- देवकीनंदन बेदिया
हजारीबाग जिला (झारखंड) के उत्तरी कर्णपुरा के पश्चिमी क्षेत्र के गोन्दलपुरा पंचायत के किसान अडानी, एनटीपीसी और जेएसडब्ल्यू कंपनियों को एक ईंच जमीन न देने और विस्थापन का विरोध करने का सामूहिक संकल्प लेकर लगातार धरना दे रहे हैं. ग्रामीणों के धारावाहिक धरना में शामिल होकर वामपंथी दलों के नेताओं ने उनसे देश में चल रहे आंदोलनों के साथ एकरुप होकर बड़ा जनांदोलन चलाने का आह्वान किया.
उत्तरी कर्णपुरा क्षेत्र वर्तमान हजारीबाग जिला के पश्चिमी-दक्षिणी क्षेत्र में अवस्थित है. बड़कागांव, केरेडारी और चतरा जिला के पूर्वी क्षेत्र के टंडवा प्रखंड के कुछ आंशिक इलाकों को मिला कर उत्तरी कर्णपुरा क्षेत्र बनता है. इसके अंतर्गत मुख्यतः बड़कागांव विधानसभा तथा हजारीबाग और चतरा लोकसभा क्षेत्र के कुछ हिस्से आते हैं. यह क्षेत्र प्राकृतिक व भौगोलिक रुप से बहुत ही मनोरम है. चारों तरफ विशाल घने बहु उपयोगी पेड़-पौधों से भरा हुआ और पहाड़ों, पठारों व जंगलों से घिरा हुआ है. इसके बीच-बीच में मैदानी क्षेत्रों की लंबी-लंबी पट्टियां हैं जिसकी मिट्टी कृषि के मामले में बहुत ही उर्वर व उपजाऊ है. यहां के किसान सालों भर विभिन्न फसलों की खेती करते हैं और खुशहाल रहते हैं. पठारों-पहाड़ों और वनों के कारण यहां वर्षा भी अच्छी होती है. इन पठारों-पहाडों से छोटी-बड़ी़े 22 नदियां निकलती है जो जीवन और कृषि के लिए बहुत ही सहायक हैं. इन नदियों के जल को सिंचाई के काम में लाया जाता है और साल में दो-तीन बार फसलें उपजाई जाती हैं. यह क्षेत्र वन संपदा व पशु-पक्षियों से भरा पड़ा है. यहां हाथियों का कॉरीडोर भी बना हुआ है जहां से हाथी आना जाना करते हैं. यह धरती अपने गर्भ में कोयला सहित अन्य खनिज संपदाओं को धरण करती है. यहां प्राकृतिक का पर्यावरण भी स्वच्छ है.
यह क्षेत्र ऐतिहासिक रुप से और भी महत्त्वपूर्ण है. इसी क्षेत्र में इस्को पहाड़, महोदी पहाड़, केल्हुआ पहाड़, पकरी-बरवाडीह पहाड हैं. इन पहाड़ों में दर्जनों गुफाएं हैं जो आदिमानव का बसेरा हुआ करती थीं. गुफाओं की चट्टानों पर मौजूद कई चिन्ह व रेखा चित्र आदिमानव के विकास, रहन-सहन, भाषा व संस्कृति का उद्भेदन करते हैं. चतरा के सिसई व उरदा में रामगढ़ राजा की प्रथम राजधानी (1368 ई.) और बादम में निर्मित किलों (1600 ई.) के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं.
