– कुमार परवेज
– मां कुश्ती मेरे से जीत गई मैं हार गई. माफ करना! आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके, इससे ज़्यादा ताक़त नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा द्दणी रहूंगी, माफी! – पेरिस ओलंपिक से 6 अगस्त को भारत के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई जब विनेश फोगाट ने क्यूबा की पहलवान गुजमान लोपेजी को सेमीफाइनल में हराकर इतिहास बना डाला, लेकिन अगले ही दिन एकदम से निराश कर देने वाली खबर – 100 ग्राम अधिक वजन के कारण विनेश फोगाट प्रतियोगिता से र्हुइं बाहर! पूरा देश स्तब्ध! क्या हुआ ऐसा? इतनी तेजी से सबकुछ कैसे बदल गया? अयोग्य घोषित होने के बाद पता चला कि विनेश बेहोश हो गईं. उनका गोल्ड मेडल जीतने का सपना टूट चुका था जिसके लिए उन्होंने अपना सबकुछ झोंका था. इस घटना ने ऐसा तोड़ा कि उन्होंने कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया और उसी के बाद अपनी मां के नाम उनके द्वारा यह भावुक पोस्ट किया गया.
नहीं, विनेश! आप हारी कहां हैं? पूरा देश आपके साथ खड़ा है. सोशल मीडिया से लेकर नुक्कड़ चौराहों की चर्चा में आप ही आप हैं. किसी भी पदक से आज आप ऊंची हो गई हैं. करोड़ों भारतीयों के दिलों में संघर्ष की उम्मीद बनकर उभरी हैं. दरअसल, आप गुजनाम या यूई सुसाकी से कहां लड़ रही थीं? आप तो उन ब्रजभूषणों के खिलाफ लड़ रही थीं जिन्होंने हर कदम पर आपको रोकने और कुश्ती के मैदान से बाहर कर देने की साजिशें की. कुछ महीने पहले ही आपको राजधानी दिल्ली की सड़कों पर घसीटा गया था, लताड़ा गया था, अपमानित किया गया था, बावजूद आप लड़ती रहीं. यह आपका साहस ही था कि इतने अन्याय व अपमान के बावजूद भी आप ओलंपिक पहुंची और वहां इस बार क्या गजब खेला. एक पर एक जीत! अद्भूत! फाइनल तक का शानदार सफर! यह सब ब्रजभूषणों को कैसे बर्दाश्त होता!
आपने जब सेमीफाइनल में जीत हासिल की तो सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ सी आ गई. आपके पंजे और पैरों के नीचे कोई गुजमान नहीं बल्कि ब्रजभूषण शरण सिंह था. दिल्ली की सड़कों पर संघर्षों का आपका वीडियो वायरल होने लगा. उन्हें कैसे बर्दाश्त होता कि आप फाइनल खेलें और गोल्ड मेडल लेकर आएं! 7 अगस्त की रात क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, हमें बहुत नहीं पता. बस इतना पता है कि अचानक आपका वजन 2.5 किलो बढ़ गया और बहुत प्रयास के बावजूद भी 100 ग्राम अधिक ही रह गया. वजन कैसे बढ़ा, यह किसी की समझ में आए न आए हमारी गोदी मीडिया को पल भर में समझ में आ गया और वह ऐसे माहौल में भी आपके खिलाफ घृणा अभियान चलाता रहा.
लेकिन आपका संघर्ष दुनिया की मीडिया में गूंजा. अमेरिकी मीडिया सीएनएन ने लिखा कि विनेश फोगाट साल भर पहले सेक्सुअल हैरेसमेंट के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए दिल्ली की सड़कों पर सो रही थीं. मंगलवार को उनकी किस्मत ने बुरा मोड़ लिया, कड़ी मेहनत के बावजूद वह गोल्ड मेडल के लिए खेले जाने वाले मैच से बाहर हो गईं. उनको विश्वास था कि इतनी कठिनाइयों का सामना करने के बाद उन्हें एक सिल्वर या गोल्ड मेडल जरूर मिलेगा. फोगाट फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया की बेस्ट पहलवान यूई सुसाकी को मात दे चुकी हैं. फोगाट ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास में नाम दर्ज कर लिया है. अलजजीरा ने पिछले साल बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चल रहे उनके प्रदर्शन को केंद्र में रखा. उसने लिखा कि विनेश फोगाट का सपना सिर्फ ओलंपिक में गोल्ड पाना ही नहीं था, बल्कि इसके पहले अपने देश में महिला पहलवानों की सुरक्षा के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी. अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए वे यहां तक पहुंचीं.
