वर्ष - 32
अंक - 34
19-08-2023

टीम ने हिंसा व अकथनीय मानवीय तकलीफों के अंतहीन सिलसिले के लिए केंद्र-मणिपुर सरकारों को जिम्मेदार पाया.

भाकपा(माले), ऐपवा और आइलाज तथा एक स्वतंत्र कार्यकर्ता की 8-सदस्यीय टीम ने मणिपुर का दौरा किया. इस टीम ने एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार की जोड़ी को संवैधानिक तंत्र के पूर्ण विध्वंस के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है जिसके चलते मणिपुर में हिंसा व अकथनीय मानवीय तकलीफों का अंतहीन सिलसिला जारी है.

भाकपा(माले) नेता और ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रतिमा इंघिपी (कार्बी अंग्लांग), विवेक दास (असम), सुचेता डे (दिल्ली), क्लिफ्टन डी’ रोजारियो (कर्नाटक), ऐपवा नेता कृष्णावेणी, मधूलिका टी. (ऑल इंडिया लाॅयर्स एसोसिएशन फाॅर जस्टिस) और डी. सरस्वती (कर्नाटक की दलित व महिला अधिकार कार्यकर्ता) समेत देश के विभिन्न हिस्सों से आए नेताओं की 8-सदस्यीय टीम ने चार दिनों तक मणिपुर में हिंसा-प्रभावित गांवों और राहत शिविरों का दौरा किया. टीम इस बात पर हैरान रह गई कि मणिपुर की ‘डबल इंजन’ भाजपा सरकार ने वहां कैसा राजनीतिक उथल-पुथल मचा दिया है? इस टीम ने कई गांवों तथा इंफाल घाटी, कंगपोकपी और चूडचंदपुर जिलों के राहत शिविरों में जमीनी हालत का जायजा लिया. चारदिवसीय दौरा के बाद जांच टीम कोनकाता लौटी जहां उसने 13 अगेस्त 2023 को कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपनी रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इसप्रकार हैं –

1. मणिपुर की घाटी और पहाड़ी इलाकों में मेइती व कुकी समुदायों के बीच अभूतपूर्व नस्ली विभाजन भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर भाजपा द्वारा दिया गया उपहार है. भारत के इतिहास में इसके पहले कभी ऐसी सरकार नहीं आई थी जिसने समाज के सामाजिक तानेबाने के पूर्ण विध्वंस को इस तरह से नजरअंदाज किया हो जिसके चलते राज्य के विभिन्न समुदाय नस्ली तौर पर इतने विभाजित हो गए हैं. इन समुदायों के बीच पहले भी टकराव होते थे, किंतु वे फिर समझौता करके मिलजुल कर वहां रहने में समर्थ भी थे.

2. कहने की जरूरत नहीं कि 3 महीने से भी ज्यादा समय से चल रहा यह नस्ली विभाजन और हिंसा भाजपा सरकार की हरकतों का नतीजा है. मुख्य मंत्री एन बीरेन सिंह इस हिंसा को रोकने में पूरी तरह नकारा और उदासीन साबित हुए हैं, फिर भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की बजाय अमेरिका और फ्रांस की यात्रा पर जाना जरूरी समझा. वस्तुतः, संसद में प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के टालू बयान इस संकट का कोई व्यापक राजनीतिक समाधान देने में उनके दिवालियेपन को ही जाहिर करते हैं.

3. राहत शिविरों की हालत चिंताजनक है. पूरी घाटी और पहाड़ी इलाकों में उसी राज्य के हजारों विस्थापित लोग बहुत बुरी स्थिति में जी रहे हैं. बुनियादी सेवाओं का अभाव है और अन्य प्रबंध भी अपर्याप्त हैं, क्योंकि सरकार ने मुसीबतजदा लोगों की ओर से मुंह फेर रखा है.

4. घाटी में मेइती विस्थापितों के लिए बने राहत शिविरों की हालत भी काफी खराब है. पता चला है कि इंफाल की हृदयस्थली में मौजूद श्यामाक्षी उच्च विद्यालय के राहत शिविर में कुछ चावल-दाल के अलावा राज्य सरकार की ओर से प्रति व्यक्ति सिर्फ 50 रुपये दिये जाते हैं, जो बिल्कुल नाकाफी है. टीम ने यह भी देखा कि मोइरंग में बाजार की जगह पर एक घर को राहत शिविर के लिए लिया गया है, लेकिन वहां कोई उचित सुविधा नहीं दी गई है. अबतक उस शिविर में प्रति व्यक्ति केवल 500 रुपये वितरित किये गए हैं. अकमपट में एक स्कूल में चलाये जा रहे राहत शिविर भी काफी छोटे पड़ रहे हैं और वहां बुनियादी सुविधाओं की किल्लत है. चूराचंदपुर यूथ हाॅस्टल में स्वयंसेवकों द्वारा संचालित राहत शिविरों में कमरे खचाखच भरे हुए हैं और वहां संक्रामक बीमारियां तेजी से फैल रही हैं. खसरा, चेचक, वायरल बुखार उन शिविरों में आम बात हो गई है. साफ-सफाई खस्ताहाल है और जिन शिविरों में 500 की संख्या में शरणार्थी हैं, वहां शौचालयों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. अधिकांश राहत शिविरों में पोषक आहार नहीं दिया जा रहा है और वहां सिर्फ दो वक्त चावल-दाल मिल रहा है. कंगपोकपी में भी राहत शिविरों की यही दशा है, पोषक आहार और साफ-सफाई खस्ताहाल है. इस जिले में केवल एक उत्क्रमित पीएचसी है जिसे जिला अस्पताल का दर्जा दे दिया गया है, लेकिन वहां पर्याप्त डाॅक्टर, स्टाफ और दवाइयां नहीं हैं.

5. घाटी तथा पहाड़ी इलाकों के बीच की सीमा, और अघोषित रुकावटों की वजह से आवश्यक सामग्रियों की आवाजाही बाधित है – यहां तक कि बुनियादी खाद्य वस्तुएं और दवाइयां भी नहीं पहुंच पा रही हैं जिसके चलते पहाड़ी जिलों में मौजूद राहत शिविरों में राज्य के हजारों विस्थापित प्रभावित हो रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप, मेइती लोग भी घाटी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

6. प्रभावित लोगों की बड़ी तादाद में मौतों और संपत्ति के नुकसान के लिए सीधे-सीधी सरकार जिम्मेदार है. शर्म की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा कि इन बड़े अमानवीय अपराधों की जांच के लिए कदम उठाए जाएं.

इस मानवीय संकट के किसी वास्तविक राजनीतिक समाधान की दिशा में आगे बढ़ने का पहला कदम यह होगा के श्री बीरेन सिंह मुख्य मंत्री के पद से इस्तीफा दें. हम सभी प्रभावित समुदायों से अपील करते हैं कि वे आपासी वैर-भाव पर रोक लगाएं ताकि इस टकराव से अलग हटने और वर्तमान गतिरोध के समाधान की ओर कदम बढ़ाने के पहले उपाय के बतौर राहत शिविरों में जिंदगी गुजार रहे पीड़ित लोगों की समुचित देखभाल की जा सके.

जांच टीम ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसूइया उके से मुलाकत कर उनको मणिपुर की विष्फाटक हालात की जानकारी दी और राहत शिविरों के मामले में त्वरित कदम उठाने और साथ ही इस मामले के किसी भी राजनीतिक समाधान के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को पद से हटाने की मांग की.

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