16 दिसंबर, 2024, नई दिल्ली : संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने भारत भर के किसानों से 23 दिसंबर 2024 को जिलों में मजबूत और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने की अपील की है, जिसमें सभी किसान संगठनों के साथ तत्काल चर्चा, पंजाब सीमा पर किसानों के संघर्ष पर दमन को समाप्त करना, ग्रेटर नोएडा में जेल में बंद किसान नेताओं को रिहा करना और ‘कृषि विपणन पर नई राष्ट्रीय नीति रूपरेखा’ को तत्काल वापस लेना शामिल है.
14 दिसंबर 2024 को आयोजित राष्ट्रीय समन्वय समिति की एक तत्काल बैठक में, जिसमें 21 राज्यों के 44 सदस्यों ने भाग लिया, पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया गया है.
बैठक में किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई, जो पिछले 19 दिनों से पंजाब की सीमाओं पर आमरण अनशन कर रहे हैं.
बैठक में चेतावनी दी गई है कि अगर कोई अप्रिय घटना हुई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जिम्मेदार होंगे.
बैठक में प्रधानमंत्री मोदी से शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करने और संघर्ष कर रहे सभी किसान संगठनों और मंचों के साथ तत्काल चर्चा करने की मांग की गई. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी किसानों से विचार-विमर्श करने को कहा है.
एसकेएम ने एनडीए 3 सरकार के सत्ता में आने के ठीक बाद 16,17,18 जुलाई 2024 को प्रधानमंत्री, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं और सभी संसद सदस्यों को एक ज्ञापन सौंपा था. किसानों ने 9 अगस्त 2024 को पूरे देश में कृषि पर कारपोरेट नियंत्रण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. एसकेएम ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और कृषि श्रमिक संघों के मंचों के साथ मिलकर 500 से अधिक जिलों में बड़े पैमाने पर मजदूर-किसान विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें लगभग दस लाख लोगों ने भाग लिया और 26 नवंबर 2024 को जिला कलेक्टरों के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा.
हालांकि, अत्यधिक निरंकुश मोदी सरकार संघर्षों पर किसान संगठनों के साथ चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है. इसके बजाय, प्रधानमंत्री और हरियाणा और उत्तर प्रदेश की भाजपा नीत राज्य सरकारें पंजाब के शंभू और खनूरी बॉर्डर और उत्तर प्रदेश के नोएडा-ग्रेटर नोएडा में किसानों के संघर्ष को बेरहमी से दबाने की कोशिश कर रही हैं. इसके लिए आंसू गैस के गोलों, रबर की गोलियों और पानी की बौछारों का प्रयोग हुआ है तथा शांतिपूर्ण प्रदर्शन और धरना देने वाले सैकड़ों किसानों को जेल में डाल दिया गया है. ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उनके सहयोगी रियासतों और सामंतों के खिलाफ स्वतंत्रता के संघर्ष की महान विरासत को प्राप्त करने वाले भारत के किसान भाजपा नीत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा संघर्ष के लोकतांत्रिक आंदोलनों पर दमन की नीति का डटकर मुकाबला करेंगे.
बैठक में प्रधानमंत्री से एमएसपी, कर्ज माफी, बिजली का निजीकरण, एलएआरआर अधिनियम 2013 को लागू करने आदि पर किसानों की वास्तविक, लंबे समय से लंबित मांगों को स्वीकार करने और कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित 25 नवंबर 2024 की नई कृषि बाजार नीति को – जो एमएसपी से इनकार करती है, डिजिटलीकरण, अनुबंध खेती, खरीद के लिए बाजार पहुंच, राज्यों के संघीय अधिकारों का अतिक्रमण के माध्यम से कृषि उत्पादन और विपणन पर कॉरपोरेट नियंत्रण की अनुमति देती है – तुरंत वापस लेने का आग्रह किया गया. डिजिटल कृषि मिशन, राष्ट्रीय सहयोग नीति और अब नई कृषि बाजार नीति की हाल ही में शुरूआत तीन कृषि कानूनों को पिछले दरवाजे से पुनरुत्थान की अनुमति देने के लिए कारपोरेट एजेंडे की रणनीति का हिस्सा है. पिछले तीन वर्षों में पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडियों में खरीद को विफल करने, और खाद्य सब्सिडी पर नकद हस्तांतरण को बढ़ावा देकर एफसीआई को खत्म करने के जरिए एमएसपी और खाद्य सुरक्षा की मौजूदा व्यवस्था पर निर्णायक कारपोरेट हमले हुए हैं. 2017 में जीएसटी का कार्यान्वयन और ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का एजेंडा भोलापन नहीं है और इसका उद्देश्य राज्य सरकारों के कराधान अधिकार और स्वायत्तता को नकारना है जो संघवाद की रीढ़ है, भारत के संविधान की नींव है. कारपोरेट ताकतें भारत के मेहनतकश लोगों को चुनौती दे रही हैं और भाजपा और आरएसएस गठबंधन केवल कारपोरेट हितों की सेवा कर रहे हैं.
