- इन्द्रेश मैखुरी
कोलकाता के आरजी कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक इंटर्न डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की जघन्य वारदात से पूरा देश उद्वेलित है. उक्त घटना के खिलाफ कोलकाता के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं, न्याय की मांग की जा रही है, महिला सुरक्षा का सवाल एक बार फिर से सतह पर उभर कर आया है, खास तौर पर कार्यस्थलों में महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
इसी बीच उत्तराखंड में भी एक के बाद एक ऐसी वारदातें हुई, जिन्होंने एक बार फिर उत्तराखंड में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं.
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के मुख्यालय रुद्रपुर के निजी अस्पताल में काम करने वाली महिला नर्स 30 जुलाई को काम से लौटने के बाद अपने घर वापस नहीं पहुंची. वह रुद्रपुर से लगती हुई उत्तर प्रदेश की सीमा में पड़ने वाले बिलासपुर के डिबडिबा में रहती थी. 31 जुलाई को गुमशुदा नर्स की बहन ने उसके लापता होने की रिपोर्ट रुद्रपुर कोतवाली में दर्ज करवाई. 08 अगस्त को उक्त नर्स का शव, डिबडिबा में उसके घर के नजदीक एक मैदान में झाड़ियों में पड़ा हुआ मिला. 14 अगस्त को इस मामले में रुद्रपुर पुलिस ने बरेली के रहने वाले एक मजदूर धर्मेंद्र कुमार को राजस्थान के जोधपुर से गिरफ्तार किया. पुलिस के अनुसार आरोपी ने उक्त युवती की बलात्कार के बाद हत्या कर दी.
इस घटना को लेकर रुद्रपुर में लोगों में अभी भी रोष बना हुआ है. परिजनों और लोगों का अंदेशा है कि उक्त वारदात में एक से अधिक लोग शामिल हो सकते हैं. साथ ही एक खुले स्थान पर हफ्ते भर तक लाश के पड़े रहने के बावजूद किसी की उस पर नजर न पड़ने को लेकर भी लोगों को संदेह है. रुद्रपुर के जिस अस्पताल में मृतका काम करती थी, उसको लेकर भी परिजनों ने संदेह जताया है. इस मामले में परिजन और अन्य लोगों द्वारा सीबीआई जांच की मांग की जा रही है.
उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में भी इस बीच दुष्कर्म की एक जघन्य वारदात सामने आई. 13 अगस्त की सुबह दो बजे देहरादून के अंतरराज्यीय बस अड्डे (आईएसबीटी) पर एक मानसिक रूप से कमजोर नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म किए जाने का मामला सामने आया. यह बच्ची बस अड्डे पर एक गार्ड को मिली, जिसने बाल कल्याण समिति को इसकी सूचना दी. बाल कल्याण समिति ने जब बच्ची की काउंसलिंग की तब यह बात सामने आई कि बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है. बाल कल्याण समिति ने पुलिस को इस मामले की जानकारी दी. पुलिस ने जब मामले की जांच की तो जो सामने आया वह हतप्रभ कर देने वाला था. सामने आई जानकारी के अनुसार बच्ची अपने घर मुरादाबाद से किसी तरह दिल्ली पहुंच गयी. दिल्ली आईएसबीटी में देहरादून की उत्तराखंड परिवहन निगम की अनुबंधित बस के ड्राइवर ने बच्ची को पटियाला की बस की जानकारी करते हुए देखा. देहरादून से पटियाला की बस मिलने की बात कह कर, वह उक्त बच्ची को देहरादून ले आया. रात एक बजे जब बस देहरादून पहुंची तो पहले बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया, उसके बाद दूसरी बस के ड्राइवर-कंडक्टर ने और फिर आईएसबीटी के कैशियर ने भी बच्ची के साथ दुष्कर्म किया. इन पांचों आरोपियों की उम्र 34 से 57 वर्ष के बीच है. देहरादून जैसे बड़े शहर में एक अंतरराज्यीय बस अड्डा है, जिसके बिलकुल बगल में पुलिस चौकी है, वहां ऐसी जघन्य वारदात का हो जाना, न केवल इस बस अड्डे की सुरक्षा व्यवस्था पर बल्कि देहरादून और उत्तराखंड की कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है. इस बीच तो यह भी सामने आया कि अनुबंधित बसों में ड्राइवर-कंडक्टर के बारे में कोई ठीक-ठाक जांच भी नहीं होती, बसों में पैनिक बटन तो लगा है, परंतु वह बटन कहीं पहुंचता नहीं है आदि-आदि.
