- इन्द्रेश मैखुरी
आरएसएस का दावा है कि वह एक राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन है. उसकी राजनीतिक पार्टी होने के कारण भाजपा भी राष्ट्रवादी होने का दम भरती है. 2014 में सत्ता में आने के बाद तो आरएसएस-भाजपा, राष्ट्रवाद का सर्टिफिकेट देने वाली स्वयंभू एजेंसी हो गयी हैं. वे जिसको चाहे राष्ट्रवादी घोषित कर दें और जिसको मर्जी उसे राष्ट्रविरोधी यानि एंटी नेशनल घोषित कर दें!
हालांकि इस राष्ट्रवाद से उनका सरोकार और संजीदगी कितनी है, पुलवामा हमले के मामले में, इसकी पोलपट्टी बीते दिनों पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक खोल ही चुके हैं. पर उनका दावा है कि वे घनघोर राष्ट्रवादी हैं!
राष्ट्रवाद के नाम पर इस फतवेबाजी को जायज ठहराने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी विज्ञापनी छवि भी गढ़ी गयी. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया – “न खाऊंगा, न खाने दूंगा.” देश के बैंकों के हजारों करोड़ रुपए लूटने वाले तो नरेंद्र मोदी के अपने ही करीबी लोग थे और आज देश सारी संपदा जिनके हवाले की जा रही है, वे भी उनके ही प्यारे-दुलारे हैं!
हाल के दिनों में सामने आए तमाम मामले इस बात की पुष्टि करते हैं कि देश लूटने और तोड़ने वाले, सब उनके ही आस्तीन से निकले, जो देश को डंस रहे हैं.
सबसे ताजातरीन मामला डीआरडीओ के वैज्ञानिक प्रदीप कुरुलकर का है. 03 मई 2023 को महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ते (एटीएस) ने इनको पाकिस्तान के साथ खुफिया सूचनाएं साझा करने के लिए गिरफ्तार किया है. जिस समय प्रदीप कुरुलकर को गिरफ्तार किया गया, वे डीआरडीओ के शोध एवं विकास प्रतिष्ठान के निदेशक पद पर थे. कुरुलकर नवंबर में डीआरडीओ के दूसरे सबसे बड़े पद यानि वैज्ञानिक एच या ‘आउटस्टैंडिंग साइंटिस्ट’ के पद से सेवानिवृत्त होने वाले थे.
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ;डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशनद्ध कोई सामान्य संगठन नहीं है, बल्कि रक्षा के क्षेत्रा में देश की मजबूती के लिए वैज्ञानिक शोध और नयी तकनीक का विकास करने वाला संगठन है. उस संस्थान का कोई वरिष्ठ वैज्ञानिक, ऐसे देश के साथ खुफिया जानकारी साझा करता पाया जाता है, जिसका रक्षा और सैन्य तंत्र, भारत के साथ एक छद्म युद्ध में लीन है तो मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को समझा जा सकता है. एक तरह से देश की रक्षा तैयारियों की सारी जानकारी को ही प्रतिद्वंद्वी मुल्क तक पहुंचाया जा रहा था. यह अपने देश को कमजोर करने और दूसरे मुल्क को मजबूत करने की कार्यवाही है.
इस देश के रक्षा शोध और विकास के सबसे बड़े संस्थान में बैठ कर पाकिस्तान की मदद करने वाले ये प्रदीप कुरुलकर कौन हैं? प्रदीप कुरुलकर पुणे के रहने वाले हैं. न केवल प्रदीप कुरुलकर बल्कि उनके दादा से लेकर उनके परिवार की चार पीढ़ियां आरएसएस से जुड़ी हुई हैं. उनकी गिरफ्तारी के बाद सार्वजनिक हुई जानकारी से पता चलता है कि देश के शीर्ष रक्षा विज्ञान के संस्थान में महत्वपूर्ण पद पर होने के बावजूद, वे खुल कर आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होते थे और संघ के सर्वाेच्च पदाधिकारी यानि सरसंघचालक के साथ तक मंच साझा करते थे. पीढ़ियों तक आरएसएस में राष्ट्रवाद की घुट्टी पीने और पिलाने वाले के चेहरे से जब नकाब उतरी तो पता चला कि वे तथाकथित, स्वयंभू राष्ट्रवादी संगठन की राष्ट्र विरोधी शाखा के प्रमुख हैं!
