वर्ष - 32
अंक - 20
13-05-2023

बिहार के भोजपुर जिले के अगिआंव विधानसभा क्षेत्र के गांवों – मेहन्दौरा, डेढ़ुआ, मिल्की टोला, किरकिरी, अजीमाबाद और चिलहर के सैकड़ों छात्र-छात्राओं व अभिभावकों ने खेग्रामस (अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा) के नेतृत्व में  विगत 4 मई 2023 को ‘सड़क पर स्कूल आंदोलन’ आयोजित किया. सैकड़ों छात्र-छात्रायें व अभिभावक ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन में संगठित हुए.

किस तरह चली कार्यवाही

सबसे पहले स्कूल की घंटी बजी. पहली घंटी में प्रार्थना और राष्ट्र गान हुए और वर्ग आधारित शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाया. हाई स्कुल, करवासिन के प्रधानाध्यापक श्री भूषण कुमार सिंह ने विज्ञान, कोचिंग संचालक सूरज कुमार ने संस्कृत और अंग्रेजी, शिक्षक मंजय कुमार ने गणित और शेफाली कुमारी ने जनरल स्टडीज का क्लास लिया. जनगीतकार कृष्ण कुमार निर्माही और गायक राजू रंजन ने म्यूजिक टीचर के रूप में बच्चों को गाना गाना सिखाया. चिलहर हाई स्कुल की 9वीं कक्षा की छात्रा शिखा कुमारी ने देशभक्ति गीत गाया. इसी क्रम में सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिता भी आयोजित हुई और उतीर्ण छात्र-छात्राओं को कलम, डायरी और शब्दकोश देकर पुरस्कृत किया गया.

वहां मौजूद सभी छात्र-छात्राओं ने शपथ ली कि हम सभी जो इस देश की नई पीढ़ी हैं, नया खून और भविष्य हैं. हमारे भविष्य के साथ पटना और दिल्ली की सरकारें खिलवाड़ कर रही हैं. इसलिए, हम अपने स्कुल में बेहतर पढा़ई, अपने भविष्य और अपने सपनों के लिए एकता बनाकर लड़ेंगे और जीतेंगे. हम सरकार को अपने शिक्षा के मौलिक अधिकार, अपने भविष्य, अपनी जिंदगी और अपने सपनों से खेलने नहीं देंगे.

सड़क पर स्कूल आंदोलन में मौजूद छात्रा अंजली कुमारी ने कहा – ‘हमारे गांव मेहन्दौरा में स्कूल बनवा दीजिए सर, हमारे छोटे-छोटे भाई-बहन स्कूल नहीं जा पाते.’ मिल्की टोला के अभिभावकों ने बताया कि उनके गांव में स्कूल  नहीं है. दो किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में बच्चों के लिए जाना संभव नहीं है. हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. इस वजह से छोटे-छोटे बच्चे पढ़ नहीं पाते.

चिलहर हाई स्कूल,की छात्रा शबनम परवीन ने बताया कि उनके स्कूल में शौचालय नहीं है. शौचालय नहीं होने से विद्यार्थी पानी नहीं पीते ताकि उन्हें बाथरूम न जाना पड़े.

आंदोलन में शामिल बच्चों ने मध्यावकाश में अपने घर से लाया खाना भी खाया. आयोजकों ने उनको बिस्किटें समोसे खिलाये. बच्चों के हाथ में किताबों के साथ-साथ अपनी मांगों के समर्थन में लिखे नारों के प्लेकार्डस भी थे जिनमेंं स्कूल भवनों के निर्माण, हर विषय के शिक्षकों की नियुक्ति आदि के अलावा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने, शिक्षकों को राज्य कर्मचारी घोषित करने, 7वें चरण की शिक्षक बहाली करने की मांग के नारे लिखे थे. साथ ही, डॉ. अम्बेडकर के ‘शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो’ का आदर्श वाक्य भी लिखा हुआ था.

पिछली सदी के आखिरी दशकों में वहां की जनता ने समाज में मान-सम्मान हासिल करने और वोट देने के अधिकार समेत अपने तमाम सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी और सामंती ताकतों को धूल चटाते हुए इन्हें हासिल किया था. इसी कड़ी में आज वे अपने बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं.

