विगत 17 सितंबर 2023 को जयपुर के कुमारानंद हाॅल में ऐपवा का तीसरा राजस्थान राज्य सम्मेलन सम्पन्न हुआ. सम्मेलन में जयपुर, अजमेर, दौसा, उदयपुर, किशनगढ़, भीलवाड़ा, चित्तौड़ और प्रतापगढ़ जिलों की 200 से अधिक महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
सम्मेलन की शुरुआत में ऐपवा आंदोलन की शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. उद्घाटन सत्र को ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष भंवरी बाई, विशिष्ट अतिथि पीयूसीएल की राष्ट्रीय महासचिव कविता श्रीवास्तव, सीपीएम की वरिष्ठ नेता सुमित्र चौपड़ा, एनएफआई की नेता निशा सिद्धू, एडवा की राज्य सचिव सीमा जैन और सामाजिक कार्यकर्ता हेमलता ने सम्बोधित किया.
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि इस देश में जब से मोदी सरकार आयी है तब से महिलाओं के हर अधिकार पर हमला किया है. मोदी राज में महिलाओं के साथ अपराध करनेवालों और बलात्कारियों को संस्कारी बताया जा रहा है. हमें इसके खिलाफ उठना ही होगा. हमारा यह सम्मेलन एक ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में हो रहा है जब एक तरफ आजादी की 75वीं सालगिरह के अवसर पर सरकार अमृत महोत्सव मना रही है तो दूसरी तरफ महिलाऐं अपनी रोजी-रोटी के सवाल से लेकर बराबरी-न्याय केलिए हर स्तर पर संघर्षरत हैं और पूंजी, धर्म, सत्ता व सामन्ती तत्वों का गठजोड़ महिलाओं के हर अधिकार व जायज मांगों को निर्ममता से कुचल रहा है.
सम्मेलन की केंद्रीय पर्यवेक्षक झारखंड की ऐपवा नेता गीता मंडल ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ खड़ी मोदी सरकार हमारे संघर्ष और आंदोलन को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा है. पूरे देश में स्त्रियां दमन, शोषण व उत्पीड़न के खिलाफ सड़कों पर हैं. अमृत काल में भूखा भारत हमारे आंदोलन की जरूरत को दर्शाता है. किंतु महिलाओं की बढ़ती दावेदारी और अपने अधिकारों को हासिल करने की चेतना इस चुनौती का बहादुरी से सामना कर रही हैं. इतिहास बताता है कि महिलाएं ने अपने आंदोलन को ऐसे ही दौर में नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाया है.
इस अवसर पर बोलते हुए पीयूसीएल की राष्ट्रीय महासचिव कविता श्रीवास्तव ने कहा कि बुलडोजर राज के खिलाफ लड़ाई जारी है. सरकारें महिलाओं की आवाज को नहीं सुनती है. एक तरफ हमने बिलकिस बानो के साथ हुए अन्याय, हिजाब के नाम पर साम्प्रदायिक हमले, समान नागरिक संहिता कानून मामले में देखा है कि किस प्रकार भाजपा न्याय के नाम पर एक समुदाय को अपराधी दिखा रही है और महिलाओं पर होनेवाले उत्पीड़न-दमन केलिए महिलाओं को ही कटघरे में खड़ा कर आपराधिक तत्वों को पूरा संरक्षण दे रही है. किंतु किसान आंदोलन, मी टू आंदोलन से लेकर पहलवान खिलाड़ियों की लड़ाई तक में देशभर की महिलाओं की एकजुटता दिखाई दी, वह हमें संघर्ष के लिए ऊर्जा व साहस देती है.
सीपीएम की वरिष्ठ नेता सुमित्रा चोपड़ा ने कहा कि हम देख रहे हैं कि सरकार महिलाओं की आजादी व सशक्तिकरण का हो-हल्ला कर उनके हक में बने हर तरह के कानूनों को कमजोर कर रही है. बलात्कार, डायन हत्या, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, ऑनर किलिंग जैसे बढ़ते अपराध और उनकी क्रूरता, आज के महिला जीवन की सच्चाई है.
ऐपवा की राज्य अध्यक्ष भवरी बाई ने कहा कि महिलाओं पर होनेवाले स्कूल-कालेजों में यौन-उत्पीड़न व सांस्थानिक हत्या के विरोध में उनकी प्रतिरोध की आवाज को दबाने के तरह-तरह के कुतर्क व हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. महिलाओं की चयन की आजादी व नागरिक के रूप में रहने व जीने की बढ़ती राजनैतिक दावेदारी को कुंद करने केलिए सत्ता द्वारा तरह-तरह के षडयन्त्र किये जा रहे हैं.