डीआरडीओ का शीर्षस्थ वैज्ञानिक, देश के विरुद्ध जासूसी में पकड़ा गया और हल्ले-गुल्ले से आसमान सिर पर उठा लेने वाले टीवी एंकरों में अपेक्षाकृत खामोशी है. कोई प्राइम टाइम डिबेट नहीं, दिन भर सनसनीखेज बातें जाहिर करते शोज की कोई शृंखला नहीं! क्यूं? इसलिए कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में पकड़ा गया वैज्ञानिक, उस स्वयंभू राष्ट्रवादी खेमे का है, जिसके आगे सारा मीडिया जगत दंडवत है! और प्रदीप कुरुलकर कोई अकेला या अलग-थलग या इकलौता मामला नहीं है.
इसी साल मार्च में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने किरण पटेल नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार किया. किरण पटेल अक्टूबर 2022 से कश्मीर का दौरा कर रहा था और उसने सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस के सामने अपने आप को प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसर के तौर पर प्रस्तुत किया और जम्मू कश्मीर पुलिस ने उसके लिए न केवल जेड प्लस सुरक्षा की व्यवस्था की बल्कि उसके रहने की भी आलीशान व्यवस्था की! पटेल न केवल सरकारी खर्च पर जम्मू-कश्मीर के संवेदनशील स्थानों के दौरे कर रहा था बल्कि उनके वीडियो भी शेखी बघारते हुए सोशल मीडिया में लगातार पोस्ट कर रहा था. उसके बावजूद महीनों तक उसकी संदिग्ध गतिविधियां बेरोकटोक चलती रहीं. यह पूरे सुरक्षा तंत्र और पटेल को हासिल राजनीतिक संरक्षण पर बड़ा सवाल खड़ा करता है. पटेल की गिरफ्तारी के बाद गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के बड़े नेताओं के साथ उसकी और उसके परिवार की नजदीकी प्रदर्शित करती हुई तस्वीरें भी सामर्ने आइं. लेकिन इस बारे में न अमित शाह और न ही भारत सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण या खंडन सामने आया. किरण पटेल के साथ दो और लोगों को भी पुलिस ने पकड़ा था, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया. इनमें से एक अमित पंड्या, उन हितेश पंड्या का पुत्र है, जो गुजरात के मुख्यमंत्री के जनसंपर्क अधिकारी हैं. हितेश पंड्या 2001 से गुजरात सरकार के लिए काम करते हैं. बेटे के पकड़े जाने के बाद ही हितेश ने गुजरात के मुख्यमंत्री के जनसम्पर्क अधिकारी का पद छोड़ा. जिस तरह से हितेश पंड्या के पुत्र अमित व उसके एक अन्य साथी जय सितापरा को छोड़ा गया और उनके भोले-भाले होने की दलील जम्मू कश्मीर पुलिस से लेकर हितेश पंड्या तक ने दी, वह संदेह को और गहरा करती है.
किरण पटेल कैसे जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा के संवेदनशील क्षेत्रों में जेड प्लस सुरक्षा में सरकारी मेहमान बन कर घूम पाया? कोई भी आकर कहे कि वह पीएमओ से आया है और ऐसा दावा करने वाले की सत्यता जांचे बगैर सारा प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा तंत्र, उसकी आवभगत में लग जाएंगे, क्या इस देश में सुरक्षा तंत्र इतना मासूम और भोला-भाला है? पुलिस और सुरक्षा का पूरा तंत्र महीनों तक एक ऐसे व्यक्ति के झांसे में रहा जो आईएएस और आईपीएस के बीच का फर्क भी नहीं जानता था, क्या यह सामान्य बात है? जाहिर सी बात है कि इसके पीछे छुपा हुआ कुछ गंभीर मामला है. किरण पटेल न केवल गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तस्वीरों में नज़र आ रहा है बल्कि भाजपा और आरएसएस के साथ भी उसका नजदीकी संबंध रहा है. वह गुजरात में भाजपा व आरएसएस के लिए कार्यक्रम, अभियान और रैलियां आयोजित करता रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कश्मीर में शुरुआती संपर्क साधने के लिए किरण पटेल ने आरएसएस के राजस्थान के प्रचारक त्रिलोक सिंह की मदद ली.
साफ है कि इस पूरे फर्जीवाड़े का भाजपा-आरएसएस कनेक्शन निकलता है और देश की सुरक्षा से जुड़े इस मामले में संदेह और गहरा होता है. गलाफाड़ मीडिया में भी इतने बड़े मामले पर अपेक्षाकृत सन्नाटा है तो यह इस बात की तस्दीक है कि मामला सत्ता में बैठे हुए मीडिया के प्रिय पात्रों से जुड़ा हुआ है, इसलिए मुंह सिलना ही उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प है.
किरण पटेल का मामला ठंडा ही हुआ था कि उसी प्रजाति का एक और मामला सामने आ गया. अबकी बार जो किरदार सामने आया, उसका नाम है – संजय शाह शेरपुरिया.
