- कुमार परवेज
पूरे देश की निगाह 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक पर है. अब तक की जानकारी के अनुसार विपक्ष की लगभग 18 पार्टियों ने बैठक में अपनी भागीदारी पर सहमति दे दी है. भाजपा राज में विगत 9 सालों से जारी तबाही-बर्बादी से मुक्ति के लिए भाकपा(माले) ने दो कार्यभारों को बहुत पहले सूत्रबद्ध किया था – (1). पूरे देश में चल रहे सभी छोटे-बड़े आंदोलनों को मोदी के फासीवादी शासन के खिलाफ एक व्यापक, संगठित व एकताबद्ध आंदोलन में तब्दील कर देना और (2). गैर भाजपा-गैर एनडीए दलों की व्यापक एकता का निर्माण करना.
यदि आंकड़ों का लेखा जोखा लिया जाए तो विपक्ष का बिखराव भाजपा की उपलब्धि का एक बड़ा कारण दिखता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज 37.36 प्रतिशत वोट मिले थे. देेश का बड़ा हिस्सा भाजपा के खिलाफ था. अब तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह कंपनी का और भी पतन हो चुका है. कर्नाटक में हार के साथ दक्षिण का द्वार उनके लिए बंद हो चुका है. मणिपुर को हिंसा की आग में झोंक दिया गया है. तेजी से गिरते ग्राफ ने मोदी की तानाशाही और अहंकार को और भी बढ़ा दिया है. स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं व मूल्यों की धज्जियां उड़ाकर अब वे एक राजा की तरह देश में शासन का सपना देख रहे हैं. छोटी पार्टियों को खत्म कर देने की खुलेआम धमकी दी जाती है. उन्माद-उत्पात और सांप्रदायिक हमलों के जरिए जनता को विभाजित करने और अंग्रेजो की फूट डालो-राज करो वाली नीति अपना ली है. हर दिन संविधान की हत्या की जा रही है. विपक्ष की सभी पार्टियों को निशाने पर लिया जा रहा है. ऐसे में सभी विपक्षी पार्टियों का एक मंच पर आना आज एक वस्तुगत आवश्कता बन गई है, जिसकी मांग लंबे समय से होती रही है. 23 जून का दिन इस लिहाज से एक महत्वपूर्ण दिन साबित होने वाला है.
विपक्ष की बन रही एकता की जब भी बात होगी, भाकपा(माले) के 11 वें महाधिवेशन की निश्चित रूप से चर्चा होगी. महाधिवेशन के अवसर पर 18 फरवरी 2023 को पटना के एस के मेमोरियल हाॅल में इसी सवाल पर एक राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन हुआ था, जिसमें पहली बार नीतीश कुमार और कांग्रेस के नेताओं को एक मंच पर आने का मौका मिला था. भाजपा से संबंध विच्छेद के बाद महागठबंधन में जदयू के आ जाने के बाद बिहार की राजनीति गुणात्मक रूप से बदली थी. उक्त बदलाव ने भाजपा के फासीवादी हमलों के खिलाफ एक नई उम्मीद पैदा की थी. बहरहाल, विपक्षी एकता का सवाल जहां का तहां ही अटका हुआ था. माले के कन्वेंशन ने ही इसका रास्ता खोला था. कन्वेंशन में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री श्री तेजस्वी प्रसाद यादव सहित कांग्रेस व हम (से.) के नेताओं को आमंत्रित किया गया था. कांग्रेस की ओर से पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद शामिल हुए थे.
माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने राष्ट्रीय कन्वेंशन में कहा था कि आज जब संविधान और लोकतंत्र की बुनियाद खतरे में है, तो देश को बचाने के लिए हम सबको एक निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी और इसके लिए व्यापक एकजुटता कायम करनी होगी. पहले दौर का आपातकाल आज के आपातकाल के सामने कुछ भी नहीं था. उस आपातकाल के दौरान बिहार से एक आवाज निकली थी. आज का आपातकाल स्थाई आपातकाल है. आजादी के समय ही आरएसएस ने कहा था कि भारत का संविधान मनुस्मृति है. आज संविधान को सामने रखकर पूरे देश को तहस-नहस किया जा रहा है. हमारे सारे अधिकारों को हड़पा जा रहा है. नागरिकों को प्रजा में तब्दील किया जा रहा है. हम सभी लोग अपने-अपने तरीके से लगातार कोशिश कर रहे है, लेकिन अब हम सबको मिलकर इस मुश्किल दौर का मुकाबला करना होगा. उन्होंने कहा था कि कन्वेंशन 2024 के लिए देश को एक बड़ा संदेश देगा.
मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने कन्वेंशन के मंच से कहा था कि भाजपा से अलग होने पर सभी ने स्वागत किया और अब जरूरत है कि अधिक से अधिक पार्टियों को एकजुट करके लोकसभा का चुनाव लड़ा जाए. यही वह रास्ता है जिसके जरिए भाजपा से देश को मुक्ति मिल सकती है. उन्होंने यह भी कहा था कि देश में व्यापक विपक्षी एकता का निर्माण हो, यह समय की मांग है. हम कांग्रेस के जवाब का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने तब मंच पर बैठे कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से कहा कि यह संदेश कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा दिया जाए. यदि हम सभी मिलकर चले तो भाजपा 100 के नीचे आ जाएगी. पूर्व विदेश मंत्री व कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने विपक्ष की एकता का संदेश पार्टी मुखिया के पास पहुंचाने की बात कही थी. कहा था कि कांग्रेस भी विपक्षी एकता बनाने के लिए तैयार है.
कन्वेंशन ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी. असम से लेकर तमिलनाडु तक के अखबारों में खबरें छपी थीं. अखबारों ने लिखा था-अपेक्षाकृत एक छोटी पार्टी होने के बावजूद भाकपा(माले) ने विपक्षी एकता में जारी गतिरोध को तोड़कर एक ऐतिहासिक काम किया. विपक्षी एकता की प्रक्रिया को नया आयाम और बल देने में भाकपा(माले) का वह कन्वेंशन इतिहास में दर्ज हो चुका है.
23 जून की बैठक के पहले पटना में भाकपा-माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान उक्त राष्ट्रीय कन्वेंशन की चर्चा की. कहा कि बातें उसी दिशा में बढ़ रही हैं. भाकपा-माले की चाहत है कि विपक्षी दलों की बैठक पूरी तरह सफल हो. यह पहली बार होगा कि अपने छोटे-मोटे अंतर्विरोधों को किनारा करके एक बड़ी मुहिम के खातिर विपक्ष की 18 पार्टियां बैठक में शामिल हो रही हैं. कहा कि इस बैठक से एकता की चल रही प्रक्रिया को एक नई गति मिलेगी. साथ ही, 23 जून की बैठक में उन एजेंडों पर भी चर्चा होगी, जिसपर विपक्ष के सभी दलों को साथ मिलकर चलना है.
इस बीच, बिहार में महागठबंधन भाजपा के खिलाफ अब एकताबद्ध आंदोलन में उतर चुका है. विगत 15 जून को मोदी सरकार की 9 साल की तबाही-बर्बादी, कमरतोड़ महंगाई व चरम बेरोजगारी, संवैधानिक संस्थाओं के दुरूपयोग, उन्माद-उत्पात की राजनीति और दलित-गरीबों की आवास एवं खाद्यान्न योजना बंद करने की साजिश के खिलाफ जाति आधारित गणना कराने, किसानों की आय दुगुनी करने और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पर महागठबंधन के आह्वान पर पूरे राज्य में प्रखंड मुख्यालयों पर धरना दिया गया, जिसमें जनता के विभिन्न हिस्सों की ऐतिहासिक गोलबंदी हुई. इस संयुक्त आंदोलन से महागठबंधन के सभी घटकों के कार्यकर्ताओं के बीच आपसी संवाद और नीचे की कार्रवाइयों में एकता बढ़ने से भाजपा के खिलाफ जमीनी स्तर पर चौतरफा माहौल बनने लगा है. भाकपा(माले) की शुरू से यह कोशिश रही है कि महागठबंधन केवल ऊपर-ऊपर न हो बल्कि जमीनी स्तर पर काम करे. 15 जून के कार्यक्रम में वही एकता दिखलाई पड़ी.