वर्ष - 32
अंक - 33
12-08-2023

भारत के संसदीय इतिहास में यह संभवतः पहला अवसर रहा होगा, जब विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव इसलिए लाना पड़ा ताकि प्रधानमंत्री को इस बात के लिए विवश किया जा सके कि वे संसद में आकार बोलें! अविश्वास प्रस्ताव का यह अभूतपूर्व प्रयोग दिखाता है कि बहुमत के मद में चूर, नरेंद्र मोदी ने अपने आप को प्रधानमंत्री पद के वास्तविक दायित्वों से पूरी तरह मुक्त किया हुआ है. वे संभवतः विदेश भ्रमण और देश में चुनावी रैलियों को संबोधित करने को ही प्रधानमंत्री के रूप में अपना एकमात्र काम समझते हैं!

मणिपुर पिछले चार महीने से भयानक हिंसा का शिकार है. स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए बताया कि तीन मई को हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर में 152 लोग मारे गए, 14898 लोग गिरफ्तार किए गए और 1106 एफ़आइआर दर्ज की गयी. गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा के पटल पर रखा गया यह आंकड़ा मणिपुर में स्थिति की गंभीरता को बयान कर रहा है. गृह मंत्री ने यह दावा जरूर किया कि मणिपुर में हालात शांति की तरफ बढ़ रहे हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मैतई और कुकी समुदायों  के बीच बफर जोन बना कर 36 हजार सुरक्षा कर्मी तैनात हैं. दो समुदायों के बीच सुरक्षा बलों की दीवार बना कर कैसी शांति कायम हो रही होगी, यह समझा जा सकता है.

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन न लगाने का बचाव करते हुए अमित शाह ने कहा कि सीएम तब बदलना पड़ता है, जब सीएम कोऑपरेट न करें. उनका दावा था कि केंद्र ने मुख्य सचिव और डीजीपी बदला और राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया. जब रूटीन के प्रशासनिक काम भी केंद्र अपने हाथ में लिए हुए है तो सवाल है कि एन बीरेन सिंह सिपर्फ इसलिए कुर्सी पर कायम रहेंगें कि वे भाजपा से हैं?

महिलाओं से जघन्य हिंसा के जिस वीडियो ने देश दुनिया को झकझोर दिया, उसके लिए अमित शाह वीडियो सार्वजनिक करने वालों और वीडियो सार्वजनिक करने की टाइमिंग पर ही खीज उतारते नजर आए. हालांकि जब उनसे वीडियो इंटेलिजेंस वालों के पास होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने घूमा फिरा कर जो जवाब दिया, उसका आशय यही था कि वीडियो इंटेलिजेंस वालों के पास नहीं आया! यह मणिपुर में प्रशासनिक मशीनरी की विफलता की एक और स्वीकारोक्ति थी.

अपने पूरे वक्तव्य में अमित शाह ने विपक्ष पर हमला करने के लिए अतीत की घटनाओं का उल्लेख करने की चिरपरिचित भाजपाई शैली का ही उपयोग किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव करने के लिए अमित शाह ने वही घिसपिटा जुमला दोहराया कि प्रधानमंत्री 17 घंटे काम करते हैं. उसी काम का नतीजा है, शाह जी कि मणिपुर से लेकर हरियाणा तक देश में आग लगी हुई है!

जिन प्रधानमंत्री की मणिपुर पर जवादेही तय करवाने के लिए विपक्ष लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया था, उन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो घंटे से अधिक के अपने भाषण में यदि सबसे कम यदि किसी विषय पर बोला तो वह मणिपुर था. डेढ़ घंटा भाषण देने के बाद वे मुश्किल से नौ मिनट मणिपुर पर तब बोले, जब मणिपुर के अलावा बाकी सब कुछ बोलने के चलते विपक्ष ने सदन से सदन से वाॅकआउट कर दिया.

यह हैरत की बात थी कि प्रधानमंत्री को 1962,1966, 1984 को विस्तार से याद करने की फुर्सत थी, उन्हें ये सब और इसके अलावा और भी बहुत कुछ तफसील से याद था, लेकिन उनकी स्मृति में नहीं था तो मणिपुर में बीते चार माह का अफसोसजनक मंजर.

नरेंद्र मोदी का भाषण खिसियाहट में विपक्ष की खिल्ली उड़ाने से अधिक कुछ भी नहीं था. दस साल सत्ता में पूरे होने को हैं और तीसरे कार्यकाल की महत्वाकांक्षा संजोये नरेंद्र मोदी अपने भाषण के अधिकांश हिस्से में आजाद भारत की पहली सरकार से लेकर उनके पहले तक की विपक्षी सरकारों को कोसते ही नजर आए. विपक्ष को कोसने के फेर में वे इस कदर बढ़ गए कि भारत विभाजन के दोष से उन्होंने अंग्रेजों को लगभग मुक्त कर दिया और साथ ही मुक्त कर दिया अपने मातृसंगठन को भी!

इंडिया गठबंधन को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बौखलाहट फिर प्रकट हुई. इस बार उन्होंने उस पर एनडीए चुराने का हास्यास्पद आरोप मढ़ा और घमंडिया गठबंधन कहा. लेकिन घमंड और अहंकार यदि कहीं सर्वाधिक प्रकट हो रहा था तो वह नरेंद्र मोदी के भाषण में था! अहंकार उनके सिर इस कदर चढ़ कर बोल रहा था कि वे सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव को, देश के प्रति अविश्वास करार देते नजर आए!  यानि नरेंद्र मोदी स्वयं को ही देश समझते हैं और इसलिए उन्हें जवाबदेह बनाने के लिए लाये गए अविश्वास प्रस्ताव को देश के खिलाफ अविश्वास घोषित कर देते हैं!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चूंकि संसद के प्रति किसी जवादेही में विश्वास नहीं रखते, इसीलिए उन्हें सदन में लाने के लिए विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया. लेकिन देश भर में चुनावी सभाओं में घूम-घूम कर भाषण देना उनका प्रिय शगल है. लोकसभा का उनका भाषण भी चुनावी सभा की शैली का ही भाषण था.

उनके पूरे भाषण से साफ था कि मणिपुर के घटनाक्रम से उनका कोई ज्यादा सरोकार नहीं है. लोकसभा में बोलने के लिए मजबूर किए जाने को उन्होंने विपक्ष पर हमला करने और स्वयं की उपलब्धियों की डींगे हांकने के एक और अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया.

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी जिस तरह से प्रधानमंत्री समेत पूरा सत्तापक्ष जवाबदेही से गाफिल नजर आया, उसे देख कर लगता है कि जब वे किसी तरह की जवाबदेही नहीं महसूस करते हैं तो वक्त आ गया है कि देश उन्हें हर तरह की जवाबदेही से मुक्त कर दे, उन्हें कुर्सी से उतार दे ताकि देश में लगी आग को बुझाने की जवादेही लेने वाले, इस जिम्मेदारी को निबाहने के लिए आगे आ सकें.

 – इन्द्रेश मैखुरी