आधिकारिक तौर पर कर्फ्यू की घोषणा नहीं थी, लेकिन माहौल ठीक वैसा ही था. इंटरनेट सेवा बंद थी. सड़कों पर पुलिस की गश्त थी. इक्का-दुक्का लोग ही सड़क पर दिख रहे थे, जिन्हें पुलिस बेवजह परेशान कर रही थी. हम सब गगन दीवान (बिहारशरीफ) पहुंच चुके थे. चारो तरफ सन्नाटा पसरा था. जूते-चप्पल बिखरे पड़े थे. हम मस्जिद की ओर बढ़े. मुअज्जिन (नमाज पढ़ने वाला) से मुलाकात हुई. पता चला कि देर रात पीछे के मुस्लिम मुहल्ले में पुलिस की रेड पड़ी है. कुछ लोग गिरफ्तार किए गए हैं. हम उधर चल दिए. घर के बाहर महिलाएं-बच्चे और कुछ बुजुर्ग बैठे थे. सबके चेहरे पर उदासी थी. देर रात पुलिस ने कई नौजवानों को उठा लिया था. सब के सब बेहद गरीब परिवार के हैं और मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन चलाते हैं. महिलाओं ने भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम और फुलवारी शरीफ के विधायक गोपाल रविदास को घेर लिया और 31 मार्च की रात घटित पुलिस दमन की बर्बर घटना रो-रोकर सुनाने लगीं. उनके बीच पहुंचने वाली यह पहली टीम थी.
मामला था, 31 मार्च को बिहारशरीफ में सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात की भयावह घटना की. भाकपा-माले की एक उच्चस्तरीय जांच टीम ने 1 अप्रैल को वहां का दौरा किया. टीम में महबूब आलम, गोपाल रविदास, कुमार परवेज, नालंदा जिला सचिव सुरेन्द्र राम सहित कुछ स्थानीय पार्टी नेता-कार्यकर्ता शामिल थे. हालांकि, प्रशासन नहीं चाहता था कि टीम आए. जब टीम के दौरे की सूचना वहां के एसपी को दी गई, तब उनका कहना था कि टीम दो-चार दिन बाद ही आए तो ठीक होगा. एसपी की बातों को अनसुनी करके जांच टीम बिहारशरीफ पहुंची थी.
31 मार्च की शाम 5 बजे से शुरू हुआ तांडव कई घंटे चलता रहा. तांडव थमा तो पुलिस का कहर बरपा. शुरूआत एक मामूली सवाल से हुआ, लेकिन इसके पीछे एक जबरदस्त सुनियोजित साजिश रची गई थी. लगभग एक महीने से इसकी तैयारी किसी न किसी रूप में चल रही थी. आज से 4-5 साल पहले रामनवमी एक सामान्य त्योहार-सा था. वह आता था और चला जाता था. पता भी नहीं चलता था, लेकिन अब उसके आयोजनों की बाढ़ सी आ गई है. आक्रामकता काफी बढ़ गई है. बड़ी-बड़ी शोभायात्राएं निकाली जाती हैं. हाथों में तलवार लिए लोग सड़क पर निकलते हैं. मकसद सिर्फ एक होता है - मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाना. राजधानी पटना से लेकर हर कहीं इस बार ऐसा ही नजारा दिखा. जाहिर है कि ऐसे नकारात्मक बदलाव अपने आप नहीं हुए. बजरंग दल, विश्व हिंदु परिषद, आरएसएस और भाजपा ने बेहद चालाकी से रामनवमी को एक आक्रामक और उन्माद फैलाने वाले त्योहार में बदल दिया है, जिसमें बेहद सोच-समझकर व्यापक पैमाने पर दलित-पिछड़ी जाति के युवाओं और महिलाओं को शामिल करवाया जाता है. इसके जरिए एक दंगाई दिमाग बनाने का संगठित अभियान चलाया जा रहा है. इस बार उनकी यह कोशिश बिहारशरीफ और सासाराम में कामयाब होती दिख रही है.
