वर्ष - 33
अंक - 38
14-09-2024

23 अगस्त 2024 को, आर्यन मिश्रा हरियाणा के पलवल के पास एक राजमार्ग पर गोली लगने से अपनी जान गंवा बैठे. उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्हें मुसलमान और “गौ-तस्कर” समझा गया था. उनके हत्यारों ने खुद यह बात कबूल की है.

हिंदू वर्चस्ववादियों द्वारा समाज को जाति और धर्म के आधार पर बांटने की लगातार कोशिशों के बावजूद, भारत व्यापक तौर पर बहुलवादी, विविधतापूर्ण और एकीकृत समाज बना हुआ है. शहरों, कस्बों, गांवों, मोहल्लों और यहां तक कि घरों में भी विभिन्न जातियों और धर्मों का मिश्रण देखने को मिलता है. जो लोगों को वर्गीकृत और स्टीरियोटाइप नजरिए से देखते हैं, धोखा खा सकते हैं. ऐसे में मुसलमानों को निशाना बनाने और मारने के लिए निकले गौरक्षकों की हिंसा असामान्य और चौंकाने वाली है.

आर्यन मिश्रा की हत्या ने आम जनता में आक्रोश पैदा कर दिया. कई लोगों ने पूछा, क्या फर्क पड़ता है कि वह हिंदू था या मुसलमान? क्या धर्म लोगों को मारने का आधार बन सकता है? अधिकांश ने इसे नकारा, लेकिन उल्लेखनीय है कि कुछ लोगों ने चुपचाप इस धारणा को स्वीकारा कि धर्म ही हत्या का कारण है.

जैसे-जैसे हिंदू बहुसंख्यकवाद और नफरत का जहर हमारे समाज में व्यवस्थित रूप से फैलया जा रहा है, कुछ लोग मुसलमानों के उत्पीड़न और धमकियों से भरे वीडियो देखकर आनंद लेने लगे हैं. मुसलमानों की लिंचिंग और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर अब लोग उदासीनता से प्रतिक्रिया देने लगे हैं, चाहे कोई बहाना हो या न हो. राज्य समर्थित गौ-रक्षा इस नफरत भरे अभियान का प्रमुख औजार बन चुकी है.

आर्यन मिश्रा हरियाणा से थे. हाल के वर्षों में, राज्य और इसके पड़ोसी क्षेत्रों में, विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. हरियाणा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पहलू खान (नूंह, 2017), उमर खान (अलवर, 2017), अकबर खान (2018), आसिफ खान (2021) और वारिस खान (2023) जैसे कई व्यक्तियों को गौरक्षकों ने मार डाला. 2023 में नूंह में मुस्लिम विरोधी हिंसा के लिए जिम्मेदार गौरक्षकों की बजाय रोहिंग्या और अन्य मुसलमानों को दोषी ठहराया गया, जिसके बाद उनके घरों को ध्वस्त कर दिया गया.

यह गौरक्षक हिंसा कोई नई घटना नहीं है और यह भाजपा के शासन का नतीजा है, जिसे व्यवस्थित रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है. हरियाणा इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है.

हरियाणा गौ संरक्षण अधिनियम, जिसे मूल रूप से 2015 में पारित किया गया था और 2019 में इसे और अधिक कठोर बनाया गया, नागरिकों को संदिग्ध पशु व्यापारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है. एक बार शिकायत दर्ज होने के बाद, यह अक्सर सोशल मीडिया पर काफी हंगामा मचा देता है, जिसके परिणामस्वरूप अफवाहों और ऑनलाइन चर्चाओं के जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जाता है. जुलाई 2023 में नूंह में हुई हिंसा में अहम भूमिका निभाने वाले मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी ने इस तरह की हरकतों से कुख्याति प्राप्त की, जिसमें वारिस खान पर हमले का फेसबुक पर लाइव प्रसारण करना और मुस्लिम पशु व्यापारियों के खिलाफ कड़ी सजा की वकालत करके हिंदुओं के लिए ‘न्याय’ की मांग करना शामिल है.

गौ संरक्षण कानून के तहत दर्ज मामलों में दोषसिद्धि दर बेहद कम है. 2022 में नूंह की अदालत में 69 मामलों की सुनवाई हुई, जिसमें सिर्फ 4 मामलों में दोषसिद्धि हुई. बावजूद इसके, नूंह जिले में हर दूसरे दिन एक मामला दर्ज किया जाता है. यह दर्शाता है कि शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया ही हिंसा को प्रोत्साहित करने का एक माध्यम बन गई है.

हरियाणा इस मामले में अकेला नहीं है. मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे अन्य भाजपा शासित राज्यों ने भी गौरक्षकों के लिए पहचान पत्र जारी किए हैं. यह समझना जरूरी है कि ये गौरक्षक वास्तविक रक्षक नहीं हैं, बल्कि उन्हें पुलिस का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन प्राप्त है.

पूरे राजनीतिक विपक्ष को इस बात को समझने की जरूरत है कि गौरक्षकों की ये फासीवादी गतिविधियां कानून के शासन को कमजोर करने का संगठित प्रयास हैं. भाजपा के सत्ता में आने के बाद से, कई लोगों ने इन घटनाओं को हाशिये पर पड़े समूहों की हरकतें मानकर नजरअंदाज कर दिया है. लेकिन वे हाशिये पर नहीं हैं. वे हिंदुत्व फासीवाद के सबसे क्रूर और संगठित रूप का प्रतिनिधित्व करते हैंइस हालात के लिए भाजपा सरकारें सीधे जिम्मेदार हैं. इस हिंसा को रोकने के लिए न्यायपालिका को तत्काल हस्तक्षेप करना होगा और इसे बढ़ावा देने वाले कानूनी और प्रशासनिक ढांचे को ध्वस्त करना होगा.