वर्ष - 33
अंक - 37
07-09-2024

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) हमेशा से भारत में छात्र आंदोलन का गढ़ रहा है, जो अपने जीवंत राजनीतिक माहौल और छात्र अधिकारों की लड़ाई पूरी शिद्दत के साथ लड़ने के लिए जाना जाता है.

जेएनयूएसयू द्वारा  विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर चले जाने से एक बार फिर यह एक बड़े विरोध/प्रदर्शन का केंद्र बन गया है. इस अंदोलन ने विश्वविद्यालय के अंदर सामाजिक न्याय, समानता और सुरक्षा से जुड़े कई अहम मांगों को उठाया है, जिसमें छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि, जीएस कैश (यौन उत्पीड़न के खिलाफ लिंग संवेदीकरण समिति) की फिर से बहाली और कैम्पस में जाति जनगणना करवाना भी शामिल है.

जेएनयू में छात्रों के वाजिब लोकतांत्रिक मांगो को पूरा करने में विश्वविधालय प्रशासन की विफलता और छात्रों के आधिकारों में लगातार कटौती किए जाने के खिलाफ अगस्त 2024 में यह  भूख हड़ताल शुरू हुई. छात्रों की मुख्य मांगों में छात्र फैलोशिप की बहाली, फीस वृद्धि की वापसी, सभी विश्वविद्यालय भर्तियों में आरक्षण नीतियों का कार्यान्वयन और प्रशासन द्वारा छात्रों पर मनमानी कारवाइयों पर रोक, खासतौर से परिसर की सुरक्षा और निगरानी से जुड़े मामले हैं. छात्रों और प्रशासन के बीच वार्ता के असफल होने के हफ्तों बाद भूख हड़ताल का यह फैसला लिया गया. जेएनयूएसयू के अनुसार प्रशासन ने लगातार छात्रों की वाजिब मांगो को नजरअंदाज किया, जिसके  बाद उन्हें भूख हड़ताल पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

छात्रों की मुख्य मांगें

1. छात्र फैलोशिप और छात्रवृत्ति राशि

भूख हड़ताल की मुख्य मांगों में से एक छात्र फेलोशिप को फिर से बहाल करना है, जिसे पिछले कुछ महीनों में कम कर दिया गया या स्थगित कर दिया गया था. विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए अपनी शिक्षा और शोध को जारी रखने के लिए ये छात्रवृत्ति और फेलोशिप ही मुख्य जरिया रहा है. जेएनयू में प्रशासन द्वारा फीसों में की गई बढ़ोतरी और जीवनयापन के बढ़ते  खर्च की वजह से छात्रों को आवश्यक जरूरतों को पूरा करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. मौजूदा छात्रवृत्ति राशि छात्रों पर बढ़ते वित्तीय दबावों को पूरा करने में अपर्याप्त है.

जेएनयूएसयू का तर्क है कि छात्रवृत्ति प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों, अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) सहित आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा सुलभ बनी रहे. छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि की मांग करके, छात्र संघ संसाधनों के अधिक न्यायसंगत वितरण की मांग कर रहा है, जिससे सभी छात्र वित्तीय कठिनाइयों के बोझ के बिना अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

2. फीस वृद्धि

एक अन्य प्रमुख मांग कैंपस के विभिन्न पाठ्यक्रमों और सेवाओं के लिए हाल में ही की गई शुल्क बढ़ोतरी है. ये वृद्धि अनुचित है और असमान रूप से निम्न-आय वाले परिवारों से आने वाले आने वाले छात्रों को पढ़ाई पूरी करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे विश्वविद्यालय की सस्ती और गुणवतापूर्ण शिक्षा मुहैया करने की प्रतिबद्धता कमजोर हो गई है.

3. भर्तियों में आरक्षण नीतियों का पूर्ण कार्यान्वयन

छात्र संघ के मुताबिक हाशिए पर पड़े समुदायों के उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाले आरक्षण नीतियों को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दरकिनार कर कमजोर किया जा रहा है. अतः विश्वविद्यालय की भर्तियों में आरक्षण नीतियों के पूर्ण कार्यान्वयन की मांग भी प्रमुख है. छात्रों की अन्य प्रमुख मांगों में कैंपस में जाति जनगणना की मांग शैक्षणिक संस्थानों में जाति-आधारित समानता के लिए चल रहे संघर्ष को दर्शाती है. जाति जनगणना में जेएनयू में छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की जाति पर विस्तृत डेटा एकत्र करना शामिल है. यह सकारात्मक कार्रवाई की प्रभावशीलता का आकलन करने और  और उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए जरूरी है जहां जाति-आधारित असमानताएं अभी भी बनी हुई है.

जाति जनगणना की मांग इस धारणा पर आधारित है कि कैंपस में जाति छात्रों के शैक्षणिक अवसरों से लेकर सामाजिक संबंधों तक हर चीज पर असर डालती है. जेएनयू छात्र संघ के मुतबिक व्यापक डेटा विश्वविद्यालय के भीतर असमानताओं को उजागर कर ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिक समावेश और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने वाली जेएनयू के चार्टर की नीतियों का पालन करने के लिए जरूरी है.

