– गोपाल प्रधान
नब्बे साल की भरपूर उम्र (14 अप्रैल 1934 - 22 सितंबर 2024) जेमेसन को मिली और इसे उन्होंने सांस्कृतिक योद्धा की तरह जिया. साठ के दशक का सांस्कृतिक विद्रोह उनके भीतर हमेशा जीवित रहा. संस्कृति को पूंजीवादी आर्थिकी के साथ जोड़कर देखने की बौद्धिक परम्परा की वे मिसाल थे. इसकी पृष्ठभूमि पश्चिमी मार्क्सवादियों के फ्रैंकफुर्त स्कूल ने तैयार कर दी थी. जेम्सन इस चिंतनधारा के सबसे मुखर प्रतिनिधि रहे.
जेमेसन को सार्त्रा जैसे महान पश्चिमी विचारक की परम्परा में भी रखा जा सकता है जिन्होंने फ्रांस में रहते हुए भी उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों का साथ दिया. इसी क्रम में हम जेमेसन की इस मान्यता को देख सकते हैं जिसमें उन्होंने तीसरी दुनिया के साहित्य को राष्ट्रीय रूपक की तरह पढ़ने का सुझाव दिया था. आश्चर्य नहीं कि ज्यां पाल सार्त्र की 1960 में गालीमार से फ्रांसिसी में प्रकाशित किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रिटीक ऑफ डायलेक्टिकल रीजन वॉल्यूम 1 : थियरी ऑफ प्रैक्टिकल एनसेम्बल्स’ शीर्षक से न्यू लेफ्ट बुक्स से पहली बार 1976 में ही छपा था. वर्सा ने 1991 में उसका संशोधित संस्करण छापा था. वर्सा से ही 2004 मे फ्रेडेरिक जेमेसन की भूमिका के साथ उसका पुनर्प्रकाशन हुआ. जेमेसन ने अपनी लड़ाई का मोर्चा सांस्कृतिक ही रखा और इस पर अंत तक डटे रहे.
साठ के विद्रोह के अवसान के बाद पश्चिमी दुनिया में नवउदारवाद की वैचारिकी की आहट आने लगी थी. उसी समय से फ्रेडेरिक जेमेसन ने अपना पक्ष चुन लिया था. जब बौद्धिक दुनिया में उत्तर आधुनिकता का शोर व्याप्त था तब जेम्सन ने उसे वृद्धि पूंजीवाद का सांस्कृतिक तर्क कहकर इस शोरोगुल का गुब्बारा फोड़ दिया.
जिस जमाने में इतिहास के अंत की घोषणा करके नयी और वैकल्पिक दुनिया का सपना देखने को व्यर्थ बताया जा रहा था उस समय 2005 में वर्सा से फ्रेडेरिक जेमेसन की किताब ‘आर्कियोलॉजीज ऑफ द फ्यूचर : द डिजायर काल्ड यूटोपिया ऐंड अदर साइंस फिक्शंस’ का प्रकाशन हुआ. साहित्य के विचारक होने के नाते जेमेसन ने साहित्य की एक विधा के जरिए स्वप्नदर्शी विवेक की प्रासंगिकता का विवेचन किया है.
उन्होंने संस्कृति को समझने की मार्क्सवादी दृष्टि का विकास किया. 2007 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से इयान बुकानन के संपादन में ‘जेमेसन ऑन जेमेसन : कनवरसेशंस ऑन कल्चरल मार्क्सिज्म’ का प्रकाशन हुआ. किताब में फ्रेडेरिक जेमेसन के साक्षात्कार इस तरह से संकलित हैं कि साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य, फिल्म समेत मानव सृजनात्मकता के लगभग सभी रूपों की समझ और विश्लेषण के लिए उचित मार्क्सवादी दृष्टि का परिचय मिल जाता है.
विचारधाराऔर सिद्धांत जैसे नाजुक इलाकों पर कलम चलाते हुए भी उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखा. 2008 में वर्सा से उनकी किताब ‘द आइडियोलाजीज ऑफ थियरी’ का प्रकाशन हुआ. इस क्षेत्र में मार्क्सवाद की दावेदारी उनको इतनी जरूरी लगती थी कि अगले ही साल 2009 में फिर उनकी किताब ‘वेलेन्सेज ऑफ डायलेक्टिक’ का प्रकाशन हुआ.
