वर्ष - 33
अंक - 35
24-08-2024

- मनमोहन कुमार

गाजा में इजराइल का चल रहा मौत और विनाश का जनसंहारी अभियान 319 दिनों से ज्यादा समय से अभी तक जारी है. फिलिस्तीनीयों का निरंतर नरसंहार जारी है, और प्रत्येक नया नरसंहार उन जगहों पर और भी भयानक और बर्बर तरीके किया जा रहा जिसे ‘सुरक्षित’ बताया जा रहा था. बमबारी पिछले समय से भी अधिक भयानक होती जा रही है, जिससे दुनिया भर में आक्रोश फैल रहा है. ऐसा लगता है कि इजराइल की ये गतिविधियां नियमित या आम हो गए हैं. इजराइल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के बार-बार उल्लंघन का हमेशा अमेरिका द्वारा समर्थन और इजराइल को जवाबदेह ठहराने में पूरी तरह से अनिच्छा और अक्षमता ने तथाकथित कानून आधारित विश्व-व्यवस्था की पोल खोल दी है, और जनसंहार को आम बनाने  में बड़ा योगदान दिया है. इजराइल की गतिविधियों की वजह से कानून-आधारित विश्व व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय कानून के बीच जबरदस्त विरोधाभास पनपा है, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा इजराइल के खिलाफ पारित अंतरिम आदेश के अवहेलना से दिखता  है. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) के फैसलों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के माध्यम से लागू किया जा सकता है, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं. लेकिन, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इजराइल के समर्थन में अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करके ऐसे किसी भी आदेश को लागू होने से रोका है. यह दावा किया गया है कि अमेरिका ने इजराइल के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं, और इन सीमाओं को पार करने से इजराइल को परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जैसे कि हथियारों की आपूर्ति में रुकावट. हालांकि, इन कथित रेड लाइन की अक्सर इजराइल द्वारा अवहेलना की जा रही है. फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ बढ़ते हमले और अत्याचार को अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए हथियारों का उपयोग करके अंजाम दिया जा रहा है. राफा पर आक्रमण को रेड लाइन पार करना कहा गया था, लेकिन इजराइल ने हमला कर शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया.

दक्षिणी गाजा को बमबारी से पूरी तरह तबाह करने और उत्तरी गाजा के निवासियों को भागने पर मजबूर करने के बाद, अब फिर इजराइल ने उत्तरी गाजा पर अपने हमलों को निरंतर और भयानक आक्रामकता के साथ तेज कर दिया है. हाल ही में एक भयावह घटना में, इजराइली सेना ने गाजा शहर के एक स्कूल को निशाना बनाया, जहां 2,000 से ज्यादा विस्थापित गाजावासी शरण लिए हुए थे. सुबह की नमाज के दौरान किए गए मिसाइल हमले में मासूम बच्चों सहित 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई.

गाजा के हालात अब तक की सबसे भयानक मानव निर्मित मानवीय आपदा है. इस दुनिया में कई मानवीय आपदाएं हैं, लेकिन उनमें से कोई भी इस कदर भयानक नहीं है जो जियोनिस्ट शासन ने निर्मित किया है. आज आधिकारिक रूप से कम से कम 50,000 फिलिस्तीनियों के मारे जाने की बात की जा रही है, जिनमें से 72% बच्चे और महिलाएं हैं. और 92,000 से अधिक लोग घायल हैं, जिनमें से कई सिपर्फ इसलिए मर जाएंगे क्योंकि उनके लिए कोई चिकित्सा उपचार नहीं है. हमें याद रखना चाहिए कि गाजा पट्टी की जनसंख्या सिर्फ 2.2 मिलियन है. और हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इन 2.2 मिलियन में से आधे बच्चे हैं, परिभाषा के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के. गाजा की पूरी आबादी का 2 से 2.5% के बीच मारा गया है या घायल हुआ है. ये संख्याएं आधुनिक समय में अनदेखी हैं. ऐसा कभी नहीं देखा गया किसी देश की सरकारी सेना सबसे क्रूर तरीके से नागरिक समाज से लड़ रही हो.

