भाकपा(माले) की 11वें महाधिवेशन का सार संदेश या राजनीतिक टैगलाइन यही है. आज के दौर में भाकपा(माले) ने दीर्घकालिक क्रांतिकारी नजरिये से पार्टी कतारों, सभी वामपंथी व लोकतंत्र पसंद ताकतों तथा पूरे देश भर में संघर्ष कर रही जनता के लिये सबसे अहम राजनीतिक मुकाबले में फासीवाद के खिलाफ एका कायम कर लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है.
ऐसे दौर में जब देश बढ़ते फासीवादी हमले और उससे मुकाबला करते जन-प्रतिरोधों के बीच 2024 के चुनावों की ओर बढ़ रहा है, जाहिर तौर पर इस फासीवादी हुकूमत को हराने के लिए सबसे पहली और खास चुनौती जमीनी स्तर से ऊपर तक, और साथ ही ऊपर से नीचे गांव व मुहल्ला तक ठोस राजनीतिक अभियान चलाना और फासीवाद विरोधी ताकतों की हरसंभव व्यापक एकता कायम करना है. सबसे अहम इस राजनीतिक मुकाबले को तवज्जो देने की जरूरत न केवल पार्टी कांग्रेस के दस्तावेजों और सदन की बहसों-विमर्शों से उजागर हुआ, बल्कि पहली बार पार्टी कांग्रेस ने कामयाबी के साथ ‘फासीवादी हमले से संविधान-लोकतंत्र-देश बचाओ’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन भी सदन में आयोजित किया, जिसमे देश और बिहार के शीर्ष विपक्षी नेताओं की भागीदारी रही. इस सम्मेलन ने एनडीए को सत्ता से बेदखल करने की जनता की चाहत के बतौर बिहार माॅडल के विस्तार की जरूरत को भी प्रदर्शित किया. इस जोशीली चर्चा में विपक्षी एकता के सवाल पर नीतीश कुमार के भाषण के दौरान यह बात खास तौर पर उभर कर आई, जब उन्होंने कांग्रेस के प्रतिनिधि सलमान खुर्शीद से मजाकिया लहजे में आलोचना करते हुए आग्रह किया कि कांग्रेस पार्टी को इस मुद्दे पर खुलकर मजबूती के साथ आना होगा. उसी मजाकिया लहजे में कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि सलमान खुर्शीद ने भी सकारत्मक जबाब दिया और कुछ दिनों बाद एआईसीसी के नए रायपुर प्रस्ताव ने स्पष्ट रूप से सभी भाजपा विरोधी दलों की एकता की तत्काल जरूरत के पक्ष में प्रस्ताव को पारित कर दिया.
भाकपा(माले) के लिए जुझारू फासीवाद-विरोधी एकता का मतलब आगामी प्रांतीय और राष्ट्रीय चुनावी गठजोड़ से कहीं अधिक है. उसे इसके सामने सभी प्रकार के फासीवादी हमलों और उसकी घटिया युक्तियों के खिलाफ पूरे भारत के विभिन्न जन आंदोलनों को ताजादम कर व्यापक एकजुटता की धुरी बनना है और भाकपा(माले) इस व्यापक पैमाने पर गैर-संसदीय जन-प्रतिरोध को खड़ा करने में संयुक्त वाम से खास भूमिका अदा करने की अपेक्षा करती है. इस बाबत पूरी दुनिया भर में फासीवाद/सर्वसत्तावाद के बढ़ते खतरे के खिलाफ आंदोलनों के बीच और भी अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की अहम जरूरत है. भारतीय वामदलों के नेताओं और अंतरराष्ट्रीय अतिथियों ने अपने जोशीले संबोधनों और संदेशों में इसको पूरी तरह से समर्थन दिया. इस प्रकार 11वीं कांग्रेस व्यापक विपक्षी एकता का एक भव्य मंच बन गई जिसकी धुरी में वामदलों का ठोस गठबंधन है, और साथ में अंतरराष्ट्रीय वाम-लोकतांत्रिक ताकतों की एकजुटता है जो फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध की आम वजह से एकजुट हो गए.
फासीवाद विरोधी संघर्ष की अत्यंत चुनौतीपूर्ण और बहुत लंबी प्रकृति के संदर्भ में दूसरा नारा भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण है. फासीवादी हैवानियत के चंगुल से हमारे संवैधानिक लोकतंत्र को बचाना निश्चित तौर से सबसे खास फौरी लक्ष्य है, लेकिन महज चुनावी हार से फासीवाद का खात्मा हो जाने की कल्पना करना खुद को और देश की जनता को धोखा देने के अलावा कुछ नही है. आरएसएस और उसके विस्तृत परिवार का उतार-चढ़ाव से भरा इतिहास साफ तौर से यह दिखाता है कि यह प्रतिबंधित होने की दशा में भूमिगत रूप से फलने-फूलने और तेजी से विस्तार करने के लिए पर्याप्त अनुभव और विशेषज्ञता रखता है. यह सत्ता में या बाहर रहते हुए भी भारतीय समाज की कई कमियों और आंतरिक खामियों का उपयोग अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए करता है. अब इसमें 2014 के बाद भारतीय समाज और राज्य की लगभग सभी संस्थाओं का अपार फासीकरण भी जुड़ गया है और यह समझना सरल है कि भले ही एक संयुक्त विपक्ष 2024 में मोदी-शाह हुकूमत को हरा दे, पर भगवा फासीवादियों के पास अभी या बाद में भी प्रतिशोध के साथ सत्ता के गलियारों में वापस आने के लिए पर्याप्त अवसर होगा.
इस खतरनाक संभावना को खत्म करने का एकमात्र जरिया उस सामाजिक जमीन का क्रांतिकारी परिवर्तन है जहां संघ की जड़ें और और शाखाएं फैली हैं. दूसरे शब्दों में, जनता के असली लोकतंत्र को ‘अनिवार्य रूप से अलोकतांत्रिक भारतीय जमीन’ पर स्थापित नहीं किया जा सकता है – जैसा कि डाॅक्टर अंबेडकर ने स्वतंत्रता के अगले दिन भविष्यवाणी की थी. इसीलिए, लोकतंत्र, कानून का शासन, संघवाद और संविधान में निहित अन्य आदर्शों को बहाल करने के संघर्ष की अंतिम जीत सिर्फ फासीवाद को सत्ता से बेदखल करके नहीं हो सकती है – इसे लगातार लोकतंत्र के पुनर्निर्माण के लिए चलना चाहिए. अंबेडकर ने भी कहा था – ‘लोकतंत्र सरकार का एक रूप और एक तरीका है जिससे लोगों के आर्थिक और सामाजिक जीवन में बिना रक्तपात के क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है’.
जनता के असली टिकाऊ लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए इतिहास ने हमारे कंधों पर एक जिम्मेदारी सौंपी है जिसे 11वे महाधिवेशन ने जोर देकर सभी वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों के साथ अपने सहयोग को पूरा करने के अपने संकल्प में दोहराया है. इसके लिए यह निहायत ही जरूरी है कि हम तेजी से पार्टी का विस्तार करें. इसके लिए आवश्यक जमीन हर रोज जनता द्वारा अनगिनत प्रतिरोधों, आंदोलनों और सामाजिक-राजनीतिक मंथन के जरिये हर जगह तैयार है, केवल हमें अपनी संगठनात्मक तहजीब और कार्यशैली की कुछ प्रमुख खामियों को दूर करने के लिए और अधिक गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. प्रतिनिधिसत्र के दौरान इस पर काफी समय और ध्यान दिया गया और अधिक एकीकृत समझ बनी. यहां इस बात पर जोर दिया गया है कि संगठन का व्यापक दायरे में विस्तार वैचारिक, राजनीतिक और संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के साथ-साथ होना चाहिए. पार्टी निर्माण के एकीकृत काम के लिए ये दोनों पहलू समान रूप से महत्वपूर्ण और एक दूसरे के पूरक हैं.
ये सारे काम बेहद चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन जनता पर भरोसा करते हुए तथा उन्हें राजनीतिक रूप से प्रेरित करते हुए उनकी विशाल क्रांतिकारी ऊर्जा और रचनात्मकता को वास्तविक तौर से लोकतांत्रिक, संघात्मक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी भारत के निर्माण के लिए हथियार बनाकर हासिल किया जा सकता है, जिसका सपना आजादी आंदोलन के दौरान और उसके बाद आज तक हमारे देशवासियों ने देखा था और उसके लिए संघर्ष किया था और उसे हासिल करने के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया था.
नव वसन्त के अग्रदूत दहकते पलाश फूलों ने खेतों, सड़कों और आकाश को लाल कर देश के सभी हिस्सों के कामरेडों और दोस्तों को इंकलाबी सलाम पेश कर दिया है और जब कांग्रेस के समापन के बाद आयोजकों और स्वयंसेवकों सहित सभी भाग लेने वालों ने एक दूसरे को अलविदा कहा तो मानो कि दहकते लाल फूल बोल पड़े – ‘लाल सलाम कामरेड, फिर मिलेंगे! हम होंगे कामयाब! इंकलाब जिंदाबाद!’ गैर-हिंदी राज्यों और यहां तक कि दूर-दूर के देशों के कामरेडों ने भी यह सब समझा. एक नए साहस, अटूट विश्वास, साफ राजनीतिक समझ और एकता की व्यापक भावना के साथ पार्टी महाधिवेशन में देश भर से आये कामरेड वीएम नगर के क्रांतिकारी संदेशों को फैलाने और उस पर अमल करने के लिए अपने कार्यस्थल के लिए रवाना हुए.
– अरिंदम सेन