विचारधारा और यूटोपिया की उनकी पक्षधरता उनके वैचारिक संघर्ष का नमूना है. जब पूंजीवाद को ही उसके रूप बदलने के बहाने अनुपस्थित बताया जाने लगा तो जेमेसन ने 2011 में ‘रिप्रेजेंटिंग कैपिटल : ए कमेंटरी ऑन वाल्यूम वन’ प्रकाशित कराया. इसमें लेखक का दावा है कि पूंजीवाद के हरेक दौर में मार्क्स की इस किताब से नये-नये अर्थ निकलते रहे हैं. उनके जमाने में अगर यह आधुनिकतावादी प्रकल्प का हिस्सा थी तो 1844 की पांडुलिपियों के मिलने के बाद अलगाव संबंधी विश्लेषणों की मनोहारी दुनिया इसके आधार पर खुली. उसके बाद साठ के दशक में ग्रुंड्रिस के सामने आने के बाद सुबोध पोथियों वाले जड़सूत्र मार्क्सवाद के मुकाबले ज्यादा खुले सैद्धांतिक ढांचे के सबूत मिलने शुरू हो गये. यह सब कहते हुए भी उनका ध्यान मार्क्स के चिंतन में टूट देखने वालों पर था इसलिए उन्होंने इन सबके बीच कोई मूलभूत विच्छेद नहीं माना बल्कि अलगाव संबंधी मार्क्स के चिंतन की निरंतरता पूंजी में भी देखी. वे जोर देकर कहते हैं कि मार्क्स की यह किताब राजनीति या श्रम के बारे में नहीं, बल्कि बेरोजगारी के बारे में है. कहने की जरूरत नहीं कि इस दावे के जरिए वे मार्क्स को हमारे समय के लिए प्रासंगिक बना देते हैं.
2015 में वर्सा से फ्रेडेरिक जेमेसन की किताब ‘द एन्शिएन्ट्स ऐंड द पोस्टमाडर्न्स’ का प्रकाशन हुआ. 2019 में वर्सा से फ्रेडेरिक जेमेसन की किताब ‘एलेगरी ऐंड आइडियोलॉजी’ का प्रकाशन हुआ. 2024 में वर्सा से फ्रेडेरिक जेमेसन की किताब ‘इनवेंशंस आफ ए प्रेजेन्ट : द नावेल इन इट्स क्राइसिस ऑफ ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ. 2024 में वर्सा से कार्सन वेल्च के संपादन में फ्रेडेरिक जेमेसन की किताब ‘द ईयर्स ऑफ थियरी : पोस्टवार फ्रेंच थॉट टु द प्रेजेन्ट’ का प्रकाशन हुआ. किताब 2021 में जेमेसन द्वारा डयूक विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाये गये पाठ्यक्रम पर आधारित है. इसमें जेमेसन ने साठ के दशक के लकां की भीड़भरी कक्षाओं को याद किया है. प्रत्यक्ष और ऑनलाइन के इस अंतर के बावजूद इस दौर से उस समय के साथ अपने समय की समानताओं पर भी जेमेसन ने खुलकर चर्चा की है.
उनकी सक्रियता की वजह से उनका महत्व सदी के मोड़ पर ही पहचाना जाने लगा था. अपने दीर्घ जीवन में उन्होंने लगातार मार्क्स का पक्ष लेकर योद्धा की तरह वैचारिक मोर्चे पर संघर्ष की मशाल जलाये रखी और उनके चिंतन और पद्धति को लगातार नवीकृत किया. मार्क्सवाद को संस्कृति के नाजुक क्षेत्र के विश्लेषण हेतु परिष्कृत किया. सोवियत संघ के पतन के बाद मची बौद्धिक भगदड़ में भी जेमेसन डटे रहे और वैचारिक विभ्रम के सामने कभी समर्पण नहीं किया. साठ के विद्रोही दशक की आंच उन्होंने बुझने नहीं दी और सक्रियता के साथ सांस्कृतिक मोर्चे की डोर थामे रहे.
उनके समस्त लेखन को पूंजीवाद से बौद्धिक बहस की तरह पढ़ा जा सकता है. उनका क्षेत्र उच्च सैद्धांतिकी का था इसलिए बहुत लोकप्रिय नहीं रहा लेकिन सांस्कृतिक मोर्चे पर मार्क्सवादी सैद्धांतिकी के कारगर होने का प्रमाण उनके लेखन से मिलता रहा.