इसी बीच में पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में एक व्यक्ति ने पुलिस में एपफ़आईआर दर्ज करवाई कि उसकी सोलह वर्षीय बच्ची से कुछ लोग लगातार दुष्कर्म करते हैं. पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजा, बाद में एक महिला को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया.
इस तरह देखें तो उत्तराखंड में महिलाओं/युवतियों के साथ बलात्कार और हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. शांत प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में महिला अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2021 से 2023 के बीच उत्तराखंड के तेरह जिलों से लापता होने वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या ही हजारों में हैं.
साल-दर-साल महिलाओं, युवतियों और बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं सामने आ रही हैं. उत्तराखंड राज्य आंदोलन के समय 02 अक्टूबर 1994 को दिल्ली जाते आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने गोली चलायी और महिलाओं के साथ बलात्कार किया. उत्तराखंड में तब से 02 अक्टूबर को काला दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन अब कुछ-कुछ अंतराल पर वैसी ही घटनाएं उत्तराखंड में निरंतर हो रही हैं.
सितंबर 2022 को उत्तराखंड में अंकिता भंडारी हत्याकांड हुआ, जिसने पूरे उत्तराखंड को हिला कर रख दिया. अंकिता भंडारी 17 साल की लड़की थी जो ऋषिकेश के पास गंगाभोगपुर के एक रिज़ॉर्ट में नौकरी करने गयी. नौकरी का पहला महीना भी पूरा नहीं हुआ कि उसकी हत्या की खबर सामने आई. मालूम पड़ा कि वह रिजॉर्ट भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य का है. यह भी बात सामने आई कि पुलकित आर्य ने किसी ‘वीआईपी’ को ‘स्पेशल सर्विस’ देने के लिए अंकिता पर दबाव डाला और मना करने पर उसकी हत्या कर दी गयी. अंकिता भंडारी हत्याकांड में पुलकित आर्य और उसके दो साथियों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन वो वीआईपी कौन था, जिसको ‘स्पेशल सर्विस’ न देने के लिए अंकिता भंडारी की हत्या कर दी गयी, इसका खुलासा आज तक उत्तराखंड की भाजपा सरकार और उसकी बनाई हुई एसआईटी नहीं कर सकी है.
बीते दिनों खबर आई कि चमोली जेल में अंकिता भंडारी हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त पुलकित आर्य ने जेलर के साथ मारपीट की, जिसके लिए उसके खिलाफ मुकदमा किया गया है. अपराधियों के हौसले ऐसे ही बुलंद हैं, भाजपा राज में!
भाजपा महिला अपराध के प्रश्नों से कैसे निपटती है, यह देखना भी रोचक है. जब तक मामला बंगाल का था, तब तक भाजपा वाले महिला अपराध के खिलाफ जोरशोर से आवाल बुलंद कर रहे थे, लेकिन जैसे ही उत्तराखंड में महिलाओं-बच्चियों के साथ अपराध के मामले सामने आने लगे, भाजपा वाले बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले तथाकथित अत्याचारों के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे!
महिला अपराधों के खिलाफ सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर निरंतर ही संघर्ष करने की जरूरत है. यौन कुंठाओं से भरे समाज की चेतना को लगातार झकझोरने की जरूरत है.
