वर्ष - 33
अंक - 32
03-08-2024

- इन्द्रेश मैखुरी

उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग याद है आपको? उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धरासू-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर ये वही सुरंग है जो बीते वर्ष दिवाली के दिन यानि 12 नवंबर 2023 को ढह गयी और 41 मजदूर 17 दिनों तक इस सुरंग के भीतर फंसे रहे. इस सुरंग को बनाने वाली कंपनी का नाम नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड है.

आठ महीने में उक्त् सुरंग दुर्घटना के मामले में बहुत सारी और बातें हुई. मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले रैट होल माइनर्स के टीम लीडर वकील हसन का दिल्ली स्थित घर मार्च 2024 में सरकार द्वारा ढहा दिया गया.

नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी को लेकर केंद्र सरकार लगातार खामोशी बरते रही. यहां तक केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी समेत भाजपा का कोई नेता इस कंपनी का नाम तक लेने को तैयार नहीं दिखाई दिया. इस बीच फरवरी महीने में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक हुए. इस खुलासे में पता चला कि सिलक्यारा की सुरंग में मजदूरों की जिंदगी खतरे में डालने वाली नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये भाजपा को 55 करोड़ रुपये का चंदा दिया था.

उस सिलक्यारा सुरंग को लेकर खबर यह भी है कि लगभग आठ महीने बीत जाने के बाद भी उसके भीतर का मलबा साफ नहीं किया जा सका है.

20 फरवरी 2018 को जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट के आर्थिक मामलों की समिति ने 1383.78 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस सुरंग को स्वीकृति दी थी तो यह प्रावधान किया गया था कि एस्केप पैसेज यानि बचाव का मार्ग भी इसमें बनाया जाएगा. जब सुरंग में मजदूर फंस गए, तब मालूम पड़ा कि सुरंग बनाने वाली कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ने कोई एस्केप रूट या एस्केप टनल बनाया ही नहीं है. अब जब सुरंग का मलबा साफ करते हुए आठ महीने बीत गए और मलबा साफ नहीं हो सका है, तब अखबार में खबर है कि मलबा हटाने के लिए तीन छोटी-छोटी सुरंगें बनाई जा रही है. यानि मजदूरों के बचाव के लिए तो एक एस्केप टनल नहीं बनाई गयी पर अब मलबा निकालने के लिए तीन छोटी-छोटी सुरंगें बनाई जाएंगी!

बहरहाल इस सिलक्यारा सुरंग और उसमें हुई दुर्घटना का मामला संसद के बजट सत्र में एक बार फिर से सवाल के रूप में उठा है. संसद में सिलक्यारा सुरंग के मसले पर सवाल उठाया – बिहार की आरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए भाकपा(माले) के कामरेड सुदामा प्रसाद ने.

25 जुलाई 2024 को अपने अतारांकित प्रश्न में भाकपा(माले) सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद ने केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से पूछा कि –

  • (क) क्या सरकार ने उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग के ढहने के कारणों की जांच कराई है और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं तो इसके क्या कारण हैं?

  • (ख) क्या सुरंग के भीतर फंसे कामगारों को मुआवजा दिया गया था और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?

  • (ग) क्या इस सुरंग के ढहने के लिए जिम्मेदार दोषी ठेकेदारों/कंपनियों और अधिकारियों के विरुद्ध कोई सिविल या आपराधिक कार्यवाही की गई थी और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और नहीं तो क्या कारण हैं?

  • (घ) क्या सरकार का विचार हिमालयी क्षेत्रा की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए चार धाम परियोजना के भाग के रुप में सड़क और /अथवा पर्यावरणीय प्रभाव की समीक्षा करने का है? और

  • (ड.) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?

सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद द्वारा जो सवाल केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री से पूछे गए वो बेहद जरूरी सवाल हैं. खास तौर पर यह तो पता चलना ही चाहिए कि कंपनी के विरुद्ध उस घनघोर लापरवाही के लिए क्या कार्यवाही की गयी, जिसकी वजह से 17 दिनों तक 41 मजदूरों की जान सांसत में फंसी रही.

कामरेड सुदामा प्रसाद के सवालों के केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा दिये गए जवाबों से स्पष्ट है कि अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गयी है!

कामरेड सुदामा प्रसाद द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने कहा कि सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को ठेकेदार द्वारा दो माह के वेतन और बोनस के अलावा प्रत्येक मजदूर को दो लाख रुपये का भुगतान किया गया है. इसके अलावा उत्तराखंड सरकार द्वारा हर मजदूर को एक लाख रुपया दिया गया है.

लेकिन कार्यवाही का जहां तक सवाल है, उस मामले में मंत्री जी का जवाब बताता है कि कार्यवाही कुछ भी नहीं हुई है. अभी सरकार रिपोर्ट-रिपोर्ट ही खेल रही है.

कामरेड सुदामा प्रसाद द्वारा पूछे गए जांच एवं कार्यवाही वाले प्रश्न का उत्तर केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने दो हिस्सों में  दिया है.

पहले हिस्से में वे बताते हैं कि उत्तराखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग -134 पर सिलक्यारा सुरंग के ढहने के कारणों की जांच के लिए सरकार द्वारा विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई है. समिति  ने 22.12.2023 को मंत्रालय को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है.

कार्यवाही के सवाल पर मंत्री जी बताते हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) द्वारा ठेकेदार, प्राधिकरण के अभियंता, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट परामर्शदाता और परियोजना की देखरेख करने वाले क्षेत्रीय अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं. विशेषज्ञों की समिति की अंतिम सिफारिश के आधार पर दोषी ठेकेदारों/कंपनी और सुरंग ढहने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अंतिम कार्यवाही की जाएगी.

मंत्री जी के इस जवाब से साफ है कि आठ महीने बाद भी सुरंग ढहने के लिए केवल कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं, कोई कार्यवाही नहीं की गयी है. चूंकि मंत्री जी ने अपने जवाब में इस बात का जिक्र नहीं किया कि संबंधितों को जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब आया कि नहीं, इसलिए यह जानना भी रोचक होगा कि आखिर कारण बताओ नोटिस में कारण बताने के लिए कितनी अवधि दी गयी थी और जवाब देने वालों ने क्या कारण बताए!

यह भी गौरतलब है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा बनाई गयी विशेषज्ञ जांच समिति ने मंत्री महोदय के जवाब के अनुसार प्रारंभिक जांच रिपोर्ट तो लगभग महीने भर में ही दे दी पर अंतिम रिपोर्ट वो आठ महीने में भी नहीं सौंप सकी है! आखिर और कितना वक्त लगेगा, जबकि अंतिम रिपोर्ट सौंपी जाएगी और कार्यवाही होगी? रिपोर्ट आएगी भी या नहीं या रिपोर्ट तो आ जाएगी पर कार्यवाही के रास्ते में 55 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड की दीवार आ जाएगी?

आठ महीने से सुरंग को चालू करने के प्रयास तो निरंतर ही चर्चा में आते रहते हैं, लेकिन सुरंग ढहने के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही का कोई प्रयास कहीं दिखाई नहीं देता है! आठ महीने बाद लोकसभा में मंत्री जी बता रहे हैं कि नोटिस दिये गए हैं, रिपोर्ट का इंतजार है! इससे कार्यवाही के प्रति तत्परता का अंदाजा लगाया जा सकता है!

सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद के सवाल के अंतिम हिस्से का जो जवाब मंत्री जी ने दिया है, वो सिर्फ तकनीकी रूप से ही सही है!

प्रश्न था कि क्या हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार का चार धाम परियोजना के पर्यावरणीय समीक्षा का विचार है?

मंत्री जी ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) का हवाला इस सवाल के जवाब में दिया.

हकीकत यह है कि चार धाम सड़क परियोजना की शुरुआत से ही इसका कोई पर्यावरण प्रभाव आकलन नहीं किया गया. इसके लिए आठ सौ किलोमीटर से अधिक की इस सड़क के चौड़ा करने की चार धाम परियोजना को एक परियोजना न मानते हुए 99 किलोमीटर से कम के 53 पैकेजों के रूप में दिखाया गया. यह सच है कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में एचपीसी का गठन किया. समिति के सरकारी और गैर सरकारी सदस्यों ने एकमत होकर कहा कि यह सड़क अवैज्ञानिक और अनियोजित तरीके से काटी जा रही है. लेकिन इसको ठीक करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए. पर्यावरणीय आधार पर जब प्रोजेक्ट पर रोक लगने की स्थिति बन गयी तो तो रक्षा जरूरतों का हवाला देकर इसे जारी रखने का तर्क उच्चतम न्यायालय के सामने रखा गया. उच्चतम न्यायालय ने 14 दिसंबर 2021 को इस परियोजना को जारी रखने की अनुमति देते हुए भी अपने फैसले में स्वीकार किया था कि इस सड़क का काम काफी खराब तरीके से किया जा रहा है. सरकार को न्यायालय ने ताकीद किया था कि सड़क चौड़ा करने में प्रकृति और पर्यावरण का नुकसान नहीं होना चाहिए. लेकिन सरकार और नवयुग जैसे उसके ठेकेदार कोई चेतावनी सुनने को तैयार नहीं हुए और नतीजा सिलक्यारा जैसा हादसा!

बहरहाल कामरेड सुदामा प्रसाद द्वारा संसद में पूछे गए सवाल से एक बार फिर सिलक्यारा सुरंग का मसला सरकार के जेहन में भी वापस आया होगा. सरकार को आभास हुआ होगा कि मामला अभी ठंडे बस्ते में पूरी तरह जा नहीं पाया है. आरा के माले सांसद उसे फिर सदन के पटल पर ले आए हैं.

यूं तो उत्तराखंड से लोकसभा में भाजपा के पांच सांसद हैं, तीन सांसद राज्यसभा में भी हैं. इस तरह संसद में उत्तराखंड से कुल भाजपा सांसदों की संख्या हुई आठ. इनमें से एक केन्द्रीय राज्य मंत्री हैं तो सवाल पूछ सकने वाले सांसदों की संख्या बची – सात. लेकिन अफसोस और हैरत की बात है कि उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग का मामला संसद में उत्तराखंड के किसी भाजपा सांसद ने नहीं उठाया!

यह मसला आरा के जिन सांसद सुदामा प्रसाद ने उठाया, उन्हें इस मसले को उठाने से कोई राजनीतिक लाभ नहीं होना है. लेकिन सही अर्थों में जो जन प्रतिनिधि हैं, वे ही व्यापक जनता के जीवन से जुड़े मसलों से सरोकार रखते हैं. उत्तराखंड के पर्यावरण और लोगों की जिंदगी से जुड़े इस अहम सवाल को संसद में उठाने के लिए उत्तराखंड की तरफ से कामरेड सुदामा प्रसाद का शुक्रिया!