आज के समय में, जब देश पर्यावरण का संकट झेल रहा हो, इन ढेर सारी विशेषताओं से युक्त इस क्षेत्र में पर्यावरण सरंक्षण की योजना बनायी जानी चाहिए थी. प्राकृतिक व ऐतिहासिक स्थलों और गुफाओं का सौंदर्यीकरण किया जा सकता था. तब यह देश-विदेश के लोगों के लिए पर्यटन स्थल बनकर सरकारी राजस्व आय का स्रोत बनता और इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता. कृषि के विकास के लिए छोटे-छोटे चेक डैम बना कर नदियों के पानी को खेतों तक पहुंचाने और बिजली उपलब्ध कराने से इस क्षेत्र के साथ-साथ राज्य व देश के अन्य हिस्सों को अनाज, सब्जी और खाद्य सामग्री की आपूर्ति की जा सकती थी. लेकिन जब केन्द्र में मोदी सरकार आयी तो उसकी गिद्ध दृष्टि से यह क्षेत्र भी नहीं बचा. भाजपा सरकार यहां का सब-कुछ नष्ट करने पर अमादा है. कॉरपोरेट घरानों – अडानी-अंबानी, जिंदल-मितल, हिण्डालको, डालमिया, एनटीपीसी और जेएसडब्ल्यू सहित देशी-विदेशी प्राइवेट व सरकारी 35 कंपनियों को उत्तरी कर्णपुरा में माइनिंग के लिए कोल ब्लॉक का आवंटन किया गया है जिसके खिलाफ 2004 से ही कर्णपुरा बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन चल रहा है.
जमशेदपुर और बोकारो में एचईसी व टाटा उधोग के स्थापित होने से दर्जनों गांव उजड़ गए. विस्थापन के बाद ये गांव दुबारा स्थापित नहीं हो पाये और वहां के लोगों ने अपनी पहचान व संस्कृति सब कुछ खो दिया. विस्थापितों और प्रभावितों को नौकरी वहां नौकरी भी नहीं मिली. यह उदाहरण सबके सामने है. गोन्दलपुरा पंचायत के ग्रामीण अपनी पहचान, परंपरा व संस्कृति को खोना नहीं चाहते हैं. अपने जल, जंगल व जमीन को नहीं खोना चाहते. वे अपना प्राकृतिक पर्यावरण को खोना नहीं चाहते हैं. वे एनटीपीसी के खुलते ही पकरी-बरवाडीह के गांवों में ग्रामीणों को उजड़ते देख रहे हैं. वे झारखंड में विकास के नाम पर बन रहे बड़े-बडे जलाशयों, डैम, उद्योगों व कल-कारखानों को गरीबों, किसानों व ग्रामीणों को निगलते देख रहे हैं. साथ ही, वे यह भी देख रहे हैं कि कोयलकारो परियोजना एवं नेतराहाट फायरिंग रेंज के खिलाफ ग्रामीण लंबे समय से लड़ रहे हैं. वे शहीद हो रहे हैं फिर भी जंग को जारी रखे हुए हैं. गोन्दलपुरा के लोगों ने अपने जल, जंगल, जमीन व पर्यावरण की रक्षा की लड़ाई की शुरुआत कर दी है.
अब तक लगभग 130 पुरुष महिलाओं के खिलाफ धारा 107 के तहत केस किया जा चुका है. एक सीधे-साधे नौजवान को जिला बदर की नोटिस भेजी गयी है. अडानी इंटरप्राइजेज को गोंदलपुरा कोल ब्लॉक 2020 आवंटित किया गया था. यह कोल ब्लॉक उत्तर कर्मपुरा कोयला क्षेत्र में है. इस खनन परियोजना से 5 गांव प्रभावित हो रहे हैं. गोन्दलपुरा, गाली, बलोदर, हाहे और फुलांग गांवों में कोयला खदान के लिए कूल 1268.59 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की जाएगी जिसमें 551.59 एकड़ भूमि रैयती, 542.75 एकड़ वन भूमि और 173.74 गैर-मजरूआ भूमि है. गोंदलपुरा में 284.63 एकड़, गाली में 175.45 एकड़ और बलोदर में 91.51एकड़ रैयती भूमि अधिग्रहित की जाएगी. अन्य दो गांवों – हाहे और फूलांग में रैयती भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा. माइनिंग से कुल 781 परिवार विस्थापित होंगे.
खनन के लिए तीन गांवों की लगभग 550 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है अधिग्रहित की जाने वाली भूमि उपजाऊ और बहु-फसली है. इसके अलावा विभिन्न तरह के साग सब्जी का भी उपजाऊ होते हैं. पहाड़ों में जल संचय होने के कारण भूजल का स्तर काफी अच्छा है. ग्रामीण बताते हैं कि यहां 20 फीट पर पानी मिल जाता है और 1 एकड़ भूमि में 20 से 25 क्विंटल धान की पैदावार हो जाती है. यहां मिर्च व ईख की खूब अच्छी खेती होती है यहां यहां के बने गुड़ की काफी प्रसिद्ध है. मिर्च की खेती से एक-एक किसान एक दिन में 20-25 हजार रुपये कमा लेते हैं.
