वर्ष - 33
अंक - 33
10-08-2024


- मीना सिंह

‘लखनऊ बचाओ संघर्ष समिति’ की ओर से 1 अगस्त 2024 को महिला संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अकबरनगर के विस्थापित परिवारों से वसंत कुंज जाकर मुलाकात की, उनकी पीड़ा से रूबरू हुए और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली परेशानियों की जानकारी ली. प्रतिनिधिमंडल में मीना सिंह (ऐपवा), नाइश हसन (सामाजिक कार्यकर्ता), मधु गर्ग (ऐडवा) और कांति मिश्रा (भारतीय महिला फेडेरेशन) मुख्य रूप से षामिल थीं.

लखनऊ के बीचोबीच बसे अकबर नगर के लोगों को जिस वसंत कुंज में एक कमरे के मकान में रहने के लिए बाध्य किया गया है वह अकबर नगर से  लगभग 35 किमी की दूरी पर है. इससे यह अंदाजा लगा सकते है कि वहां के लोगों को अपने जीवन यापन के लिए शहर में आना-जाना कितना कठिन हो गया है. वसंत कुंज में ट्रांसपोर्ट की कोई सुविधा नहीं है. उन लोगों के लिए जिनके पास अपना कोई वाहन नहीं है, बाहर निकल पाना काफी मुश्किल हो गया है. खासतौर पर महिलाएं सबसे ज्यादा परेशान हो रही हैं क्योंकि वे अपने काम पर वापस नहीं जा पा रही हैं.

वे महिलाएं जो घरों में काम करके जीवन यापन करती थीं उनके तो खाने के लाले पड़ गए है क्योंकि वसंत कुंज के आसपास ऐसी कोई बस्ती नहीं है जहां उन्हें काम मिल सके. कुछ महिलाओं ने हमें बताया कि वे चिकनकारी का काम करती थीं. कुछ ने बताया कि वे ट्यूशन पढ़ाकर खुद अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल लेती थीं. लेकिन, अब सब कुछ खत्म हो गया है. उनकी पढ़ाई भी बंद हो गई है.

अकबरनगर बचाओ अभियान में बेहद सक्रिय सुमन पांडे व बुशरा ने हमारे साथ एक बैठक आयोजित करने के लिए इन महिलाओं इकट्ठा किया.

सरकार ने अकबरनगर वालों के घरों को छीनकर उन्हें शहर से 35 किमी की दूर फेंक दिया है वह काले पानी की सजा से कम नहीं है. उनको जो आवास दिए गए है वे कहने को प्रधानमंत्री आवास हैं किन्तु वास्तव में ये छोटे-छोटे दड़बे हैं. उनमें मूलभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव है.

अकबर नगर के अधिकांश निवासी 1970 से 1980 के बीच बसे हुए हैं. पहले इस स्थान का नाम मेह नगर और रहीम नगर था जो बाद में उप्र के राज्यपाल अकबर अली के नाम पर अकबर नगर रखा गया.

सभी महिलाओं का कहना था कि उनके घरों को तोडकर भारी अन्याय हुआ है, सरकार को उनको मुवाअजा देना चाहिए  और अकबर नगर की ही जमीन पर ही उन्हें पुनस्र्थापित किया जाये.

एक विशेष बात उल्लेखनीय है कि हिंदू-मुस्लिम के बीच फैलाई जा रही नफरत के इस माहौल में अकबर नगर निवासियों की एकता एक मिसाल है. उनका संघर्ष काफी लंबा है. इतनी पीड़ा झेलते हुए भी वे टूटी नहीं हैं. इस स्थिति में भी वे संघर्श के लिए तैयार हैं और उनके इरादे और मजबूत हो गए हैं. अंतिम न्याय मिलने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा. महिलाओं से बातचीत के दौरान कुछ खास पहलू निकलकर सामने आए हैं:

1. यहां जो भी महिलाएं मिलीं वे घरेलू कामगार थीं. बुटीक में काम करतीं थीं, माॅल में सफाई करती थीं या किसी शो रूम में काम करतीं थीं. वे अब बेरोजगार हैं. बुध बाजार में ठेला लगाने  का काम भी करतीं थीं जो इस जंगल में नहीं हो सकता है.

