-मनमोहन कुमार
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भोजनालयों को रंगभेद जमाने के दक्षिण अफ्रीका और नाजी जर्मनी की याद दिलाने वाले नाम प्लेट लगाने को अनिवार्य करने के हालिया विवादास्पद और असंवैधानिक पुलिसिया फरमान ने मुस्लिमों के प्रति धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के बारे में चुनाव के बाद नये सिरे से चिंताएं बढ़ा दी हैं. नाजी जर्मनी में यहूदियों को अपने व्यवसायों की पहचान करने को मजबूर किया गया था और उनका निर्दयता पूर्वक उत्पीड़न किया गया था. इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का स्थगन आशा की एक किरण है, लेकिन हिंदुत्व फासीवादी राजनीति के जरिये आवाम को बांटने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के अंतर्निहित मुद्दे बने हुए हैं. भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों का यह कदम समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक अधिकार का घोर उल्लंघन और रंगभेद है.
हमने हालिया लोकसभा चुनावों में देखा था कि नरेंद्र मोदी का पूरा चुनाव अभियान फिरकापरस्ती और नफरती भाषणों से भरा पड़ा था, जबकि उन्हें एहसास था कि राम मंदिर का जादू अब चल नहीं रहा. उन्होंने इंडिया अलायंस पर अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिए मुजरा करने का आरोप लगाया. उन्होंने यह भी कहा कि इंडिया अलायंस संविधान में संशोधन करके एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण को खत्म करके मुसलमानों को देगा. नफरत और विभाजन की राजनीति मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ने हिंदू बहुसंख्यकों को यह दावा करके भयभीत कर दिया कि हिंदू महिलाओं के मंगलसूत्र छीन लिए जाएंगे और मुसलमानों को सौंप दिए जाएंगे, साथ ही अन्य अपमानजनक टिप्पणियां भी कीं. लेकिन, इस नफरत भरे चुनावी अभियान से भाजपा को कोई मदद नहीं मिली और उसकी लोकसभा में सीटें 303 से गिरकर 240 पर आ गईं. 2024 के चुनावों में भाजपा के चुनावी ग्राफ में गिरावट और बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में उसकी नाकामयाबी ने हमारे लोकतंत्र में बहुलतावादी और विविध मूल्यों के गुलजार होने की उम्मीद जगाई थी.
इस उम्मीद को केंद्र में सत्ता में बने रहने के लिए सहयोगी दलों पर भाजपा की निर्भरता ने बढ़ावा दिया कि अब भाजपा अपने तथाकथित ‘धार्मिक’ कार्ड पर भरोसा करने की रणनीति को संशोधित करेगी, क्योंकि, न केवल भाजपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है, बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष पहले की तुलना में बहुत मजबूत है. अजीब बात है! इससे यह उम्मीद जगी थी कि अब अल्पसंख्यकों को कम निशाना बनाया जाएगा और शांति का माहौल बनेगा. लेकिन, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पिछले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम ने इन उम्मीदों को तोड़ दिया है.
उदाहरण के लिए विवादस्पद बयानों के लिए चर्चित असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य जल्द ही मुस्लिम बहुल हो जाएगा. उनके अनुसार, 1951 में मुसलमानों का प्रतिशत 12% था और अब वे राज्य की आबादी का 40% हिस्सा हैं. उनके ये आंकड़े पूरी तरह से फर्जी है, जिसका मकसद हिंदुओं में भय और घबराहट पैदा करना है. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 1951 में असम की मुस्लिम आबादी 24.68% थी जो 2011 में 34.22% हो गयी थी. पश्चिम बंगाल में, जहां भाजपा ने इस बार 18 एमपी सीटें खो दीं, पार्टी नेता सुवेंदु अधिकारी ने पार्टी की हार के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया और कहा – ‘हमें सबका साथ और सबका विकास’ के बारे में बात करने की जरूरत नहीं है. हम तय करेंगे कि कौन हमारा समर्थन करेगा, और हम उनका समर्थन करेंगे. पिछले कुछ दिनों से घटी माॅबलिंचिंग की दर्जनों घटनाएं और भाजपा शासित राज्यों में भगवा पार्टी के पदाधिकारियों और सरकार की टिप्पणियों और कारगुजारियों से पता चलता है कि वे अल्पसंख्यको के खिलाफ नफरत भड़काने की अपनी पुरानी तकनीकों का यथासंभव उपयोग कर रहे हैं.
भले ही कभी मोदी-लहर रही हो, पर हाल के चुनावों में पहले से अधिक ताकत के साथ सत्ता में वापसी के लिए उनके द्वारा आजमाए गए कार्डों की विफलता यह संदेश देती है कि मतदाता उनके और उनके सहयोगियों द्वारा आजमाई गई सांप्रदायिक रणनीतियों से सहमत नहीं हैं. विडंबना यह है कि भाजपा और उसके भगवा सहयोगी अभी भी धार्मिक और सांप्रदायिक चालों पर आधारित अपनी रणनीतियों की राजनीतिक ‘अपील’ के बारे में ‘आश्वस्त’ हैं. यह भी अजीब है कि चुनावी नतीजों से मतदाताओं का दिया गया संदेश अभी तक भाजपा के दिग्गजों द्वारा पूरी तरह से समझा नहीं गया है. अगर ऐसा होता, तो दुकानदारों द्वारा नाम प्रदर्शित करने का निर्देश जारी नहीं किया जाता. यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मार्ग के किनारे स्थित दुकानों, ढाबों और विक्रेताओं के मालिक बहुत संपन्न वर्ग से नहीं आते हैं. उनके मालिक और/कर्मचारी मुख्य रूप से गरीब तबके से आते हैं. एक ही दुकान में नियोक्ता और कर्मचारी अलग-अलग धर्म समुदायों से संबंधित होने के कई मामले हैं. दुकानदारों के नाम की प्लेट लगाने जैसे निर्देशों के माध्यम से उन पर प्रहार करना उनकी आय के स्रोतों पर वार करना है और वह भी यात्रा शुरू होने से ठीक पहले. सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा आदेश पर रोक लगाने का नोटिस निश्चित रूप से उन लोगों के लिए बड़ी राहत है, जो अपनी आय का प्राथमिक स्रोत लगभग खो चुके थे.
