आज से 21 वर्ष पहले एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने केंद्र में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को खत्म करके बाजार आधारित नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) लाए थे, जिसे पश्चिम बंगाल राज्य को छोड़कर लगभग सभी राज्यों ने कुछ आगे-पीछे करते हुए को अपने राज्यों में लागू कर दिया था, एनपीएस के खिलाफ कर्मचारी लगातार संघर्ष करते रहे हैं, जिसके चलते 2022 में राजस्थान, फिर छत्तीसगढ़, झारखंड, और हिमाचल प्रदेश ने ओपीएस को पुनः बहाल किया है. पेंशन विहीन कर्मचारियों द्वारा 1 जून 2023 से एनपीएस निजीकरण भारत छोड़ो यात्रा निकाली गई जिसने कई राज्यों से होते हुए 18 हजार किलोमीटर यात्रा तय की और कई महीनों तक चली. इसको कर्मचारियों का भारी समर्थन मिला था.
इसके बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले 1 अक्टूबर 2023 को नई दिल्ली में ऐतिहासिक रूप से सफल पेंशन शंखनाद महारैली आयोजित हुई. यह रैली इतनी असरदार रही कि लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने ओपीएस देने को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया और ओपीएस को एक राजनीतिक मुद्दा बनाया. लोकसभा चुनाव के दौरान कर्मचारी संगठनों ने स्वतंत्र रूप से ‘वोट फॉर ओपीएस’ अभियान चलाया. इस अभियान ने कई राज्यों में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुत नुकसान और इंडिया गठबंधन को फायदा पहुचाया. चुनाव बाद केंद्र में भाजपा को अकेले बहुमत नहीं मिला औरउसे एनडीए की बैशाखी का सहारा लेकर सरकार बनानी पड़ी. नवगठित लोकसभा में विपक्ष ने एकताबद्ध होकर सदन में ओपीएस के मुद्दे को ख़ूब उठाया है. विपक्ष की एकताबद्ध ताकत के और साथ ही, हरियाणा और महाराष्ट्र में लगातार कर्मचारियों द्वारा लगातार सड़कों पर चलायें जा रहे आंदोलन के दबाव का केंद्र सरकार पर यह प्रभाव पड़ा कि जो प्रधानमंत्री कभी ओपीएस को पुनः लागू करने वाले राज्य सरकारों के काम को पाप बताते थे वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनपीएस से यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) तक आ गए हैं. लेकिन, अब कर्मचारी उन्हें ओपीएस तक लाकर ही चैन लेंगे.
ओपीएस, एनपीएस और यूपीएस में क्या है अंतर
नई एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के तत्व सम्मिलित हैं.
ओपीएस से यूपीएस में सुनिश्चित पेंशन, मुद्रास्फीति सूचकांक, पारिवारिक पेंशन और न्यूनतम पेंशन जैसी विशेषताएं शामिल हैं. ये पहलू सेवानिवृत्ति के बाद सदस्यों को सुरक्षा और स्थिरता की भावना प्रदान करते हैं.
इसके अतिरिक्त, यूपीएस ने एनपीएस की एक प्रमुख विशेषता को भी अपनाया है, जो एक अंशदायी, पूर्ण रूप से वित्त पोषित योजना है. यह सुनिश्चित करता है कि सदस्यों को अपने पेंशन फंड में योगदान करने का अवसर मिले, जिससे सेवानिवृत्ति पर अधिक व्यक्तिगत और संभावित रूप से उच्च पेंशन भुगतान हो सके.
यूनिफाइड पेंशन स्कीम के पांच प्रमुख स्तंभ
1. 50 फीसदी की सुनिश्चित पेंशन: यूपीएस अपनाने पर सुनिश्चित पेंशन मिलेगी. इसकी रकम सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीने के औसत मूल वेतन का 50 फीसदी होगी. 25 वर्ष तक की सेवा पर ही यह रकम मिलेगी. 25 वर्ष से कम और 10 साल से ज्यादा की सेवा पर उसके अनुपात में पेंशन मिलेगी.
2. पारिवारिक पेंशन: किसी भी कर्मचारी के निधन से पहले पेंशन की कुल रकम का 60 फीसदी हिस्सा परिवार को मिलेगा.
3. न्यूनतम पेंशन: कम से कम 10 साल की सेवा के बाद 10 हजार रुपये प्रतिमाह की न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित होगी. महंगाई भत्तों को जोड़कर आज के हिसाब से यह रकम 15 हजार रुपये के आसपास होगी.
