वर्ष - 33
अंक - 39
21-09-2024

नवादा में दलित बस्ती जलाए जाने के तार बिहार सरकार द्वारा कराए जा रहे भूमि सर्वे से जुड़ रहे हैं. बेहद सुनियाजित तरीके से जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के ददौर स्थित कृष्णा नगर दलित टोले पर विगत 19 सितंबर को हरवे-हथियार से लैस भूमाफिया गिरोह ने हमला किया, 34 परिवारों की झोपड़ियों को जलाकर राख कर दिया, 100 मुर्गी सहित बकरी और अन्य पशु संपदा आग की भेंट चढ़ गई, गाय और उसके बछड़ों को खोलकर हमलावर चलते बने, आतंक व भय के कारण एक व्यक्ति अनिल मांझी की मौत हो गई. घटनास्थल से स्थानीय थाने की दूरी महज 1 किलोमीटर है लेकिन पुलिस को पहुंचने में 2 घंटे से भी अधिक का समय लगा. तब तक सबकुछ नष्ट हो चुका था.

पीड़िता लालो देवी कहती हैं – “कुछ नहीं बचा, न घर-न अनाज, न कपड़े-लत्ते, शरीर पर का यह कपड़ा ही मेरी कुल जमा संपत्ति है. हमलावरों ने घर में रखे 60 हजार रु. भी लूट लिए. शाम में खाना बना रही थी, तभी अचानक गांव को घेरकर लोगों ने आग लगा दी. सुबह देखा तो कुछ भी नहीं बचा था.” लक्ष्मीनिया देवी बताती हैं कि इस घटना में नंदू पासवान और उसके साथियों का हाथ है. वे इस जमीन से हमलोगों को बेदखल कर देना चाहते हैं ताकि नया सर्वे कराकर जमीन अपने नाम करवा सकें. हमलावरों ने उनके 10 हजार रु. की दवा आग के हवाले कर दी. उनके पास अब कुछ नहीं बचा है, लेकिन वे किसी भी कीमत पर जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उसी तरह, गुजुर मांझी के घर के अंदर के सभी बर्तन, कपड़ा, कच्चा राशन जलकर खाक हो गये. संजय मांझी की 3 बकरियों सहित कच्चा राशन, साइकिल व अन्य सामान नष्ट हो गए.

वसंत मांझी की पत्नी रेखा देवी बताती हैं कि 100-150 की संख्या में हमलावर अचानक टूट पड़े, मारपीट करने लगे, पेट्रोल छिड़क कर हमारे घरों को जलाने लगे और लगातार बंदूक से फायरिंग करते रहे. सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए नदी की तरफ भागे. सुमित्रा देवी उक्त जमीन पर लगभग 50 साल से खेती-बारी का काम करती हैं. 1995 से 67 मुसहर, 19 रविदास व 1 रवानी परिवार घर बनाकर रह रहे हैं जबकि 1978 से ही ये लोग उक्त जमीन पर खेती का काम करते रहे हैं.

घटना की जानकारी मिलते ही भाकपा(माले) के जिला सचिव का. भोला राम, का. सुदामा देवी और अजीत कुमार मेहता घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई थी. पुलिस मृतक अनिल मांझी की मृत्यु को रफा-दफा करने के प्रयास में थी. माले नेताओं ने इसका प्रतिवाद किया. कहा कि यह हत्या है इसलिए नंदू पासवान और उसके साथियों पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए. बाद में माले के पूर्व विधायक व खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष मनोज मंजिल और विधायक गोपाल रविदास के नेतृत्व में एक जांच दल पटना से नवादा पहुंचा. इस टीम में उक्त नेताओं के साथ नरेन्द्र प्रसाद सिंह, मेवालाल राजवंशी, दिलीप कुमार, विजय मांझी और युवा नेता विनय कुमार भी शामिल हो लिए. माले जांच दल ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी एकत्रित की और पीड़ितों के लिए तत्काल राहत सामग्री उपलब्ध कराने का दबाव प्रशासन पर बनाया.

मामला 37.14 एकड़ के एक मालिक गैर मजरूआ प्लॉट का है जिसे अब जिला प्रशासन रैयती जमीन बताकर मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहा है. लंबे समय से इस जमीन को दलित-गरीब जोत-आबाद कर रहे हैं. उसी जमीन के लगभग 16.59 एकड़ हिस्से को नंदू पासवान सहित डेढ़ दर्जन लोगों ने अनुपस्थित जमींदार से मिलीभगत करके अपने नाम लिखवा लिया और उक्त जमीन को खाली करवाने का लगातार दबाव बनाते रहे. इसे लेकर पूर्व में भी कई टकराहटें हुई हैं. मामला फिलहाल कोर्ट में है. लेकिन अभी बिहार में जारी लैंड सर्वे को भूमाफिया गिरोह ने दलितों की बेदखली का एक मौका समझ लिया. वह उनका नामोनिशान मिटा देने चाहते हैं. इस उद्देश्य से ही उन्होंने हमला व आगजनी की घटना को अंजाम दिया ताकि नए सर्वे में जमीन भूमाफिया गिरोह के नाम चढ़ जाए. यदि समय रहते नीतीश सरकार द्वारा सभी गरीबों के नाम जमीन की बंदोबस्ती हो जाती तो संभवतः यह घटना नहीं घटती.