बीते दिनों उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रहे हैं कि समाज किस तरफ जा रहा है, ये पुलिस ने अकेले ने ठेका नहीं ले रखा है! एक जिले के पुलिस प्रमुख के पद पर बैठे हुए आईपीएस अफसर की यह बात बेहद आपत्तिजनक और असंवेदनशील है.
लेकिन उधम सिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के भाषण में केवल यही बात नहीं है, जो गैर जिम्मेदाराना है बल्कि उनके भाषण का अधिकांश हिस्सा कई दिक्कत तलब बातों से भरा हुआ था.
यह मामला रुद्रपुर के एक निजी अस्पताल में काम करने वाली नर्स के बलात्कार और हत्या से जुड़ा हुआ है. निजी अस्पताल में काम करने वाली उक्त नर्स के न्याय की मांग को लेकर रुद्रपुर के सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं और अन्य नागरिकों ने 17 अगस्त को उधमसिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर प्रदर्शन किया. वहीं प्रदर्शनकारियों से बातचीत करते हुए उधमसिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने वो गैरजिम्मेदाराना बात कही, जिसका वीडियो अंश वायरल है और जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में किया गया है.
प्रदर्शनकारियों के सामने एसएसपी डॉ.मंजुनाथ टीसी जब आए तो इस तरह घेरे जाने से वे कुछ खीजे हुए नजर आए. लेकिन फिर भी जब भीड़ ने यह जोर दिया कि दस-पंद्रह लोगों से अलग से वार्ता नहीं होगी बल्कि एसएसपी सबके सामने बात करें तो एसएसपी इस बात के लिए तैयार हो गए. इससे लगा कि बात सहजता से हो जाएगी. लेकिन उसके बाद जिस तरह से वे बातचीत में छात्रा-युवाओं पर रौब गालिब करने और कई बार दबे स्वर में धमकाने की कोशिश तक कर रहे थे तो उससे सवालों के घेरे में खड़े किए जाने पर, एसएसपी साहेब की असहजता साफ दिख रही थी.
छात्र-छात्राओं से तादात्म्य स्थापित करने के लिए शुरू में डॉ. मंजूनाथ टीसी ने यह जरूर कहा कि नारेबाजी से उनको अपने कॉलेज के दिन याद आ गए. लेकिन आगे की बातचीत से साफ हो गया कि वे पूरे समय भीड़ से निपटने की अपनी आईपीएस अकादमी की ट्रेनिंग के पाठों को ही निरंतर मन ही मन दोहरा रहे होंगे!
‘वी वांट जस्टिस’ के नारों पर उनकी प्रतिक्रिया तर्कसंगत थी कि जस्टिस यानि न्याय का मतलब तालिबानी किस्म का नहीं हो सकता है, सड़क पर लोगों को नहीं मारा जा सकता बल्कि न्याय को आपराधिक न्याय तंत्र यानि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के हिसाब से होना चाहिए. हालांकि इस तथ्य से वे वाकिफ होंगे कि जिस सत्ता के अधीन वे काम करते हैं, उसके समर्थक तो मॉब लिंचिंग को ही इस देश में न्याय का पर्याय बनाने पर उतारू हैं. उन्हें भी एसएसपी साहेब और उन जैसे अफसर इतनी ही कठोरता से वास्तविक न्याय का पाठ पढ़ा पाते तो न्याय और उसके तंत्र पर लोगों का भरोसा ज्यादा मजबूत होता. खैर....
छात्रों की बात सुनने के बाद एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी उन पर अपना रौब गालिब करने के लिए सवाल पूछते हैं कि मेरे बार में क्या जानते हो! भीड़ में से जवाब आता है कि आप एसएसपी हैं और इसी तरह के कुछ जवाब आते हैं. फिर वे सवाल दोहराते हैं कि पद की बात नहीं है, पर्सनली मेरे बारे में क्या जानते हो. फिर वे स्वयं ही बताते हैं कि वे खुद एक क्वालिफाइड एमबीबीएस डॉक्टर हैं. फिर आगे वो कहते हैं कि ‘आलतू-फालतू नहीं मैं खुद पीजी कार्डियो में कर के आया हूं.’ देखा जाये तो यही वो बिंदु है, जहां से एसएसपी साहेब ने ज़िम्मेदारी से बात करने का भाव त्याग दिया वरना आलतू-फालतू डॉक्टर क्या होता है? क्या पीजी कार्डियो के अलावा उनकी निगाह में बाकी सब डाक्टरी और स्पेशलाइजेशन ‘आलतू-फालतू’ हैं? और अगर वे इतनी ही गंभीरता से अपनी डॉक्टरी को लेते थे तो फिर उसे छोड़ कर पुलिस में आए ही क्यूँ?
