- अजित पाटिल
हमने पहले धारावी पुनर्विकास परियोजना के बारे में एक लेख प्रस्तुत किया था, जिसमें मुंबई के झुग्गी-झोपड़ियों के नये मालिक अडानी को एक विशेष कंपनी के जरिये 80:20 के अनुपात में अडानी और महाराष्ट्र सरकार के संयुक्त हिस्सेदारी में सौंपने की बात थी. तब से धारावी से होकर बहने वाली दूषित मीठी नदी से बहुत सारा पानी बह चुका है. कॉरपोरेट-बिल्डर गठजोड़ मुंबई की झुग्गियों से जमीन हड़पना चाहता है, जो वर्तमान में मुंबई के पूरे जमीन के टुकड़े का 10% हिस्सा है. यह वृहत एमएमआरडीए को छोड़ कर है, जिसमें लगभग 60% लोग रहते हैं, और वे इस बेशकीमती भूमि का मुद्रीकरण करना चाहते हैं.
गरीब विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक भाजपा के पीयूष गोयल ने खुलेआम घोषणा की है कि वे चुनाव जीतने के बाद मुंबई को ‘झोपड़ी मुक्त’ बनाना चाहते हैं. यह तब हुआ जब भाजपा ने मुंबई के सबसे बड़े बिल्डरों में से एक मंगलप्रसाद लोढ़ा को संरक्षक मंत्रा के रूप में नामित किया, जिनका कार्यालय मुंबई निगम भवन में है, जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में नौकरशाह शासन चलाते हैं.
डीआरडीपीएल के खुलासे से अडानी की दुर्भावनापूर्ण महत्वाकांक्षाओं और मुंबई के नए कॉर्पारेट झुग्गी भूस्वामी बनने की गतिविधियों का पता चला है. अडानी ने धारावी की लगभग 600 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है, जिसमें दिलचस्प बात यह है कि इको-सेंसिटिव जान से नामित माहिम का पक्षी और समुद्री जीव अभयारण्य भी शामिल है, जो मुंबई और नवी मुंबई के तटीय इलाकों के खारे पानी में पनपने वाली बाढ़ प्रतिरोधी मैंग्रोव की घनी झाड़ियों से घिरी है. ‘धारावी बचाओ समिति’ के अनुसार महानगर के भीतर धारावी की जीवंत बसावट की पूरी मौजूदा आबादी को बसाने के लिए केवल 300 एकड़ जमीन ही पर्याप्त है. शेष 300 एकड़ का उपयोग अडानी द्वारा बिक्री के लिए बिल्डिंगों के निर्माण के लिए किया जा सकता है. एसआरए अधिनियम किसी भी झुग्गी निवासी को कुछ तयशुदा मानकों के साथ उसी भूमि पर स्थानांतरित करने की अनुमति देता है. अडानी 10,000 करोड़ वर्ग फीट का टीडीआर का निर्माण करेगा! टीडीआर का मतलब है ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स, जिसे विकसित करने के नाम पर बाजार में फिर से बेचा जा सकता है और यह अब तक प्रत्येक क्षेत्र में भूमि की सर्कल रेट से जुड़ा हुआ है. यह सब इस तथ्य के बावजूद हो रहा है कि अडानी का सर्वेक्षण अभी तक पूरा नहीं हुआ है और धारावी के लोगों, उद्योगों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के पुनर्वास के लिए कोई निश्चित विकास योजना मौजूद नहीं है. धारावी के निवासियों ने अडानी द्वारा बाउंसरों, पूर्व पुलिस अधिकारियों और एनकाउंटर विशेषज्ञों की मदद से किये जा रहे सर्वेक्षण का विरोध किया है. अब अडानी और उनके नियंत्रण में राज्य तंत्रा की भूमिका का असली खेल शुरू होता है.
अडानी समूह को विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं, लेकिन यही तक सीमित नहीं हैं :
अनुबंध की एक शर्त में कहा गया है कि अडानी द्वारा किए गए किसी भी अनुरोध या प्रावधान का 15 दिनों के भीतर जवाब दिया जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें स्वीकार किया गया माना जाएगा.
झुग्गीवासियों को उसी भूमि पर बसाने के बजाय, उन्हें 10 किलोमीटर के दायरे में बसाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, इसे आगे समायोजित करके अपात्र व्यक्तियों को 2.5 लाख रुपये और मासिक किराया देकर 20 किलोमीटर दूर साल्ट पैन लैंड पर बसाया जा सकता है. यह ध्यान देने योग्य है कि यह साल्ट पैन लैंड वर्तमान में नमक आयुक्त के स्वामित्व में है और इसका उपयोग अभी भी नमक को बनाने के लिए किया जा रहा है. इस भूमि ने, आस-पास के मैंग्रोव के साथ 26 जुलाई की जलप्रलय के दौरान मुंबई को बाढ़ के पानी से बचाने और उसे अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अडानी अब पुनर्वास उद्देश्यों के लिए विभिन्न भूमि देने का अनुरोध कर रहा है, जिसमें रेलवे भूमि (45 एकड़), मुलुंड में ऑक्ट्रोई पोस्ट भूमि (18 एकड़), मुलुंड डंपिंग ग्राउंड (46 एकड़) की भूमि, साल्ट पैन भूमि (283 एकड़), डंपिंग ग्राउंड की मानखुर्द लैंडफिल भूमि (823 एकड़), बांद्रा-कुर्ला परिसर में जी ब्लॉक भूमि (17 एकड़), और कुर्ला में हजारों पेड़ों के साथ मदर डेयरी भूमि (21 एकड़), कुल मिलाकर 1253 एकड़ धारावी के अतिरिक्त है. इन अनुरोधों के पीछे इरादे बिल्कुल स्पष्ट हैं. धारावी को बीकेसी-II (अडानी) में बदलने की तैयारी है, जो बीकेसी (अंबानी) के बगल में स्थित है, जिसमें दोनों क्षेत्रों के लिए बुलेट ट्रेन स्टेशन होगा जो मुंबई और सूरत के हीरा व्यापारियों को सेवा प्रदान करेगा. शेष भूमि का उपयोग मुंबई के सभी क्षेत्रों से झुग्गी निवासियों को उनके प्राकृतिक वातावरण से अलग करके उन्हें स्थानांतरित करने के लिए किया जाएगा. कपड़ा श्रमिकों के साथ भी यही व्यवहार किया गया है. मिलों के बंद होने के बाद उपलब्ध भूमि के एक हिस्से पर उन्हें आवास देने का आश्वासन दिया गया था. धीरे-धीरे और धोखे से, उन्हें भूमि के अपने उचित हिस्से से वंचित कर दिया गया है और अब उन्हें मुंबई के बाहरी इलाके में एमएमआरडीए क्षेत्र में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो उनके पिछले घरों से 50 किलोमीटर से अधिक दूर है, जहां वे जीविकोपार्जन करते थे और श्रमिक वर्ग की संस्कृति को विकसित करते थे. इस बीच, भ्रष्ट राजनीतिक समूह के सहयोग से पूरी जमीन बिल्डर लॉबी को सौंप दी गई है.