चुनावों के बाद सबसे बड़ी विभाजनकारी घटना यह है कि मुजफ्फरनगर में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) ने निर्देश दिया है कि कांवड़ यात्रा; भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र जुलूस) के रास्ते में पड़ने वाले सभी कैफे, बूथ और होटलों में मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रमुखता से प्रदर्शित किए जाएं. उल्लेखनीय है कि 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस आदेश को स्थगित कर दिया, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता थी. न्यायमूर्ति ऋषिकेश राॅय और एसवीएन भट्ठी ने सरकार के निर्देशों को लागू होने से रोकने के लिए एक अंतरिम आदेश जारी किया.
भाजपा सरकारों ने इस निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा करने वाले हिंदू भक्तों के लिए ‘आस्था की पवित्रता’ बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया है. उत्तराखंड ने भी उत्तर प्रदेश के साथ मिलकर यह नियम घोषित किया है और उम्मीद है कि कई अन्य भाजपा शासित राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे. माननीय प्रधानमंत्री और भाजपा के बड़े नेता इस निर्देश पर चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे पता चलता है कि यह पार्टी का रुख है. उनकी इस कार्रवाई की निंदा भाजपा के एनडीए सहयोगियों ने की है, जिसमें जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी और अन्य शामिल हैं. यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे प्रधानमंत्री गठबंधन सरकार में सहयोगी दलों की राय की अनदेखी कर रहे हैं.
ऐसे माहौल में भाजपा का यह विवादास्पद कदम आग में घी डालने वाला है. यह मुसलमानों की आर्थिक गतिविधियों को आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित और नियंत्रित करने का प्रयास है, जो असंवैधानिक और रंगभेद के समान है. यह नाजी युग के दौरान ‘जूडेनबाॅयकाट’ की याद दिलाता है, जहां यहूदियों को निशाना बनाया गया था और उनके साथ भेदभाव किया गया था. नाजी जर्मनी में यहूदी फासीवादी नीतियों के शिकार थे. उन्हें अपने उद्यमों के सामने ‘स्टार ऑफ डेविड’ प्रदर्शित करने और इसे अपने शरीर पर पहनने का निर्देश दिया गया था. इससे उनका उत्पीड़न आसान हो गया क्योंकि उनके प्रतिष्ठान पहले से ही सार्वजनिक रूप से पहचाने जाते थे.
उत्तर प्रदेश सरकार ने यात्रा के मार्ग पर सभी मांस की दुकानों को बंद कर दिया है, जो समाज के एक खास तबके के व्यवसाय करने के अधिकारों का उल्लंघन है. भाजपा सरकार का यह कदम धार्मिक आधार पर अलगाव और भेदभाव को गहरा करनेवाला है. मुस्लिम विक्रेताओं के खिलाफ एक नई किस्म की हिंदू शिकायत का निर्माण चिंताजनक है और केवल मुसलमानों के प्रति संदेह, दुश्मनी और घृणा को बढ़ावा देता है.
इस मार्ग पर पुलिस के नाम लिखने के फरमान के बाद हिंदू प्रतिष्ठानों में मुसलमानों की नौकरियां पहले ही खत्म हो चुकी हैं. शुद्धता पर यह जोर छुआछूत को बढ़ाने वाला और नस्लीय अवधारणा पर आधारित है. हरिद्वार से स्थानीय शिव मंदिरों तक कांवड़ यात्रा एक बहुत पुरानी परंपरा है जिसे हाल के दशकों प्रमुखता प्राप्त हुई, जो धर्म की आड़ में राजनीति के उदय के साथ मेल खाती है. बिहार में भी लाखों लोग देवघर की कांवड़ यात्रा करते हैं पर शुद्धता और पवित्राता के नाम पर धार्मिक भेदभाव नही है. विडंबना यह है कि हिंदू धर्म के लिए पवित्र तीर्थयात्रा अमरनाथ यात्रा स्थानीय मुस्लिम समुदाय की भागीदारी पर बहुत अधिक निर्भर है. टट्टूवालों से लेकर पालकी उठाने वालों और पारंपरिक प्रसाद देने वालों तक, तीर्थयात्रा को सुविधाजनक बनाने में शामिल ज्यादातर लोग मुसलमान ही हैं. एक मुस्लिम चरवाहे द्वारा अमरनाथ गुफा की खोज का इतिहास हिंदू-मुस्लिम रिश्तों की परस्पर जुड़ी प्रकृति पर और जोर देता है.
यह साफ तौर से दिखता है कि हिंदुत्व फासीवाद हमारे देश के राजनीतिक परिदृश्य में गहराई से व्याप्त हो गया है. चुनावों में भाजपा और उसके अवसरवादी सहयोगियों को हराना हमारे देश में विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर बहाल करने की दिशा में सिर्फ पहला कदम है. समाज को विभाजित करने और हिंदू राष्ट्र की ओर धकेलने वाली भाजपा की प्रतिगामी नीतियों का पुरजोर मुकाबला करना और समावेशी मूल्यों को बनाये रखना इंडिया गठबंधन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. यह जरूरी है कि हम एकजुट और विविधतापूर्ण भारत सुनिश्चित करने के लिए एक साथ खड़े हों और ऐसी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ लड़ें.