वर्ष - 33
अंक - 29
13-07-2024

- कुमार परवेज

तकरीबन 35 सालों के बाद आरा लोकसभा सीट पर भाकपा(माले) ने शानदार जीत हासिल की है. विदित हो कि 1989 के लोकसभा चुनाव में आइपीएफ के बैनर से का. रामेश्वर प्रसाद ने पहली बार जीत हासिल की थी. बगल की काराकाट सीट भी भाकपा(माले) जीतने में सफल रही. हालांकि, बेगूसराय में सीपीआइ और खगड़िया में सीपीएम कड़े संघर्ष के बावजूद हार गई. विगत 20 सालों से बिहार में कोई भी वामपंथी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सका था. ऐसे में भाकपा(माले) की दो सीटों पर शानदार जीत हिंदी पट्टी में वामपंथ के नए उभार का संकेत दे रही है.

बिहार में चुनाव का माहौल मोटे तौर पर एनडीए के खिलाफ था, बावजूद भाजपा किसी बड़े नुकसान से बच गई. बिहार ही वह प्रदेश है, जिसने मोदी की तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र व संविधान की रक्षा में विपक्षी दलों की व्यापक एकता के निर्माण का रास्ता बनाया था. यहां याद दिलाना जरूरी है कि फरवरी 2023 में पटना में आयोजित भाकपा(माले) के पार्टी महाधिवेशन के मंच ने विपक्षी दलों की एकता की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ा था. यह एकता आकार भी ग्रहण करने लगी थी, लेकिन ऐन वक्त पर भाजपा ने ‘खेल’ करते हुए नीतीश कुमार को फिर से अपने पाले में कर लिया और बिहार की सत्ता हड़प ली. उसे इस बात का एहसास था कि बिहार उसके लिए दुरूह राज्य साबित होने जा रहा है. जनवरी 2024 में नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद ऐसा माहौल बनाया जाने लगा मानो इंडिया गठबंधन चुनाव के पहले ही बिखराव का शिकार हो गया हो. लेकिन बिहार की संघर्षशील जनता ने इस विश्वासघात का जबरदस्त जवाब दिया. 3 मार्च 2024 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित ऐतिहासिक जन संकल्प रैली में उमड़ा जनसैलाब विपक्षी एकता की उम्मीदों का नया फलक तैयार कर गया. लाल, हरे व तिरंगे झंडे से न केवल गांधी मैदान बल्कि पूरा पटना शहर उमड़ पड़ा. उसने पूरे देश में इंडिया गठबंधन की पुनर्वापसी का रास्ता खोला. बिहार ने साफ-साफ संदेश दिया कि किसी एक व्यक्ति या पार्टी के पाला बदल लेने से मोदी की तानाशाही के खिलाफ जारी जंग में कोई असर नहीं पड़ने वाला.

बिहार में लोकसभा चुनाव प्रचार में भाजपा लगातार बैकफुट पर दिखी. प्रधानमंत्री मोदी को बार-बार सभाएं करनी पड़ीं, लेकिन उनके वक्तव्यों में नकारात्मकता व नफरती भाव ही प्रधान बना रहा. दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन ने लोकतंत्र, संविधान और आरखण की रक्षा, जाति सर्वेक्षण, शिक्षकों की स्थायी बहाली, रोजगार, विस्थापन, महंगाई आदि जैसे सवालों को तो अपना मुद्दा बनाया, लेकिन यह भी सच है कि गठबंधन साझा चुनाव प्रचार नहीं चला सकासातवें चरण में ही गठबंधन के बड़े नेताओं के साझे कार्यक्रम हो सके और इसका सकारात्मक नतीजा भी सामने आया. इंडिया गठबंधन की जीती 9 सीटों में 6 सीटें अंतिम चरण की हैं, जहां गठबंधन के नेताओं ने संयुक्त प्रचार अभियान संगठित किया.

वोटों के प्रतिशत के हिसाब से राजद को सर्वाधिक 22. 14 प्रतिशत मत मिले. भाजपा और जदयू के वोट प्रतिशत में तीन प्रतिशत से अधिक की गिरावट है. फिर भी दरभंगा, तिरहुत और कोसी प्रमंडल में इंडिया गठबंधन के सभी प्रत्याशियों की हार चौंकाने वाली है. राजद उम्मीदवारों ने अपने वोट तो बढ़ाए, लेकिन उसे जीत में तब्दील नहीं कर पाए. सीपीआइ व सीपीएम के साथ भी यही हुआ. यही वजह रही कि भाजपा के खिलाफ माहौल होते हुए भी इंडिया गठबंधन महज 9 सीटों पर ही जीत हासिल कर सका. गठबंधन के विभिन्न घटकों की चुनावी सफलता बिलकुल असमान प्रकृति की है. 23 सीटों पर लड़ने वाली राजद महज चार सीट जीत पाई, 9 सीटों में कांग्रेस तीन और महज 3 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाकपा(माले) ने 2 सीटों पर सफलता पाई. पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव ने जीत हासिल की.