2. लगभग तीन हजार बच्चे अकबर नगर के स्कूलों में पढ़ते थे. अब उनमें से ज्यादा से ज्यादा 20% बच्चे ही पढ़ने जा रहे हैं. ऐस इसलिए कि आसपास में कोई सरकारी स्कूल नहीं हैं और वे प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं दे सकते हैं.

3. लोगों केे पास रोजगार का कोई साधन नहीं है. उनके रोजगार अकबर नगर के आसपास थे. अब उतनी दूर जाने में इतना किराया खर्च होगा कि घर का खर्च चलाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा.

4. वसंत कुंज से आवागमन का कोई साधन नहीं है. एकमात्र बस है जो सुबह सात बजे आती है. उसके बाद कोई साधन नहीं है.

5. यहां अस्पताल की कोई सुविधा नहीं है. यदि कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए तो जान के लाले पड़ जायेंगे. यहां आज भी सराकरी राशन की कोई भी दूकान नहीं खुली है.

6. मूलभूत सुविधाएं बहुत ही कमजोर हैं. लोगों को प्रदूषित पानी पीना पड़ता है. इस वजह से लोग पेट की बीमारी के मरीज हो गये हैं. बिजली कई घंटे के लिए कट जाती है. गंदगी इतनी ज्यादा है कि दिन में भी मच्छरों का प्रकोप रहता है. जो आवास मिले हैं उनकी गुणवत्ता का आलम यह है कि सीवर बह रहा है, फर्श उखड़ रही है और दीवारों का पलस्तर जगह-जगह से झड़ रहा है.

7. महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को बहुत ख़तरा है. सूनसान पड़ी जगहों पर कभी भी, कोई भी घटना उनके साथ हो सकती है. कुछ समय पहले 9 साल की एक बच्ची इसका शिकार होते-होते किसी तरह से बच पाई.

8. एक बात यह भी सामने आई कि अविवाहित लड़कियों (अधिकांश उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला ले लिया है), तलाकशुदा महिलाओं या फिर पति के न रहने से अकेली रह गईं महिलाओं को आवास नहीं मिला है. अनुमान के मुताबिक अविवाहित लड़कियों की संख्या लगभग 100 है. अब ये महिलाएं आश्रित होकर जीवन बिता रहीं हैं.

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सब कुछ टूट गया, सब कुछ छूट गया – अकबर नगर की महिलायें

1. साहिबा बानो: इनके 6 बच्चे हैं. इनके पति अकबर नगर में सड़क किनारे चाय का ठेला लगाते थे और दो बेटियां एक एनजीओ से जुड़कर गरीब बच्चों को पढ़ाती थी. चार कमरों का घर था इनका. इनके पास अब कोई काम नहीं है. शौहर ने वसंत कुंज में चाय का ठेला लगाया किन्तु यहां बहुत कम बिक्री होती है. बच्चे घर बैठे हैं. दो वक्त की रोटी का भी मुश्किल से इंतजाम हो पाता है.

2. मीना: इनके पति फर्नीचर की दुकान पर मजदूरी करते थे. अकबर नगर टूटने के बाद वे बेरोजगार हो गए हैं. अब रोज सुबह बाइक से रोजगार की तलाश में निकलते हैं. इसमें करीब 200 रुपये का पेट्रोल खर्च हो जाता है और मात्र 375 रुपये की दिहाड़ी मिलती है (वह भी यदि मिल गई तो). इनके 3 बच्चे हैं. दो बच्चों को पढ़ने के लिए 4 किमी दूर भेज रहे हैं. बच्चे हाईवे पार कर स्कूल जाते हैं जिसमें दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है. ये बच्चे पहले अकबर नगर में पास के ही स्कूल में पढ़ते थे.