4. महंगाई दर के साथ इंडेक्सेशन: उपरोक्त तीनों तरह की पेंशन यानी सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन और न्यूनतम पेंशन के मामलों में महंगाई राहत यानी वक्त के आधार पर इनफ्लेशन इंडेक्सेशन मिलेगा.
5. सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी के अतिरिक्त एकमुश्त भुगतान.
छह महीने की सेवा के लिए (वेतन + डीए) की 10 फीसदी रकम का एकमुश्त भुगतान होगा. यानी अगर किसी की 30 साल की सर्विस है तो उसे छह महीने की सेवा के आधार पर एकमुश्त भुगतान (इमाल्यूमेंट) होगा.
ओपीएस गारंटी देता है कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को अपने वेतन का 50% पेंशन के रूप में मिलेगा. ओपीएस के अंतर्गत, सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) के रूप में जाना जाने वाला एक तंत्र है, जो कर्मचारियों को अपनी आय का एक हिस्सा अलग रखने में सक्षम बनाता है. यह राशि बाद में उनकी सेवानिवृत्ति पर संचित ब्याज के साथ चुकाई जाती है. इसके अलावा, ओपीएस के अंतर्गत कर्मचारी अधिकतम 20 लाख रुपये तक की ग्रेच्युटी भुगतान के हकदार हैं.
ओपीएस द्वारा सुगम भुगतान सरकारी खजाने के माध्यम से निष्पादित किए जाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पेंशन का वित्तपोषण सीधे सरकार द्वारा किया जाता है. यदि किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उनके परिवार को पेंशन लाभ मिलता रहता है. उल्लेखनीय तथ्य यह है कि ओपीएस के तहत पेंशन योगदान के उद्देश्य से किसी कर्मचारी के वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती है. जबकि एनपीएस में 10% और यूपीएस में भी 10% कटौती जारी रहेगी,
पहले सरकार 14% का योगदान करती थी, अब 18.5% योगदान करेगी. एनपीएस तो पूरी तरह से बाजार आधारित था, लेकिन यूपीएस में पेंशन की गारंटी की एक सीमा तक बात है, लेकिन यह कटौती कर्मचारियों के वेतन से होगी और कटौती का यह पैसा कहा रहेगा? इसका अभी भी कोई स्प्ष्ट जबाब नहीं है.
राष्ट्रीय पेंशन योजना में दो स्तर शामिल हैं. टियर 1 खाते और टियर 2 खाते. टियर 1 खाताधारक केवल सेवानिवृत्ति के बाद ही धनराशि निकाल सकते हैं, जबकि टियर 2 खातों में समय से पहले निकासी की सुविधा होती है जिससे निवेशकों को अधिक लचीलापन मिलता है.
आयकर अधिनियम की धारा 80 सीसीडी के तहत, व्यक्ति राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) में अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक निवेश करके कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में निवेश के आधार पर पेंशन मिलती है और एनपीएस सरकारी और निजी सभी कर्मचारियों के लिए होती है.
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) में एनपीएस की तरह बाजार से जुड़ा निवेश नही होगा, जबकि ओपीएस की तरह डीआर का प्रावधान रहेगा, एनपीएस वाले कर्मचारी भी इसमें शामिल हो सकेंगे. ओपीएस में 20 वर्ष मे ही कर्मचारी पूरी पेंशन का पात्र हो जाता था, जबकि यूपीएस में 25 वर्ष पर. वैसे तो लगातार 25 वर्षों तक निवेश के बाद एनपीएस यूपीएस से भी बेहतर साबित हो सकता है,
सेवा (25 साल) और मूल वेतन (50,000 रु.) पर गणना का अंतर
ओपीएस : पेंशन – मूल वेतन का 50% यानि 25,000 रुपए + डीए; फैमिली पेंशन – मूल वेतन का 30% यानि 15,000 रुपए + डीए; न्यूनतम पेंशन – 9,000 रुपए + डीए. ग्रेच्युटी – 12,37,500 रुपए
यूपीएस : पेंशन – मूल वेतन का 50% यानि 25,000 रुपए + डीआर; फैमिली पेंशन : मूल वेतन का 60% यानि 30,000 रूपए + डीआर; न्यूनतम पेंशन : 10,000 रूपए + डीआर. ग्रेच्यूटी – 9,37,500 रुपए
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यूपीएस गारंटेड पेंशन योजना के प्रस्ताव से अलग है जिस पर आंध्र प्रदेश सरकार विचार कर रही थी और जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को अंतिम प्राप्त वेतन का 33% पेंशन प्रदान करना था.
