वर्ष - 33
अंक - 31
27-07-2024

कामकाजी लोगों की चिंताओं और दुर्दशा को पूरी तरह से नजरअंदाज किया – ऐक्टू

अपने तानाशाह चरित्र के अनुरूप, मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में लोकसभा चुनावों के जनादेश को अहंकारपूर्वक ठुकरा दिया है और श्रमिकों के खिलाफ और काॅरपोरेटों के पक्ष में वही विनाशकारी नीतियां अपना रही है.

निराशाजनक बजट 2024-25 ने कामकाजी लोगों की चिंताओं और दुर्दशा को पूरी तरह नजरअंदाज किया है. इन चिंताओं को विभिन्न संघर्षों और साथ ही हाल के चुनावों के माध्यम से उठाया गया था. इन्हें बजट पूर्व परामर्श बैठक में वित्त मंत्री को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त ज्ञापन में भी व्यक्त किया गया था. जबकि बजट बढ़ती असमानता की खतरनाक स्थिति को संबोधित नहीं करता है, यह अमीरों और शक्तिशाली लोगों के हितों को पूरा करना जारी रखता है. यह काॅर्पाेरेट नियंत्रण और अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व को ‘विकसित भारत’ के नाम पर और अधिक कसता है. जहां विदेशी काॅरपोरेट्स पर कर को 40% से घटाकर 35% कर दिया गया है, यह बजट पहले से ही बेहद कम काॅरपोरेट टैक्स को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं करता है, जबकि काॅरपोरेट टैक्स को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर बढ़ाने की लगातार मांग की जा रही है.

देश के श्रमिक वर्ग का विशाल बहुमत असंगठित श्रमिकों को इस बजट में उनके दुखद जीवन से कोई राहत नहीं मिली. पिछले मौकों की तरह, इस बजट में भी नरेगा, एनएचएम, मिड-डे मील, आईसीडीएस जैसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन नहीं बढ़ाया गया है, जिससे श्रमिकों की पीड़ा और बढ़ गई है.

जबकि मोदी शासन के पिछले 10 वर्षों में कामकाजी लोगों के विशाल बहुमत की वास्तविक मजदूरी/आय में तीव्र गिरावट आई है और सामाजिक सुरक्षा चरमरा गई है, बजट न तो राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का कोई प्रयास करता है और न ही सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का. इसके अलावा, बजट बढ़ती खाद्य कीमतों से कोई राहत नहीं देता है, क्योंकि यह देश में मुद्रास्फीति के खतरनाक स्तर को मान्यता नहीं देता है. बजट सरकारी विभागों तक में भी बड़े पैमाने पर जारी और अंधाधुंध ठेकाकरण को कम करने का कोई प्रयास नहीं करता है.

बेरोजगारी की खतरनाक स्थिति से मजबूर होकर, बजट इसके बारे में बात करता है, लेकिन केवल मात्रा बयानबाजी के रूप में क्योंकि यह नौकरियां पैदा करने के लिए किसी भी रोडमैप द्वारा समर्थित नहीं है. बजट केवल मुद्रा ऋण और अन्य जैसी प्रोत्साहन योजनाएं प्रदान करता है. इसके अलावा, सरकार सरकारी रिक्तियों को भरने पर चुप है, जिससे रोजगार के अवसरों को बढ़ावा मिल सकता है. रोजगार से अधिक, बजट में कौशल या रोजगार योग्यता पर अधिक ध्यान दिया गया है.

बजट सरकारी कर्मचारियों के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक अर्थात ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) की बहाली और साथ ही 8वें वेतन आयोग के गठन की मांग पर चुप है.

महिला सशक्तिकरण की ऊंची बातों के बावजूद, बजट महिला श्रमिकों के मुद्दों को संबोधित नहीं करता है, जिसमें कार्यबल में महिला भागीदारी की घटती दर भी शामिल है, सिवाय कुछ दिखावटी प्रस्तावों के जैसे पीपीपी माॅडल में महिला छात्रावास और क्रेच खोलना.

कृषि मोर्चे पर, बजट किसान आंदोलन की एमएसपी की कानूनी गारंटी और ऋण माफी की सबसे महत्वपूर्ण मांगों को नजरअंदाज करता है, वहीं डिजिटल कृषि योजना और जीएम फसलों को बढ़ावा देकर कृषि में काॅर्पाेरेट प्रवेश को और आसान बनाता है. इसी प्रकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और आम लोगों के अन्य बुनियादी मुद्दों को भी नजरअंदाज किया गया है. इस बजट का विरोध किया जाना चाहिए क्योंकि यह देश के कामकाजी लोगों की दुर्दशा और पीड़ा के साथ विश्वासघात और उपहास है.