3. तालिमुन्निसा: इनका अकबरनगर में चार मंजिला मकान था. शौहर लुलू माॅल के पीछे गांव में फर्नीचर का काम करते हैं. बाइक से जाने पर पैट्रोल के खर्च में ही कमाई चली जाती है. दो बच्चे रजत डिग्री कालेज (फैजाबाद  रोड) में पढ़ने जाते हैं. आने-जाने में ही हर माह 3000 रुपये खर्च हो जाते हैं. आगे कैसे गुजारा होगा, पता नहीं.

4. नेहा उपाध्याय:  इनके पति की मृत्यु हो चुकी है. येे अपनी ननद के घर में रहती हैं क्योंकि इनको घर नहीं मिला है. अब इनके पास न रहने को घर है और न ही जीवन यापन का कोई साधन या रोजगार.

5. सैयदुन्निसा: ये बुजुर्ग महिला हैं. अपनी बहू के साथ रहती हैं. अकबर नगर में इनका तीन मंजिला घर था. येे अपने घर से निकल नहीं रहीं थीं तो उन्हें एलडीए और पुलिस वालों ने हाथ पकड़कर घर से निकाला – यह पीड़ा उनकी आंखों से हमेशा छलक उठती है.

6. सुमन पांडे: सुमन अकबर नगर बचाओ अभियान में बहुत सक्रिय थीं. इनका 6 कमरे का मकान था. इनके पति सरकारी माली हैं. मकान बनाने के लिए उन्होंने ढाई साल पहले ही लोन लिया था जिसकी हर महीने 27,551 रुपये क़िस्त जाती है. अब उनके पास मकान तो नहीं रहा, लेकिन उसकी किस्त हर महीने देनी पड़ती है. ये फिक्रमंद हैं कि जब वसंत कुंज के घर की किस्त शुरू हो जायेगी तो घर कैसे चलेगा? सुमन अपनी एक साथी बुशरा के साथ अकबर नगर बचाओ अभियान में लगी रहीं. ये बताती हैं कि वे चार बार मुख्यमंत्री के दरवाजे पर अकबर नगर निवासियों की फरियाद लेकर गईं जहां मुख्य सचिव ने अकबर नगर निवासियों को ’नाले का कीड़ा’ कहते हुए दुत्कार दिया.

वे कुछ लोगों के साथ कुकरैल नाले के उद्गम स्थल अस्ती गांव भी गईं जहां उन्होंने एक सूखा कुंआ देखा. सरकारी दावों के अनुसार यह ‘नदी’ अस्ती से शुरू होकर 17 गांवों से गुजरती है. धूप-गर्मी की परवाह किए बगैर वे जंगलों में ड्रोन कैमरा वाले को लेकर गईं किंतु कहीं भी सरकार के दावे के अनुसार ‘कुकरैल नदी’ नहीं दिखी. 13 जून को भारी पुलिस बल के साथ एलडीए की टीम आ गई और घरों पर बुलडोजर चलने लगे. रोते-चीखते बच्चों और महिलाओं को घरों से सामान भी नहीं निकालने दिया गया. सुमन और कुछ महिलाओं ने विरोध किया तो महिला पुलिस अधिकारी ने जेल भेजने की धमकी दी. एक-एक ईंट जोड़कर बनाया हुआ आशियाना उनकी आंखों के सामने ढहा दिया गया. यह पीड़ा इनको शूल की तरह चुभती रहती है.