हालांकि, बिहारशरीफ में इसके पहले भी सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, लेकिन इस बार दंगाइयों की कार्रवाई ज्यादा आक्रामक व सुनियोजित थी. मुस्लिम समुदाय की दुकानों को लूटने और उनमें आग लगाने की घटनाओं को तो अंजाम दिया ही गया, सौ साल पुराने अजीजिया मदरसे को खास तौर पर निशाना बनाया गया और उसे पूरी तरह आग के हवाले कर दिया गया. रमजान का महीना होने के कारण यह बंद था. 5000 से ज्यादा मुस्लिम धर्मग्रंथ जलकर नष्ट हो गए. बास्तानिया से लेकर फाजिल तक की डिग्रियां जलकर राख हो गई. हजारों छात्रों के भविष्य को पल भर में नष्ट कर दिया गया. 31 मार्च की रात में आग लगाई गई थी, लेकिन 1 अप्रैल की देर शाम तक मदरसे से धुआं निकल रहा था. कंप्यूटर व फर्निचर भी पूरी तरह खाक हो गए थे. ऐसा लगता है कि प्रशासन ने मदरसे को बचाने की कोई कोशिश नहीं की. अगर फायर ब्रिगेड भेजा गया होता तो नुकसान कम किया जा सकता था. बिहारशरीफ का यह मदरसा कोई सामान्य मदरसा नहीं बल्कि 100 सालों की सुनहरी तारीख (इतिहास) रखने वाला मदरसा है. उसे वक्फ बोर्ड की बहुत बड़ी जायदाद हासिल है. यह वह मदरसा है जहां कुरान, हदीस, फिकह के साथ-साथ मांतिक, फलसफा, तिब और साथ ही हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, गणित, भूगोल आदि की भी पढ़ाई होती है. पटना के शमसुल होदा की तरह आदर्श माने जाने वाले इस मदरसे को कुछ घंटों में नष्ट कर दिया गया. सारे कागजात जला दिए गए और इस प्रकार 100 साल के एक शानदार इतिहास को पलक झपकते फसादियों ने नष्ट कर दिया. यह देश की गंगा-जमुनी तहजीब, अल्संख्यकों की पहचान और शिक्षा के केंद्र पर सचेत भगवा हमला है. यह इस बात की भी पुष्टि है कि फासीवादी गिरोह सबसे पहले शिक्षा के केंद्र को ही निशाना बनाता है और उसके इतिहास को मिटाने की कोशिश करता है. मदरसे के साथ-साथ सोगरा काॅलेज को भी टारगेट किया गया और उसमें भी आग लगाई गई. सोगरा काॅलेज भी वक्फ बोर्ड की जमीन पर बना एक बेहद प्रतिष्ठित काॅलेज है.
बहरहाल, प्रशासन की भूमिका पर कई सवाल बने हुए हैं. सबसे अहल सवाल यह कि जब सबको इसका बखूबी अंदेशा था कि रामनवमी के जुलूस की आड़ में सांप्रदायिक उन्माद भड़काया जा सकता है, तो फिर उसने जुलूस निकालने के लिए अगले दो दिनों तक का परमिशन कैसे दिया? रामनवमी 30 मार्च को खत्म हो गयी, बिहारशरीफ में जुलूस निकला 31 मार्च को. रूट वही लिया गया जहां सघन रूप से मदरसे, काॅलेज व मुस्लिम समुदाय की दुकानें थीं. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि 31 मार्च को पूरे दिन मोटरसाइकिलों पर सवार भगवाधारी युवकों का जत्था सड़कों को रौंदता रहा. व्यवस्था के नाम पर प्रशासन ने कुछ महिला पुलिसकर्मियों की नियुक्ति भर कर रखी थी. जुलूस जब गगन दीवान के पास गुजर रहा था, तब नमाज का वक्त था. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रशासन से डीजे की आवाज कम करने की अपील की. बस यहीं से उन्माद फैलाने की ताक में बैठे दंगाइयों को मौका मिल गया. पत्थरबाजी शुरू हो गई. भगदड़ मच गई और देखते ही देखते सिटी पैलेस, कटरा पर, एशिया होटल और उसके इर्द-गिर्द मुस्लिम समुदाय की जो भी दुकानें मिलीं, उन सब पर और मदरसा अजीजिया व सोगरा काॅलेज पर धावा बोल दिया गया. दुकानें लूट ली गईं और उन्हें आग के हवाले कर दिया गया. दुल्ला शाह बाबा की मजार और अजीजिया मदरसे से सटेे मस्जिद पर भगवा झंडे फहरा दिए गए.
