- इन्द्रेश मैखुरी
बीते दिनों भारी बारिश के बाद हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों में काफी तबाही हुई हैं. उत्तराखंड में कोटद्वार में मालन नदी पर बने पुल के टूटने के बाद अवैध खनन भी एक बार फिर चर्चा में है. अवैध खनन की बात और किसी ने नहीं बल्कि उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष और कोटद्वार विधायक ऋतु खंडूड़ी भूषण ने खुद कही. यह बात उन्होंने अंग्रेजी और हिन्दी का अजीबोगरीब मिश्रण करते हुए, टूटे हुए पुल की जगह से उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन के सचिव डाॅ. रंजीत कुमार सिन्हा को फोन करते हुए कही. हालांकि सोशल मीडिया में यह भी चर्चा थी कि विधानसभा अध्यक्ष के फोन करने के दौरान जो लोग उनके अगल-बगल दिखाई दे रहे हैं, उनमें से कुछ खनन के लाभार्थी हैं!
बहरहाल, ऋतु खंडूड़ी की अजीबोगरीब भाषा और उनके अगल-बगल खड़े खनन लाभार्थियों की बात यदि किनारे रख दें तो भी यह गौरतलब है कि सत्ता पक्ष की विधायक और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बरसात में पुल टूटने के कारणों के तौर पर अवैध खनन को चिन्हित किया गया है. प्रश्न यह है कि अवैध खनन की जानकारी पुल टूटने के दिन ही तो विधानसभा अध्यक्ष को नहीं हुई होगी? अगर पहले से जानकारी थी तो क्या उन्होंने अवैध खनन रुकवाने की कोशिश की? अगर की तो क्या खनन माफिया, इतना ताकतवर है कि विधानसभा अध्यक्ष पर भारी पड़ा? यदि इतने बड़े पद पर रह कर भी वे अपने विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन को नहीं रुकवा सकती हैं तो फिर पद पर रहने का औचित्य क्या है?
लेकिन यह हकीकत है कि उत्तराखंड में अवैध खनन जम कर होता है. वर्तमान मुख्यमंत्राी पुष्कर सिंह धामी को तो गाहे-बगाहे विपक्ष खनन प्रेमी मुख्यमंत्राी कहता रहा है.
अवैध खनन की बात जो ऋतु खंडूड़ी आज कह रही हैं, वह बात भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी- कैग) भी कह चुके हैं. उत्तराखंड की विधानसभा के पटल पर 15 मार्च 2023 को रखी गयी सीएजी की रिपोर्ट में अवैध खनन के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत ब्यौरा दिया गया था.
सीएजी की रिपोर्ट का लिंक – https:èkèkcag.gov.inèkuploadsèkdownload_audit_reportèk2022èk7-Chapter-3-06421358cb686b5.89896190.pdf
कैग ने यह ऑडिट 2017-18 से 2021-22 के बीच देहरादून जिले की तीन खनन साइटों - ढकरानी, कुल्हाल और सौंग नदी का किया था. ये देहरादून जिले में खनन की 24 साइटों में से कुल तीन साइट हैं. लेकिन इनकी ही रिपोर्ट अवैध खनन के खेल पर से पर्दा उठाने को पर्याप्त है. कैग के ऑडिट के समय ये तीनों ही साइटें, लीज अवधि समाप्त हो जाने के कारण प्रयोग में नहीं थी. लेकिन कैग ने पाया कि तब भी इन तीनों स्थानों पर ताजा खनन के चिन्ह मौजूद थे. कैग के आकलन के अनुसार 57.11 लाख मीट्रिक टन का अवैध खनन इन तीनों स्थानों से हुआ और राज्य को 39.98 करोड़ रुपया राॅयल्टी में और 5.71 करोड़ रुपए का जीएसटी में नुकसान, उक्त तीन स्थानों पर अवैध खनन से हुआ.