4. जीएसकैश की पुनर्बहाली और कैंपस की सुरक्षा

एक और महत्वपूर्ण मांग लैंगिक उत्पीड़न के खिलाफ लैंगिक संवेदनशीलता समिति (जीएसकैश) की बहाली है, जिसे 2017 में भंग कर दिया गया था और इसकी जगह आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) को लाया गया था. जीएसकैश कैंपस में यौन उत्पीड़न के मामलों को संवेदनशीलता और स्वायतता के साथ देखता था और छात्र-हितैषी संस्था के रूप में जाना जाता था. यह अपनी आसान पहुंच तथा शिकायतों के कुशल निपटान के लिए प्रसिद्ध था, जिसमें छात्र, प्राध्यापक तथा गैर-शिक्षण कर्मचारी भी शामिल होते थे.

जेएनयूएसयू और अनेक एक्टिविस्टों का तर्क है कि जीएसकैश की जगह लाए गए आईसीसी में यौन उत्पीड़न के मामलों को बिना किसी पूर्वाग्रह के संबोधित करने के लिए आवश्यक स्वायत्तता का अभाव है. आईसीसी प्रशासनिक दबाव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जिससे इसकी कार्यवाही की निष्पक्षता और न्यायसंगतता के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं. जीएसकैश को फिर से बहाल करने की मांग एक ऐसी प्रणाली को पुनर्जीवित करने की जरूरत से उपजी है जो कैंपस में लिंग आधारित हिंसा और उत्पीड़न से निपटने में अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी माना जाता था. इसके अलावा, छात्रों ने प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने और निगरानी का दायरा बढ़ाने और केंपस में सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी को वापस लेने की भी मांग कर रहे है, क्योंकि उससे शत्रुतापूर्ण माहौल बनता है और निजता का उल्लंघन होता है.

जेएनयू में भूख हड़ताल ने केंपस के अंदर और बाहर व्यापक ध्यान आकर्षित किया है. सैकड़ों छात्रों ने कई दिनों तक भोजन से इनकार करके विरोध प्रदर्शन में भाग लिया है. जेएनयूएसयू के मुताबिक बातचीत के सभी अन्य रास्ते समाप्त हो जाने के बाद भूख हड़ताल एक अंतिम उपाय था.

इस आंदोलन को विभिन्न छात्र संगठनों, संकाय सदस्यों और नागरिक समाज समूहों से एकजुटता और समर्थन मिला. इस भूख हड़ताल को शिक्षा के व्यावसायीकरण और छात्र अधिकारों के हनन के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के बतौर भी देखा जा रहा है.

हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन फीस वृद्धि और फेलोशिप में देरी के लिए बजटीय बाधाओं और सरकारी नीतियों का हवाला दे दृढ़ छात्र विरोधी रुख बनाए हुए है. कुछ मांगों को हल करने के उनके आश्वासन के बावजूद, छात्रों ने ठोस कार्रवाई की मांग के साथ भूख हड़ताल जारी रखी.

जेएनयूएसयू भूख हड़ताल भारत में छात्र आंदोलनों की एक बड़ी प्रवृत्ति का हिस्सा है, जो फीस वृद्धि, निजीकरण और छात्र आधिकारों के दमन जैसे मुद्दों को लेकर लगातार मुखर हो रहे है. यह देश में उच्च शिक्षा के भविष्य को लेकर छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच चल रहे संघर्ष को भी दर्शाता है.

जैसे-जैसे भूख हड़ताल अपने दूसरे हफ्ते में प्रवेश कर रही है, इसमें शामिल छात्रों के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. मेडिकल टीमें मौके पर हैं, और प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है कि स्थिति और बिगड़ने से पहले कोई समाधान निकाला जाए.

जेएनयूएसयू द्वारा हाल ही में की गई भूख हड़ताल ने छात्रों की मांगों, और छात्रों और प्रशासकों के बीच खुले संवाद की जरूरत को जोरदार तरीके से उठाया है. आंदोलन अभी तक मांगो के नहीं पूरा होने के बाबजूद इन मुद्दों को राष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में लाने में सफल रहा है. छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि, जीएस कैश की बहाली और परिसर में जाति जनगणना कराने की मांगें सभी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं, जिनका उद्देश्य जेएनयू में अधिक न्यायसंगत, समान और सुरक्षित वातावरण बनाना है. ये मांगें छात्र समुदाय के व्यापक चिंताओं को जाहिर करती हैं जो व्यवस्थाबद्ध असमानताओं को दूर करने की मांग  के साथ एक ऐसे विश्वविद्यालय की मांग उठा कर रहे हैं जो वास्तव में अपने सभी छात्रों की जरूरतों को पूरा करता हो. यह हड़ताल न केवल भारत में छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करती है, बल्कि उन लोगों के लिए कार्रवाई का आह्वान भी है जो सुलभ, न्यायसंगत और पारदर्शी शिक्षा के अधिकार में यकीन करते हैं.

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