यहाँ तक कि स्कूल जो अस्थाई आश्रय स्थल बन गए थे, उन लोगों के लिए जो कई बार विस्थापित हुए थे, उन आश्रय स्थलों पर भी इजराइल द्वारा बमबारी की जाती रही है. सभी आश्रय स्थलों में से 80% पर एक या दूसरे समय बमबारी की गई है. यहां तक कि इजराइल ने पानी की पाइपलाइनों, बिजली की पाइपलाइनों, बिजली लाइनों, नेटवर्क, संचार नेटवर्क और सीवेज सिस्टम का पूरा विनाश कर दिया जिससे भयानक पर्यावरणीय आपदा पैदा हो रही है. बहुत से लोग प्लास्टिक के तंबू में रह रहे हैं, जहां दिन के समय तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रहता है. इन भयानक परिस्थितियों और इस तथ्य को जोड़ें कि इजराइल न केवल लोगों को भोजन और उचित आहार से वंचित कर रहा है, बल्कि  स्वच्छ पानी से भी वंचित कर रहा है. ये भयानक हालात स्वच्छ और साफ पानी का आभाव गाजा में फैल रही कई महामारियों का कारण बन गया है. मेडिकल रिलीफ के अनुसार संक्रामक हेपेटाइटिस के कम से कम 76,000 मामले हैं, जो अब एक महामारी है. मेनिन्जाइटिस के भी मामले हैं.                            

लगातार बमबारी और तोपखाने के हमलों, बड़े पैमाने पर विस्थापन, स्वास्थ्य प्रणाली के खात्मे और भुखमरी के अलावा, गाजा के बच्चों को अब एक अतिरिक्त स्वास्थ्य आपदा का सामना करना पड़ रहा है – पोलियो का. 16 जुलाई को गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की कि गाजा के दो प्रांतों खान यूनिस और देर अल-बलाह से जून के अंत में एकत्रा किए गए छह अपशिष्ट जल नमूनों में पोलियो वायरस पाया गया है, जो इस बात का संकेत है कि वायरस वहां प्रसारित हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 5 वर्ष से कम आयु के दसियों हजार बच्चों को अब पोलियो होने का खतरा है, और गाजा से परे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, जिससे वैश्विक पोलियो उन्मूलन अभियान को धक्का लगा है और यह पूरी मानवता के लिए फिर से खतरा बन उभर गया है. इजराइल बमबारी, हवाई हमलों से लोगों को मार रहा है, लेकिन वह बर्बर जैविक युद्ध से भी लोगों को मार रहा है. क्योंकि यह वास्तव में जैविक युद्ध है, जो वे गाजा के लोगों के साथ लड़ रहे हैं.

हमें याद रखना होगा कि इजराइल ने अब तक 80,000 टन से ज्यादा विस्फोटक इस्तेमाल किया है. यह गाजा में हर पुरुष, महिला और बच्चे के लिए लगभग 36 किलोग्राम विस्फोटक है. और 80,000 टन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर फेंके गए प्रत्येक परमाणु बम की विस्फोटक शक्ति के चार गुना के बराबर है. ऐसा कोई शब्द, चित्रा या वीडियो नहीं हैं जो गाजा नरसंहार के बारे वास्तव में बयां कर सके. गाजा से आने वाले विजुअल किसी भयावह फिल्म की छवि की तरह दिखते हैं. सिर्फ जमींदोज इमारतें, जिनमें कइयों में लोग जिंदा दफन हो गए, और धूल नजर आते हैं. यह पूरी भूमि का विनाश है. मीलों-मील तक सब कुछ का विनाश कर दिया गया है जैसे किसी ने पूरे शहर को रौंद दिया हो.

