वर्ष - 33
अंक - 41
05-10-2024

– मीना तिवारी

दो साल की तैयारी के बाद 2 अक्टूबर 2024 को जनसुराज पार्टी की घोषणा हुई. जन सुराज के इस स्थापना कार्यक्रम में मंच पर महिलाएं तो थीं लेकिन 5000 नेताओं के दावे वाले इस मंच की प्रथम पंक्ति में एक भी महिला को जगह नहीं दी गई थी. इस मंच से प्रशांत किशोर ने व्यवस्था बदलने की बात कही. लेकिन, व्यवस्था बदलने के लिए वह जो ‘मंत्र’ दे रहे थे, वह और कुछ नहीं, जन भावनाओं का कार्पारेट शैली में प्रबंधन के जरिए सत्ता हासिल करने के मंत्रा ही हैं. अपनी पार्टी के संविधान में जनप्रतिनिधि वापसी के अधिकार जैसी प्रगतिशील बातों को उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की शैली में उम्मीदवार चयन के साथ जोड़ दिया. भूमि सुधार और लाभकारी खेती को बस नारे की तरह इस्तेमाल किया और इन दोनों विषयों पर कोई ‘सूत्र’ या ‘मंत्र’ नहीं दिया. उनकी बातों में दबे-कुचले, गरीब वर्ग को समाज में बराबरी की जगह दिलाने की नहीं बल्कि कॉर्पारेट वर्चस्व के बढ़ते दौर में शासक वर्ग की एक चहेती पार्टी के रूप में उभरने की जद्दोजहद दिखी.

बहरहाल यहां मैं शिक्षा और महिलाओं के बारे में उनकी घोषणाओं की चर्चा तक खुद को सीमित कर रही हूं.

प्रशांत किशोर ने स्कूली शिक्षा में सुधार की बात की. इसके लिए अगले 10 वर्षों में 5 लाख करोड़ रुपयों की जरूरत बताई और इस धनराशि के इंतजाम के लिए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद 1 घंटे के भीतर शराबबंदी हटा दी जाएगी. उनके अनुसार शराबबंदी के कारण बिहार को 20 हजार करोड़ रुपए टैक्स का घाटा प्रतिवर्ष हो रहा है. वे इस टैक्स से मिली धनराशि को सिर्फ शिक्षा पर खर्च करेंगे.

प्रशांत किशोर की इस घोषणा में नया क्या है? याद कीजिए जब नीतीश कुमार ने 2005 में सत्ता संभालने के बाद अपनी पहली कैबिनेट बैठक में पुरानी शराब नीति को बदल कर शराब के उत्पादन और बिक्री को बढ़ावा देने का निर्णय लिया था. इसका नतीजा ये हुआ कि अगले 5 वर्षों में गांव-गांव में, बच्चों तक में, शराब की लत बढ़ी. जहरीली शराब पीकर सामूहिक मौत की घटनाएं हुईं. शराब माफियाओं के दबदबे बढ़े. इन सबके विरोध में जब लोगों ने आवाज उठाई तो नीतीश कुमार का जवाब था कि शराब नहीं बेचेंगे तो लड़कियों को साइकिल कहां से देंगे? लेकिन बाद में नीतीश कुमार को पीछे हटना पड़ा. इस बार शराबबंदी करते हुए वे दूसरे छोर पर पहुंच गए और शराबबंदी का ऐसा कानून बनाया जिसने गरीबों पर ही कहर बरपाया. हमारे महिला संगठन ने शराबबंदी की मांग की लेकिन ऐसे दमनकारी कानून के पक्ष में हम बिल्कुल नहीं थे जिसमें माफियाओं को खुली छूट मिले और पीड़ितों को ही दंडित करने का प्रावधान हो. हमलोगों ने शराब और नशामुक्ति के लिए नौजवानों के लिए रोजगार के साथ साथ स्वस्थ सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कई सुझाव दिए थे.

प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती के दिन जब शराबबंदी को खत्म करने की बात की तो एक प्रतिक्रिया यह भी आई कि यह महात्मा गांधी का मजाक है. लेकिन हम शराब को नैतिक दृष्टि से देखने की बात नहीं करते और न ही इस तर्क का विरोध कर सकते हैं कि किसी भी विकसित समाज में लोगों को अपनी पसंद का खाने-पीने की आजादी होनी चाहिए. लेकिन प्रशांत किशोर शिक्षा की बेहतरी के लिए लिए शराब बढ़ावे को शर्त के रूप में पेश कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि उसके उत्पादन और बिक्री से मिलने वाले टैक्स से ही बच्चों की शिक्षा होगी. अर्थात जितना अधिक लोग शराब पीएंगे उतनी अधिक बिक्री होगी और उतना अधिक टैक्स मिलेगा. इसलिए, टैक्स बढ़ाने के लिए शराब बढ़ाओ. अर्थात जितनी अच्छी शिक्षा चाहिए उतना अधिक शराब बनाने और बेचने का कारोबार बढ़ाओ!

