भाकपा(माले) के 11वें महाधिवेशन के पहले दिन पटना के गांधी मैदान में आयोजित ‘लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ’ रैली अपनी संख्या और संदेश की वजह से ऐतिहासिक बन गई. बिहार के लगभग सभी जिलों से हजारोंझार की तादाद में आये खेत व अन्य ग्रामीण मजदूरों, किसानों, छात्र-नौजवानों व महिलाओं तथा आशा, आंगनबाड़ी, रसोइया, आदि समेत तमाम स्कीम वर्कर्स व अन्य मजदूरों ने जहां एक ओर देश की सत्ता पर काबिज कारपोरेट-फासीवादी मोदी हुकूमत को राज और समाज से पूरी तरह बेदखल करने का संकल्प जाहिर किया तो वहीं दूसरी ओर अपने हक-अधिकारों समेत लोकतंत्र व संविधान पर हो रहे हमलों के खिलाफ जारी जनांदोलन को जुझारू व निर्णायक बनाने का ऐलान भी किया. रैली ने भाकपा(माले) के पक्ष में दलित-पिछडों व अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक गोलबंदी को नया मुकाम हासिल कर लेने का भी सकेत किया. समाज की अन्य मध्यवर्ती ताकतों – छोटे दूकानदारों, शहरी नागरिकों और बौद्धिक समाज के भी एक हिस्से पर इसका गहरा प्रभाव देख गया.
दिन के ठीक साढ़े ग्यारह बजे रैली मंच पर भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य समेत अन्य पार्टी नेताओं के आगमन और मंच की बायीं ओर बनी शहीद वेदी पर माल्यार्पण के साथ रैली शुरू हुई. इससे पहले सुबह 10 बजे से ही देश भर से आयी सांस्कृतिक टीमों व गायक-नर्तक कलाकारों ने अपने क्रांतिकारी गीत-नृत्य से पूरे गांधी मैदान का गु्रंजायमान कर रखा था.
शहीद वेदी को चारों तरफ पिछले वर्षों दिवंगत हुए पार्टी नेताओं – बिहार के पूर्व राज्य सचिव का. रामजतन शर्मा व का. पवन शर्मा, तमिलनाडु राज्य सचिव का. एनके नटराजन, समकालीन लोकयुद्ध के पूर्व सम्पादक का. बीबी पांडेय, बिहार के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता का. रामदेव वर्मा और का. प्रो. अरविंद कुमार सिंह की तस्वीरों को भी लगाया गया था. रैली मंच के सामने के विशाल डी एरिया समेत पूरे मैदान की लाल झंडों व बैनर-फेस्टून से आकर्षक सजावट की गई थी. शहीदों को मौन श्रद्धांजलि देने की जब घोषणा हुई तो हजारों लोग एक साथ नतसिर खड़े हो गये. उसके बाद शहीद गीत ‘कारवां बढ़ता रहेगा ...’ प्रस्तुत किया गया और नेताओं ने बारी-बारी से लोगों को संबोधित किया.
(2). रैली में सीमांचल के जिलों – पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज से कल रात से ही लोगों के आने का तांता लगा रहा. इनमें महिलाओं की भी कापफी संख्या शामिल थी. तीर-धनुष के साथ परंपरागत वेश भूषा में हजारों की तादाद में वे गांधी मैदान पहुंचे थे. भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर ने आगामी 25 फरवरी को पूर्णिया में होनेवाली महागठबंधन की रैली में भारी तादाद में शामिल होने की जब अपील की तो उन्होंने जोरदार तालियों से स्वागत किया.