पहाड़ जंगल और नदियों से घिरे खनन परियोजना के लिए लगभग 540 एकड़ वन भूमि का उपयोग किया जाएगा. इन जंगलों में सखुआ, महुआ, केंद, पियार, बड़हर, जामुन व कटहल के पेड़ और कई तरह की जड़ी-बूटियां और कंद-मूल हैं. ये जंगल व पहाड़ जल स्रोतों से भरे होने के कारण कई नदियों के उद्गम स्थल भी हैं. ग्राम बलोदर से गोबर्धा और गुडलगवा नदी, गाली गांव से कारी रेखा नदी और हाहे गांव से, जो एक पर्यटक स्थल भी है, गटी कोचा नदी निकलती है. चारों नदियां मिलकर ढोल कटवा नदी बनाती हैं जो आगे चलकर बदमाही नदी बनती है. बदमाही नदी विश्रामपुर पहुंच कर दामोदर नदी से मिलती है. खनन के कारण नदियों के उद्गम स्थल व जल प्रवाह नष्ट हो जाएंगे और नदियां सूख जाएंगी.
इन जंगलों में हाथी, भालू , चीता, मोर, खरगोश इत्यादि जानवर बसते हैं. ये जंगल हाथी कॉरिडोर का हिस्सा हैं. जंगल नष्ट हो जाने से जानवर और पशु-पक्षी खत्म हो जाएंगे और प्राकृतिक पर्यावरण बिगड़ जाएगा.
7 मई 2023 को 1 बजे दिन में देवकीनंदन बेदिया व पचु राणा (भाकपा-माले), राजेन्द्र गोप और आरडी मांझी (मासस), भुवनेश्वर मेहता, महेंद्र पाठक, अजय सिंह व नेमन यादव (सीपीआई) तथा गणेश कुमार (सीपीआईएम) के नेतृत्व में वामपंथी दलों की एक टीम गोन्दलपुरा पंचायत बड़कागांव में धरना स्थल पर पहुंची. पत्रकार वासवी किडो भी इस टीम के साथ थीं. उस वक्त धरना पर करीब 60 महिला-पुरुष पहले से ही बैठे हुए थे. उन लोगों ने ‘अडानी कंपनी वापस जाओ’, ‘खदान हमें खाता है, खेत-खेती खिलाता है’, ‘एनटीपीसी वापस जाओ’, ‘विकास के नाम पर ग्रामीणों को उजाड़ना बंद करो’, ‘प्राकृतिक के साथ छेड़छाड़ करना बंद करो, पर्यावरण की रक्षा करो’ आदि जोश-खरोश भरे नारे लगाये और टीम का जोरदार स्वागत करते हुए सबको धरना में बैठाया.
धरना में बैठे सेवा निवृत्त शिक्षक देवनाथ महतो (उम्र 78 वर्ष), श्रीकान्त निराला,द विनय कुमार, फलेंद्र गंझू, नन्दकिशोर मेहता, रवि महतो, लखिन्द्र ठाकुर, मिथलेश दांगी, अनिरुद्ध व अन्य लोगों ने टीम को पूरा क्षेत्र में दिखाया. बताया कि धरना स्थल की सड़क से दक्षिण दिशा की पूरी पट्टी अडानी की कंपनी को आंवटित है और इसके उत्तरी दिशा में एनटीपीसी तथा पश्चिमी क्षेत्र में जेएसडब्ल्यू कंपनी जिसका डायरेक्टर हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र के भाजपा सांसद जयंत सिन्हा के पत्नी हैं. इसके पूर्व भी यहां डीवीसी सहित तीन कंपनियां आई थी जिसे हमलोगों ने आंदोलन के बल पर भगाया है. आज फिर ये दूसरी कंपनियां आई है जिनके खिलाफ उनकी लड़ाई है. जबतक ये कंपनियां वापस नहीं जाती हैं तबतक उनकी लड़ाई चलती रहेगी. वे सभी अधिकारियों को मांग पत्र दे चुके हैं. एसडीओ को सूचना देकर विगत 12 अप्रैल 2023 से सतत धरना में बैठे हैं. उन्होंने भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह से मिले हैं और उनको भी इससे अवगत कराया है.
