हरियाणा में लगातार तीसरी बार अप्रत्याशित जीत से उत्साहित संघ ब्रिगेड महाराष्ट्र में सत्ता बरकरार रखने और झारखंड पर कब्जा करने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रही है. भाजपा का हर विधानसभा चुनाव में पसंदीदा नारा ‘विकास’ के लिए ‘डबल इंजन’ सरकार को सुनिश्चित करना है, लेकिन पार्टी भली-भांति जानती है कि यह संदेश अब अपनी अपील खोता जा रहा है. विभिन्न राज्यों में, ‘डबल इंजन’ सरकारों को अब शासन की पूरी विफलता के रूप में देखा जा रहा है, जैसे कि मणिपुर के मौजूदा हालात, बिहार में अपराध और भ्रष्टाचार का बढ़ना, और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, असम और त्रिपुरा जैसे सभी तथाकथित ‘मॉडल’ भाजपा शासित राज्यों में संवैधानिक सिद्धांतों और अधिकारों पर बेशर्मी से हो रहे हमले. फिर भी, भाजपा की असली चुनावी रणनीति पार्टी के वरिष्ठ प्रचारकों द्वारा चलाए जा रहे एक बेशर्म मुस्लिम-विरोधी नफरत अभियान पर आधारित है.
सच में, यदि चुनाव आयोग आचार संहिता को गंभीरता से लेता, तो अब तक बीजेपी को उनकी राजनीतिक मान्यता से वंचित कर देना चाहिए था, जिस तरह का जहर इस चुनावी मौसम में हिमंता बिस्वा सरमा, गिरिराज सिंह, मिथुन चक्रवर्ती और अन्य लोग हर दिन उगल रहे हैं. कभी हिंदू गौरव का आह्वान करने वाली पार्टी अब पीड़ित कार्ड खेल रही है. बांग्लादेशी घुसपैठ का भय दिखाकर भारत की बहुसंख्यक हिंदू आबादी के लिए अस्तित्व का संकट बनाकर पेश किया जा रहा है. ‘बंटोगे तो कटोगे’ बीजेपी का नया नारा बन गया है, जो सभी हिंदुओं से अपील करता है कि वे ‘मुस्लिम आक्रमण के खतरे’ से बचने के लिए बीजेपी के साथ एकजुट हो जाएं. झारखंड में हिमंता बिस्वा सरमा मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों का नाम लेकर उन्हें हमलावर और लुटेरे के रूप में पेश करते हैं और झारखंड के महानायकों जैसे सिद्धो-कान्हू, पीतांबर-नीलांबर और बिरसा मुंडा के खिलाफ खड़ा करते हैं. बिहार मेंए गिरिराज सिंह हिंदू ‘स्वाभिमान’ के नाम पर यात्रा निकालते हैं और बेशर्मी से हर हिंदू परिवार से खुद की रक्षा के लिए त्रिशूल रखने और उसका इस्तेमाल करने को कहते हैं.
मुसलमानों को घुसपैठि, और आक्रमणकारी के रूप में बदनाम करने के साथ-साथ, असहमति जताने वालों को अक्सर ‘अर्बन नक्सल’ करार दिया जा रहा है. अब भारत के संविधान की रक्षा करना मोदी सरकार के लिए ‘नक्सलवाद’ का पर्याय बन गया है. कांग्रेस पार्टी और ‘इंडिया’ गठबंधन पर जाति जनगणना का मुद्दा उठाने और संविधान की रक्षा करने के लिए ‘अर्बन नक्सलियों’ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जा रहा है. विपक्ष को डराने का यह प्रयास बीजेपी की हिंदू वर्चस्ववादी बहुसंख्यकवाद, कॉरपोरेट पक्षपात, संस्थागत भ्रष्टाचार और तानाशाही शासन के एजेंडे को भारत के ‘राष्ट्रीय हित’ के रूप में पेश करने की रणनीति का हिस्सा है.
इस योजना में महाराष्ट्र और झारखंड भाजपा के लिए प्रमुख राज्य हैं. महाराष्ट्र मेंए भाजपा ने सत्ता हथियाने के लिए संवैधानिक सिद्धांतों और नैतिक मानकों की अवहेलना की. इसी तरह, झारखंड में, मोदी सरकार ने हेमंत सोरेन प्रशासन को कमजोर करने, उसकी नीतियों में बाधा डालने और राज्यपाल के पद का खुलेआम दुरुपयोग करके राज्य के संघीय अधिकारों का उल्लंघन किया. लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को जेल भेजने की कोशिश की और विधानसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को भाजपा में शामिल करके झामुमो को दलबदल के जरिए कमजोर करने की कोशिश की. अगर छत्तीसगढ़ और ओडिशा जीतने के बाद भाजपा झारखंड में सत्ता हासिल कर लेती है, तो यह अडानी त्रिकोण का पूरा होना होगा.
इसलिए, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों और विभिन्न राज्यों में हो रहे उपचुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. ऐसे में वामपंथी दलों और ‘इंडिया’ गठबंधन को इन अहम चुनावी मुकाबलों में अपनी पूरी ताकत और ऊर्जा झोंक देनी चाहिए ताकि संघ ब्रिगेड के खतरनाक मंसूबों को पराजित किया जा सके. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि झारखंड में सीट-बंटवारे की व्यवस्था सभी 81 सीटों पर पूर्ण गठबंधन सुनिश्चित नहीं कर पाई. सीपीआइ(एमएल) केवल चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है, और इनमें से एक सीट पर भी जेएमएम ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया है, जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में वह इस सीट पर छठे स्थान पर थी.
असम में भी कांग्रेस ने 2019 के विधानसभा चुनाव में किए गए समझौते को तोड़ते हुए बेहाली उपचुनाव में हमारे उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा है, वह भी भाजपा से आए एक दल-बदलू को लेकर पश्चिम बंगाल में, हालांकि, एक सकारात्मक संकेत उभर रहा है, जहां सीपीआइ(एम) ने राज्य के राजनीतिक इतिहास में पहली बार छह उपचुनाव वाली सीटों में से एक पर सीपीआइ(एमएल) का समर्थन किया है.
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक संतुलन को बदलने के लिए और वामपंथी दलों के राजनीतिक एवं चुनावी पुनरुत्थान को गति देने के लिए वामपंथियों की व्यापक और अधिक जीवंत एकता की आवश्यकता है. आइए, भारत की जनता इस नवंबर के चुनावों का भरपूर उपयोग करते हुए संघ ब्रिगेड और उसकी फासीवादी मुहिम को एक और जोरदार झटका दे.