उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा भारत निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में दिए गये फैसले का भाकपा(माले) स्वागत करती है. मोदी सरकार, निर्लज्जता के साथ अपने चहेते नौकरशाहों से चुनाव आयोग को भर कर निरंतर ही उसकी स्वायत्तता का क्षरण करने पर तुली हुई है. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से भविष्य में कार्यपालिका पर कुछ अंकुश लगने की उम्मीद है, परंतु निश्चित ही यह गंभीर चिंता का विषय है कि सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद पहले हो चुकी नियुक्तियां लागू रहेंगी. एक पुनः राहत देने वाला पहलू यह घोषणा कि प्रत्यक्ष चुनाव में वोट डालना मौलिक अधिकार है.
मोदी सरकार द्वारा अडानी घोटाले में नियामक विफलताओं की जांच के लिए पैनल बनाने की संस्तुति सीलबंद लिफाफे में दिये जाने को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार किये जाने का भी हम स्वागत करते हैं. जांच को निर्धारित दो महीने में पूरा किये जाने पर जोर देने के बाद भी, हम जांच का दायरा काफी सीमित पाते हैं क्योंकि यह हिंडनबर्ग रिपोर्ट के चलते उत्पन्न उथल-पुथल से निवेशकों को बचाने पर ही केंद्रित है. मोदी सरकार की भूमिका और खास तौर पर मोदी-अडानी गठजोड़ तथा प्रमुख वित्तीय संस्थाओं जैसे एसबीआई और एलआईसी की भागीदारी के कारण देश के सामने मुंह बाए खड़ी वित्तीय असुरक्षा का सवाल, सर्वोच्च न्यायालय की जांच के दायरे से बाहर है.
इसलिए हम भारत के लोगों से अपील करते हैं कि अडानी घोटाले के संदर्भ में खड़े हो रहे सभी सवालों के जवाबों की मांग करें और भारत में विनाशकारी पिट्ठू पूंजीवाद के उभार तथा गगनचुंबी घोटालों के प्रोत्साहन व अडानी घोटाले के स्तर की कारपोरेट लूट को सुगम बनाने और देश को उसकी कीमत भुगतने के लिए अभिशप्त बना देने के लिए मोदी सरकार पर जिम्मेदारी आयद करें.
- दीपंकर भट्टाचार्य
महासचिव
भाकपा(माले)