7. बुशरा: सुमन की साथी बुशरा ने विवाह नहीं किया. ये बच्चों को पढ़ाती थीं. जिस वक्त घर तोड़े जा रहे थे वे 45 बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहीं थीं. अपनी मेहनत से उन्होंने अकबर नगर में घर बनवाया था. मोहर्रम के ताजियादारी को याद कर वे रोने लगीं. अकबर नगर का ताजिया पूरे लखनऊ में मशहूर था. इनको लगता है कि इस बार मोहर्रम  में (9-10 जुलाई) वसंत कुंज में जान-बूझकर बिजली काट दी गई थी. उस दिन अकबर नगर की यादों ने लोगों को इतना विह्वल कर दिया कि बहुत से लोग पैदल ही अकबर नगर पहुंच गये और वहां उजड़ा हुआ दयार देखकर बहुत रोये.

बुशरा का यही कहना था कि उन सबको दोबारा अकबर नगर में ही जमीन दे दी जाए. भले ही उन्हें वसंत कुंज के साइज का ही मिले. वे लोग उसमें अपना गुजारा कर लेंगे.

8. मिथलेश:  इनके पति मज़दूरी करते थे. यहां उनको मजदूरी नहीं मिलती. दो बच्चे हैं जो घर बैठे हैं. सुबह की चाय पीते हैं तो दोपहर के खाने की चिंता सताती है. एक बेटा 2022 में लापता हो गया था. मिथलेश को चिंता है कि यदि वह वापस लौटेगा तो अकबरनगर को कहां ढूंढेगा?

9. संगीता: संगीता के पति महानगर में डाला चलाते थे, अब कहां जांए. डाला लेकर गए और काम नहीं मिला तो पेट्रोल का पैसा बर्बाद हो जाता है. अकबर नगर में 5 कमरे का घर था. पढ़ने वाले दो बच्चे अब घर बैठे हैं. पहले वे पेपर मिल काॅलोनी के स्कूल में पढ़ते थे. बुजुर्ग सास हैं जो जब से आईं हैं, कहतीं हैं – ‘मुझे भैंसाकुंड (श्मशान) में छोड़ दो. यहां तीसरी मंजिल पर घर है. वे बस एक जगह बैठी रहतीं हैं और अकबरनगर की रट लगाए रहतीं हैं.

10. सरला: इनके पति कैटरिंग का काम करते थे. दो दुकानें भी थीं. तीन मंजिला घर था जिसमें 9 कमरे थे. तीन बच्चे हैं. उनकी पढ़ाई का इंतजाम अभी नहीं हो पा रहा है. पति का भी काम बंद है. सब कुछ टूट गया. घर का काफी सामान वहीं रह गया. 12 जून को उनके घरों से बिजली के मीटर उखाड़े गए, पानी बिजली सब बंद कर दिया गया. फिर घेराबंदी कर उन्हें उनके घरों से बेइज्जत कर निकाल दिया गया.

11. मों अजीज: 25 वर्षीय मो. अजीज बादशाह नगर के किनारे सड़क पर अटैची सिलते थ. 19 जुलाई को पुलिस वाले उनकी मशीन उठा ले गए क्योंकि 20 जुलाई को योगी आदित्यनाथ अकबर नगर के मलबे पर ‘सौमित्र शक्ति’ वन उद्घाटन करने वाले थे. मो. अजीज इसका ऐसा सदमा पहुंचा कि पूरी तरह से  टूट गए. वसंत कुंज के घर में आकर उन्होंने खिड़की की राॅड से फांसी लगा ली. अपने पीछे वे 20 साल की पत्नी और 6 महीने की बच्ची छोड़ गए हैं. अब इनके घर में कोई कमाने वाला नहीं है. अजीज  की पत्नी भी सिलाई का काम करती थी लेकिन वसंत कुंज में काम नहीं मिल रहा है. 85 वर्षीय बाबा रिक्शा चलाते थे. वे अकबर नगर में 1970 में आये थे. पुलिस की ज्यादती के शिकार इस परिवार  को सरकार  से कोई मुआवजा नहीं मिला है.

राबिया खातून और सरस्वती को तो घर भी नहीं मिला है. वे अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहीं हैं.