स्कूली शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने की बात करते हुए प्रशांत किशोर ने ‘खिचड़ी योजना’ का जिस तरह मजाक उड़ाया, वह गरीबों के साथ-साथ स्कूली शिक्षा के प्रति उनके नजरिए को समझने के लिए काफी है. दुनिया के कई विकसित देशों में भी बच्चों को मध्याह्न भोजन दिया जाता है. बिहार जैसे पिछड़े राज्य में तो मध्याह्न भोजन को और पौष्टिक बनाने की बात होनी चाहिए. भोजन बनाने के काम में लगी रसोइयों के उचित मानदेय की बात होनी चाहिए.

अपने भाषण में प्रशांत किशोर ने 15 वर्ष तक के बच्चों की स्कूली शिक्षा और उससे ऊपर के युवाओं के रोजगार की बात तो की लेकिन उच्च शिक्षा के सवाल पर बिल्कुल चुप्पी साध ली. इसके लिए किसी बजट की चर्चा नहीं की. बिहार में यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि स्कूली शिक्षा तो बच्चे किसी तरह ग्रहण कर लेते हैं लेकिन कॉलेज की पढ़ाई इतनी महंगी हो गई है कि गरीब घर का बच्चा पढ़ नहीं पाता. प्रशांत किशोर ने मोदी की नई शिक्षा नीति पर बिल्कुल चुप्पी साधे रखी.

महिलाओं के लिए रोजगार के सवाल पर उन्होंने कहा कि चार प्रतिशत सालाना सूद की दर पर बैंकों से लोन दिलवाएंगे. बिहार में हम देख रहे हैं की जीविका द्वारा 1-2 प्रतिशत सूद पर मिलने वाले लोन से भी महिलाएं रोजगार नहीं कर पा रही हैं. जरूरत है कि महिलाओं को लोन मिले, रोजगार की ट्रेनिंग मिले और वे जो उत्पादन करती हैं उसे खरीदने की गारंटी और बाजार सरकार दे तथा प्राइवेट बैंक और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज के मकड़जाल में फंसी महिलाओं को निकालने की बात हो.

कुछ दिनों पहले जन सुराज ने एक महिला सम्मेलन किया था जिसमें प्रशांत किशोर का भाषण निहायत पितृसत्तात्मक सोच से भरा हुआ था. उन्होंने विधानसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने की घोषणा करते हुए पूछा – राखी के बदले हिस्सेदारी कितनी होनी चाहिए? फिर उन्होंने 40 सीट देने की घोषणा करते हुए कहा, ‘महिलाओं को तो 50% हिस्सेदारी मिलनी चाहिए लेकिन अभी आपके भाई की कितनी ही क्षमता है.’ हमारा भारतीय समाज रिश्तों को लेकर बहुत संवेदनशील होता है और राजनीतिक दल के नेता इन भावनाओं को अपनी राजनीति में भुनाते हैं. महिलाओं को एक स्वतंत्र हैसियत नागरिक की जगह मां, बेटी, बहन के रिश्ते में बांध दिया जाता है और राजनेता पुत्र, पिता, भाई बनकर संरक्षक या दाता की भूमिका में चले आते हैं. इसलिए रक्षाबंधन पर कभी प्रधानमंत्री मोदी गैस सिलेंडर का दाम 200 रू. कम करने का उपहार देते हैं तो कभी प्रशांत किशोर विधानसभा चुनाव में टिकट देने का तोहफा देते हैं. लेकिन महिलाओं के उत्पीड़न, यौनहिंसा पर ये संरक्षक पूरी तरह चुप्पी साध लेते हैं.

बिहार में अल्पसंख्यकों, दलितों व महिलाओं पर भेदभाव और अत्याचार की कई घटनाएं पिछले दो सालों में सामने आईं जिसपर प्रशांत किशोर अब तक चुप रहे हैं.

अपने बच्चों के भविष्य के लिए वोट देने की बार-बार अपील करने वाले प्रशांत किशोर बिहार के बच्चों के भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं?

युवा लड़कियों को जन सुराज से जोड़ने के लिए महिला सम्मेलन में उन्होंने महिलाओं से कहा – अपनी बेटी को जन सुराज से जोड़िए. अपनी बेटी नहीं है तो पड़ोसी की बेटी को ले आइए. उसे सोशल मीडिया से महीने में 10 हजार रुपए कमाने की ट्रेनिंग जन सुराज देगा. 2 अक्टूबर की रैली में पलायन रोकने और बिहार में ही नौजवानों को रोजगार देने के लिए योजना की बात करते हुए उन्होंने कहा – बैंकों से लोन दिलवाएंगे जिससे कम से कम 10 हजार रुपए कमाने का इंतजाम हो जाएगा.

अगले 10 वर्षों के लिए बिहार के गरीब नौजवानों के लिए प्रशांत किशोर का यही विजन है! जाहिर है वह बिहार के गरीब नौजवानों को कॉरपोरेट पूंजी के लिए सस्ता मजदूर से ज्यादा नहीं समझते. यही उनकी सीमा है.