एनएफआई की नेता निशा सिद्धू ने कहा कि मौजूदा सरकारें श्रम कानूनों को खत्म कर काॅरपोरेट लूट को बढावा दे रही हैं. इसमें महिलाओं को आरक्षित मजदूर का दर्जा दिया जा रहा है, उन्हें असंगठित क्षेत्र में धकेला जा रहा है, मानदेय के नाम पर शोषण किया जा रहा है, मजदूर युनियन बनाने का अधिकार छीना जा रहा है और महिला बराबरी-न्याय के सवालों को पृष्ठभूमि में धकेला जा रहा है. इसालिए यह जरुरी बन गया है कि महिलाऐं अपनी पूरी ताकत के साथ ऐपवा जैसे क्रांतिकारी महिला संगठन के बैनर तले एकजुट हों और काॅरपोरेट पोषक जनविरोधी सरकार को उखाड़ फेंकें.
ऐपवा की जयपुर जिला सचिव मंज़ूलता ने साथियों का स्वागत करते हुए कहा कि देशभर में महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा, उत्पीड़न व दमन साफ दिखाता है कि पितृसत्ता महिलाओं में बढ़ रही संघर्ष की चेतना को हर तरह से रोक देना चाहती है. इसलिए महिलाओं केलिए यह जरूरी बन गया है कि वे संगठित होकर महिला-विरोधी सामाजिक परिवेश का प्रतिरोध करें और अपनी सामाजिक-राजनैतिक चेतना बढाने केलिए ठोस पहल लें और अपने रोजी-रोटी, सुरक्षा,सम्मान व बराबरी के सवालों को मजबूती से उठायें.
प्रतिनिधि सत्र में सचिव द्वारा रिपोर्ट रखे जाने के बाद उसपर चर्चा हुई और उसे सर्वसम्मति से पारित किया गया. सम्मेलन के अध्यक्ष मंडल में तस्कीन चिश्ती, मंज़ूलता, विमला, नजमा और ऊषा यादव शामिल रहे. अंत में, सम्मेलन की पर्यवेक्षक गीता मंडल की देख रेख में कमेटी का निर्माण सम्पन्न हुआ. 21 सदस्य कार्यकारिणी का गठन किया. जिसमें मंज़ूलता, उषा यादव, गीता बाई, केसर बाई (जयपुर) खानकी, कालकी, वालकी (सलुंबर), तस्कीन चिश्ती, प्रेम बरवा, शाहीन, हफीजा, कौशल्या (अजमेर), विमला, पिंकी, कमलेश (दौसा) सुधा चौधरी, रिंकु परिहार फरहत बानू (उदयपुर). शहनाज़, रसीदा (प्रतापगढ़) और मधु (नागौर) को शामिल किया गया है. कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से का. मंज़ूलता को अध्यक्ष और प्रो. फरहत बानू को राज्य सचिव की जिम्मेदारी दी.
नव निर्वाचित ऐपवा सचिव फरहत बानू ने कहा कि फासीवाद के इस दौर में महिलाएं सबसे ख़राब समय का सामना कर रही हैं और लड़ रही हैं. संविधान और लोकतंत्र के अनुसार देश चले, यह सबसे बड़ा सवाल बन गया है. महिलाओं को इसके लिए आगे आना होगा.
नवनिर्वाचित अध्यक्ष मंज़ूलता ने कहा कि आज समय की मांग है कि हम अपनी पूरी ताकत के साथ गोलबंद हों, अपने नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष तेज करें और एक लोकतांत्रिक समाज बनाने में सक्रिय भागीदारी व हिस्सेदारी करते हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाएं. सम्मेलन ने राजस्थान में ऐपवा को और मजबूत बनाने, एक क्रांतिकारी महिला संगठन के बतौर स्थापित करने और प्रदेश के हर जिले में इसका निर्माण करने का कार्यभार लिया.
कार्यक्रम का संचालन रिंकु परिहार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन फरहत बानू ने दिया. सम्मेलन ने महिलाओं केलिए कम से कम 10,000/ रुपये मासिक मज़दूरी और तीन सौ पैंसठ दिन काम के साथ शहरी रोजगार योजना चालू करने, मनरेगा में 365 दिन काम और कम से कम 400/ रुपये दैनिक मजदूरी देने, महिलाओं की पेंशन राशि 3,000/ रुपये करने, श्रम डायरी में ठेकेदार के हस्ताक्षर करने की शर्त को हटाने और डायरी का लाभ हक़दार लोगों को देने, प्रदेश में सांप्रदायिक नफरत, भय और आतंक के माहौल को खत्म करनेे, महंगाई पर रोक लगाने, शिक्षा का निजीकरण बंद करने और सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता आधारित शिक्षा की गारंटी करने, राशन में व्याप्त अनियमितताओं को खत्म करने, माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की मनमाना वसूली और फैलते जाल को रोक लगाने, गरीब परिवारों को बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराने तथा सभी राजनैतिक बंदियों की बिना शर्त रिहा करने की मांग के प्रस्ताव पारित किए.
– फरहत बानू