- मनमोहन
भारत में न्याय के नाम पर बुलडोजर विध्वंस ने देश के संविधान और आवाम के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है. यह राजसत्ता की क्रूरता और प्रभुत्व के प्रदर्शन का उपकरण बन गया है. हाशिए पर रहने वाले समुदायों, खासकर मुस्लिम नागरिकों के घरों को निशाना बनाकर किए जा रहे विध्वंस और बेदखली की ये प्रतिशोधात्मक कारवाई नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और कानून के शासन पर हमला होने के साथ मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है. राजसत्ता की यह क्रूरता देखकर, फिलस्तीन में इजरायली जायोनी शासन द्वारा फिलीस्तीनियों के घरों को गिराने और उनके खिलाफ रोजाना किए जाने वाले घोर अमानवीय व्यवहार की तस्वीर उभरती है.
भाजपा शासित राज्यों में इस विध्वंस संस्कृति की जोरदार वापसी हुई है. भारतीय संविधान नागरिकों को समानता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार और कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करने का अधिकार देता है. बुलडोजर द्वारा बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घर और प्रतिष्ठान को ध्वस्त कर दिया जाना एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जिसे सिर्फ यह मुसलमानों के खिलाफ प्रतिशोध के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह राज्य द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों को नियंत्रित करने और उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करने का भी एक साधन है.
इसका सबसे हालिया उदाहरण 22 अगस्त, 2024 को छतरपुर, मध्य प्रदेश का है, जब अधिकारियों ने कथित तौर पर पुलिस पर पथराव की घटनाओं के प्रतिशोध में कांग्रेस नेता हाजी शहजाद सहित 30 लोगों के घरों को ध्वस्त कर दिया. मध्य प्रदेश में यह कोई अकेला मामला नहीं है. इसी तरह की एक घटना अप्रैल 2022 में हुई थी जब राज्य अधिकारियों ने रामनवमी के दौरान सांप्रदायिक झड़पों के बाद मुसलमानों के कई घरों और व्यवसायों को ध्वस्त कर दिया था. कई पीड़ितों द्वारा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बावजूद, ये मामले बिना सुनवाई के लंबित हैं. 17 अगस्त 2024 को दूसरी घटना राजस्थान के उदयपुर में हुई, जहां राशिद खान का घर ढहा दिया गया. यह विध्वंस उसके किरायेदार के बेटे द्वारा कथित तौर पर एक सहपाठी को चाकू मारने के ठीक एक दिन बाद हुआ. इसी बीच, पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में, बुलडोजर ने एक विपक्षी पार्टी के मुस्लिम पदाधिकारी के स्वामित्व वाले ‘अवैध’ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को गिरा दिया गया. दिल्ली के जहांगीरपुरी में बजरंग दल के उपद्रव के बाद और जी-20 के बैठक के दौरान हजारों घरों का गिराया जाना लोग नहीं भूले हैं.
19 जून को लखनऊ के अकबरनगर में बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान में राज्य सरकार ने लगभग 1,800 इमारतों को ध्वस्त कर दिया, जिनमें 1,169 घर और 101 वाणिज्यिक प्रतिष्ठान शामिल थे. हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) ने एक नई रिपोर्ट जारी कर दावा किया है कि पिछले दो वर्षों (1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2023) में भारत में राज्य प्राधिकरणों द्वारा केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर 1,50,000 लाख से अधिक घरों को ध्वस्त किया गया, जिसके परिणामस्वरूप 7,38,000 लोग बेदखली का सामना कर रहे हैं.
‘भारत में जबरन बेदखली : 2022 और 2023’ रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में प्रतिदिन कम से कम 294 घर ध्वस्त किए गए और हर घंटे 58 लोगों को बेदखल किया गया. सबसे अधिक 2022 और 2023 में 58.7 प्रतिशत लोगों को ‘झुग्गी-झोपड़ी’ हटाने/‘अतिक्रमण’ हटाने/‘शहर के सौंदर्यीकरण’ के पहल की आड़ में बेदखल किया गया. यह कोई संयोग नहीं है कि घनी मुस्लिम आबादी वाले इलाकों को अक्सर ‘शहरी विकास’ के नाम पर निशाना बनाया जाता है. नूंह और गुरुग्राम के सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित इलाकों में ऐसे ही ‘विध्वंस अभियान’ पर रोक लगाते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह सवाल पूछा था कि इसका इस्तेमाल जातीय सफाया के बहाने के बतौर तो नहीं किया जा रहा है?