इन सारे सवालों को छोड़ भी दिया जाये तो सबसे जरूरी सवाल डॉ. मंजूनाथ से उस मौके पर बनता था, वो यह कि क्या वहां पर लोग एमबीबीएस या पीजी कार्डियो वाले डॉक्टर से मिलने आए थे? या कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार जिले के आला पुलिस अधिकारी से मिलने आए थे? वे डॉक्टर ना भी होते तब भी, उन्हें मृतका की हालत के संदर्भ में पूछे गए सवालों का जवाब देना ही होता. ऐसे मौके पर कोई भी अफसर होगा तो उससे यही अपेक्षा की जाएगी कि वो तथ्यों और वैज्ञानिक आधार पर बोले. ऐसा तो हो नहीं सकता कि हर अपराध के मामले में पुलिस में जो डॉक्टरी पढ़े अफसर हैं, वही मौके पर हों!
गुमशुदगी दर्ज करने के मामले में वे सही कानूनी स्थिति बताते हैं. जांच की प्रक्रिया समझाते हैं. शरीर के गलने की प्रक्रिया का ब्यौरा उन्होंने दिया कि सात दिन खुले में शरीर पड़ा रहेगा तो शरीर तेजी से गलेगा. लेकिन यह अजीब बात है कि खुले में या झाड़ियों में शरीर पड़ा हुआ था, उसे किसी ने देखा भी नहीं और उससे सातवें दिन जा कर दुर्गंध महसूस हुई!
परिजन और अन्य लोग आशंका जता रहे हैं कि इस पूरे प्रकरण में एक से अधिक व्यक्तियों की भूमिका हो सकती है. परिजन तो जिस अस्पताल में मृतका काम करती थी, उस पर भी संदेह प्रकट करते हैं. परिजनों का आरोप था कि अस्पताल के किसी व्यक्ति ने उनसे बात नहीं की, ना कोई उनकी पीड़ा जानने आया. लेकिन एसएसपी अपने वक्तव्य में कहते हैं कि अस्पताल के लोग लगातार उन्हें फोन करते रहे. सवाल यह है कि जिन अस्पताल वालों को इतनी चिंता थी कि वे एसएसपी से लगातार बात कर रहे थे, वही अस्पताल वाले पीड़िता के परिवार के प्रति बेरुखी क्यूं अपनाए हुए थे?
लोगों से बातचीत के इस क्रम में एक जगह एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी कह रहे हैं कि मैंने ये नहीं देखा कि अपराध यूपी में हुआ क्यूंकि मैं तो इंडियन पुलिस सर्विस से हूं, घटना से मुझे घिन आई कि एक महिला से ऐसा कर रहे हो, मुझे बहुत संवेदनशीलता है, उसे फांसी चढ़ाना मेरी प्राथमिकता है’
इतनी संवेदनशीलता और गंभीरता प्रदर्शित करने के बाद बातचीत के एक अंश में वे कह देते हैं कि समाज किस तरफ जा रहा है, ये पुलिस ने अकेले ने ठेका नहीं ले रखा है. ठेका जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक गंभीर अपराध के मामले में अगंभीर और असंवेदनशील रुख प्रदर्शित करता है. अकेली पुलिस जिम्मेदार भले ना हो, लेकिन हर होने वाले अपराध को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ही प्रमुख तौर पर जिम्मेदार है, डॉ.. मंजूनाथ टीसी !