‘बेहतर मजदूरी, नियमित काम – लड़कर लेंगे सामाजिक सुरक्षा, हक और सम्मान’ के केंद्रीय नारे के साथ स्कीम कर्मियों (आशा, मिड-डे मील, आंगनबाड़ी, आदि) को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, केंद्र सरकार की जुमलेबाजी बंद करने और स्कीम वर्कर्स को उनका हक और सम्मान देने की मांग तथा सांप्रदायिक घृणा व बंटवारे और कंपनी राज के खिलाफ संघर्ष तेज करते हुए 2024 के आम चुनावों में विनाशकारी मोदी शासन को शिकस्त देने के संकल्प के साथ आगामी 8-10 सितंबर 2023 को बिहार की राजधानी पटना में ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन (एआईएसडब्ल्यूएफ) का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है.
देश की दशकों पुरानी कई सरकारी योजनाओं में एक करोड़ से अधिक की संख्या में कार्यरत स्कीम कर्मी (आशा, मिड-डे मील, आंगनबाड़ी, आदि) गुलामी की व्यवस्था में खट रही हैं. इन्हें न्यूनतम मजदूरी तक नहीं जाती, इनकी हाड़-तोड़ मेहनत की कीमत मानदेय या पारितोषिक के बतौर दी जाती है. काम पूरे दिन का, यहां तक कि 12 घंटे तक का, लेकिन श्रमिक का दर्जा तक नहीं, स्वयंसेवी या कार्यकर्ता कह कर निपटा दिया जाता है. जो मेहनताना इन्हें मिलता है वह इनके श्रम के साथ क्रूर मजाक है. जिंदा रहने लायक मजदूरी की बात तो दूर कई राज्यों में तो वह ना के बराबर है – 1000 से 2000 रूपये मासिक. स्कीम कर्मी देश में चल रही तकरीबन सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं – ईएसआई, पीएफ, पेंशन, आदि से भी वंचित हैं. भारत में चल रही नियोजन और मजदूरी की यह गुलामी भरी व्यवस्था (मानदेय/पारितोषिक) शायद ही दुनिया में कहीं मौजूद होगी.
भारत जैसे गरीब देश में मानव विकास को मजबूत करने के अति-महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने के लिये एनआरएचएम/एनएचएम (आशा), मिड-डे मील (रसोइया), सबसे पुरानी योजना आईसीडीएस (आंगनबाड़ी), आदि योजनाएं केंद्र सरकारों द्वारा दशकों पहले अलग-अलग समय पर बनाई गई थीं. लेकिन इन योजनाओं को चलाने के लिये कर्मचारियों की भर्ती नहीं की गई. देश में फैली गरीबी और बेरोजगारी का फायदा उठाते हुए सरकारों ने स्वयंसेवी के बतौर कमजोर आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से आती महिलाओं की भर्ती की. असल में, अपने घर-परिवारों में खाना बनाने व बच्चों से लेकर परिवार के स्वास्थ्य की देखभाल करने के महिलाओं के अवैतनिक कामों को इन योजनाओं से जोड़ दिया गया और एक तुच्छ से मेहनताने पर स्वयंसेविकाओं के बतौर उन्हें भर्ती किया गया. लेकिन ये स्कीम कर्मी इन सरकारी योजनाओं की रीढ़ बन गई हैं और देश के मानव व सामाजिक विकास में अहम योगदान कर रही हैं. यह उनका हक है कि उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले.
मोदी सरकार का हमला: दशकों से चल रही इन बुनियादी सरकारी योजनाओं को मोदी सरकार कमजोर करने में लगी हुई है. गरीबों, आम लोगों को लाभान्वित करने वाली ये योजनाएं भी इस सरकार को ‘रेवड़ी बांटना’ जैसी लगती हैं. जब से यह सरकार आई है इन योजनाओं के लिये बजटीय आवंटन साल-दर-साल घट रहा है. दूसरी ओर, इन योजनाओं को निजी कंपनियों या एनजीओ को सौंपा जा रहा है. मोदी सरकार इन योजनाओं से पीछा छुड़ाने की फिराक में है. मतलब साफ है कि इन स्कीमों और स्कीम कर्मियों का अस्तित्व खतरे में है.
स्कीम कर्मियों को श्रमिक का दर्जा और न्यूनतम मजदूरी देने की सिफारिशों (जो पिछले कई भारतीय श्रम सम्मेलनों ने की है) को मोदी सरकार आज तक लागू नहीं की है. बल्कि, मोदी सरकार द्वारा पिछले तमाम श्रम कानूनों को खत्म कर चार श्रम कोड लाने से स्कीम कर्मियों के यूनियन बनाने के प्रयास, जिनमें हमेशा रोड़े अटकाए जाते हैं, असंभव हो जाएंगे और साथ ही सामाजिक सुरक्षा हासिल करने का अधिकार भी.
साफ है कि मोदी शासन का ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा एक क्रूर धोखा साबित हुआ. अब मोदी के 9 साल के शासन के बाद, ‘अमृत काल’ और ‘नया भारत’ जैसे शब्दजाल के साथ फिर से मेहनतकशों को धोखा दिया जा रहा है. इन हमलों के बीच, मोदी शासन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए मेहनतकशों को बांटने, बुनियादी सवालों से ध्यान भटकाने एवं उनकी संघर्षशील एकता को तोड़ने की जीतोड़ कोशिश कर रहा है.
आगे का रास्ता: स्कीम कर्मी – आशा, मिड-डे मील, आंगनबाड़ी – मैदान-ए-जंग में उतर चुके हैं. पिछले कई वर्षों से देशभर में ये हड़तालों समेत जुझारू आंदोलन संगठित कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर की संयुक्त हड़तालों से लेकर राज्य स्तरों पर कई दिनों से लेकर महीने भर की हड़तालें संगठित कर रहे हैं. ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन जिसकी शुरूआत 2018 में हुई थी, और एआईसीसीटीयू (ऐक्टू) इन आंदोलनों और हड़तालों को संगठित करने में अगुवा भूमिका निभा रहे हैं.
केवल मजदूर वर्ग का एकताबद्ध संघर्ष और व्यापक जन एकता ही इन हमलों को उलट सकते हैं. यह हमने ऐतिहासिक किसान आंदोलन के मामले में देखा. मोदी सरकार के इन हमलों और मेहनतकश जनता को बांटने और धोखा देने के उसके नापाक मंसूबों को हमें शिकस्त देनी है. इस मजदूर व जन विरोधी मोदी सरकार को, करारा जवाब देते हुए, 2024 के आम चुनावों में सत्ता से हटाना है.
का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन इसी दिशा में स्कीम कर्मियों के आंदोलन को आगे बढ़ाने, स्कीम कर्मियों के अधिकारों को हासिल करने के संघर्ष को मजबूत करने के लिये संकल्पबद्ध है. आइए, इस सम्मेलन को जोरदार ढंग से सफल बनाने के लिये हर संभव प्रयास करें, योगदान करें.