जिला प्रशासन ने शुरू से ही दो समुदायों के बीच टकराव के बिलकुल गलत आधार पर इस मामले को देखने व इससे निबटने की कार्रवाई शुरू कर दी. जब सब कुछ जल कर राख हो गया, तब कहीं जाकर प्रशासन सक्रिय हुआ. जांच टीम के समक्ष जिलाधिकारी ने स्वीकार किया कि प्रशासन से चूक हुई है लेकिन वे यह कहना भी नहीं भूले कि उन्माद की कार्रवाइयां दोनों तरफ से हुई हैं. उन्होंने हिंदु समुदाय की भी कुछ दुकानों के क्षतिग्रस्त किए जाने के उदाहरण दिए. तथ्यगत यह सही है लेकिन घटनाक्रम की पूरी क्रोनोलाॅजी को समझने में बाधक है. जिस तरह से मुस्लिम समुदाय पर संगठित हमला हुआ, उसे दो समुदायों के बीच का टकराव भला कैसे कहा जा सकता है? जिलाधिकारी ने हमें यह भी बताया कि दोनों समुदाय से तकरीबन 27 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर. यह आंकड़ा अब और बढ़ गया है. महत्वपूर्ण यह है कि इसमें मुस्लिम युवकों की ही गिरफ्तारी अधिक हुई. जो समुदाय पीड़ित हुआ उसे ही दंडित किया जा रहा है.
31 मार्च की रात के अंधेरे में तीन बजे, जब लोग सेहरी करने जा रहे थे और उसके बाद उन्हें रोजा रखना था, पुलिस ने गगन दीवान के ठीक पीछे बसे गरीब मुसलमानों के मुहल्ले में दमन अभियान चलाया. मुहल्ले की महिलाओं ने हमें 13 से 20 साल तक के उम्र के 11 मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी के बारे में बताया. धर-पकड़ तो पहले से ही जारी था. मुहल्ले में दहशत का माहौल था. उनके घरों में बेहद बुरी तरह से तोड़-फोड़ हुआ था. खाना पलटा हुआ था. बच्चे तब से भूखे ही थे.
रेहाना खातून ने बताया – ‘आधी रात के बाद पुलिस हमारे घरों का दरवाजा पीटने लगी. डर से हमने दरवाजा नहीं खोला. तब पुलिस सीढ़ी के जरिए छप्पर पर चढ़ गई और घर में घुस गई. उस वक्त घर में जो भी नौजवान थे, उन्हें पकड़कर लेते गई.’
दरवाजों पर पुलिस के जूतों के निशान उस वक्त भी मौजूद थे. उनके परिवार के चार युवकों मुस्तकिम, मो. साहिद, सन्नी और वीरू को पुलिस उठा ले गई. ये लोग रिक्शा चलाकर और छोटी-मोटी मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं. नाम पूछ-पूछ कर सबको उठाया गया. जिसने भी अपना नाम बताया उस पर एफआइआर दर्ज कर दिया गया. कहने लगीं – ‘हमारे बाल-बच्चे सेहरी तक भी नहीं कर सके.’
70 वर्षीय मेहरून्निशा ने हमें अपना घर दिखलाया. शौचालय के टीन के बने दरवाजे को तलवार से फाड़ दिया गया था. एस्बेटस की छतों को जगह-जगह नुकसान पहुंचाया गया था. चूल्हे पर चढ़े भोजन को उलट-पलट दिया गया था. घर में आग लगा दी गई थी और लड़कियों के साथ बदतमीजी की कोशिशें भी की गईं. बगल में ढीलन ट्रांसपोर्ट, जिसमें लाखों का सामान था, को आग के हवाले कर दिया गया था. इसे उनका बेटा भाड़ा पर चलाता था. पूरा ट्रक जलकर राख हो चुका था. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पेट्रोल छिड़ककर आग लगाई गई. मतलब यह कि उन्माद फैलाने की पूरी सुनियोजित तैयारी थी. बगल में ही खड़े एक ऑटो रिक्शा व बाइक को भी आग के हवाले कर दिया गया था. हमला इतना तीखा व अचानक था कि लोग घर छोड़कर भाग खड़े हुए.
1 अप्रैल की सुबह में भी तोड़-फोड़ हुई. जांच-पड़ताल के बाद बिहारशरीफ से जब जांच टीम लौट रही थी तो रास्ते में पता चला कि फिर से उन्मादियों ने मुस्लिम मुहल्ले को घेर लिया है. गोलियां चली हैं. उसमें एक व्यक्ति की मौत की भी खबर मिली.
