी के दौरान, एक इजरायली ड्रोन ने उनके सिर और पीठ पर गोली मारी, जिससे वे अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं.

इसी तरह की कोशिश में, 10 दिसंबर 2024 को, इजरायली ड्रोन ने मेरे मौसेरे भाई जाबिर अली की हत्या कर दी, जब वह बेत लाहिया में अपने घर का हाल जानने गए थे.

खतरे के चलते, पड़ोसियों को जाबिर को उसी जगह दफनाना पड़ा, जहां उनका शव मिला. उनके परिवार को उन्हें अंतिम विदाई देने या सम्मानपूर्वक दफनाने का अवसर भी नहीं मिला.

मार्च में, विस्थापन, बमबारी और भूख के बीच, जाबिर एक बेटे के पिता बने, जिसका नाम कमाल रखा गया.

उनकी युवा विधवा और बेटा अब गाजा के पश्चिमी इलाके में एक आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त घर में परिवार के अन्य बचे सदस्यों के साथ शरण लिए हुए हैं.

इजराइल द्वारा ड्रोन का इस्तेमाल पूरे गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. गुरुवार सुबह, एक ड्रोन ने उत्तरी गाजा के आखिरी ऑर्थापेडिक डॉक्टर सईद जौदा और नर्स करीम जरादात को कमाल अदवान अस्पताल जाते समय मार डाला.

लगातार पश्चिमी सैन्य मदद और राजनयिक समर्थन के चलते, इजरायल हर मिनट युद्ध अपराध कर रहा है. चाहे वह एआई हो, सशस्त्र रोबोट हों, तोपखाने की गोलाबारी हो या हवाई हमले, इजरायल हर तरह से हमला कर रहा है.

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू लोगों को डरा-धमका कर उनके घरों से बेदखल कर रहे हैं. उनका मकसद ‘ग्रेटर इजरायल’ के उपनिवेशवादी सपने को पूरा करने के लिए उत्तरी गाजा पर कब्जा करना है.

असहनीय पीड़ा

82 वर्षीय अबू उसामा  मेरे सबसे बड़े चाचा हैं. उनका जन्म 1942 में बेत जेरजा में हुआ था, जो गाजा से लगभग दस मील की दूरी पर है. छह साल बाद, 1948 में, इजरायल द्वारा फिलिस्तीन की जातीय सफाया ने हमारे परिवार को जबालिया शरणार्थी शिविर में भागकर रहने पर मजबूर कर दिया.

अबू उसामा एक कुशल नर्स थे और सेवानिवृत्ति से पहले दशकों तक जबालिया में संयुक्त राष्ट्र की एक क्लिनिक के निदेशक रहे.

मौजूदा नरसंहार के दौरान, एक हवाई हमले में उनकी व्हीलचेयर नष्ट हो गई, जिससे इजरायल के आपराधिक ‘दक्षिण की ओर निष्कासन’आदेशों का पालन करना उनके लिए असंभव हो गया.

लगभग 20 मई को, मेरे परिवार ने अल जजीरा द्वारा ऑनलाइन प्रसारित फुटेज में अबू उसामा को देखा. वह मलबे के नीचे से बचाए जा रहे थे, और दो पड़ोसियों ने उन्हें बाहर निकाला. उनका शरीर धूल से ढका हुआ था, और वह हाथ में छड़ी पकड़े हुए थे.

उसी दिन हमें यह भी पता चला कि उनका बेटा वजदी, जो अपने विकलांग पिता की देखभाल के लिए पीछे रुका था, जबालिया में एक अलग जगह पर भोजन की तलाश करते हुए मारा गया.

फिर 18 नवंबर के आसपास, अबू उसामा एक बार फिर चमत्कारिक रूप से बच गए, जब इजरायली सेना ने बेत लाहिया के एक आवासीय इलाके को विस्फोटक भरे रोबोटों से उड़ा दिया, जहां वह, उनकी बेटी महा, दामाद मूसा और पोता इब्राहिम शरण लिए हुए थे.

इस खबर से हम हताश हो गए और बेचौनी से उनसे संपर्क करने की कोशिश करने लगे. एक दिन बाद मेरी कॉल जुड़ गई, और मैं उनसे और अन्य बचे हुए रिश्तेदारों से बात कर सकी, जो अकल्पनीय हालात झेल रहे थे और अब भी सदमे और गहरे दुःख में हैं.

अपनी बेबसी में मैंने उनसे पूछा कि हम दूर रहकर उनके लिए कुछ कैसे कर सकते हैं, तो उन्होंने मुझे दिलासा दिया कि हमारी आवाज सुनना उनके लिए एक बड़ी खुशी की बात है, जिसका इंतजार वह लंबे समय से कर रहे थे. लेकिन उन्होंने इजरायल को कोसा कि उसने हमें बिखेर दिया और अलग-थलग कर दिया और संचार व्यवस्था को नष्ट कर दिया.

मैं महा और इब्राहिम से भी बात कर सकी. कुछ दिन पहले, महा घंटों तक एक दीवार और मलबे के भारी ढेर के नीचे फंसी दर्द से चीख रही थीं.