यूडीआइएसई की रिपोर्ट (2019-20) के अनुसार पूरे देश में 25% बच्चे दसवीं कक्षा से पहले पढाई छोड़ देते हैं दलित समुदाय के 35% बच्चे, आदिवासी समाज के 39% बच्चे और अल्पसंख्यक समुदाय के 23% के बच्चे इनमें शामिल हैं. बिहार की स्थिति और दयनीय है जहां 59% बच्चे दसवीं के पहले पढाई छोड़ देते हैं. दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के क्रमशः 61%, 80% और 37% बच्चे इनमें शामिल हैं. सरकारी विद्यालयों में आर्थिक रूप से कमजोर दलित-गरीब परिवारों के बच्चे ही पढ़ते हैं. इसलिए उनके भविष्य की चिंता सरकारों को नहीं है. ऐसी ही स्थिति में ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन शुरू हुआ. यह आंदोलन गांव के विभिन्न समुदायों और पार्टियों के बीच के फर्क को मिटाते हुए लोकप्रिय होते जा रहा है.

कैसे हुई तैयारी

भाकपा(माले) पोलित ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य का. स्वदेश भट्टाचार्य, स्थानीय भाकपा(माले) विधायक मनोज मंजिल, और खेग्रामस के रास्ट्रीय पार्षद दसई राम ने पिछले दिनों मेहन्दौरा गांव का, जहां पर 14 साल पहले स्कुल बनने का काम शुरू हुआ था लेकिन अबतक पूरा नहीं हुआ, दौरा किया. सरकारी फाइलों में भी इस स्कुल का नामोनिशान मिट चुका था. कई दौरों के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी को उस गांव में बुलाया गया. इसके बाद सरकारी कागजों में इस स्कुल का अस्तित्व तो बना लेकिन यह धरातल पर नहीं उतरा. मेहन्दौरा, डेढ़ुआ और मिल्की टोला में जमीन मुहैया करा कर वर्ग भवन निर्माण और जर्जर हो चुके कन्या उर्दू प्राथमिक विद्यालय, अजीमाबाद के नये वर्ग भवन के लिए बिहार विधानसभा के बीते बजट सत्र में स्थानीय विधायक का. मनोज मंजिल ने इस सावल को जोरदार तरीके से उठाया, जिलाधिकारी व जिला शिक्षा पदाधिकारी के साथ कई बैठकें कीं और मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव से पत्र-व्यवहारकिया. फिर भी इस दिशा में शिक्षा विभाग और सरकार के जरिये कोई पहलकदमी नहीं होते देख स्कूली छात्र-छात्राओं और अभिभावकों को संगठित कर ‘सड़क पर स्कुल आन्दोलन’ का निर्णय लिया गया. इसके लिए गांव-गांव में अलग अलग छात्रों, छात्राओं, महिलाओं, नौजवानों और अभिभावकों की बैठकें की गई. मेहन्दौरा, डेढ़ुआ, मिल्की टोला, किरकिरी, अजीमाबाद और चिलहर की बैठकों में पचासों की संख्या में महिलाओं व लड़कियों ने भाग लिया. मुस्लिम समुदाय की महिलाओं व बच्चियों ने भी जो आम बैठकों में नहीं आती थीं, इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. यहां तक कि भूस्वामियों के घर की स्कूली लड़कियां भी ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन में भाग लेने के लिए आपने गांव से बाहर निकलीं. चिलहर और करवासिन के हाई स्कुल के बच्चों के बीच भी अभियान चलाया गया. चिलहर हाईस्कूल के छात्रों ने बताया कि हाई स्कुल में न घंटी बजती है और न हाजरी बनती है, पढाई भी 2-3 घंटी हो होती है वह भी अनियमित. स्कूल में शौचालय नहीं है. क्लास रूम धूल से अंटा हुआ रहता है. स्कूल में नामांकन व प्रैक्टिकल आदि के नाम पर अवैध वसूली की जाती है. प्रैक्टिकल का नंबर देने में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव किया जाता है. करवासिन हाई स्कूल में मात्र एक शिक्षक हैं जो स्कूल के प्रधानाध्यापक भी हैं. उनको भी जनगणना सहित अन्य सरकारी कामों में व्यस्त रखा जाता है. वे ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन में शामिल हुए जहां उन्होंने 7 घंटी की पढाई सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त शिक्षकों की मांग उठायी.  करबासिन  हाई स्कुल में वर्ग भवन के सामने एक बड़ा-सा गड्ढा है बच्चे कई बार उसमें गिर जाते हैं, हमेशा किसी दुर्घटना की संभावना बनी रहती है. अगर उसे भर दिया जाये तो वह खेल के मैदान के रूप में विकसित हो सकता है.