सासाराम में भी वही पैटर्न दिखा. वहां गड़बड़ियां 30 मार्च से ही शुरू हो गई थीं. जुलूस के दौरान मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए जा रहे थे. उन्हें टारगेट करके मां-बहन की गालियां दी जा रही थीं. हाथों में तलवार लिए उपद्रवी उन्हें लगातार डरा-धमका रहे थे. 31 मार्च को लगभग 11 बजे चिक टोली मस्जिद पर हमला किया गया. उसका ताला तोड़ दिया गया और मुस्लिम समुदाय के धर्मग्रंथों को फाड़ दिया गया. शाह जलाल पीर मुहल्ला में शाऊद कुरैशी की गाड़ी में आग लगा दी गई. उसमान कुरैशी की कबाड़े की दुकान में आग लगाई गई. शहजाद कुरैशी, शमशाद खातून के घर में भी आग लगाई गई. उनका सारा सामान जलकर नष्ट हो गया. अन्य दूसरी जगहों पर भी हमले किए गए. फूलन शाह मजार की चारदीवारी के ऊपर के मेहराब, मीनार एवं अंदर में लाइट व ग्रील को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया. सासाराम गयी जांच टीम में केन्द्रीय कमेटी सदस्य व काराकाट विधायक का. अरूण सिंह, जिला सचिव नंदकिशोर पासवान, जिला कमिटी सदस्य रविशंकर राम, कैशर निहाल आदि शामिल थे.
बिहार का मोर्चा भाजपा के लिए आज भी दुरूह बना हुआ है. विगत 17 वर्षों से वह बिहार की सत्ता में तो रही है लेकिन जूनियर पार्टनर बनकर. देश के अन्य राज्यों में जहां वह पलक झपकते अपनी सरकार बनाने में कामयाब होती रही है, बिहार में अब तक का उसका अपना मुख्यमंत्री नहीं बन सका है और विगत दिनों तो वह यहां की सत्ता से भी बाहर हो चुकी है. इससे उसके अंदर बौखलाहट है और इसीलिए उसने बिहार की राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नई कवायदें तेज कर दी है.
यह महज संयोग नहीं हो सकता कि देश के गृह मंत्री अमित शाह की एक अप्रैल को सासाराम और 2 अप्रैल को बिहारशरीफ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवादा में सभायें पहले से आयोजित थीं. अमित शाह के वक्तव्यों ऐसा लगता है कि बेहद सोच-समझकर उनके कार्यक्रमों की योजना बनाई गई थी. बहरहाल, सासाराम में तो उनकी सभा नहीं हो सकी लेकिन नवादा की सभा में वे गरज कर गए – ‘दंगाइयों को बख्शा नहीं जाएगा’. अमित शाह किसको दंगाई बोल रहे थे? जाहिर सी बात है कि वे मुसलमानों को ही इन तमाम घटनाओं को जिम्मेवार बता रहे थे और इसके जरिए हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे थे. अमित शाह ने उन्माद की घटनाओं पर दुख व्यक्त करने अथवा शांति की अपील करने की बजाए उसे 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ा. गुजरात की ‘स्थायी शांति’ की याद दिलाई, जहां 2002 में राज्य प्रायोजित जनसंहार के जरिए मुस्लिम समुदाय के लोगों पर कहर ढाया गया था. अमित शाह के बयान का स्पष्ट मतलब यही है कि बिहार को भी वे गुजरात बना देने के लिए आमादा हैं और इसके लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है.
प्रसंगवश, बिहारशरीफ विधानसभा भाजपा के ही कब्जे में है. कुशवाहा जाति से आने वाले डाॅ. सुनील सिंह वहां से विधायक हैं. विधायक की भूमिका पूरी तरह से संदिग्ध है. जिलाधिकारी ने हमें यह तो बताया कि जुलूस के आयोजकों पर कार्रवाई की जाएगी लेकिन डाॅ. सुनील सिंह की भूमिका पर वे चुप ही रहे. एसपी की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. यदि डाॅ. सुनील सिंह पर प्रशासन सख्ती बरते तो भाजपाइयों की पूरी चाल बेनकाब हो सकती है, लेकिन प्रशासन ऐसा करता दिख नहीं रहा.
बिहार शरीफ के सबसे पुराने मदरसे मदरसा अजीजिया को पूरी तरह जला कर खाक कर दिया जाना, इसलिए भी बहुत अफसोसनाक है, क्यूंकि इस आग में सौ साल की एक पूरी तारीख जल कर खाक हो गई है.
क्यूंकि ये बिहार में ख़ुदाबख्श लाइब्रेरी के इलावा इकलौता ईदारा था, जिसका पूरा स्ट्रक्चर वही था, जो इसके खुलने के वक्त था. रेयर फर्नीचर, रेयर अलमीरा, और उसमे उस वक्त की रेयर किताबें; इसके इलावा इसके पास कई दुर्लभ पांडुलिपियां जो मांतिक, फलसफा, तिब पर थीं, जिसे अपने समय के बड़े उलेमाओं ने रचा था.
मदरसे के प्रिंसिपल मौलाना कासिम के अनुसार किताबें और पांडुलिपियां जो इस आग में जल कर राख हो गईं, उसकी तादाद करीब 4500 से ऊपर थीं.
ये बिहार का पहला सुसंगठित मदरसा है. इसकी एक अपनी सुनहरी तारीख है, जो आज तक कायम थी. जिसके पास वक्फ की हुई बहुत बड़ी जायदाद थी, जिस वजह से यहां पढ़ाने वाले मौलवी को चंदे के पैसे से नहीं, बल्कि उस वक्फ की हुई जायदाद से हुई आमदनी से वेतन मिलता था.
जब 1920 में बिहार के पहले शिक्षा मंत्री सैयद फखरुद्दीन ने मदरसा बोर्ड का बनाया, तो मदरसा अजीजिया भी मदरसा शम्सुल होदा की तरह एक सरकारी मदरसा हो गया. लेकिन इसमें सोगरा वक्फ स्टेट का दखल भी रहा, क्यूंकि इस मदरसा को बिहार के इतिहास की सबसे दानी महिला बीबी सोगरा ने अपने शौहर अब्दुल अजीज की याद में खोला था.
1896 में बीबी सोगरा ने अपनी सारी जायदाद जिसकी सालाना आमदनी उस वक्त एक लाख बीस हजार रूपये थी, उसे तालीमी और समाजी कामों के लिए वक्फ कर दी.
सोगरा वक्फ स्टेट की देखरेख में मदरसा अजीजिया, सोगरा हाई स्कूल और सोगरा काॅलेज जैसे शैक्षणिक संस्थान आज भी जारी हैं. सबसे पहले मदरसा अजीजिया बना था. यह इस इलाके का एक मशहूर धार्मिक शिक्षण संस्थान है, जहां अच्छी-खासी संख्या में बच्चे रह कर पढ़ाई करते थे, जो कोविड आने से पहले तक जारी था.
पिछली सदी में मुसलमानों के जितने भी बड़े लोग बिहार शरीफ इलाके से निकले हैं, उनमें से अधिकतर ने यहां से पढ़ाई की है. अभी मदरसा अजीजिया में 10 टीचर और 2 नन टिचिंग स्टाफ सरकार की तरफ से हैं. वहीं 5 टीचर को सोगरा वक्फ स्टेट की तरफ से वेतन मिलता था. आजकल यह वयस्क शिक्षा योजना का संस्थान भी था. कुछ माह पहले यूनाइटेड नेशन की एक टीम आंद्रिया एम वजनर के नेतृत्व में यहां का दौरा करके गई थी, जिसने यहां के प्रबंधन की काफी प्रशंसा भी की.
यहां करीब 500 बच्चे पढ़ाई करते हैं, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों हैं, उन्हें हाई स्कूल से फाज़िल तक की पढ़ाई दी जाती थी. यहां क़ुरान, हदीस, फिकह के साथ मांतिक, फलसफा, तिब भी पढ़ाया जाता था और साथ ही हिंदी, इंगलिश, उर्दू, अरबी, गणित, भूगोल आदि की पढ़ाई होती थी.
कुल मिला कर ये बिहार का एक माॅडल मदरसा था, था इसलिए क्यूंकि प़साद का बहाना बना कर इसे आग के हवाले किया जा चुका है; और इसमें मंज़ूरीनामा से लेकर बेसिक डाॅक्यूमेंटेशन तक खत्म हो चुका है. जिसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा.
– सद्दाम बिन गयूर