गुजरात बनाम बिहार मॉडल : भाजपा के पास हत्या-बलात्कार और मुसलमानों के सामूहिक नरसंहार का गुजरात मॉडल है. 2014 से आरएसएस-भाजपा का पूरे देश में जारी सांप्रदायिक फासीवादी उन्मादी अभियान आज अपने चरम पर पहुंच गया है. 2022 के 15 अगस्त को जब लालकिले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के 75 वर्ष पर देश को संबोधित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त गुजरात जनसंहार की पीड़िता बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार व उनके परिजनों की हत्या करने वाले अपराधियों को रिहा किया जा रहा था और भाजपा उन लोगों के सम्मान में कार्यक्रम करवा रही थी.
गुजरात मॉडल के बरक्स हमारे पास बिहार मॉडल है, जिसकी आज पूरे देश में चर्चा हो रही है. देश के दूसरे कई राज्यों में जहां भाजपा विपक्ष की चुनी हुई सरकारों को गिराने के षड्यंत्र में कामयाब रही है, वहीं बिहार की सत्ता से भाजपा की बेदखली से तमाम लोकतांत्रिक व अमन पसंद जनता को नई ऊर्जा व दिशा मिली है. बिहार ने भाजपाइयों के खिलाफ मोर्चेबंदी की तैयारी शुरू कर दी है. बिहार मॉडल हर प्रकार के दमन का प्रतिरोध करते हुए जनांदोलनों का मॉडल है. यह मॉडल निश्चित रूप से 2024 के चुनाव में केंद्र की सत्ता से भाजपा की विदाई तय करेगा.
कॉरपोरेट लूट और फासीवादी अभियान : केंद्र की सत्ता हथिया लेने के बाद भाजपाई एक तरफ कॉरपोरेट लूट को बढ़ावा दे रहे हैं तो दूसरी ओर दमनकारी अभियानों व भगवा ब्रिगेड के जरिए देश के लोकतंत्र व संविधान को कुचल देने और मनुस्मृति के ब्राह्मणवादी मूल्यों को ही देश का विधान बना देने की हर रोज नई साजिशें रच रहे हैं. आज देश की लगभग सभी संस्थाओं को मैनेज कर लिया गया है. सभी नियम-कानूनों को ठेंगा दिखलाकर अंबानी-अडानी सरीखे कुछ मुट्ठी भर कॉरपोरेटों के हाथों में सबकुछ सौंपा जा रहा है. जल-जंगल-जमीन-खाद-खदान समेत तमाम प्राकृतिक संसाधानों और रेल-सेल-बैंक-बीमा सहित सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम संस्थाओं-सेवाओं को उनके हाथों में गिरवी रखा जा रहा है. कॉरपोरेट गिरोहों तथा भाजपा-संघ के बीच के नापाक गठजोड़ के तले देश की आम जनता महंगाई, भुखमरी व बेरोजगारी की भयानक मार झेल रही है.
अडानी घोटाले पर चुप्पी, विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी : हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने मोदी सरकार के दुलरुए अडानी की पोल खोल दी है. धोखाधाड़ी करके अडानी मोदी राज में दुनिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति की श्रेणी में आ गए. आज जब अडानी की पोल खुल चुकी है, नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने गजब की चुप्पी साध ली है. क्योंकि इसमें इनके भी काले कारनामे शामिल हैं. अडानी पर कोई कार्रवाई नहीं होती, कोई जांच नहीं होती, लेकिन विपक्ष के नेताओं को सीबीआई-ईडी के जरिए लगातार परेशान किया जा रहा है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी मोदी-शाह हुकूमत के जरिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग करते हुए विपक्षी पार्टियों को आतंकित करने की कोशिश है. लेकिन भाजपाइयों की इन कोशिश से हम डरने वाले नहीं है. आपके मंसूबों को देश जान चुका है.
संघीय ढांचे पर हमला : भाजपा सरकार देश के संघीय ढांचे पर लगातार हमला कर रही है. संविधान व लोकतंत्र पर हमला हो रहा है. तानाशाही का विस्तार हो रहा है. सभी संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता खत्म कर दी जा रही है. न्यायालय से लेकर चुनाव आयोग की स्वायत्तता खत्म कर उसपर भाजपाई नियंत्रण कायम करने की कोशिशें चल रही हैं. यह सब देश बर्दाश्त नहीं करेगा.