एमनेस्टी इंटरनेशनल की ‘इफ यू स्पीक अप, योर हाउस विल बी डिमोलिश्ड’ रिपोर्ट में बताया गया है कि अप्रैल और जून 2022 के बीच असम, दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के जवाब में 128 इमारतों को दंडात्मक कार्रवाई के बतौर ध्वस्त किया गया. इस कार्रवाई से कम से कम 617 नागरिक प्रभावित हुए, जो आज भी अपने खोए हुए घरों, व्यवसायों और पूजा स्थलों के लिए मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं. भेदभावपूर्ण कानूनों और रवायतों के खिलाफ विरोध करने की सजा के लिए मुस्लिम संपत्तियों को ध्वस्त करने की भाजपा सरकारों की अनौपचारिक नीति एक खतरनाक फासीवादी रुझान है. जबरन बेदखली, विध्वंस और सामूहिक तौर से मनमानी सजा देना देश के संविधान और कानून के राज पर तो हमला है ही, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भी अपराध है.
2024 के चुनावों में बहुमत से दूर हो सहयोगियों के साथ सरकार बनाना भाजपा के लिए एक झटका था. चुनाव परिणामों के निहितार्थ को स्वीकार करने बजाय, भाजपा नेताओं ने अपनी नफरत फैलाने वाली भाषा को और भी तेज कर दिया है. लोगों ने उम्मीद की थी कि अब हिंदुत्व वर्चस्ववादी मुहिम पर कुछ प्रतिबंध लग जाएंगे, लेकिन वह उम्मीद बुलडोजर से ध्वस्त किए गए मलबे के ढेर से ढक गई है.
मोदी ने न तो हिंदू चरमपंथी समूहों पर लगाम लगाई है, और न ही जनता के अधिकारों को सीमित करने, असहमति को दबाने और लोकतांत्रिक संस्थानों पर नियंत्रण करने की भाजपा की पहलों को कम किया है. अल्पसंख्यकों के खिलाफ भीड़ द्वारा हत्या और अन्य हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं. वास्तव में, पीएम मोदी ने इस वर्ष के चुनाव अभियान के दौरान समावेशिता के मुखौटे को भी त्याग दिया था. उन्होंने और भाजपा ने लगातार इस्लामोफोबिक बयानबाजी की थी, लेकिन जनता ने इसे खारिज कर दिया. अभी झारखंड में राज्य चुनाव नजदीक आने के साथ, भाजपा खुले तौर पर बहुसंख्यक आदिवासी आबादी को यह दावा करके भड़काने का प्रयास कर रही है कि रोहिंग्या मुसलमान – ‘भारतीय मुसलमानों के लिए कोड’ – उनकी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और उनकी जमीन हड़प रहे हैं.
अभी कई राज्यों के चुनावों से पहले मोदी कैबिनेट ने संसद में बहुमत न होने के बाबजूद ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर मुहर लगाकर नया शिगूफा छोड़ दिया है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता. मोदी के पास अभी भी वे हथियार हैं, जिनकी मदद से उन्होंने भाजपा के पक्ष में भारी पक्षपातपूर्ण चुनावी जीत हासिल की. पार्टी उन विभागों को अभी भी नियंत्रित करती है, जिसमें शक्तिशाली जांच एजेंसियां शामिल हैं, जो विरोधियों को डरा सकती हैं और जेल में डाल सकती है. नीति निर्माण पर एकाधिकार के साथ मोदी को भारत के बड़े व्यवसायिक घरानों का भी समर्थन है. फिर भी, जो लोग ये कह रहे हैं कि भारत में लोकसभा चुनावों में भाजपा को लगे झटके ने लोकतंत्र को मजबूत किया है, वे मोदी के तीसरे कार्यकाल को नई वैधता दे रहे हैं.
