अरवल जिले के भदासी कांड में 22 सालों से जेल में बंद टाडाबंदियों के परिजन विगत 28 अप्रैल 2023 को पटना पहुंचे. उन्होंने वीरचंद पटेल स्थित विधायक आवास के परिसर में भाकपा(माले) के बैनर तले आयोजित एक दिवसीय धरना में शामिल होते हुए बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार से पूछा कि आखिर उनके साथ ही अन्याय क्यों? 14 साल सजा की अवधि काट चुके लोगों को तो छोड़ दिया गया लेकिन 22 साल से जेल में बंद टाडाबंदियों को रिहा नहीं किया जा रहा. यह हमारे साथ अन्याय नहीं तो और क्या है? धरना में भाकपा(माले) के विधायकों के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेतागण भी शामिल हुए. टाडाबंदियों के परिजनों ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि उनके साथ न्याय किया जाए.
भदासी कांड के तहत राज्य के विभिन्न जेलों में बंद 14 टाडाबंदियों में से अब तक 6 की मौत जेल में ही हो चुकी है. एक टाडाबंदी त्रिभुवन शर्मा को 2020 में पटना उच्च न्यायालय के आदेश से रिहा भी किया जा चुका है, लेकिन शेष 6 टाडाबंदी – जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम चौधरी और लक्ष्मण साव अब भी जेल में ही हैं. इन सभी टाडाबंदियों के परिजन धरना कार्यक्रम में शरीक हुए.
टाडाबंदी जगदीश यादव की पत्नी पुष्पा देवी ने धरना को संबोधित करते हुए कहा कि उनके पति को गलत तरीके से टाडा में फंसाया गया था. वे पटना में डाॅक्टरी का काम करते थे. उनके जेल जाने के बाद हमारा पूरा परिवार बिखर गया. जगदीश जी की उम्र 70 साल की हो चुकी है. हम उम्मीद कर रहे थे कि उनके जीवन के आखिरी पल हमारे साथ गुजरेगा. लेकिन सरकार ने हमें निराश किया है. पुष्पा देवी के अलावा अभी भी जेल में बंद चुरामन भगत की पत्नी लालपरी देवी, श्याम चौधरी की पत्नी पानपती देवी, अजित साव के परिजन, लक्ष्मण साव का नाती मनीष तथा अरविंद चौधरी की पत्नी फूलना देवी भी धरना में शामिल हुए. इस मामले में एक मात्र रिहा किए गये टाडाबंदी त्रिभुवन शर्मा भी धरना में शामिल हुए.
दिवंगत टाडाबंदियों क्रमशः सोहराई चौधरी के पुत्र टेमी चौधरी, महंगू चौधरी की बहू कोसमी देवी, बालेश्वर चौधरी की पत्नी रामरति देवी, मदन सिंह के पुत्र शिवराज तथा शाह चांद की पत्नी जमीला खातून व पुत्र शाह शाद तथा माधो चौधरी की पत्नी शिवसती देवी भी धरना में शामिल रहीं.
धरना में भाकपा(माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम व उपनेता सत्यदेव राम समेत अन्य विधायकों – अरूण सिंह (काराकाट), महानंद सिंह (अरवल), गोपाल रविदास (फुलवारी), संदीप सौरभ (पालीगंज), मनोज मंजिल (अगिआंव), रामबलि सिंह यादव (घोषी), सुदामा प्रसाद (तरारी) व वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता (सिकटा) ने हिस्सा लिया. ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, शशि यादव, वरिष्ठ पार्टी नेता केडी यादव आदि भी धरना में शामिल हुए तथा उसे संबोधित किये.
विधायक दल नेता महबूब आलम ने कहा कि बिहार सरकार ने हाल ही में 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया, लेकिन यह रिहाई चुनिंदा लोगों की हुई है. 14 साल वाले को रिहा किया जा रहा है लेकिन 22 साल वालों को नहीं. यह कहीं से न्यायोचित नहीं है. सभी टाडाबंदी दलित-अतिपिछड़े समुदाय के गरीब-गुरबे हैं. सरकार को उनकी रिहाई की गारंटी करनी चाहिए.
अरवल विधायक महानंद सिह ने कहा कि हमारी पार्टी ने भदासी कांड के टाडाबंदियों की रिहाई के सवाल पर विगत दिनों मुख्यमंत्री से दो-दो बार मुलाकात की थी. विदित हो कि 1988 की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में 14 निर्दाेष लोगों को फंसा दिया गया था और उनके ऊपर जनविरोधी टाडा ऐक्ट उस वक्त लगा दिया गया. वह भी तब जब वह पूरे देश में निरस्त हो चुका था. फिर 2003 में सभी को आजीवन कारावास की सजा भी सुना दी गई.
इन टाडाबंदियों ने 22 साल से अधिक की सजा काट ली है. सबके सब बूढ़े व बीमार हैं और इसकी प्रबल आशका है कि उनमें कुछ और की मौत हो जाए. इन 6 टाडाबंदियों में तीन फिलहाल अस्पताल में भर्ती हैं. हम आज के धरना कार्यक्रम के माध्यम से हम सरकार से 22 साल से जेल में बंद टाडाबंदियों की रिहाई के सवाल पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आग्रह करते हैं और उनको रिहा करने की मांग दुहराते हैं.
उन्होंने कहा कि भाकपा(माले) टाडाबंदियों की रिहाई की मांग पर आनेवाले दिनों में एक राज्यव्यापी व धारावाहिक आंदोलन छेड़े्रगी.
भाकपा(माले) राज्य सचिव कुणाल ने टाडाबंदियों की रिहा नहीं किए जाने पर विगत 27 अप्रैल 2023 को बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा है और इस मांग पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की अपनी मांग फिर से दुहराई है. कैदियों की रिहाई में बरती गई अपारदर्शिता के खिलाफ 22 सालों से जेल में बंद सभी टाडाबंदियों की रिहाई की मांग की गई है.
उन्होंने अपने पत्रा में कहा है कि बिहार सरकार ने हाल ही में 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया, लेकिन यह रिहाई सिर्फ चुनिंदा लोगों की हुई है. जिसके कारण आम जनमानस में कई प्रकार के संदेह उत्पन्न हो रहे हैं. सवाल यह है कि जब सरकार 14 साल की सजा वाले कैदियों को छोड़ सकती है तो 22 साल वाले कैदियों को क्यों नहीं?
उन्होंने मुख्यमंत्री से रिहाई के आदेश को पारदर्शी बनाने तथा 22 साल से जेल में बंद टाडाबंदियों की रिहाई के सवाल पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए उनकी रिहाई की मांग दुहराई है.