वैश्विक असमानता रिपोर्ट की चिंताजनक स्थिति : वैश्विक असमानता रिपोर्ट ने देश में बढ़ती गरीबी व असमानता की खाई को एक बार फिर से उजागर किया है. मोदी राज में ग्लोबल हंगर सूचकांक में भी भारत सबसे दयनीय देशों की सूची में शामिल हो गया है. महंगाई, बेरोजगारी व कर्ज के दबाव में सामूहिक आत्महत्याओं का सिलसिला हर जगह तेज हुआ है. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा घोर अराजकता व बदहाली की चरम अवस्था तक पहुंचती जा रही है. इन ज्वलंत सवालों की जगह मोदी सरकार के मंत्री और संघ-भाजपा के नेता सांप्रदायिक विभाजन की मुहिम चला रहे हैं और इसके खिलाफ उठने वाली आवाजों का दमन कर रहे हैं.
किसानों की खूनी भाजपा किस मुंह से किसान मजदूर समागम कर रही है : कोविड काल के दौरान खेत व किसानी को कॉरपोरेटों के हवाले कर देने के लिए मोदी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई, अंततः 700 किसानों की जिंदगी समाप्त करने के उपरांत देशव्यापी प्रतिवाद के दबाव में उसे उन कानूनों को वापस लेना पड़ा. सरकार ने एमएसपी पर कानून बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में वह अपने वादे से मुकर गई और किसानों से निकृष्टतम किस्म का विश्वासघात किया. नोटबंदी ने छोटे-मध्यम व्यापारियों की ऐसी कमर तोड़ी कि वे अब तक उबर नहीं पाए हैं. कोविड काल के दौरान प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकार के अव्वल दर्जे के अमानवीय व्यवहार को पूरी दुनिया ने देखा. आपदा को अवसर में बदलते हुए मजदूर-किसानों व कामकाजी हिस्से के हक-अधिकार की रक्षा के लिए बने कानूनों को पूंजीपतियों के हित में बदल दिया गया. श्रम कानूनों में संशोधन करके मजदूरों को मालिकों का गुलाम बना दिया गया. आज ये भाजपाई किसान मजदूर समागम का नाटक कर रहे हैं.
पर्यावरण से खिलवाड़ : कॉरपोरेट घरानों द्वारा संसांधनों की अंधाधुंध लूट के लिए बनाई गई विनाशकारी योजनाओं ने आज पर्यावरण व जन-जीवन को गहरे संकट में डाल दिया है. पर्यावरण से खिलवाड़ बहुत भारी पड़ रहा है. चार धाम यात्रा के नाम पर उत्तराखंड में जो हुआ, उसका विनाशकारी परिणाम हम सब देख रहे हैं. जोशी मठ बचेगा या नहीं, यह चिंता पूरे देश को सता रही है. जंगलों पर भी कॉरपोरेटों की गिद्ध नजर है और वहां से आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है.
संविधान विरोधी सवर्ण आरक्षण : दलितों-पिछड़ों के आरक्षण को खत्म कर देने के लिए लगातार चल रही कोशिशों के बीच संविधान विरोधी 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण देकर एससी-एसटी ऐक्ट को कमजोर कर दिया गया है.
एनआइए का राजनीतिक दुरूपयोग : मुसलमानों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयासों में एनआइए जैसी संस्थाएं भाजपा-आरएसएस के हाथों की कठपुतली बन गई हैं. फुलवारीशरीफ को विगत 6-7 महीने से तबाह कर दिया गया है. निर्दोष मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है. बिना किसी सबूत के उन्हें आतंकी कहकर पूरे मुस्लिम समुदाय को तबाह व बर्बाद किया जा रहा है. बिहार सरकार से एनआइए की ऐसी असंवैधानिक कार्रवाइयों पर रोक लगाने की उम्मीद है.
भाजपा के बुलडोजर राज को बिहार में रोकना होगा : यूपी में कौन सा राज चल रहा है. बुलडोजर राज. कानपुर से लेकर हर कहीं लोगों के घरों को जमींदोज कर दिया जा रहा है. विरोध के स्वर को दबाने की कोशिश हो रही है. भाजपा बिहार में विगत कई वर्ष सरकार में रही है और उसने सरकारी संस्थानों व नीतियों को बुरी तरह से प्रभावित किया है. भाजपाई फासीवादी शासन की संस्कृति का बिहार के शासन तंत्र पर जबरदस्त असर अब भी है. भाजपाई बुलडोजर की तर्ज पर दलितों के घरों को बिना नोटिस उजाड़ देना, आंदोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज करना और गिरफ्तार करना जैसी भाजपाई संस्कृति अब भी जारी हैं. हम राज्य सरकार से ऐसे मामलों पर तत्काल रोक लगाने, दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करने और बिना वैकल्पिक व्यवस्था के गरीबों को नहीं उजाड़ने की सरकारी घोषणा को जमीन पर लागू करने की मांग करते हैं.
बजट सत्र में नया वास-आवास कानून लेकर आए सरकार : हम मांग करते हैं कि सरकार बजट सत्र में एक मुकम्मल सर्वे कराकर नया वास-आवास कानून बनाए और गरीबों के उजाड़ने की प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए तत्काल एक अध्यादेश लाए.
फर्जी बिजली बिल से तबाही : बिहार में कई गुना ज्यादा राशि वाला बिजली बिल भुगतान न करने की वजह से सैकड़ों दलित-गरीब बस्तियों के घरों का बिजली कनेक्शन काटे जाने और उपभोक्ताओं पर मुकदमा दर्ज करने की घटनायें लगातार सामने आ रही हैं. राज्य सरकार इसपर अविलंब रोक लगाए, राज्य की बिजली कंपनियों पर नकेल कसे और उनके निगरानी की व्यवस्था का काम करे.
महिलाओं-दलितों पर हिंसा की घटनाएं : राज्य में महिलाओं-दलितों के ऊपर लगातार बढ़ रही हिंसा की घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं. गरीबों पर हमला करनेवाले भाजपा संरक्षित गिरोहों को स्थानीय शासन-प्रशासन का शह भी हासिल है. राज्य सरकार से दलित-गरीबों और महिलाओं पर हिंसा व हमले की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाने, दोषियों पर कार्रवाई करने तथा भाजपा संरक्षित-अपराधी गिरोहों के खिलाफ कठोर कदम उठाने उम्मीद है.
स्कीम वर्कर्स के लिए न्यूनतम मानदेय : आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को जीने लायक मासिक मानदेय देने के प्रति मोदी सरकार की उदासीनता और विश्वासघात जारी है. कोरोना काल में उत्कृष्ट भूमिका के बावजूद हालिया केंद्रीय बजट में किसी तरह का बजटीय प्रावधान का नहीं होना सरकार के मजदूर विरोधी रवैया को एक बार फिर से जाहिर करता है. केंद्र सरकार देश के लाखों स्कीम वर्कर्स को न्यूनतम 21 हजार मासिक मानदेय और सेवा के नियमितिकरण से भाग रही है. हम बिहार सरकार से कार्यरत इन स्कीम वर्कर्स के प्रति बरती जा रही उपेक्षापूर्ण नीति के खिलाफ महागठबंधन के घोषणापत्र के आलोक में तमाम स्कीम वर्कर्स को राहत देने की उम्मीद करते हैं.
विश्वविद्यालयों और प्लस टू विद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों के समायोजन, लंबित शिक्षक बहाली को अविलंब शुरू करने, बहाली की प्रक्रिया को पारदर्शी व सुगम बनाने तथा विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक माहौल को ठीक करने व सत्र के नियमितीकरण, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के साथ-साथ संबद्ध कॉलेजों में दशकों से कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को अतिथि शिक्षक को मिलने वाली न्यूनतम राशि देने की जरूरत है. शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देने वाली नई शिक्षा नीति 2020 को वापस लेने, समान स्कूल प्रणाली लागू करने तथा सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने, शिक्षा विभाग के तहत जारी स्कीमों में कार्यरत कर्मियों को सम्मानजनक वेतन व नियमितीकरण और साथ ही, शिक्षा विभाग में बरसों तक अपनी सेवा देने वाले हजारों शिक्षा प्रेरकों की पुनबर्हाली होनी चाहिए.
एपीएमएसी ऐक्ट की पुनर्बहाली करे बिहार सरकार : बिहार में एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग को पूरा करने के साथ ही किसानों को कृषि कार्यों के लिए मुफ्त बिजली देनी चाहिए.
टाडा व शराबबंदियों की रिहाई का मसला : टाडा और शराबबंदी कानून के तहत जेल में बंद लोगों की रिहाई और भाकपा-माले नेताओं व विधायकों पर आंदोलनों के दौरान दर्ज किए गए फर्जी मुकदमों को वापस लिया जाना चाहिए.
न्यूनतम मजदूरी बढ़ाजा जाए : बिहार जैसे गरीब राज्य और खासकर पूरे देश में मजदूर सप्लाई करने वाले राज्य में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की जरूरत है. उसे सभी विभागों-क्षेत्रों में लागू करने को लेकर बिहार सरकार को अपनी इच्छाशक्ति अब दिखलानी होगी. महागठबंधन का यही एजेंडा है.