एसकेएम ने फिर से सभी संबंधित लोगों से अपील की है कि वे कारपोरेट नीतियों के वर्चस्व को उखाड़ फेंकने और भारत को बचाने के लिए गांव और कार्यस्थल स्तर तक बड़ी किसान एकता और देशव्यापी जीवंत मजदूर-किसान एकता के लिए ईमानदारी से काम करें. एसकेएम ने विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों से एमएसपी, न्यूनतम मजदूरी, बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि और ऋणग्रस्तता जैसे आजीविका के मुद्दों पर लोगों को लामबंद करने और राज्य सरकारों के अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह किया है. 23 दिसंबर 2024 को विरोध प्रदर्शन देश भर में जिला स्तर पर होगा. किसान कृषि विपणन पर नीति दस्तावेज की प्रतियां जलाएंगे. पंजाब में एक केंद्र पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा और एसकेएम नेता पंजाब और हरियाणा के राज्यपालों से मिलकर केंद्र सरकार द्वारा चर्चा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह करेंगे.
19 दिसंबर 2024 : भाकपा(माले) की एक राज्य स्तरीय टीम ने पंजाब प्रांत के खनौरी बॉर्डर फ्रंट के समर्थन में खनौरी बॉर्डर का दौरा किया. इस टीम में केंद्रीय कमेटी सदस्य राजविंदर सिंह राणा, राज्य स्थायी समिति सदस्य गुरप्रीत सिंह रुडे़के, जसबीर कौर नत्त, राज्य समिति सदस्य अश्विनी कुमार लखनकला, सुरेंदर शर्मा और भाकपा(माले) के प्रदेश सचिव का. गुरमीत सिंह बख्तपुरा शामिल थे.
दौरे के बाद प्रेस से बात करते हुए नेताओं ने कहा कि किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल की हालत गंभीर हो गई है, बेशक हमारी पार्टी आमरण अनशन को सही नहीं मानती, लेकिन अगर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने आमरण अनशन किया है तो केंद्र सरकार को उनके संगठन से बातचीत कर कोई समाधान निकालना चाहिए था, लेकिन दुःख की बात है कि दल्लेवाल 24 दिन से उपवास कर रहे हैं, इसके बावजूद सरकार कृषि के मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार नहीं है. नेताओं ने कहा कि यदि दल्लेवाल की जान जाती है तो इसके लिए मुख्य रूप से केंद्र सरकार जिम्मेदार होगी.
नेताओं ने कहा कि जिन मांगों को लेकर दल्लेवाल ने आमरण अनशन किया है, उन्हें लंबे और व्यापक एकजुट संघर्ष से हल करना होगा, क्योंकि ये मांगें विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से संबंधित हैं, जिसके खिलाफ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष की जरूरत है. इस संघर्ष को सीधे तौर पर कारपोरेट घरानों के खिलाफ संघर्ष कहा जा सकता है. नेताओं ने कहा कि खनौरी और शंभू की सीमा पर मोर्चा लगाने वाले नेताओं को अपने मोर्चे की समीक्षा करनी चाहिए और दिल्ली में लड़े गए मोर्चे की तर्ज पर किसानों और मजदूर संगठनों का एक बड़ा मोर्चा बनाना चाहिए, तभी दुश्मन पर काबू पाया जा सकता है. उपर्युक्त नेताओं के अलावा इस टीम में डॉ. सिकंदर सिंह, सुरिंदर शर्मा, सुरजीत गिल, हरदयाल सिंह बख्तपुरा और गोरा लाल भी शामिल थे.