मिर्जापुर जिले के सदर तहसील क्षेत्र के दांती कोटवा पांडे में करीब तीन सौ घर दलित गरीब आदिवासी करीब सत्तर साल पूर्व से सिंचाई विभाग की जमीन पर बसे हैं. सिंचाई विभाग कानूनी तरीके से उनको यह जमीन पट्टे पर देता रहा है. इस पट्टे की अवधि पांच साल की होती रही है और हर पांच साल के अंतराल पर उसका नवीनीकरण होता रहा है. इस बीच कई लोगों ने जमीन पर रिहायशी बसा ली, घर-मकान बना लिये और आवाद हो गये. लेकिन सन् 2000 के बाद से जमीन का पट्टा देना बंद हो गया.
इसी बीच राज्य सरकार ने इस जमीन को विश्वविद्यालय बनाने के लिए एलाॅट कर दिया. गरीब दलित आदिवासी पहले से भी इस जमीन पर आवासीय पट्टा देने की मांग करते रहे हैं. इस वर्ष मई महीने से ही प्रशासन लगातार उन पर इस जमीन को खाली करने का दवाव बनाते रहा है. मिर्जापुर के जिलाधिकारी ने भी जब इस गांव व स्थल का दौरा किया था तो गरीबों ने आवासीय पट्टा और आवास देने की मांग उठाई और तब उन्होंने आश्वासन दिया था कि उचित पुनर्वास के उनको हटाया नहीं जायेगा. 2 जून 2023 को पटेहरा प्रखंड (ब्लाॅक) मुख्यालय पर हुई बैठक में यह तय हुआ कि 5 जून को एक प्रतिनिधिमंडल मिर्जापुर के जिलाधिकारी से मुलाकात करेंगा. उस दिन 25-30 की संख्या में लोग वहां पहुंचे भी, लेकिन जिलाधिकारी मौजूद नहीं थे. लोगों ने नगर मजिस्ट्रेट को अपना ज्ञापन सौंपा.
उसी दिन शाम को यह पता चला कि सिंचाई विभाग के अधिकारी घर-मकान गिराने के लिए मुनादी करवा रहे हैं. जब लोगों ने उनका विरोध किया तो वे वापस लौट गए. उसी रात में करीब 100 ग्रामीणों की एक बैठक हुई जिसमें भाकपा(माले) जिला सचिव रामप्यारे राम और अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा की जिलाध्यक्ष जीरा भारती भी पहुंचीं. बैठक में प्रशासन की कोशिशों को नाकाम करने की योजना बनाई गई और यह तय किया गया कि सभी घरों का हर सदस्य इस संघर्ष में शामिल हो तथा अगल-बगल के साथियों को खबर देकर बुलाया भी जाये. 6 जून को 11 बजे दिन में सिंचाई विभाग के अधिकारी और एसडीएम सदर भारी पुलिस बल लेकर पहुंचे. करीब 100 की संख्या में गरीबों को तत्काल गोलबंद कर खेग्रामस जिलाध्यक्ष जीरा भारती, भाकपा(माले) जिला सचिव रामप्यारे राम और ब्रांच सचिव राममूर्ति के नेतृत्व में ‘गरीबों को आवासीय पट्टा दो’, ‘आवास-पुनर्वास की व्यवस्था करो’, ‘गरीबों के घरों पर बुल्डोजर चलाना बंद करो’, ‘जबरिया बेदखली नहीं सहेंगे’. ‘योगी का बुल्डोजर राज नहीं चलेगा’ आदि नारों के साथ मार्च निकालकर जेसीबी के सामने पहुंच गए. वहां पुलिस से तीखी झड़प हुईं. इसी बीच एसडीएम सदर सामने आये और उनके समक्ष मांगपत्र प्रस्तुत करते हुए पहले आवास पुनर्वास करने और बाद में बेदखली करने की मांग उठाई गई. एसडीएम ने सिर्फ तीन लोगों को भूमिहीन मानते हुए पट्टा देने की बात कही और शेष लोगों को बाहरी बताया. लेकिन जब उनकी इस बात का तीखा विरोध हुआ तो वे जिनको पट्टा देने की बात कह रहे थे, उनका भी घर उजाड़ने की कार्रवाई में आगे बढ़ गये. जब उनकी इस कार्रवाई का विरोध किया गया तो ‘सरकारी कामकाज में बाधा डालने’ का आरोप लगाते हुए उन्होंने पुलिस बल को सबको गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया और जब पुलिस आगे नहीं बढ़ी तो एसडीएम खुद