इस बीच बढ़ते बेरोजगारों की फौज, आसमान छूती महंगाई, किसानों और मजदूरों में बढ़ता असंतोष, मणिपुर आदि ज्वलंत मुद्दों पर से जनता का ध्यान भटकाने के लिए, मोदी, भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथियों की ये कारगुजारियां गंभीर संकट में फंसे समाज को दर्शाती है. वे भाजपा सरकार से बढ़ते सामाजिक असंतोष को दूर करने, अपने कट्टर अनुयायियों को उकसाने, और मज़दूर वर्ग को विभाजित करने के लिए इन हरकतों को अंजाम दे रहे हैं. पिछले पांच वर्षों में, भारत ने सांप्रदायिक और जातिगत सीमाओं से परे मज़दूरों को एकजुट करने वाली हड़तालों, किसानों के आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों में उभार देखा है. देश के लाखों लोगों ने बेरोजगारी, अनिश्चित नौकरियों, निजीकरण, खराब सार्वजनिक सेवाओं और अपने वाजिब अधिकारों के लिए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग अभी भी मोदी को अपने हितों को आगे बढ़ाने और मजदूर/किसान आंदोलन को दबाने के लिए एक जरिया के बतौर देखता है.
ऐसे माहौल में, ‘बुलडोजर राजनीति’ हिंदू वर्चस्व और दुश्मनों के खिलाफ शक्तिशाली शासन के प्रति भाजपा की प्रतिबद्धता का प्रतीक बन गई है. हिंदू-वर्चस्ववादी मतदाता आधार को सक्रिय करने के अलावा, बुलडोजर का उपयोग पहले से ही हाशिए पर रहे समुदायों को नियंत्रित करने और उनका मनोबल तोड़ने के लिए भी किया जा रहा है. ये भारत में तेज हो रहे लोकतांत्रिक पतन को जाहिर करता है. पहले से अधिक असुरक्षित भाजपा आक्रमक होकर पहले से ज्यादा मुखर विपक्ष का सामना कर रही है. श्री मोदी जिस बहुसंख्यकवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह सत्ता को राज्य को हिंदू राष्ट्र बनाने, और देश की संवैधानिक रूप से गारंटीकृत बहुलता को खत्म करने के साधन के बतौर देखती है. उनके नजरिए में इस साल का चुनाव हिंदुत्व एजेंडे के रास्ते में एक छोटी सी बाधा मात्र थी.
राज्य की अराजकता और आतंक के इस अभियान का नेतृत्व भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश (यूपी) की भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं. ये वही आदित्यनाथ हैं जिन पर मुसलमानों पर हिंसक हमलों को उकसाने के लिए आपराधिक मुकदमा किया गया था. अब यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर ‘बुलडोजर बाबा’ का तमगा लिए फिर रहे हैं.
बुलडोजर फिलिस्तीनियों के लिए इजराइली कब्जे और बेदखली का प्रतीक है. फिलिस्तीनी घरों को ध्वस्त कर फिलस्तीनियों को विस्थापित करना इजरायल की जातीय सफ़ाया और कब्जे की नीति का अभिन्न अंग है, जिसके तहत 80% फिलिस्तीनियों को उस जगह से खदेड़ दिया गया है, जो अब इजरायल है. इजरायल ने व्यवस्थित तौर से 1948 और 1954 के बीच 418 फिलिस्तीनी गांवों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया था – जो फिलिस्तीन के सभी गांवों का 85% है.
इजरायल के साथ भारत की तुलना खास तौर से महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देशों की सरकारें अतिदक्षिणपंथी और बहुसंख्यकवादी विचारधाराओं के साथ काम कर रही हैं. दोनों ही देशों में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ राज्य दमन को जायज ठहराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया जाता है. भारत में मुसलमानों को और इजरायल में फिलिस्तीनियों को राज्य की अमानवीय क्रूरता का सामना करना पड़ रहा है.
फिलिस्तीन की भूमि पर अवैध कब्जे के संघर्ष में, इजरायल दशकों से बहुआयामी रणनीति के तहत बुलडोजर का इस्तेमाल कर रहा है. इजरायल हमेशा सुरक्षा, दंड और शहरी नियोजन के नाम पर फिलिस्तीनी घरों, कृषि भूमि और अन्य संरचनाओं को ध्वस्त करना जायज ठहराता रहा है. बुलडोजर नीति का एक और प्रयोग बिना परमिट के बने घरों को ध्वस्त करना भी है. कब्जे वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में, फिलिस्तीनियों के लिए इजरायली अधिकारियों से निर्माण परमिट प्राप्त करना बेहद मुश्किल है. नतीजतन, कई फिलिस्तीनी आवश्यक कानूनी मंजूरी के बिना घर बनाते हैं, जो कभी भी ध्वस्त किया जा सकता है.
इस बीच, पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में यहूदियों के लिए खुलेआम फिलस्तीनियों के घर ध्वस्त कर इजरायलियों द्वारा कब्जा किया जा रहा है. इजरायल नियमित रूप से अवैध सामूहिक सजा के रूप में फिलिस्तीनियों के घरों को ध्वस्त करने का काम करता है. एक अनुमान के मुताबिक अकेले 2021 में, इजरायली बलों ने 937 संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया, जिससे लगभग 1,200 फिलस्तीनी परिवार विस्थापित हो गए. इजरायल इन विध्वंसों को बिल्डिंग कोड और शहरी नियोजन विनियमों को लागू करने के आधार पर उचित ठहराता है, लेकिन यह फिलिस्तीनियों को नियंत्रित करने और उनकी भौगोलिक उपस्थिति को सीमित करने का एक हथियार है. यह सामूहिक दंड का एक रूप है जो अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है.
हकीकत यह है कि बुलडोजर भारत और फिलस्तीन दोनों में राज्य दमन के एक खौफनाक प्रतीक के रूप में सामने आए हैं, यह कोई संयोग नहीं है. भारत और इजरायल दोनों देशों में शासन करने वाली अतिदक्षिणपंथी सरकारें एक जातीय-बहुसंख्यकवादी रंगभेद राज्य की एक साझा नजरिया पेश करती है.
‘बुलडोजर’ शब्द अपने भीतर एक हिंसक और दमनकारी इतिहास छिपाए है. यह शब्द अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में गृहयुद्ध के बाद प्रचलित हुआ, जहां इसका उपयोग अफ्रीकी-अमेरिकियों को निशाना बनाने के लिए किया जाता था. श्वेत वर्चस्ववादियों द्वारा अश्वेत लोगों को चुप कराने या मतदान करने से रोकने के लिए अक्सर बुलव्हिप का प्रयोग किया जाता था. पिछले कुछ दशकों में, ‘बुलडोजर’ शब्द का उपयोग आधुनिक कृषि और निर्माण मशीनों के लिए किया जाने लगा है. हालांकि, इस शब्द की उत्पत्ति अभी भी नस्लीय हिंसा और उत्पीड़न से जुड़ी हुई है.
भाजपा सरकारों द्वारा अपनाई गई ‘बुलडोजर संस्कृति’ के गंभीर और खतरनाक परिणाम हैं. कानूनी प्रक्रियाओं को नजरअंदाज करते हुए, उत्तर प्रदेश से शुरू हुई यह संस्कृति अब भाजपा शासित सभी राज्यों में फैल चुकी है. बुलडोजर, जिसे पॉप गानों और चुनावी रैलियों में महिमामंडित किया जाता है, अब दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी ताकतों के लिए केवल भौतिक विनाश का साधन नहीं है, बल्कि यह बहुसंख्यक समुदाय के प्रभुत्व का प्रतीक बन चुका है. इस विध्वंस के तमाशे को मुख्यधारा मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों पर सत्ता और नियंत्रण के नैरेटिव को मजबूती मिलती है.