मुलुंड में एमसीजीए एक छोटा सा भूखंड विकसित कर रहा है, जिसमें आमतौर पर 1500 परिवार रह सकते हैं, जिसमें 45 मंजिलों वाली 5 इमारतें होंगी. इन इमारतों में सड़क चौड़ीकरण और इसी तरह की परियोजनाओं से प्रभावित 7500 परिवार रहेंगे. यह विकास अत्यधिक फ्लोर स्पेस इंडेक्स का निर्माण कर रहा है और निवासियों को आवश्यक खुली जगहों से वंचित कर रहा है. मुलुंड ईस्ट की आबादी 1.5 लाख है, और मौजूदा बुनियादी ढांचा इतनी ही आबादी को सहारा देने के लिए बनाया गया है. निवासियों का तर्क है कि इस विकास से बुनियादी ढांचे पर दबाव पड़ेगा. वे सवाल करते हैं कि जब केवल 1500 परिवार ही प्रभावित हैं, तो परियोजना 7500 परिवारों को क्यों समायोजित कर रही है? पूरी परियोजना को रोकने की मांग में गरीबों के खिलाफ स्पष्ट पूर्वाग्रह है. कुछ लोग पूरी आबादी के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए प्रभावित परिवारों के लिए रहने योग्य विकल्प खोजने का सुझाव दे रहे हैं. हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि योजना अडानी के स्वामित्व वाले हवाई अड्डे के पास झुग्गीवासियों को स्थानांतरित करने की है. कुर्ला ईस्ट में, मुख्य रूप से कामकाजी वर्ग के परिवारों, अल्पसंख्यकों और निम्न-मध्यम वर्ग के निवासियों द्वारा बसाए गए उपनगर ने अडानी को डेयरी भूमि को आवंटित करने का विरोध किया है. वे चाहते हैं कि इस जमीन पर, जिसमें बहुत सारे पेड़ हैं, एक बगीचा और खेल का मैदान बनाया जाए, एक ऐसी सुविधा जो उन्हें और उनके बच्चों को लंबे समय से नहीं दी गई है. भांडुप, कांजुरमार्ग, विक्रोली और घाटकोपर के पर्यावरण कार्यकर्ता नमक क्षेत्र की जमीन अडानी को देने के फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं. उनकी मुख्य चिंता मैंग्रोव की सुरक्षा करना है जो विभिन्न समुद्री और प्रवासी पक्षियों के लिए आवास प्रदान करते हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि मुंबई में आबादी के समग्र लाभ के लिए बाढ़ का पानी प्रभावी ढंग से निकल सके.
इन सभी परियोजनाओं की सबसे खास बात है कि मुंबई के नए स्लम भूमि-स्वामी अडानी हैं. हालांकि, प्रत्येक परियोजना को विभिन्न समूहों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. ‘धारावी बचाओ समिति’ ने मुलुंड निवासियों की मांग को अभिजात्य और बहिष्कारवादी माना, जो अन्य बातों के अलावा, नमक की भूमि पर धारावी झुग्गी निवासियों को बसाने का विरोध कर रहे थे. मुलुंड निवासियों का मानना था कि इतनी बड़ी आबादी को जमीन की एक संकरी पट्टी में बसाने से उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. संघर्षों को अलग रखने के लिए निहित स्वार्थों द्वारा इन मतभेदों का फायदा उठाया गया. हालांकि, जब ‘धारावी बचाओ समिति’ ने स्पष्ट किया कि वे भी नियोजित उजाड़ का विरोध करते हैं और धारावी में उसी भूमि पर पुनर्वास चाहते हैं, तो एक आम दुश्मन, अडानी के खिलाफ व्यक्तिगत संघर्षों को एकजुट करने के प्रयास शुरू हुए. विभिन्न इलाकों का प्रतिनिधित्व करने वाले 50 कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक हुई, और वे ‘मुंबई बचाओ समिति’ बनाने और प्रत्येक समूह की मुख्य मांगों को शामिल करके एक साथ लड़ने के लिए आम सहमति पर पहुंचे. वे संयुक्त आंदोलन के लिए चरण-दर-चरण योजना विकसित करने के लिए मिलकर काम करेंगे.