संजय शाह शेरपुरिया का नाम तब चर्चा में आया जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ ने उसे गिरफ्तार किया. उस पर आरोप है कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय से नजदीकी का दावा करता था और उस नजदीकी की आड़ में अपने यूथ रुरल एंटरप्रेन्यौर फ़ाउंडेशन के लिए भारी भरकम रकम चंदे के रूप में बड़े उद्योगपतियों से हासिल कर लेता था. उसके एनजीओ के सलाहकार बोर्ड में रिटायर आईएएस, आईपीएस और सेना अफसर मौजूद हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ उसकी तस्वीरें हैं, जिनका इस्तेमाल वह लोगों पर रोब गालिब करने और उन्हें ठगने के लिए करता था. वह दैनिक भास्कर और अमर उजाला जैसे अखबारों में काॅलम लिखता था. टीवी पत्रकारों को अपनी किताब भेंट करती उसकी तस्वीरें, गिरफ्तारी के बाद वायरल हुई. संजय शेरपुरिया ने ‘दिव्य दृष्टि मोदी’ नाम की पुस्तक लिखी और वह वाराणसी में 2019 में नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान में भी शामिल बताया गया है. मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार शेरपुरिया न केवल उद्योगपतियों को ठगता था बल्कि नौकरशाह और अफसर तक उसकी मदद मांगने आते थे! यहां तक कि सीबीआई अफसर भी उससे मदद मांगने जाते थे, जो चाहते थे कि ट्रांस्फर-पोस्टिंग के मामले में ‘टाॅप लीडरशिप’ से वह उनके बारे में अच्छी बातें कहे और दावा यह है कि वह मददगार सिद्ध होता था! अखबारों में छपे ब्यौरे के अनुसार एसटीएफ़ के अफसरों ने कहा कि इस मामले की निगरानी आईबी और ईडी के लोग कर रहे हैं. अगर मामला सिर्फ ठगी का है तो इतनी बड़ी एजेंसियों की जांच की निगरानी का क्या अर्थ है? जाहिर सी बात है कि इस मामले में भी बहुत सारी बातें संदिग्ध हैं और यहां भी संबंध-संपर्क के तार आरएसएस, भाजपा और प्रधानमंत्री तक पहुंच रहे हैं!
जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी दविन्दर सिंह का नाम धीरे-धीरे लोगों की स्मृति से भी बाहर हो गया है. दविंदर सिंह को 2020 में दक्षिण कश्मीर के कुलगाम इलाके में सुरक्षा बलों द्वारा गिरफ्तार किया गया. जिस समय दविन्दर सिंह की गिरफ्तारी हुई उसके साथ कार में दो लोग और थे, जिनकी पहचान लश्करे तयब्बा और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के रूप में हुई. उसमें से एक आतंकवादी कई पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल था. तलाशी के दौरान उसकी कार से दो एके 47 राइफल भी पकड़ी गयी.
दविंदर शर्मा का नाम संसद हमले में भी आया था. संसद हमले के लिए फांसी चढ़ाए गए अफजल गुरु ने जेल से अपने वकील को जो पत्र भेजा, उसमें अफजल ने लिखा कि बड़गाम के हुमहुमा में तैनात डीएसपी ने उसे संसद हमले में शामिल मोहम्मद को दिल्ली ले जाने, किराए पर घर और कार खरीदने के लिए मजबूर किया.
दविंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद यह बात सामने आई कि वह आतंकवादियों के साथ बात करने के लिए कई नंबरों का प्रयोग करता था. जिस वक्त उसकी गिरफ्तारी हुई, उस वक्त गिरफ्तार करने वाले डीआईजी से उसने कहा था – ‘सर ये गेम है, आप गेम खराब मत करो!’ आखिर ये कौन सा गेम था, जिसे चरम राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली सरकार में आतंकवादियों से संपर्क वाला डीएसपी खेल रहा था? उस गेम का आजतक खुलासा क्यूं नहीं हुआ? दविन्दर सिंह का मामला धीरे-धीरे विस्मृति के हाशिये पर क्यूं धकेल दिया गया? यह सवाल राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट के स्वयंभू वितरकों से न पूछा जाये तो किससे पूछें?
सिर्फ वैज्ञानिक, पुलिस और नकली प्रशासनिक अफसर, दलाल ही नहीं, भाजपा के अपने संगठन के लोग भी पाकिस्तान के लिए जासूसी करते हुए पकड़े गए. 11 फरवरी 2017 को मध्य प्रदेश एटीएस ने 11 लोगों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया. इनमें से एक ध्रुव सक्सेना भारतीय जनता युवा मोर्चा के आईटी सेल का भोपाल का जिला संयोजक था. पदाधिकारी, देश की खुफिया सैन्य जानकारी, दुश्मनों के साथ साझा करते रहे और पार्टी तब भी चरम राष्ट्रवादी होने का ढोल पीटती रही!