ये तमाम नरसंहार और कार्रवाइयों से साबित होता है कि इजराइल का खास उद्देश्य गाजा में नागरिकों की जान-बूझकर सामूहिक हत्या करना है. गाजा में मौतों, चोटों, विस्थापन, बीमारी, भुखमरी और जीवित रहने के लिए जारी संघर्ष ने इन नरसंहारों को चिंताजनक रूप से आम बना दिया है. ऐसा लगता है कि दुनिया भर में उदासीनता की भावना बढ़ रही है जबकि नरसंहार जारी है, और किस कदर अन्य जगहों पर लोगों  का जीवन सामान्य रूप से चल रहा है. इतिहास ने दिखाया है कि नरसंहार के ऐसे क्षणों के दौरान, हिंसा और भी बढ़ सकती है, जैसा कि 1990 के दशक में बोस्निया में देखा गया था. यह महत्वपूर्ण है कि शांति और न्याय की मांग अटल रहे, तत्काल युद्ध विराम हो और इजराइल के औपनिवेशिक कब्जे और रंगभेद को समाप्त करने का लक्ष्य हासिल हो. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा इस नाइंसाफी की मान्यता इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

युद्ध विराम के बारे में बहुत सारी बातें हो रही हैं, और सभी को यह समझने की जरूरत है कि हम उस बिंदु से बहुत दूर चले  आए हैं जहां युद्ध विराम होना चाहिए था. इतना विनाश, मौत, तबाही, विनाश, नरसंहार, ये सब हमारी आंखों के समाने होता होता रहा है. मई से ही अमेरिका द्वारा प्रायोजित युद्ध विराम प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है, जो बिडेन ने कहा कि यह इजराइल का अपना प्रस्ताव था जिसे हमास ने भी स्वीकार किया था. हालांकि, इजराइल ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और झूठा दावा किया कि हमास ने इसे स्वीकार नहीं किया है. यह स्पष्ट है कि युद्ध-प्रेमी बेंजामिन नेतन्याहू का शासन के युद्ध विराम नहीं चाहता है, जैसा कि तेहरान में हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनीया की हत्या से पता चलता है. हालांकि इजराइल ने इस कृत्य की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य उसकी संलिप्तता का संकेत देते हैं. इजराइल का वर्तमान शासन अपने अस्तित्व के लिए लगभग निरंतर युद्ध पर निर्भर है, जिससे यह सवाल उठता है कि पश्चिम एशिया में संघर्ष को बढ़ाने वाली और इसे क्षेत्रीय युद्ध के करीब लाने वाली कार्रवाइयों से किसे लाभ हो रहा है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि युद्ध विराम की मांग करने से इनकार करना और संघर्ष को जारी रखना केवल विशिष्ट नेताओं या दलों के राजनीतिक अस्तित्व की वजह से  नहीं है, बल्कि यह जायोनी परियोजना में ही निहित है, जो जातीय सफाया, उपनिवेशवादी कब्जे और रंगभेद पर आधारित है. जायोनी परियोजना अनिवार्य रूप से संघर्ष और हिंसा की ओर ले जाता है.

जायोनी परियोजना ने किस तरह से फिलिस्तीनी लोगों का अमानवीयकरण किया है और किस तरह से पूरी इजराइली आबादी अराजकता और हिंसा की स्थिति में आ गई है, इसका पूरा अंदाजा तब लगता है जब वेस्ट बैंक में अवैध रूप से बसे इजराइली समूहों ने प्रभावशाली इजराइली राजनेताओं के समर्थन से इजराइली सैन्य प्रतिष्ठानों को हिंसक रूप से निशाना बनाया. वे मांग कर रहे थे कि इजराइली सैनिकों, जिन्होंने फिलिस्तीनी कैदियों के साथ यौन दुर्व्यवहार किया था और सैन्य मुकदमों का सामना कर रहे थे, को सजा से छूट दी जाए. अनिवार्य रूप से, वे फिलिस्तीनियों के साथ बलात्कार और अत्याचार करने के अधिकार की वकालत कर रहे थे. यह व्यवहार इजराइल की ‘मध्य पूर्व में एकमात्र लोकतंत्र’ की छवि और गाजा के साथ संघर्ष में ‘पश्चिमी सभ्यता’ की रक्षा की छवि से बहुत दूर है.

यह तथाकथित ‘पश्चिमी सभ्यता’ रक्तपात और क्रूरता की नींव पर बनी है. इजराइल के अंदर और पश्चिमी देशों की ओर से इस तरह की कार्रवाइयों के लिए समर्थन, सभ्यता की एक ऐसी कहानी को उजागर करता है जो बुनियादी रूप से त्रुटिपूर्ण और नैतिक रूप से दिवालिया है.