माले जांच दल का मानना है कि नवादा घटना बिना सत्ता संरक्षण के संभव ही नहीं है. स्थानीय थाना की मिलीभगत साफ दिख रही है. जांच दल ने पाया कि लोग भय व आतंक के साए में जीने को मजबूर हैं. प्रशासन का दावा है कि पीड़ितों के लिए भोजन व आवास की व्यवस्था की गई है लेकिन माले जांच दल को इसकी घोर कमी दिखी. प्रशासन के रवैये में कोई सुधार नहीं है. प्रशासन द्वारा पीड़ितों को उपलब्ध कराया गया एक लाख 5 हजार का मुआवजा काफी कम है. प्रत्येक परिवार को कम से कम 10 लाख रु. का मुआवजा मिलना चाहिए. इस नृशंस घटना के लिए वहां के डीएम व एसपी पर कार्रवाई होनी चाहिए. मृतक अनिल मांझी के परिजनों को सरकारी नौकरी भी मिलनी चाहिए.

नवादा की घटना ने दलित-गरीबों पर भाजपा-जदयू शासन में भूमाफिया द्वारा हमले की उस परत को बेपर्द कर दिया है जिसे तथाकथित सुशासन के नाम पर छुपाया जाता रहा है. इस घटना ने साबित कर दिया है कि भूमिहीनों को 5 डिसमिल जमीन देने का बिहार सरकार का वादा पूरी तरह झूठ है. दरअसल उनकी बेदखली बढ़ी है और सरकार भूमाफिया गिरोहों के ही पक्ष में खड़ी है. इसने एक बार फिर बिहार में दलितों पर हमले के काले सच को सतह का ला दिया है जिसपर पूरे देश की निगाह गई है. जैसे-जैसे लैंड सर्वे का काम आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे भूमिहीनों पर हमले के खतरे भी बढ़ रहे हैं.

बिहार में दलित-भूमिहीनों पर हमले का लंबा इतिहास है. 1977 में रचाए गए बेलछी जनसंहार से शुरू हुआ यह अध्याय धर्मपुर, विश्रामपुर, चैनपुर, पारसबिगहा, पिपरा और फिर 1990 के दशक में भाजपा संरक्षित रणवीर सेना द्वारा रचाए गए बाथे-बथानी-मियांपुर जैसे दर्जनों जनसंहारों को बिहार ने झेला है. इसके मूल में भूमि और सामाजिक उत्पीड़न के सवाल हैं. भाजपा-जदयू के 19 वर्षों के शासन में यह उत्पीड़न और भी संस्थाबद्ध हुआ है. यह आग भीतर ही भीतर सुलग रही है.

मीडिया जितना छुपाना चाह ले वह सच्चाई नहीं छुपा सकती. 2021 में संसद में गृह विभाग द्वारा पेश आंकड़े ही बिहार में दलित उत्पीड़न की सच्चाई को सामने लाने के लिए काफी है. इस आंकड़े के मुताबिक 2018 से लेकर 2020 तक उत्तरप्रदेश में दलित उत्पीड़न के 36,467 मुकदमे दर्ज हुए, वहीं बिहार में 20.973 मुकदमे.

भाकपा(माले) ने कहा कि लैंड सर्वे अभियान को दलित-गरीबों की बेदखली व उनपर हमले का अभियान नहीं बनने दिया जाएगा. बिहार सरकार भूमाफियापरस्त है. सबसे पहले वह बरसों बरस से बसे दलितों-गरीबों के वास-आवास की सुरक्षा के ठोस कानूनी व प्रशासनिक उपाय करे. दबंगों के बढ़े मनोबल पर रोक लगाए. कमजोर लोगों के हक-अधिकार व जीवन की रक्षा में सरकार व प्रशासन द्वारा बरती जा रही लापरवाही का करारा जवाब बिहार की जनता उन्हें आने वाले दिनों में देगी. दलितों-महिलाओं पर लगातार बढ़ती हिंसा के खिलाफ आगामी 23 सितंबर को पूरे राज्य में प्रतिवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.