(3). रैली मंच पर 10 बजे से ही सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो गए थे. इसमें आंध्र प्रदेश, प. बंगाल, असम, कार्बी आंग्लांग, झारखंड और बिहार की सांस्कृतिक टीमों ने गीत व नृत्य प्रस्तुत किए. रैली में शामिल लोगों ने बीच-बीच में तालियां बजाकर उनका उत्साह बढ़ाया. भाकपा(माले) केंद्रीय कमेटी के सदस्य बलिन्द्र सैकिया ने हिरावल पटना के संयोजक संतोष झा की मदद से इस कार्यक्रम को पेश किया. रैली को आइसा के राष्ट्रीय महासचिव व पालीगंज विधायक संदीप सौरभ, आरवाइए के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अगिआवं विधायक मनोज मंजिल, स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजक व ऐपवा राज्य सचिव शशि यादव, खेग्रामस के बिहार राज्य अध्यक्ष व सिकटा विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, खेग्रामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष व भाकपा(माले) विधायक दल के उपनेता सत्यदेव राम, पोलित ब्यूरो सदस्य बगोदर (झारखंड) के विधायक विनोद सिंह, ऐपवा महासचिव मीना तिवारी, मार्क्सवादी समन्वय समिति के नेता हलधर महतो, भाकपा(माले) विधायक दल नेता महबूब आलम, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिं, नेपाल के पूर्व उप प्रधीनमंत्री और नेकपा(एमाले) राष्ट्रीय नेता ईश्वर पोखरेल और सबसे आखिर में भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने संबोधित किया.
मंच के ठीक सामने सिर पर सफेद टोपियां लगाए बैठे उत्प्रेरक संघ के सैकड़ों सदस्य अलग से भी दिखाई दे रहे थे. पटना के ई रिक्शा चालकों व फुटपाथ दुकानदारों की भी इस बार व्यापक भागीदारी दिखी.
गया के वरिष्ठ अधिवक्ता फैयाज हाली और कैमूर जिले के पूर्व मुख्यिा सतीश यादव ने आज रैली मंच से भाकपा(माले) की सदस्यता ग्रहण करने की घोषणा की.
भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने जब पार्टी के पूर्व महासचिव का. विनोद मिश्र के चर्चित कथन – हम फिर मिलेंगे साथियों संघर्ष के मैदानों में – से अपने वक्तव्य की शुरूआत की तो कई मिनटों तक गांधी मैदान लाल सलाम और शहीदों के सपनों का भारत बनाने के नारे के साथ गुंजता रहा.
रैली के मंच पर लाल निशान पार्टी(लेनिनवादी) के भीमराव बनसोड व विजय कुलकर्णी, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ बांग्लादेश के बजरूल रसिक फिरोज व विप्लवी वर्कर्स पार्टी, बांग्लादेश के महासचिव सैफुल हक तथा आस्ट्रेलिया के सोशलिस्ट एलाएंस के सैमुअल वेनराइट आदि विदेशी प्रतिनिधियों व बिरादराना पार्टी नेताओं के साथ ही भाकपा(माले) पोलित ब्यूरो के सदस्य, राज्यों के सचिव व प्रभारी और बिहार राज्य स्थायी समिति के सदस्य भी रैली मंच पर मौजूद थे. वरिष्ठ पार्टी नेताओं – का. कृष्णदेव यादव, महबूब आलम, सत्यदेव राम, मंजू प्रकाश, धीरेन्द्र झा ने रैली की अध्यक्षता की. चर्चित महिला नेत्री का. मुजू प्रकाश ने 15 सूत्री प्रस्ताव का पाठ किया.
रैली के प्रस्तावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चहेते अडानी पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के मद्देनजर अडानी ग्रुप पर कार्रवाई करने तथा विपक्ष द्वारा जेपीसी जांच की उठाई गई मांग का समर्थन किया गया.
एक ओर चरम काॅरपोरेट लूट तो दूसरी ओर राज्य संरक्षित हिंसा व दमन के जरिए लोकतंत्र व संविधान को कुचल देने की साजिशों, भाजपा-आरएसएस द्वारा शासन के समूचे तंत्र व संस्थाओं पर अपनी मजबूत जकड़ की वजह से बढ़ रही फासीवादी प्रवृत्ति गहरी चिंता जाहिर की, भाजपा-आरएसएस जैसी ताकतों को राज व समाज दोनों जगह से बेदखल करने तथा 2024 के आम चुनाव में देश की सत्ता से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया.
रैली ने मोदी राज में बढ़ती गरीबी व असामनता तथा महंगाई, बेरोजगारी व कर्ज के दबाव में बढ़ती आत्महत्याओं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की घोर बदहाली और इन पर से जनता का ध्यान भटकाने के लिए मोदी सरकार के मंत्रियों और संघ-भाजपा के नेताओं की सांप्रदायिक विभाजन की मुहिम और इसके खिलाफ आवाज उठाने वालों पर दमन की लगातार जारी इस मुहिम की घोर निंदा करते हुए इस सबकूे खिलाफ जनांदोलन तेज करने का आह्वान किया.
रैली ने बजट 2023 के प्रति अपने आक्रोश को जाहिर करते हुए आम जनता के लिए राहत के उपायों के प्रावधान की मांग की और देश में बढ़ती असमानता को दूर करने के लिए काॅरपोरटों पर टैक्स बढ़ाने, वेल्थ टैक्स लगाने तथा मनरेगा सहित सामाजिक सुरक्षा मदों और उर्वरकों पर जारी सब्सिडी की कटौती पर रोक लगाने की मांग की.
रैली ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च जातियों के लिए 10 % ईडब्लूएस आरक्षण और इसका मोदी सरकार द्वारा खुले दिल से किये गये अनुमोदन का पुरजोर विरोध करते हुए इसे संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ बताया और दलितों-पिछड़ो के आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग की.
रैली ने मोदी राज के पिछले 8 वर्षों के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में कई तरह के कठोर कानूनों के तहत और फर्जी तरीके से अभियुक्त बनाये गये और जेल में डाल दिये गये सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की अविलंब रिहाई की मांग की.
रैली ने भाजपाई फासीवादी शासन – बुलडोजर राज – की तर्ज पर दलितों के घरों को बिना नोटिस उजाड़ देना, आंदोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज करना और गिरफ्तार करना आदि पर तत्काल रोक लगाने, दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करने और बिना वैकल्पिक व्यवस्था के गरीबों को नहीं उजाड़ने की सरकारी घोषणा को जमीन पर लागू करने की भी मांग की.
रैली ने भाजपा-आरएसएस के इशारे पर एनआइए द्वारा बिहार में मुस्लिम समुदाय के लोगों को लगातार प्रताड़ित व अपमानित करने रोक लगाने, बिहार में कई गुना ज्यादा राशि वाला बिजली बिल भुगतान न करने की वजह से सैकड़ों दलित-गरीब बस्तियों के घरों का बिजली कनेक्शन काटे जाने और उपभोक्ताओं पर मुकदमा दर्ज करने, राज्य में महिलाओं-दलितों के ऊपर लगातार बढ़ रही हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाने, देश के लाखों स्कीम वर्कर्स जिसमें नब्बे फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं, को न्यूनतम 21 हजार मासिक मानदेय और सेवा के नियमितिकरण की मांग की तथा बिहार सरकार द्वारा राज्य में कार्यरत इन स्कीम वर्कर्स के प्रति बरती जा रही उपेक्षापूर्ण नीति के प्रति नाराजगी जाहिर की.
रैली ने शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देने वाली नई शिक्षा नीति 2020 को वापस लेने, समान स्कूल प्रणाली लागू करने, सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने, शिक्षा विभाग के तहत जारी स्कीमों में कार्यरत कर्मियों को सम्मानजनक वेतन व नियमितीकरण और साथ ही, शिक्षा विभाग में बरसों तक अपनी सेवा देने वाले हजारों शिक्षा प्रेरकों की पुनबर्हाली की मांग की. विश्वविद्यालयों और प्लस टू विद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों के समायोजन, लंबित शिक्षक बहाली को अविलंब शुरू करने, बहाली की प्रक्रिया को पारदर्शी व सुगम बनाने तथा विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक माहौल में सुधर लाने की मांग की.
रैली ने एमएसपी पर केंद्र सरकार के विश्वासघात और खाद उपलब्धता सुनिश्चत करने में उसकी विफलता की तीखी भर्त्सना करते हुए एमएसपी आधारित सभी फसलों की खरीद की गारंटी को लेकर मुकम्मल कानून बनाने की मांग की, बिहार में एपीएमसी ऐक्ट की पुनबर्हाली की मांग को दुहराया तथा अन्य राज्यों की तरह किसानों को कृषि कार्यों के लिए मुफ्त बिजली देने की मांग करती है.
रैली ने टाडा और शराबबंदी कानून के तहत जेल में बंद लोगों की रिहाई और भाकपा-माले नेताओं व विधायकों पर आंदोलनों के दौरान दर्ज किए गए फर्जी मुकदमों को वापस लेने की भी मांग संबंधी प्रस्ताव स्वीकार किये.