इसलिए, पूरे पश्चिम एशियाई क्षेत्र में युद्ध को बढ़ाना ‘सभ्यता’ की उन्नति के  लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जाता है. यह इस्माइल हानिया की लक्षित हत्या, कब्जे वाले गोलान पहाड़ियां और लेबनान में बमबारी, और हिजबुल्लाह कमांडर की हत्या से स्पष्ट है. इन कार्रवाइयों से ईरान, लेबनान और सीरिया को युद्ध में घसीटने की संभावना है, जिसमें संभवतः अमेरिका भी शामिल हो सकता है, क्योंकि ईरान के प्रतिशोध की प्रत्याशा में भूमध्य सागर में उसने अपनी परमाणु पनडुब्बियों को तैनात कर दिया है. ईरान के बदले की कारवाई के ऐलान के बाद भी पूरी तरह से अभी तक युद्ध नहीं होने का श्रेय ईरान की कार्रवाइयों को जाता है, जिसने प्रभावी रूप से प्रतिशोध का डर पैदा किया है और युद्धविराम की संभावना को खोल दिया है. हालांकि, कुछ अरब और पश्चिम एशियाई राज्यों की अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रति अधीनता, आंतरिक अशांति के अपने स्वयं के डर एक महत्वपूर्ण बाधा है. फिलिस्तीनियों के प्रति इजराइली आक्रामकता के खिलाफ मिस्र, जॉर्डन, सीरिया जैसे देशों में सार्वजनिक विरोध के बावजूद, उनके नेता अमेरिका और इजराइल के साथ गठबंधन करना जारी रखते हैं, केवल तुर्की के एर्दागन जैसे लोगों द्वारा छिटपुट विरोध के साथ. जबकि अमेरिका हथियारों की आपूर्ति में कटौती करके इजराइल पर युद्ध विराम के लिए दबाव डाल सकता है, पर उसके लिए यह इजराइल की ‘रक्षा’ के लिए उसकी अटूट प्रतिबद्धता के विपरीत है, जिसे ‘पश्चिमी सभ्यता’ की रक्षा के लिए अभिन्न अंग माना जाता है. अमेरिका फिलस्तीनियों के जनसंहार के लिए इजराइल को 20 बिलियन डॉलर के हथियारों और बमों की आपूर्ति जारी रखता है, फिर युद्ध विराम की बात करता है. इसका पाखंड बस आश्चर्यजनक है.

भारत का आजादी आंदोलन स्वतंत्रता, न्याय और शांति जैसे मूल्यों को लेकर गर्व करता है और हमसे कहता  है फिलस्तीन को आजाद करो. लेकिन, अफसोस की बात है कि गाजा में इजराइली आक्रमण पर भारत का रुख अस्पष्टता और अनिर्णय से भरा रहा है. गाजा में इस्तेमाल किए गए गोला-बारूद को ‘मेड इन इंडिया’ लेबल के साथ देखना वाकई बेहद दुखद और निराशाजनक है. भारत को कदापि नरसंहार का हिमायती  नहीं होना चाहिए, और इसलिए,यह बेहद जरूरी है कि इजराइल को सैन्य हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति के लिए भारतीय कंपनियों को दिए गए सभी निर्यात लाइसेंस और अनुमतियों को तुरंत रद्द किया  जाये. भारत के लिए यही उचित है, बल्कि नैतिक रूप से भी अनिवार्य है.

फिलिस्तीन के पक्ष में भावनाओं को जाहिर करने वाले नागरिकों पर नकेल कसने के बजाय सरकार को रंगभेद विरोधी और उपनिवेशवाद विरोधी मूलभूत सिद्धांतों का पालन करना चाहिए जो हमारी विदेश नीति का मार्गदर्शन करते हैं. भारत को इजराइल के अवैध सैन्य कब्जे और नरसंहार में किसी भी प्रकार की सहभागिता बंद करनी होगी.

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