भारत में बुलडोजर का आगमन संयोग नहीं है. यह आज के दौर की प्रचलित हिन्दुत्व विचारधारा का प्रतीक है. इसका संबंध नरसंहार से है, जो भौगोलिक सीमाओं से परे इजरायल और अमेरिका तक फैला हुआ है. इसका इस्तेमाल अमेरिका में अश्वेत समुदायों के खिलाफ किया गया था, चीन में यह अल्पसंख्यकों के दमन का उपकरण है, और फिलिस्तीन में इसे इजरायली अधिकारी हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. दुनिया भर में, यह स्वदेशी और जातीय समुदायों के विस्थापन का कारण रहा है.
हिंदुत्व की विध्वंसक विचारधारा को बुलडोजर से दर्शाया जा सकता है, जो इसके आक्रामक और विनाशकारी स्वभाव का प्रतीक है. बुलडोजर बायोपॉलिटिकल और जियोपॉलिटिकल वर्चस्व का एक हथियार बन गया है, जिसका इस्तेमाल ध्वस्त करने, विस्थापित करने, आधिपत्य जमाने और विनाश के लिए किया जा रहा है. भारत में, बुलडोजर अपनी यांत्रिक प्रकृति से आगे बढ़कर एक सांस्कृतिक कलाकृति बन गया है. बुलडोजर की मांग बढ़ रही है, लोग शादियों और जन्मदिनों पर भी इसे उपहार के रूप में देते हैं. बुलडोजर खिलौने लोकप्रिय हैं, और इसको समर्पित गीत और संगीत हैं. नेताओं के साथ लोग भी ‘बुलडोजर बाबा’ या ‘बुलडोजर मामा’ जैसे नाम अपना रहे हैं. इसका इस्तेमाल मर्दानगी के प्रतीक के रूप में भी किया जाता है. हिंदुत्व सब कुछ समतल करना चाहता है. इसका उद्देश्य इतिहास को खोदकर मिटाना, असहमति को दबाना और नवउदारवादी एजेंडे को बढ़ावा देना है. आस्था से लेकर राष्ट्रवाद तक हिंदुत्व के लिए सब कुछ तमाशा बन जाता है. यह नवउदारवादी ढांचे में हिंदू धर्म का विनाशकारी रूप है, जिसकी जड़ें ऐतिहासिक घटनाओं जैसे कि असंतुष्टों के दमन, महिलाओं को दंडित करने और भारत में बौद्ध धर्म को कुचलने में देखी जा सकती हैं.
बुलडोजर संस्कृति इस्लामोफोबिया और नस्लवाद की भी अभिव्यक्ति है. अब तक, ‘सांस्कृतिक नस्लवाद’ पर किए गए अध्ययनों ने ज्यादातर पश्चिमी देशों पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां भेदभाव अक्सर शारीरिक गठन के आधार पर होता है. हालांकि, भारत में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच कोई साफ शारीरिक अंतर नहीं है. फिर भी, भारत में इस्लामोफोबिया को नस्लवाद के एक रूप के रूप में देखा जाना चाहिए, इस शब्द के इतिहास और अर्थ को देखते हुए. भारतीय इस्लामोफोबिक नैरेटिव में, मुसलमानों को जिस तरह से चित्रित किया जाता है, वह वैसा ही है जैसा कि यूरोपीय यहूदी-विरोधी विचारों में यहूदियों को दर्शाया गया था. इसके अलावा, भारतीय मुसलमानों के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां अफ्रीकी अमेरिकियों के सामने आने वाली चुनौतियों से मिलती-जुलती हैं. यह समाज में मुसलमानो के खिलाफ पूर्वाग्रहों को भी मजबूत कर रहा है, जो उन्हें स्वाभाविक तौर से अपराधी या विश्वासघाती के रूप में चित्रित करती है. यह मुसलमानों को राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा बता भारत में पैर पसार रही इस्लामोफोबिया की व्यापक नैरेटिव को बढ़ावा देती है.
बुलडोजर संस्कृति का प्रभाव सिर्फ संपत्ति के भौतिक विनाश तक सीमित नहीं है. यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को भी नष्ट कर रही है. मुसलमानों के लिए, उनके पड़ोस में बुलडोजर का आना उनकी खतरनाक स्थिति की याद दिलाने से कहीं अधिक है – यह देश में उनकी कथित दोयम दर्जे की स्थिति का साफ इजहार है. बुलडोजर संस्कृति भय और अविश्वास का माहौल कायम कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है, और कानून के समक्ष न्याय और समानता की बुनियाद को कमजोर करती है.
