वर्ष - 32
अंक - 25
17-06-2023

- इन्द्रेश मैखुरी

उत्तराखंड में पुरोला का मामला पूरे देश में चर्चा में है, जहां पर 26 मई को एक नाबालिग युवती को एक मुस्लिम और एक हिन्दू युवक के साथ कुछ लोगों ने पकड़ा और फिर इसे लव जेहाद का मामला करार दिया गया. इस मामले में वहां दुकानों पर पोस्टर लगाए गए हैं कि अल्पसंख्यक दुकानें खाली कर के चले जाएं. अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग पुरोला छोड़ के चले भी गए हैं. पुरोला छोड़ के जाने वालों में भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उत्तरकाशी जिले के जिलाध्यक्ष जाहिद मालिक भी शामिल हैं. आज एक टीवी परिचर्चा में उनकी बात सुनी. उन्होंने अपनी पीड़ा बयान की. यह भी कहा कि वे दोबारा पुरोला जाने का साहस नहीं कर सकते. अपनी दुकान खाली करने की प्रक्रिया में अपनी पत्नी और दामाद के साथ अभद्रता की बात भी वे कहते हैं.

लेकिन भाजपा के संदर्भ में पूछने पर वे कहते हैं कि उन्हें भाजपा से कोई शिकायत नहीं है. वे अभी भी भाजपा में ही हैं, वोट भी भाजपा को ही देंगे! यह गजब है, व्यक्ति की गर्दन पर तलवार रखी हुई है, लेकिन वो कह रहा है कि भाई साहब, गर्दन भले ही काट दो पर हूं मैं आप ही के साथ! ये स्वेच्छा नहीं विवशता है, इस विवशता में यह आस भी है कि शायद क्या पता इसी बात पर गर्दन पर तलवार रखने वाले कुछ रहम करें!

ऐसी विवशता पुरोला में रह रहे उन अल्पसंख्यक परिवारों की भी होगी, जिन्होंने जाहिद मलिक के उस बयान का खंडन किया, जिसमें मलिक ने दुकान खाली करने के दौरान हुई अभद्रता का जिक्र किया था!

भाजपा अल्पसंखयक मोर्चे के कुछ पदाधिकारी बीते रोज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले. ज्ञापन देते हुए वे मुस्कुराते हुए नजर आ रहे हैं. अब इसके पीछे मजबूरी है या लाचारी, कह नहीं सकते, अपने समुदाय के कष्ट में होने के बाद खुश होना तो मुश्किल जान पड़ता है. खुश हैं तो उन पर तरस ही खाया जा सकता है!

लेकिन अल्पसंख्यकों की पीड़ा और भाजपा में उनकी हैसियत बयान की, उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष मजहर नईम नवाब ने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्रा में उन्होंने लिखा कि “हमारी स्थिति अपने समाज में भी दयनीय है और पार्टी में भी हम अपने समाज को नजदीक लाने में कामयाब न हो सके.....”. वाक्य के आखिरी हिस्से में यदि – पार्टी में – की जगह पर – पार्टी को – लिखा होता तो ज्यादा बेहतर होता! मजहर नईम नवाब तो प्रधानमंत्री से गुहार लगाते हैं कि “मुस्लिम समाज की भारतीय जनता पार्टी व सरकार से दूरी कम हो.....”! मुस्लिम समाज दूरी कम करना चाहे भी तो क्या होगा, मजहर भाई! पार्टी और सरकार की भी तो ऐसी चाहत होनी चाहिए! उनकी हालत तो यह है कि उन्हें पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा भी चाहिए, आरएसएस का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच भी चाहिए, लेकिन व्यापार, कारोबार, संपन्नता, रोजगार उसके हाथ में नहीं चाहिए बल्कि वह उजड़ा और लाचार चाहिए, मौके-बे-मौके पंचिंग बैग की तरह चाहिए!

सोशल मीडिया पर लोग ठीक ही लिखते हैं कि उन्हें मुसलमान तो कलाम जैसा चाहिए पर खुद वे गोडसे होना चाहते हैं!

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सरकार को ज्ञापन भेजा गया

विगत 9 जून 2023 को देहरादून, बागेश्वर, नैनीताल, ऋषिकेश, रामनगर, पौड़ी, टिहरी, कोटद्वार, अल्मोड़ा, चम्पावत, सल्ट, गोपेश्वर, गैरसैण, जोशीमठ, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, लालकुआं, हल्द्वानी, थराली, रुद्रपुर, भिकियासैण आदि जगहों से भाकपा(माले), माकपा, भाकपा, चेतना आंदोलन, उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, इंसानियत मंच, सर्वाेदय, जद (एस) आदि संगठनों द्वारा सरकार को ज्ञापन भेजा गया.

ज्ञापन में उत्तराखंड में भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद की सिलसिलेवार घटनाओं पर अफसोस जाहिर करते हुए उनमें शासन और प्रशासनिक मशीनरी की भूमिका की कठोर निंदा की गई है. ज्ञापन में पुरोला की घटना और उसमें कार्यवाही हुए आधा महीना बीत चुकने के बावजूद पुरोला और पूरी यमुना घाटी में तनाव का माहौल बनाए रखने के निरंतर जारी प्रयासों, निरंतर उग्र माहौल बनाए रखना और इसके लिए विभिन्न बाजारों को बंद रखने को एक सुनियोजित कार्यवाही बताया गया है जिसके निशाने पर अलसंख्यक समाज के वे लोग भी हैं, जिनका कोई अपराध नहीं है.

ज्ञपान में कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों की दुकानों पर दुकान खाली करने का पोस्टर चस्पां करना असंवैधानिक, गैरकानूनी और आपराधिक कृत्य है. इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए.

कहा गया है कि इससे पहले भी भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने में उत्तराखंड सरकार, प्रशासन और पुलिस का रवैया बेहद लचर रहा है. माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि नफरत भरे भाषण के मामले में पुलिस स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करे. उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक को उच्चतम न्यायालय का आदेश याद दिलाये जाने के बावजूद 20 अप्रैल को हनोल में हुई धर्म सभा में दिये गए नफरत भरे भाषणों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई. पुरोला मामले में भी पुलिस का कार्यवाही न करने वाला रुख कायम है. यह खुले तौर पर उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना है.यह कानून और संविधान के शासन के लिए बड़ा खतरा है.

ज्ञापन में यह मांग की गई है कि पुरोला में सामान्य स्थिति बहाल करने और निर्दाेष अल्पसंखयकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय किए जाएं. किसी को भी भीड़ हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति न दी जाए. साथ ही, राज्य सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने के अभियान को भी, जिस तरह से सांप्रदायिक विभाजन के औजार की तरह प्रयोग किया गया, उस पर भी तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए. उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नोडल अफसर नियुक्त करने के निर्देशों का तत्काल प्रभावी तौर पर अनुपालन सुनिश्चित करवाने की मांग की गई है.