हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने 2021 के धर्म परिवर्तन विरोधी कानून को और कठोर बनाने के उद्देश्य से विधानसभा में फिर से एक अवैध धर्मांतरण (संशोधन) विधेयक 2024 पारित किया है. सरकार का कहना है कि 2021 के धर्मांतरण कानून की सजा ‘अपर्याप्त’ होने के कारण, नए कानून में, सरकार ने अधिकतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास और 5 लाख रुपये जुर्माना करने का प्रस्ताव किया है. पहले के कानून में केवल ‘पीड़ित’ के परिवार को ही थाने में शिकायत दर्ज कराने की अनुमति थी, जबकि नए विधेयक में ‘किसी भी व्यक्ति’ को शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दी गई है.
हम जानते हैं कि भाजपा ‘लव जिहाद’ षड्यंत्र सिद्धांत के हिस्से के रूप में इस कानून को पूरे देश में लागू करना चाहती है. इस सिद्धांत के अनुसार, मुस्लिम पुरुष ‘लव’ या प्यार का नाटक करके हिंदू महिला को बहला-फुसलाकर शादी करता है और इस्लाम धर्म में धर्मांतरण करता है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाना होता है. उत्तर प्रदेश में 1 जनवरी 2021 से 30 अप्रैल 2023 तक इस कानून के तहत 427 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 833 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
ऐपवा ने पहले भी इस कानून का पुरजोर विरोध किया था. आज जब योगी सरकार इस कानून को और कठोर बनाना चाहती है, तब भी ऐपवा इसके खिलाफ हर जगह जनमत तैयार करने का आह्वान करती है.
ऐपवा मानती है कि उत्तर प्रदेश का यह निर्णय मनुस्मृति के अंतरजातीय विवाह पर प्रतिबंध, नाजी जर्मनी के अंतरजातीय विवाह के अपराधीकरण और अमेरिका तथा दक्षिण अफ्रीका के नस्लवाद से प्रेरित है. यह कानून देश के संविधान और महिलाओं के अधिकारों और इच्छाओं पर गंभीर हमला है. भाजपा प्रेम के खिलाफ नफरत का भारत बनाना चाहती है. हमें अंतरजातीय प्रेम विवाह के माध्यम से देश में दंगे और नफरत का माहौल बनाने और हिंदू राष्ट्र बनाने की घृणित साजिश के खिलाफ खड़ा होना होगा. वयस्क लोगों को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने का अधिकार मिलना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य को यह तय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि महिलाएं किससे शादी करें.
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन
(ऐपवा)