खनन सामग्री के ढुलान में कैग ने भारी पैमाने पर गड़बड़ियों को पकड़ा. खनन सामग्री के ढुलान के लिए जिन वाहनों का उपयोग दर्शाया गया, उनमें से 2979 सरकारी वाहन श्रेणी के थे, 835 सवारी वाहन श्रेणी के और 2499 टैक्सी श्रेणी के. इन 6303 वाहनों में 3.74 लाख मीट्रिक टन लघु खनिज का ढुलान किया गया.
इसके अतिरिक्त 5.54 लाख मीट्रिक टन लघु खनिज का ढुलान ऐसे 60882 वाहनों में किया गया, जिनमें या तो वाहन का नंबर नहीं था या पिफर आउटडेटड सीरीज के नंबर थे.
एंबुलेंस, दो पहिया, तीन पहिया से लेकर पेट्रोल टैंकरों से तक खनन सामग्री का ढुलान दर्शाया गया.
कैग के अनुसार 720883 (सात लाख बीस हजार आठ सौ तिरासी) खरीददार, जिन्होंने 56,98,454.84 मीट्रिक टन खनन सामग्री खरीदी, की पहचान ही स्पष्ट नहीं थी, जिससे टीसीएस (टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स- स्रोत पर टैक्स वसूली) में बाधा उत्पन्न हुई.
कैग की रिपोर्ट कहती है कि खनन सामग्री के सबसे बड़े खरीददार सरकारी विभाग हैं, लेकिन अवैध खनन सामग्री के खरीददार भी सरकारी विभाग ही हैं. सीएजी ने पाया कि सरकारी विभागों ने लगभग 37.17 लाख मीट्रिक टन अवैध खनन सामग्री का उपयोग किया.
जहां भी निर्माण कार्य में बिना ई फाॅर्म के लघु खनिजों का इस्तेमाल हुए, वहां राज्य कार्यपालिका / निर्माण एजेंसियों ने 2107-18 से 2021-22 तक देहरादून जिले में 26.02 करोड़ रुपया राजकोष में राॅयल्टी का जमा किया. सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि इस सामग्री पर नियमानुसार राॅयल्टी का पांच गुना जुर्माना वसूला जाना चाहिए था. कैग का आकलन है कि ऐसा न करने के चलते सरकारी खजाने को कम से कम 104.08 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.
अवैध खनन को रोकने के लिए भारत सरकार और भारतीय खदान ब्यूरो ने एक माईनिंग सर्विलांस सिस्टम विकसित किया है. सीएजी के अनुसार उत्तराखंड सरकार ने इसके शुरू होने के पांच साल बाद भी इसका उपयोग शुरू नहीं किया है.
अपने रिपोर्ट के आखिर में कैग ने लिखा कि अवैध खनन रोकने के लिए जिम्मेदार विभाग जैसे कि जिला कलेक्टर, पुलिस, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला खनन विभाग, वन विभाग, गढ़वाल मण्डल विकास निगम, निर्माण एजेंसी यथा – पीडबल्यूडी आदि अपनी भूमिका निभाने में विफल रहे हैं.
गौरतलब है कि यह सीएजी की रिपोर्ट उस पांच वर्ष की अवधि की है जब उत्तराखंड में भाजपा की डबल इंजन की सरकार में तीन मुख्यमंत्री पदारूढ़ हो रहे थे. लेकिन रिपोर्ट से साफ है कि अवैध खनन रोकने के लिए कोई प्रभावी उपाय, राज्य सरकार की एजेंसियों ने नहीं किए. नतीजा सामने है कि भारी बरसात में पुल गिर रहे हैं तो सत्ता पक्ष के लोग ही अवैध खनन पर सवाल उठा रहे हैं. बिना सत्ता संरक्षण के अवैध खनन संभव नहीं है. कैग की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि कर रही है. अवैध खनन से राज्य को खोखला होने से बचाना है तो सत्ताधीशों को अवैध खनन करने वालों पर से अपना वरदहस्त हटाना होगा. लेकिन जब अवैध खनन की शिकायत भी अगल-बगल खनन के लाभार्थियों को खड़ा करके की जा रही हो, तब तो यह आकाश-कुसुम ही मालूम पड़ता है!