पुलिस की भूमिका में आकर लोगों को मारने-पीटने लगे. उन्होंने का. जीरा भारती का मोबाइल छीन लिया और उनकी बांह पकड़ कर उनको जमीन पर गिरा दिया. बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज कर लोगों को तितर-बितर करने के बाद पुलिस का. जीरा भारती, का. रामप्यारे राम, का. राममूर्ति और अमरेश कोल व दुर्जन मांझी को गिरफ्तार करने में कामयाब हो पायी. उन्हें मड़िहान थाना ले जाया गया जहां से देर रात को उनको रिहा किया गया. इस बीच पुलिस व प्रशासन ने मिलकर करीब 50-60 घरों को बुल्डोज कर दिया और कच्चे व खपरैल षरों तथा रिहायशी झोपड़ियों को गिरा दिया. गिरफ्तार लोगों को आइपीसी की धारा 151,107 व 116 में जमानत लेनी पड़ी.
7 जून को अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के सम्मानित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी और भाकपा(माले) राज्य सचिव सुधाकर यादव के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय जांच दल दांती कोटवा पांडे गांव में पहुंचा. जांच दल ने सिंचाई विभाग की ऐसी ही एक हजार बिघा जमीन पर कब्जा कर फार्म हाउस और मंदिर के नाम सैकड़ों बिघा जमीन पर अवैध कब्जा जमाये बैठे भैया जी को उजाड़ने व उनका अवैध कब्जा हटाने के बजाये गरीबों की झोपड़ियां उजाड़ने पर कड़ी आपत्ति जताई. 8 जून को उजाड़े गए गरीबों ने सैकड़ों की तादाद में जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन को खेग्रामस के सम्मानित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी ने भी संबोधित किया तथा जिलाधिकारी से मुलाकात कर गरीबों को आवास-पुनर्वास देने की मांग उठाई. जिलाधिकारी ने फिर से एक बार भूमिहीन गरीबों, दलितों व आदिवासियों को जमीन व आवास देने का भरोसा दिया. भाकपा(माले) का जांच दल ने कोटवा पांडे गांव पहुंचकर पीड़ित परिवारों से मुलाकात भी की.
जांच पड़ताल में यह बात सामने आई कि सिंचाई विभाग जहां एक ओर गरीबों, दलितों व आदिवासियों से भारी धन उगाही कर हर पांच साल के लिए पट्टा देता रहा है. उसने हर साल टैक्टर ट्राली में भर-भर कर अनाज की उगाही करने के साथ ही राजस्व और सुविधा शुल्क करोड़ों रुपए बनाये हैं तथा इस दौरान गरीबों का शारीरिक और मानसिक शोषण भी करता रहा है. इस खेल में पतरौल सींचपाल व जिलेदार से लेकर सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता सीधे तौर पर शामिल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ एस. एन. फाउडेशन के नाम परे सिंचाई विभाग की हजारों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा कर अपना फार्म हाउस वना लेनेवाले आई जी जैसे भू-माफिया के खिलाफ उसने आंखें मूंद रखी है. विश्वविद्यालय बनाने के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन खाली है लेकिन गरीबों की बस्तियों को उजाड़कर प्रशासन विश्वविद्यालय बनाने पर आमादा है. वहीं हल्का लेखपाल ने भी जमीन की नवईत बदलने को लेकर 10 हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक की वसूली की. प्रशासन ने लेखपाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है लेकिन इतना ही काफी नहीं है. इस खेल में शामिल एसडीएम सदर के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिये.