वर्ष - 32
अंक - 14
01-04-2023

– क्लिफ्टन डी रोजारियो

बासवाराज बोम्मई के नेतृत्व वाली कर्नाटक की भाजपा सरकार मंत्रिमंडल की पिछली बैठक भी साम्प्रदायिक और जातिवादी रास्ते पर आगे बढ़ी. यह कर्नाटक सरकार की पहचान बन गयी है.

साम्प्रदायिकता और जातिवाद का खतरनाक गठजोड़

मंत्रिमंडल द्वारा जो पहला निर्यण लिया गया है वह है मुस्लिमों की शर्त पर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के आरक्षण दायरे को बढ़ाना. इसमें हम साम्प्रदायिकता और जातिवाद के खतरनाक गठजोड़ को आसानी से देख सकते हैं. आरक्षण के बदले हुए नियम के अनुसार दो प्रभुत्त्वशाली समुदायों – वोक्कालिगा और पंचमसालिस को 2-सी और 2-डी नाम की दो नई श्रेणियों में ला दिया गया है और आरक्षण को क्रमशः 4 से 6 प्रतिशत और 5 से 7 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है. भाजपा सरकार ने अब यह निर्णय लिया है कि 2-बी श्रेणी के मुस्लिम अब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण का लाभ ले सकेंगे.

2-बी श्रेणी में आने वाले मुस्लिम लोगों को गलत तरीके से आरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया गया है. यह स्वीकार्य नहीं है. इस निर्णय का इस समुदाय के ऊपर खतरनाक असर पड़ेगा क्योंकि 2-बी श्रेणी के अंतर्गत प्राप्त आरक्षण को अब खत्म कर उनको इडब्ल्यूएस में डाल दिया गया है. अब उन्हें ब्राह्मण, व्यासस और जैन जैसे मजबूत समुदायों से प्रतियोगिता करनी पड़ेगी.

मुख्यमंत्री द्वारा डाॅ. बीआर अम्बेडकर का हवाला देते हुए इस निर्णय को न्याय संगत ठहराने का प्रयास और भी खतरनाक है. भाजपा द्वारा समाज पर विभाजनकारी एजेंडा थोपने और समाज में जाति और संप्रदाय के आधार पर भेदभाव पैदा करने का यह एक और प्रयास है. यह निर्णय रूढ़िवादी जातिगत राजनीति के खतरनाक उभार और जाति की राजनीति को आक्रामक बनाने वाले धार्मिक और राजनीतिक नेताओं के गठजोड़ का परिणाम है. कर्नाटक में अधिकांश मुस्लिम लोगों का आर्थिक और सामाजिक स्तर नगण्य है. यही कारण है कि कर्नाटक वह पहला राज्य है जिसने मुस्लिम आरक्षण लागू किया. इस आरक्षण से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है. इसको हटाने का अर्थ हुआ उनके प्रतिनिधित्व का खत्मा और भाजपा ऐसा ही करना चाहती है. इसलिए मुस्लिम आरक्षण को पुनर्बहाली का संघर्ष तेज करना होगा.

आंतरिक आरक्षण

भाजपा सरकार द्वारा दूसरा निर्णय यह लिया गया कि अनुसूचित जनजाति के लिए 6% आंतरिक आरक्षण और अनुसूचित जाति के लिए 5.5% आरक्षण, बंजारा, मूवी, कोरचा, कुरूमा जैसी सछूत जातियों के लिए 4.5 % आरक्षण और बाकी के लिए 1% आरक्षण होगा. यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा.

जिन संगठनों ने पिछले 30 वर्षों में आंतरिक आरक्षण की लड़ाई लड़ी है उन्होंने इसे भाजपा सरकार का षडयंत्र बताया है. मंत्रिमंडल ने जो भी फैसला लिया है, वह अभी केंद्र सरकार को भेजा जाना है और भाजपा सरकार यह कहते हुए कि अब जाकर आंतरिक आरक्षण लागू होगा दलितों को भ्रमित करने की कोशिश कर रही है. यह ठीक वैसे ही है जैसे अनुसूचित जनजाति-अनुसूचित जाति के आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 7% करने पर आरक्षण की 50% की सीमा को पार कर जाने पर आरक्षण को लागू नहीं किया जा सकता. भाजपा एजे सदाशिव आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की लंबे समय से हो रही मांग पर मौन धारण किए हुए है.

सच्चाई तो यह है कि कर्नाटक परमानेंट बैकवर्ड क्लासेज आयोग की रिपोर्ट को भी अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. इस रिपोर्ट के जो आंकड़े बाहर आ गए हैं उनसे यह पता चलता है कि अनुसूचित जनजाति की आबादी पूरे राज्य की जनसंख्या का 19.5% है और मुस्लिम आबादी 16%, जबकि लिंगायत और वोक्कालिगा क्रमशः 14% और 11% ही हैं. ओबीसी जातियों में कुरूबास अकेले पूरे राज्य की जनसंख्या का 7% हैं. संपूर्ण ओबीसी की जनसंख्या कर्नाटक की जनसंख्या का 20% है. आरक्षण को ठीक ढंग से लागू करने के लिए यह रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है.

भाजपा का पीछे हटना

पूरे कर्नाटक के गांव और शहरों में सफाई के काम से जुड़े हुए पावर अकार मीरा के जुलाई 2022 के आंदोलनों को याद किया जा सकता है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज ने यूनियन के साथ एक बैठक की और वादा किया कि सभी कूड़ा गाड़ियों के चालकों और कूड़ा उठाने वालों को दमनकारी ठेका व्यवस्था से मुक्त किया जायेगा और उन्हें स्थायी किया जाएगा. लेकिन यह लागू नहीं किया गया और कर्मचारियों को 20 मार्च 2023 से राज्य स्तरीय हड़ताल के लिए मजबूर किया गया. नगर निगम के कर्मचारियों के साथ साथ पानी वाले, यूजीडी कर्मचारी, डेटा इंट्री ऑपरेटर आदि भी हड़ताल में शामिल थे. महत्त्वपूर्ण यह कि इन कर्मचारियों की में अधिकांश दलित और हाशिये के समाज के लोग हैं. कई-कई बार सरकार के अधिकारियों से बातचीत भी हुई लेकिन हर बार यही कहा गया कि मंत्रिमंडल इस पर सकारात्मक निर्णय लेगा. जबकि सच्चाई यह है कि राज्य सरकार ठेकेदारों के आगे समर्पण कर चुकी है, इस मुद्दे को उसने अनदेखा कर दिया है और मंत्रिमंडल ने भील अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. यह राज्य का पीछे हटना है. मजदूर इस रवैये को बर्दाश्त नही करेंगे और कर्नाटक के आगामी चुनाव में इसका बदला लेंगे.

भाजपा के मजदूर विरोधी होने का एक और उदाहरण हाल ही में तब दिखा, जब फैक्ट्री ऐक्ट में काम के घंटे को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया और महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति दी गई और 25 घंटे निर्धारित ओवर टाइम को बढ़ाकर 40 घंटे कर दिया गया. सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 23 मार्च 2023 को इसके खिलाफ राज्य स्तरीय प्रदर्शन कर इसको खत्म करने की मांग की. लेकिन भाजपा की हठर्ध्मिता यह दिखाती है कि वह मजदूरों के शोषण के लिए कारपोरेट के साथ गठजोड़ कायम की हुई है. इस सरकार के लिए सामाजिक न्याय का कोई मतलब नहीं है. विभाजनकारी जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति और कारपोरेट परस्त नीतियां ही उसका प्रमुख उद्देश्य है. कर्नाटक की जनता को भाजपा के इस सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति को आगामी चुनाव में कड़ी शिकस्त देनी होगी.