संघर्ष ही है आगे का रास्ता
सरकार और समझौता परस्त संगठन कर्मचारियों सहित आम आवाम में यह भ्रम फैला रहे हैं कि यह ओपीएस ही है. यह सरासर झूठ है. ओपीएस में कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नही कटता है जबकि यूपीएस में कटेगा? जिसका हम लोग फ्रंट अगेंस्ट एनपीएस इन रेलवे सम्बद्ध नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम, बिहार अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (गोपगुट) और इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन से सम्बद्ध यूनियनों के साथ सहयोगी संगठनों और एनएओपीएस राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु के नेतृत्व में केंद्र और राज्य सरकारों से हूबहू ओपीएस बहाल करवाने तक संघर्ष जारी रखेंगे.
अभी एनपीएस रूपी ट्रेन जो कर्मचारियों से नेतृव में ओपीएस के रेलवे स्टेशन पर जा रही है यूपीएस नामक नए हॉल्ट पहुचीं हैं. यकीनन, यह आगे बढ़ते हुए ओपीएस तक जरूर पहुंचेगी. ओपीएस को पाप बताने वाले प्रधानमंत्री घुटने के बल चलकर एनपीएस से यूपीएस तक आ गए हैं, कर्मचारी उन्हें ओपीएस तक लाकर ही चैन लेगा.
– डॉ. कमल उसरी
मोदी सरकार द्वारा स्वीकृत यूपीएस (एकीकृत पेंशन योजना) सरकारी कर्मचारियों को धोखा देने और उन्हें बांटने की एक चाल के अलावा और कुछ नहीं है. सरकार यूपीएस लाकर एनपीएस के खिलाफ और ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) की बहाली के लिए आंदोलन को रोकने की मूर्खतापूर्ण और हताशा भरी कोशिश कर रही है.
मोदी सरकार द्वारा यूपीएस की शुरूआत को व्यापक रूप से एनपीएस के खिलाफ और ओपीएस के लिए सरकारी कर्मचारियों के अथक आंदोलन के कारण मजबूर होकर उठाया गया कदम माना जा रहा है. लेकिन, वास्तव में, यह एनपीएस के मुकाबले कोई गुणात्मक बदलाव नहीं दर्शाता है. बल्कि, यह पुरानी पेंशन योजना के कर्मचारियों के अधिकार को पूरी तरह से नकारना है, जो सरकार को दी गई दशकों की सेवा के बदले में मिलने वाली लाभ योजना है.
जबकि ओपीएस एक परिभाषित लाभ योजना है, इसमें कर्मचारियों को अपनी पेंशन के लिए कोई योगदान देने की आवश्यकता नहीं थी. न्यायालयों द्वारा पेंशन की व्याख्या अवैतनिक/विलंबित वेतन के रूप में की गई थी. लेकिन, एनपीएस की तरह यूपीएस भी अंशदायी योजना बनी हुई है और कर्मचारियों को डीए सहित अपने वेतन का 10% अंशदान करने के लिए मजबूर किया जाता है.
कर्मचारियों को उनकी सेवा के अंत में उनकी ग्रेच्युटी में भारी कटौती करके भी बड़ा झटका दिया गया है. आम तौर पर, औसतन, एक सरकारी कर्मचारी को उनकी सेवा के अंत में मिलने वाली अनुमानित राशि लगभग न्यूनतम 20 लाख रुपये थी, और अब इसे हर छह महीने की सेवा के लिए मासिक वेतन के 10% तक घटा दिया जा रहा है, जो सरकार को दशकों की सेवा देने के लिए बहुत कम है. साथ ही, ओपीएस में जीपीएफ का मिलने वाला लाभ भी छीन लिया गया है. इसके अलावा, यूपीएस एक बाजार संचालित योजना बनी हुई है और बाजार की अनिश्चितताओं पर निर्भर है. इसलिए, यूपीएस मे किसी भी सुनिश्चित पेंशन के लिए जो भी प्रस्ताव हो, वह भी बेहद असुरक्षित है.
अंततः, यूपीएस भी एनपीएस की तरह लाभ के रूप में पेंशन को नकारना जारी रखता है और इसे कर्मचारी द्वारा उसकी सेवा अवधि में किए गए योगदान के अनुपात में बनाता है. इसके अलावा, यूपीएस सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों और संविधान का भी घोर उल्लंघन है.
इसलिए यूपीएस का विरोध किया जाना चाहिए और ओपीएस की बहाली के लिए आंदोलन को और तेज किया जाना चाहिए. ऐक्टू देश के सरकारी कर्मचारियों के ओपीएस की बहाली के संघर्ष में उनके साथ एकजुटता से खड़ा है.