भाकपा(माले) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के अपने स्ट्राइक रेट की निरंतरता में एक बार फिर जीत हासिल की है, जो बिहार की राजनीति में एक अलग महत्व रखता है. इससे भी जाहिर होता है कि यदि इंडिया गठबंधन ने अपनी रणनीति को थोड़ा और व्यवहारिक बनाया होता, तो उसकी सीटों की संख्या 20 तक पहुंच सकती थी.

इंडिया को मूलतः शाहाबाद, मगध और एक हद तक सीमांचल में सफलता मिली. बिहार विधानसभा 2020 में बिहार का यही जोन था जिसने महागठबंधन को जबरदस्त सफलता दिलाई थी. सीमांचल में तो दूसरे फेज में चुनाव था लेकिन शाहाबाद व मगध में सातवें यानी अंतिम फेज में चुनाव था. शाहाबाद की सभी चार सीटें इंडिया गठबंधन के खाते में गई. आरा व काराकाट से भाकपा(माले), बक्सर से राजद और सासाराम (सु.) से कांग्रेस की जीत हासिल हुई. मगध जोन में पाटलिपुत्र, औरंगाबाद और जहानाबाद राजद के खाते में गई. वहीं सीमांचल में किशनगंज व कटिहार सीट कांग्रेस के खाते में गई और पूर्णिया में पप्पू यादव ने जीत का झंडा गाड़ा.

इंडिया गठबंधन को शाहाबाद-मगध जोन में जीत और शेष बिहार में हार के कारणों की गहन जांच करनी होगी. शाहाबाद-मगध जोन की जीत में ही वह सूत्र है जो उसे राज्य के अन्य हिस्सों में भी जीत दिला सकता है. आंदोलनात्मक लिहाज से शाहाबाद व मगध का इलाका भाकपा(माले) आंदोलन के बहुत पुराने गढ़ रहे हैं. दलितों और अतिपिछड़े समुदाय का बड़ा हिस्सा इस इलाके में भाकपा(माले) के साथ है, जिसने न केवल उसकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की बल्कि राजद व कांग्रेस को भी जीत दिलाया. कटिहार में भी कांग्रेस की जीत में भाकपा(माले) का सबसे बड़ा योगदान रहा है. अकेले बलरामपुर विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी तारिक अनवर को 64 हजार से अधिक मतों की बढ़त मिली और वे तकरीबन 50 हजार के वोटों से जीतने में सफल रहे.

चुनाव विश्लेषण से दो बातें बिलकुल स्पष्ट तौर पर सामने आती हैं. यदि इंडिया गठबंधन को बिहार में निर्णायक जीत हासिल करनी है तो उसे दो काम करने होंगे. पहला, भाकपा(माले) के तेवर के वामपंथी आंदोलन को पूरे बिहार में खड़ा करना और उसे मजबूत बनाना, और दूसरा कि राजद को अपने राजनीतिक-सामाजिक आधार के साथ जमीनी स्तर पर गहन अंतःक्रिया में जाना. चुनाव परिणाम दिखलाते हैं कि उत्तर बिहार के बड़े हिस्से में राजद के सामाजिक आधार में भाजपा की विचारधारा की घुसपैठ हो रही है. इसलिए राजद को सामाजिक न्याय के बड़े फलक पर अपने आधार के लोकतांत्रिकीकरण व उसे गरीबों के आंदोलनों से जोड़ने के बारे में सोचना होगा.

बिहार में राजग के लिए जदयू और लोजपा का प्रदर्शन आश्चर्यजनक रहा. भाजपा को जो सीटें मिली हैं, उसमें जदयू का अच्छा-खासा योगदान है. चुनाव परिणाम के पहले यह मानकर चला जा रहा था कि जदयू की राजनीतिक है. सियत इस बार काफी गिरेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लेकिन, मोदी-3 सरकार के गठन के समय जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने एक बार फिर आत्मसमर्पण किया, वह बिहार को बेहद नागवार गुजरा है. यह उचित मौका था कि बिहार को विशेष राज्य के दर्जा दिलाने के सवाल पर नीतीश कुमार अड़ते, लेकिन वे आत्मसमर्पणकारी बने रहे.

ऐसे में इंडिया गठबंधन को अपनी राजनीतिक भूमिका बढ़ाने के लिए एक सचेत एक्शन प्लान के साथ आगे बढ़ना चाहिए. बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा सहित बिहार के गरीबों के लिए कार्यक्रमों का पैकेज, सोन नहर सिस्टम प्रणाली के आधुनिकीकरण जैसे सवालों पर इंडिया गठबंधन को धारावाहिक आंदोलन चलाने की आवश्यकता है. राज्य में विधानसभा चुनाव में बहुत वक्त नहीं है. इसी रास्ते बढ़कर 2025 में नीतीश कुमार और भाजपा को बिहार में रोका जा सकता है.

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