उसे लगा कि उन्होंने अपनी सारी इंद्रियां खो दी हैं और बेहोशी की हालत में प्रार्थना करने लगीं, मानो वह अपने अंतिम क्षण जी रही हो. उसने मुझसे कहा, ‘मैंने अपने पिता को फोन किया और उनसे माफी मांगी, यह सोचते हुए कि इस समय मौत शायद ज्यादा रहमदिल होगी.’

इस कॉल का सबसे मुश्किल पल वह था जब मैंने इब्राहिम से बात की, जिसने अपनी बहादुरी के लिए मेरी तारीफ को बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘मेरे पिता स्वर्ग में हैं. यह उनके लिए इस दुनिया से कहीं बेहतर है.’

मैं उस डरे हुए बच्चे को कैसे सांत्वना दे सकती थी, जिसके पिता मूसा अब भी मलबे के नीचे दबे थे और उसकी घायल मां उनसे अलग हो गई थी, क्योंकि उसे अपने घायल भाई को पश्चिमी गाजा ले जाना पड़ा था?

मेरी आंखें आंसुओं में डूब गई और मैं बार-बार यह कहते पाई, ‘वह शांति से सोएं, हबीबी (मेरे प्यारे)... तुम बहुत बहादुर हो.’

12 साल का इब्राहिम वाकई मेरे चाचा का हीरो है. होश में आते ही उसने मलबे से बाहर निकलने की कोशिश की और दो आदमियों को आवाज दी, जिन्होंने उनकी मदद की.

एक गधा गाड़ी पर सवार व्यक्ति ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया और फिर उनके लिए ठीक होने के लिए एक उजड़े हुए घर की तलाश की.

निर्वासन

इस भयंकर हमले के बीच, यह हैरानी की बात नहीं है कि मेरे परिवार के कुछ सदस्यों ने भारी मन से उतरी गाजा छोड़ने का फैसला किया.

दिसंबर के पहले हफ्ते में, मेरे चाचा और अन्य रिश्तेदार सफेद झंडे लेकर अब पहचान में न आने वाले उत्तरी गाजा से गुजरे और ड्रोनों की निगरानी और चारों ओर उठते धुएं के बीच गाजा सिटी की ओर भागे.

रास्ते में, मेरे चाचा से इजरायली सेना ने तीन घंटे तक पूछताछ की, लेकिन सौभाग्य से उन्हें रिहा कर दिया गया. कई अन्य लोग अब भी लापता हैं.

कुछ हफ्ते पहले, मेरी ममेरी बहन राणा ने अपने ससुराल वालों और बच्चों के साथ इसी तरह की यात्रा का सामना किया था.

राणा के बहनोई मोहम्मद इज्जत अल-सलीबी, जो पांच बच्चों के पिता हैं, 27 नवंबर 2024 को एक इजरायली चेकपॉइंट से पकड़े जाने के बाद से लापता हैं.

उनके परिवार ने कई बार रेड क्रॉस से संपर्क किया है ताकि उनके ठिकाने का पता लगाया जा सके, लेकिन इजरायल ने हिरासत में लिए गए लोगों के संबंध में जानकारी देने से साफ इन्कार करता है.

यह उत्तरी गाजा की हकीकत है, भले ही व्हाइट हाउस हालात बेहतर होने के बारे में कुछ भी दावा करे.

यह सवाल नहीं है कि इजरायल नरसंहार और जातीय सफाया कर रहा है या नहीं, क्योंकि यह दुष्ट राज्य सबके सामने ऐसा कर रहा है.

यह भी सवाल नहीं है कि जागरूकता की कमी है, क्योंकि फिलिस्तीनियों और उनके सहयोगी दशकों से सांस्कृतिक मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं ताकि पश्चिमी विमर्श में इजरायल के हावी नैरेटिव को चुनौती दे सकें.

सवाल यह है कि एक अत्यंत नस्लवादी, मुनाफाखोर और अनैतिक दुनिया में फिलिस्तीनियों के जीवन, उनकी स्वतंत्रता और न्याय के अधिकारों के प्रति राजनीतिक उदासीनता क्यों है, जो हर कीमत पर फिलिस्तीन में एक उपनिवेशवादी यूरोपीय बस्ती के अस्तित्व को बनाए रखने पर केंद्रित है.

(जबालिया की बेटी उॉ. शहद अबुसलामा एक फिलिस्तीनी विद्वान, कार्यकर्ता और कलाकार हैं. गाजा में पिछले एक साल से चल रहे जनसंहार के दौरान उन्होंने 100 से अधिक रिश्तेदारों को खो दिया है और जिस आतंक, मौत और तबाही को उन्होंने करीब से महसूस किया है, उसे शब्दों में बयान करना लगभग असंभव है. प्रस्तुत लेख उनके उत्तरी गाजा में बच रहे परिवार के सदस्यों के साथ हुई बातचीत पर आधारित है और यह ‘डिक्लासिफाइड यूके’ के 16 दिसंबर के अंक में प्रकाशित हुआ है.)

अनुवाद : मनमोहन