खेग्रामस की टीम ने लगातार चार दिनों तक कई गाँव में कैम्पेन किया और इस दौरान प्रतिदिन सात से आठ बैठकें आयोजित कीं. छात्राओं, छात्रों, पुरुषों व महिलाओं की अलग-अलग बैठकें आयोजित की गईं.

अजीमाबाद के मदरसा मुहल्ला ने ‘सड़क स्कूल आंदोलन’ में आर्थिक सहयोग जुटाया. मिल्की टोला गांव में भी घर-घर चंदा हुआ. डेढ़ुआ टोला भी पीछे नहीं रहा. दुकानदारों ने आंदोलनरत छात्र-छात्राओं के लिए पीने के पानी का इन्तजाम किया.

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अगिआंव के डॉक्टर, नर्स व स्वास्थ्यकर्मी एम्बुलेंस और बेसिक दवाओं के साथ पूरे आंदोलन के दौरान मौजूद रहे जिन्होंने बच्चों को ग्लूकोज समेत पानी मुहैया कराया.

शाम तक जब कोई अधिकारी नहीं आया तो दुकानदार अपनी-अपनी दुकाने बंद कर आंदोलन में शामिल हो गए. किरकिरी-अजीमाबाद के अभिभावक भी बड़ी संख्या में आंदोलन में शामिल हुए.

लगातार 12 घंटे तक चले इस ‘सड़क पर स्कूल आंदोलन’ से लगभग पांच किमी. तक गाड़ियों की लंबी लाइन लग गई. बच्चों, उनके अभिभावकों और आम जनता के आक्रोश के सामने ब्लॉक प्रशासन को झुकना पड़ा और आंदोलन स्थल पर पहुंच कर आंदोलनकारियों से वार्ता करनी पड़ी.

रात्रि के आठ बजे जब सर्व शिक्षा अभियान के कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचलाधिकारी और कनीय अभियंता आंदोन स्थल पर पहुंचे तो बच्चों ने उनकी जमकर क्लास लगाई. बच्चों ने कहा – ‘आप इतने बेशर्म और बेरहम कैसे हो सकते हैं? हम 10 घंटे से सड़क पर बैठे हैं लेकिन हमें कोई पूछने तक नहीं आया.’ छात्राओं ने कहा – ‘आपको कुर्सी पर बैठने का अधिकार नही है. सुबह 10 बजे से हम लोग सड़क पर हैं और आपलोग रात 8 बजे आ रहे हैं. अगर आपकी बेटी सड़क पर बैठी रहती तब भी आप इतनी देर से आते?

अधिकारियों द्वारा क्षमा मांगने के बाद वार्ता शुरू हुई. मांगपत्र के एक-एक सवाल पर चर्चा करने और स्कूल बनाने का आश्वासन पाने के बाद स्कूल की छुट्टी की घोषणा हुई. प्राथमिक विद्यालय, मिल्की टोला और अनुसूचित जाति प्राथमिक विद्यालय, डेढ़ुआ के जमीन की एनओसी मिली. सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ ने हाई स्कूल, चिलहर के निर्माण कार्य को हाथ में लेने की घोषणा की. अधिकारियों ने कहा कि एक महीने के अंदर प्राथमिक विद्यालय, मेहन्दौरा का निर्माण कार्य और संचालन शुरू होगा.

आंदोलन में भाकपा(माले), राजद, जद-यू और बीजेपी के जनाधार के बच्चे और अभिभावक भी शामिल हुए. ऊंची जातियों (राजपूत 10 परिवार और  ब्राह्मण 6 परिवार) की लड़कियां भी आन्दोलन में डटी रहीं.

‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन  को आंदोलन में अगिआंव विधायक का. मनोज मंजिल, भाकपा(माले) केंद्रीय कमिटी के सदस्य राजू यादव, अगिआंव अंचल सचिव रघुवर पासवान, संदेश अंचल सचिव संजय कुमार, भाकपा(माले) जिला कमिटी सदस्य का. दसई राम, खेग्रामस जिला सचिव का. जीतन चौधरी, नागेंद साव, भोला यादव, विष्णु मोहन, सुनील पासवान, जय कुमार यादव, किरकिरी मुखिया प्रतिनिधि सज्जाद अनवर, अंजय मेहता, प्रोफेसर डा. दूधनाथ चौधरी आदि ने संबोधति किया. अगिआंव विधायक का. मनोज मंजिल ने कहा कि  सरकार शिक्षा व रोजगार जैसे देश के बुनियादी सवालों से लोगों का ध्यान हटा रही है. बिहार के लगभग सभी सरकारी विद्यालयों बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. शौचालय तो शायद ही कहीं हो. ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है. साल खत्म होने को है लेकिन विद्यालयों में बच्चों को किताबें नहीं मिलीं और सबसे शर्मनाक यह है कि बिना किताबों के ही बच्चों से छमाही परीक्षा ली गई है. सरकार शिक्षा के बाजारीकरण-निजीकरण की अपनी नीति के तहत सरकारी विद्यालयों को पंगु बनाना चाहती है जिससे दलित, गरीब, अल्पसंख्यक व किसान-मजदूर परिवार के बच्चों का मानसिक-बौद्धिक स्तर गिरा रहे. सरकार बच्चों को शिक्षा के अधिकार से बेदखल कर रही है. अगर सरकार का यही रवैया जारी रहा तो आने वाले दिनों में छात्र-नौजवान जिले की सभी सड़कों और प्रखंड कार्यालयों को ही अपना स्कूल बनाएंगे.

सड़क पर स्कूल आंदोलन.की मांगें क्या थीं

प्राथमिक विद्यालय, मेहन्दौरा व अनुसूचित जाति प्राथमिक विद्यालय, डेढ़ुआ में क्लास रूम का निर्माण तथा न्यू प्राथमिक विद्यालय, मिल्की टोला को जमीन मुहैया कर क्लास रूम  निर्माण और जर्जर हो चुके कन्या उर्दू प्राथमिक विद्यालय, अजीमाबाद का नया वर्ग भवन निर्माण.

सभी स्कूलों में 7 घंटी पढ़ाई और नियमित रूप से वर्ग संचालन, पीने के पानी, शौचालय और मूलभूत सुविधाओं की गारंटी.

हाई स्कूल करबासिन में मात्रा एक शिक्षक हैं. छात्राएं फर्श पर बैठती हैं. शौचालय की स्थिति शर्मसार करने वाली है. इन समस्याओं का निराकरण हो. स्कूल के सामने जो गड्ढा है उसे भर कर खेल मैदान का निर्माण कराया जाए,

शालिग्राम हरगौरी उच्च विद्यालय, चिलहर में उर्दू, हिंदी व संस्कृत के शिक्षक नहीं हैं. कंप्यूटर की पढ़ाई नहीं होती. स्कूल में हाजिरी तक नहीं लगती है. दो से तीन घंटी ही पढ़ाई होती है. छात्र-छात्राओं और अभिभावकों की शिकायत है कि स्कूल में छात्र-छात्राओं से नामांकन व प्रैक्टिकल आदि के नाम पर अवैध वसूली की जाती है. अवैध वसूली पर रोक लगाई जाये. छात्र-छात्राओं से अवैध वसूली की राशि लौटाई जाए. प्रैक्टिकल के नंबर देने में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव किया जाता है. स्मार्ट क्लास नहीं चलता. हाई स्कूल में हिंदी व अंग्रेजी व्याकरण की पढ़ाई नही होती.

उर्दू मिडिल स्कूल, अजीमाबाद उर्दू विषय की छात्राएं फर्श पर बैठती हैं. उनके लिए बेंच-डेस्क की व्यवस्था की जाए. स्कूल में गणित के शिक्षक नहीं है. पेयजल की समस्या है. एक चापाकल लगाया जाए. स्कूल के गेट से बालू घाट का रास्ता जाता है जिससे हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. बालू घाट से जो धूल उड़ती है, वह बच्चों व शिक्षकों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है. अतः गेट के सामने से बालू घाट का रास्ता बंद किया जाए.

सुरूचि, प्रियंका, सुमन, काजल, ज्योति, पिंकी, शाहीन, राजकुमारी, अंजलि, निक्की, अनु, रौशनी परवीन, सूफी शाहीन, आसिया परवीन, तानिया परवीन, नेहा परवीन, अर्चना, आराधना, शबनम परवीन, रोजी परवीन, लालमुनी, प्रिया, नेहा, मुस्कान परवीन, सुष्मिता, काजल, प्रीति, सानिया परवीन, निकहत परवीन (अजीमाबाद) तथा जानकी, जाहन्वी, सोनाली, आनंद कुमार, अनुराग, आकाश, विकास, नीरज, दीपक, निभा, विनीता, सोना कुमारी (मिल्की टोला) सहित सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया.

– मनोज मंजिल

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