2021 में जब काॅर्डेलिया क्रूज जहाज पर एनसीबी के छापे में ड्रग्स के साथ शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी की बात सामने आई तो मीडिया ने इस बात को सनसनी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एकाएक एनसीबी के मुंबई जोन के डायरेक्टर समीर वानखेडे़, मीडिया में नए नायक के बतौर उभरे, जो फिल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध से प्रभावित हुए बगैर वहां मौजूद ड्रग्स के प्रचलन को खत्म करने के लिए किसी हद तक जा सकता है.
इस प्रकरण के दो साल बाद सामने आ रहा है कि मीडिया द्वारा रातों-रात हीरो बनाया गया समीर वानखेड़े तो शाहरुख खान से, बेटे की रिहाई की एवज में 25 करोड़ रुपये रिश्वत मांग रहा था. आर्यन खान गिरफ्तारी के मामले में स्वतंत्र गवाह बताए जा रहे केपी गोसावी को समीर वानखेड़े ने खुला हाथ दे दिया, जो कि नियम विरुद्ध था.
समीर वानखेड़े पर यह भी आरोप है कि उन्होंने 2017 से 2021 के बीच छह बार निजी विदेश यात्राएं की और इनके खर्च का ब्यौरा वास्तविक खर्च से काफी कम बताया. जैसे लंदन के 19 दिन का खर्च वानखेडे़ ने 1 लाख रुपया दर्शाया और कहा कि वह वहां रिशतेदारों के यहां रहा. उन्होंने एक रोलेक्स घड़ी खरीदी, जिसका मूल्य उन्होंने 17 लाख 40 हजार रुपये दर्शाया जबकि घड़ी का वास्तविक मूल्य 22 लाख 5 हजार रुपए था और इस घड़ी से ज्यादा के इन्वाइस थे.
सीबीआई जांच और इन तमाम आरोपों के बाद बाद समीर वानखेडे़ ने वही राष्ट्रभक्ति का दांव चलने की कोशिश की है. वह कह रहे हैं कि उन्हें देशभक्त होने के चलते परेशान किया जा रहा है. जब देश में देशभक्ति के सर्टिफिकेट के स्वयंभू थोक विक्रेताओं की सत्ता हो तो भला देशभक्ति के लिए उनका कोई वैचारिक सहोदर कैसे सताया जा सकता?
देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर दविंदर सिंह से लेकर प्रदीप कुरुलकर तक की जो फसल लहलहा रही है, वह बता रही है कि राष्ट्रवाद के नाम पर कैसी एंटी नेशनल विषबेल की शाखा इस देश में फल-फूल रही है!
दिवंगत राॅ अफसर बी. रमन ने अपनी किताब ‘द काओ ब्वायज ऑफ राॅ (The Kaoboys of R&W) में एक किस्सा लिखा था. रमन लिखते हैं कि 1989 में देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी तो भाजपा इसका बाहर से समर्थन कर रही थी. रमन ने लिखा कि एक दिन राॅ के पास कैबिनेट सेक्रेटरी का पत्र आया कि जम्मू-कश्मीर में राॅ को आरएसएस के लोगों की हथियारों की ट्रेनिंग करानी है. राॅ ने शुरू में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, लेकिन दबाव आया कि ऐसा करना ही होगा. इस दबाव में जम्मू के आरएसएस के लोगों के साथ राॅ के अफसरों ने दो बैठकें भी की. लेकिन फिर वीपी सिंह और भाजपा में मतभेद गहरा गया और भाजपा ने उस सरकार से समर्थन वापस ले लिया. रमन लिखते हैं कि तब कैबिनेट सेक्रेटरी ने कहा कि आरएसएस को ट्रेनिंग के मामले में कोई कार्यवाही की जरूरत नहीं है.
बी. रमन के ब्यौरे से समझिए कि जब भाजपा, केंद्र की सरकार को बाहर से समर्थन भर दे रही थी, तब वह दबाव बनवा कर राॅ जैसी एजेंसी से आरएसएस वालों को हथियारों की ट्रेनिंग करवा सकती है तो आज जब पूरा तंत्र उसके हाथ में है तो क्या कुछ नहीं किया जा रहा होगा! और दविन्दर सिंह से लेकर प्रदीप कुरुलेकर की फलती-फूलती एंटी नेशनल शाखा को परिदृश्य में रख कर कल्पना कीजिये कि राष्ट्रभक्ति के स्वयंभू थोक विक्रेता देश को किस गंभीर खतरे में डाल रहे हैं!