यह कैसी बेशर्मी है कि फाइनल का सफर तय कर लेेने के बाद भी हमारे सोशल मीडिया फ्रेंडली प्रधानमंत्री मोदी जी का एक ट्वीट भी नहीं आया, लेकिन अयोग्य ठहराते ही उनके ट्वीट पर ट्वीट आने लगे. मानो इसी का इंतजार हो उन्हें. संसद में तो खेल मंत्री ने हद की सारी सीमायें लांघ दी. विनेश फोगाट के अयोग्य ठहराये जाने की सूचना के साथ-साथ वे ये भी बताने लगे कि उनपर भारत सरकार ने 70 लाख 45 हजार 775 रु. खर्च किए हैं. हद है! पैसे के जिक्र का यहां क्या औचित्य था? अपने चरम नफरत की खुलेआम अभिव्यक्ति के साथ भाजपा के एक कार्यकर्ता ने लिखा – “यौन शोषण का आरोप तो लगा चुकी थी. दो-चार कपड़े उतार देती तो 200 ग्राम वजन तो कम हो ही जाता.” क्या इससे सरकार और भाजपा की मंशा स्पष्ट नहीं होती? क्या भारतीय कुश्ती संघ को इसका अविलंब विरोध नहीं करना चाहिए था? ऐसे में यह सवाल उठाना कि कोच से लेकर भारतीय कुश्ती संघ के मठाधीशों, ओलंपिक कमिटी की सदस्य और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खास दोस्त नीता अंबानी-द्वारा कहीं कोई साजिश तो नहीं रची गई? पुख्ता सबूत तो नहीं लेकिन इसकी आशंकायें पहले से थीं और खेल मंत्री के बयान से वह और भी ठोस हो रही है.
साजिशों का अंदेशा हवा में नहीं है. आइए, विनेश फोगाट का अप्रैल 2024 का एक पोस्ट पढ़ लीजिए – “19 अप्रैल को एशियन ओलंपिक क्वालीफाई टूर्नामेंट शुरू होने जा रहा है. मेरे द्वारा लगातार एक महीने से भारत सरकार (एसएआइ, टीओपीएस) सभी से मेरे कोच और फिजियो की मान्यता के लिए रिक्वेस्ट की जा रही है. इसके बिना मेरे कोच और फिजियो का मेरे साथ कम्पटीशन में जाना संभव नहीं है. लेकिन बार-बार रिक्वेस्ट करने पर भी कहीं से भी कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा है. क्या हमेशा ऐेसे ही खिलाड़ियों के भविष्य के साथ खेला जाता रहेगा. बृजभूषण और उसके द्वारा बैठाया गया डमी संजय सिंह हर तरीके से प्रयास कर रहे हैं कि कैसे मुझे ओलंपिक्स में खेलने से रोका जा सके. जो टीम के साथ कोच लगाए गए हैं वे सभी बृजभूषण और उसकी टीम के चहेते हैं, तो इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वो मेरे मैच के दौरान मुझे मेरे पानी में कुछ मिला के ना पीला दे? अगर मैं ऐसा कहूं कि मुझे डोप में फंसाने की साजिश हो सकती है तो गलत नहीं होगा. हमें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. इतने महत्वपूर्ण कम्पटीशन से पहले ऐसे हमारे साथ मानसिक टाॅर्चर कहां तक जायज है? क्या अब देश के लिए खेलने जाने से पहले भी हमारे साथ राजनीति ही होगी क्योंकि हमने सेक्सुअल हैरेसमेंट के खिलाफ आवाज उठायी? क्या हमारे देश में गलत के खिलाफ बोलने की यही सजा है? उम्मीद करती हूं हमें देश के लिए खेलने जाने से पहले तो न्याय मिलेगा! जय हिन्द!
बहुत सारे सवाल अनुत्तरित हैं. आखिर क्यों विनेश को 53 किलोग्राम की बजाए 50 किलोग्राम में खेलने को बाध्य किया गया? टेस्ट के पहले उन्हें खाने में क्या दिया गया? और फिर टेक्निकल आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराये जाने के बाद भारतीय कुश्ती संघ की क्या भूमिका रही? ऐसा लग रहा है कि विनेश फोगाट द्वारा अप्रैल में जाहिर की गई आशंका ही सच साबित हो रही है. लेकिन इससे उन अहंकारियों की ही कलई खुल रही है कि विनेश को रोकने के लिए वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं. विनेश! सत्ता ने चाहे जितनी भी साजिशें रची हों, जनता की नजरों में आपने उतना ही बड़ा सम्मान हासिल किया हैै. करोड़ों भारतीयों की उम्मीद की किरण बनकर – अन्याय के खिलाफ संघर्ष की मशाल थामे – सड़क से लेकर ओलंपिक तक. आपको सलाम!