गोन्दलपुरा पंचायत रहरिया टांड पहाड़,जरवा टोंगरी, तेतरिया टांगर, गरवा पहाड़, गोबरदहा पहाड़ व चतमा पहाड़ व बड़का पहाड़ से तीन तरफ से घिरा हुआ है. पश्चिम में दामोदर नदी है, पूरब में चुरचू प्रखंड़ है, उत्तर में सदर प्रखंड है और दक्षिण में डाडी प्रखंड़ है. ये सभी जो पहाड़ों के पार हैं. गोन्दलपुरा व महुंगाई कला पंचायत के गोन्दलपुरा, गाली, रुदी, जोराकाठ, चपरी, कौशी और सेहदा; महुंगाई कला पंचायत के बलोदर, हाहे व. फुलांग गांव विस्थापित व प्रत्यक्ष प्रभावित हैं. यहां की आबादी में कोयरी, ग्वाला व राणा समुदाय की बहुलता है और भुईंया, तुरी, गंझू, करमाली, मुंडा, उरांव, पासी, मुस्लिम व ब्राह्मण भी शामिल हैं. यहां की आबादी करीब 10 हजार की है.
गोंदलपुरा में नवंबर 2020 में मोदी सरकार द्वारा अडानी इन्टरप्राइजेज कंपनी को जमीन आंवटित की गई है. कंपनी द्वारा जमीन पर कब्जा करने के लिए 15 जुलाई 2022 से ग्राम सभा व जनसुनवाई जैसे आयोजन किया गया. ग्रामीणों का मानना है कि राज्यसभा व लोकसभा नहीं, ग्राम सभा सबसे बड़ी है. हर सभा में पूर्ण बहुमत से ग्रामीणों ने इसका विरोध किया. यह आबंटन गलत है क्योंकि इसमें 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून का पालन नहीं किया गया है. वन अधिकार अधिनियम 2006, 2008 व 2012 के तहत भूमि अधिग्रहण के पहले ग्राम सभा से 80% से लोगों की सहमति चाहिए. लेकिन उपायुक्त ने अडानी के पक्ष में झूठ से भरी फर्जी रिपोर्ट तैयार कर भेज दी जिसमें पर्यावरण, सामुदायिक हित और विकास का ध्यान रखने जैसी बातें शामिल करते हुए कहा गया है कि ग्रामीणों के बहुमत की सहमति है.
वामपंथी नेताओं ने धरना में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में आज चौतरफा फासीवादी हमला चल रहा है. यह हमला राजनीतिक है, इसलिए प्रतिरोध आंदोलन को भी राजनीतिक बनाना होगा. जंगल-पहाडों के बीच चल रहे आंदोलन को बाहरी दुनिया में ले जाने की जरूरत है. देश में ऐसे बहुत से आंदोलन चल रहे हैं. सभी आंदोलनों को एक धारा में आगे बढ़ना होगा. झारखंड में लाखों लोग विस्थापित हुए हैं. वे लोग विस्थापन के दर्द से पीड़ित हैं. विस्थापन की पीड़ा भोग रहे हैं. आजादी के पहले अंग्रेजों के द्वारा रेल निर्माण में बड़े पैमाने पर लोगों को विस्थापित किया गया और आजादी के बाद उद्योग, व माइनिंग के द्वारा. ये लोग विस्थापन आयोग की मांग कर रहे हैं और हम विस्थापन न हो इसके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. विस्थापन धीरे-धीरे मौत के तरफ ले जाता है. विकास के नाम पर यह मौत की तैयारी है.
इन्हीं सारे सवालों पर 19 मई 2023 को रांची में एक कन्वेंशन आयोजित किया गया है जहां से आगे के सड़क से सदन तक के आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी.