वर्ष - 33
अंक - 29
13-07-2024

- कुमार दिव्यम

मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए अयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ में हुई व्यापक धांधली तथा पेपर लीक के खुलासे होने के बाद भी परीक्षा को अभी तक रद्द नहीं किया गया है. ‘परीक्षा पर चर्चा’ करने वाले प्रधानमन्त्री मोदी नीट परीक्षा पर चुप्पी साधे हुए हैं. छात्रों के सवालों के जवाब देने तथा परीक्षा रद्द करने के बजाए प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर लाठियां चटकाई जा रही हैं.

जिन सवालों के जवाब छात्र मांग रहे हैं वे सवाल सिर्फ नीट 2024 रद्द कर देने भर से हल नहीं होंगे, उसके लिए नीट को समाप्त करना होगा. नीट एक भेदभावपूर्ण एवं गरीब विरोधी परीक्षा व्यवस्था है. यह मेडिकल पढ़ाई में समाजिक विविधता को नजरअंदाज करती है और संपन्न लोगों का पक्ष लेती है.

साल 2018 में जब पूरे देश भर में नीट को लागू किया गया था तब से ही इस पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और इस पर रोक लगाने की मांग की जा रही है. अब वाह समय आ गया है कि नीट को खत्म कर देना चहिए. नीट को लागू करते समय दावे किए गए थे कि इसके लागू होने से परीक्षाएं और बेहतर ढंग से होंगी एवं बिना किसी धांधली के आयोजित होंगी. लेकिन नीट 2024 में हुई व्यापक धांधली ने इस दावे की भी पोल खोल दी है.

नीट ने राज्य बोर्ड तथा ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों का बहुत नुकसान किया है. मेडिकल कॉलेजों में नीट के आधार पर दाखिले की शुरुआत होने के बाद से गरीब ग्रामीण इलाकों से आने वाले तथा राज्य बोर्ड के स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए मेडिकल कॉलेजों के दरवाजे बंद हो गए हैं. तामिलनाडु में नीट का विरोध इसके लागू होने के बाद से ही हो रहा है. तामिलनाडु सरकार भी नीट के विरोध में हमेशा खड़ी रही है.

साल 2018 में नीट लागू होने के बाद तामिलनाडु की 17 वर्षीय दलित छात्रा एस. अनिता ने आत्महत्या कर ली थी. अनीता ने 12 वीं में 1200 में से 1176 अंक प्राप्त किए थें लेकिन नीट में कम अंक के कारण मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाई थी.

नीट लागू होने के पहले राज्य के मेडिकल कॉलेजों में 12वीं के अंक के मूल्यांकन के आधार पर नामांकन होता था, जिससे स्टेट बोर्ड एवं गरीब ग्रामीण इलाकों के छात्रों के नामांकन हो जाते थे. लेकिन नीट लागू होने की वजह से छात्रों की कोचिंग पर निर्भरता बढ़ी है. आंकड़े बता रहे हैं कि नीट के आने के बाद से कोचिंग संस्थानों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है.

नीट पास करने के लिए सिर्फ जानकारी और ज्ञान से काम नहीं चलता. इसके लिए छात्रों को परीक्षा देने के कौशल की जरुरत पड़ती है. यह कौशल सीखने के लिए कोचिंग संस्थान जाना पड़ता है और कोचिंग संस्थानों की मोटी फीस चुकानी पड़ती है. वैसे छात्र जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं, आर्थिक तौर पैर विपन्न होते हैं और दलित पिछड़े समुदय से आते हैं उनके लिए नीट की तैयारी करना मुश्किल हो जाता है और मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करना सपना रह जाता है.

तामिलनाडु में अध्ययन के बाद जस्टिस एके रंजन की कमेटी में अपने रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि नीट भेदभावपूण एवं गरीब विरोधी परीक्षा व्यवस्था है. शोषित तबका जो मेडिकल शिक्षा से पहले से ही वंचित है, उसको और पीछे ढकेल रहा है. इसके लागू होने से पहले 2017 में तामिलनाडु में 65% कैंडिडेट ग्रामीण इलाकों के स्कूलों से आ रहे थे और इसके लागू होने के बाद 45% रह गए हैं. यही हाल अन्य राज्यों का भी हैं. बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में और अधिक समाजिक असमानता है, जहां सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थिति भी जर्जर है.

नीट कई स्तर पर छात्रों के साथ भेदभाव करता है. नीट का सिलेबस सीबीएसई के सिलेबस के अनुसार है. इसके प्रश्नपत्र अंग्रेजी में तैयार किए जाते हैं और अन्य भाषाओं में इनका अनुवाद किया जाता है. अलग-अलग राज्यों में राज्य बोर्ड में पढ़ रहे छात्रों को सीबीएसई से भिन्न सिलेबस होने की वजह से दिक्कत होती है.

प्रश्नपत्र के अनुवाद में विज्ञान के ऐसी शब्दावलियों का जिनको अन्य भाषाओं में भी अंग्रेजी में ही पढ़ा जाता है ऐसा शुद्ध भाषायी अनुवाद कर दिया जाता है जिसे छात्रों ने कभी देखा भी नहीं होता.

नीट को खत्म करना होगा. नीट ने मेडिकल की शिक्षा में भेदभाव को बढ़ावा दिया है. गरीब एवं ग्रामीण इलाकों में विद्यार्थियों को मेडिकल शिक्षा से दूर किया है और पहले से से ही हाशिए के लोगों को और हाशिए पर ढकेला है. जिसमें दलितों-पिछड़ों की आबादी ज्यादा है.

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