यह उन नकरात्मक पूर्वाग्रहों को मजबूत कर रहा है जो मुसलमानों को स्वाभाविक रूप से अपराधी या विश्वासघाती के रूप में चित्रित करती हैं. यह प्रथा इस्लामोफोबिया की व्यापक नैरेटिव को बढ़ावा देती है जो भारत में पैर पसार रही है, जहां मुसलमानों को राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव के लिए खतरे के रूप में दर्शाया जाता है.
जब राज्य कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर पूरे समुदाय को सामूहिक रूप से दंडित करता है, तो इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं में जनता का भरोसा खत्म हो जाता है. यह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जहाँ राज्य की शक्ति को बिना किसी जवाबदेही के मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए अधिकारियों को अदालत की अनुमति के बिना आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को बुलडोजर का उपयोग करके ध्वस्त करने पर पंद्रह दिन की रोक लगा दी है. 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट पीठ ने ऐसे डेमोलिशन पर रोक के लिए गाइड लाइन तैयार करने सुझाव आमंत्रित किए. 17 सितंबर को पीठ ने पंद्रह दिन बाद अगली सुनवाई तक इस पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश उन मामलों पर लागू नहीं होगा, जहां अनधिकृत निर्माण को हटाने के लिए ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता होती है. ऐसे में जन कल्याण या वैधता की आड़ में किए गए कई विध्वंस कोर्ट के निर्देश के दायरे से बाहर हो जाते हैं. यह खामी अपराधियों को बिना रोक-टोक अपनी हरकतें जारी रखने की अनुमति देती है, जिससे अदालत का आदेश काफी हद तक प्रतीकात्मक बन गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं की सुनवाई करते यह भी टिप्पणी की है कि वह ऐसी कारवाई देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने के समान है. सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों ने पूरे भारत में महत्वपूर्ण कानूनी और नैतिक बहस को जन्म दे दिया है. गौरतलब है कि आज सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों को रोकने के लिए अखिल भारतीय गाइडलाइन तैयार करने की बात कर रहा है, पर बेहतर होता कि ऐसे सभी लंबित मामलों की त्वरित सुनवाई कर दोषियों को सजा देने का काम करता. वास्तव में जिस चीज की जरूरत है, वह है ठोस जवाबदेही. ऐसे विध्वंस के जिम्मेदार किसी एक भी अपराधी को आज तक सजा नहीं मिल पाई है. दोषी अधिकारियों और उनके राजनीतिक आकाओं के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज हो, साथ ही सीधे तौर पर जिम्मेदार लोगों की निजी संपत्तियों से नुकसान के लिए मुआवजे की मांग करने वाली निचली अदालतों में याचिकाएं दायर कर इंसाफ दिलाना कहीं अधिक प्रभावी कानूनी समाधान होगा, वरना कोई भी गाईडलाइन भी कोरी गप्प हो जायेगा.
याद रहे भारत के सबसे बड़े डेमोलिशन ड्राइव, बाबरी मस्जिद विध्वंस, को वैधता का दर्जा देने वाला सुप्रीम कोर्ट ही है. बुलडोजर न्याय न्यायपालिका पर भरोसे को कमजोर कर रहा है. अगर इसे नहीं रोका गया, तो हम खुद को ऐसे देश में पाएंगे जहां कानून का शासन अतीत का अवशेष मात्र रह जायेगा. यह एक गणतंत्र के रूप में परिकल्पित भारत के विचार का खात्मा कर देगा, जिसका दृढ़ संकल्प के साथ विरोध किया जाना चाहिए.
Reference:
1. Housing and Land Rights Network (HLRN) report , 2024
2. (If you speak up your house will be my demolished) : Bulldozer injustice in India, Amnesty International Report, 2024
3. Haryana: Organized Hatred, Intimidation and Violence by Hindutva Groups, CPIML&AICCTU fact finding report, 2023
4. Home Demolition as Collective Punishment, B'Tselem's annual report, Jerusalem