जब मोदी सरकार दो-खंडों वाली बीबीसी डाक्युमेंट्री “मोदी क्योश्चन” के असर से जूझ ही रही थी, तभी मोदी के सबसे करीबी संश्रयकारी गौतम अडानी हिंडेनबर्ग बवंडर में फंसते नजर आए. 24 जनवरी को, जब पूरी दुनिया उत्सुकतापूर्वक बीबीसी डाक्युमेंट्री के दूसरे एपिसोड की प्रतीक्षा कर रही थी, अमेरिका-आधरित ‘हिंडेनबर्ग रिसर्च’ अपनी रिपोर्ट ‘अडानी ग्रुप’ को लेकर सामने आ गया. 100 पृष्ठों वाली इस रिपोर्ट में – जो हिंडेनबर्ग ग्रुप के अनुसार दो साल के मुकम्मल शोध पर आधारित है – अडानी ग्रुप पर खुल्लमखुल्ला सट्टा बाजार तिकड़म करने, लेखा-जोखा में जालसाजी करने और काले धन को सफेद बनाने का आरोप लगाया गया है. इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी के शेयरों के दाम तेजी से लुढ़के हैं. 30 जनवरी आते-आते अडानी ग्रुप के शुद्ध धन में लगभग 70 अरब डाॅलर की कमी आ गई, और खुद उस ध्न्नासेठ की व्यक्तिगत संपत्ति 36 अरब डाॅलर कम हो गई और वह दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों की सूची में तीसरे स्थान से नीचे गिरकर 11वें स्थान पर आ गया.
हिंडेनबर्ग के इस सौ-पेजी रिपोर्ट के जवाब में अडानी ग्रुप ने भी 413 पृष्ठों का एक ‘खंडन’ जारी किया है जिसमें इस रिपोर्ट को भारत पर, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, मर्यादा और गुणवत्ता पर, तथा भारत की संवृद्धि-कथा व महत्वाकांक्षा पर हमला बताया गया है. अडानी ग्रुप के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने तो आगे बढ़कर हिंडेनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद अडानी के शेयर बेचने वाले भारतीय निवेशकों की तुलना उन भारतीय पुलिसकर्मियों से कर दी जिन्होंने अंग्रेज अधिकारियों के आदेश का पालन करते हुए जालियावांला बाग में भारतीयों को मार दिया था! इस प्रकार हिंडेनबर्ग रिपोर्ट पर अडानी का प्रत्युत्तर ठीक वैसा ही है, जैसा कि बीबीसी डाक्युमेंट्री पर मोदी सरकार का प्रत्युत्तर था.फर्क सिर्फ इतना है कि जहां मोदी सरकार ने भारतीय सोशल मीडिया पर इस वीडियो को रोकने के लिए अपने आइटी ऐक्ट के तहत आपात्कलीन शक्तियों का इस्तेमाल किया, वहीं अडानी के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है जिसके सहारे वह निवेशकों को अपने शेयर बेचने से रोक सके.
हिंडेनबर्ग रिसर्च ग्रुप काॅरपोरेटों की करतूतों को उजागर करने के लिए वैसा ही कुछ करता है, जैसा कि खोजी पत्रकार स्टिंग ऑपरेशन के जरिये अपराध और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए करते हैं. यह ग्रुप इसे ‘फाॅरेंसिक वित्तीय रिसर्च’ कहता है. 2017 में गठित इस ग्रुप ने अबतक एक दर्जन से ज्यादा खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है, और जिन कंपनियों के बारे में खोजबीन की गई है, उनमें से अधिकांशतः अमेरिकी कंपनियां हैं. दरअसल, अडानी ग्रुप पहली भारतीय कंपनी है, जिसके बारे में हिंडेनबर्ग रिसर्च ने जांच-पड़ताल की है. इस रिपोर्ट पर भारत के खिलाफ हमला करने का आरोप लगाना दरअसल अपने सुरक्षा कवच के बतौर राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करने की अडानी ग्रुप की हताशोन्मत्त कोशिश ही है.
मोदी युग में अडानी ग्रुप की चमकदार उन्नति क्रोनी पूंजीवाद का एक शास्त्रीय नमूना है. भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से मनमानी मात्रा में ऋण हासिल करने और भारत की अधिसंरचनात्मक परिसंपत्ति तथा वैश्विक ठेकों को भी हथियाने के लिए अडानी हमेशा अपना रास्ता बना लेता था. भारत के अंदर हर जांच-पड़ताल को खामोश कर देने, और हर लेखक पर मानहानि का आरोप मढ़कर उसे धमकी देने के लिए वह अपनी वित्तीय और राजनीतिक शक्ति का भरपूर इस्तेमाल करता रहा है. यहां तक कि उसने उस एकमात्र टीवी चैनल को भी खरीद लिया जो मोदी सरकार की भारी आर्थिक विफलता और गद्दारी तथा भारत की मिलीजुली संस्कृति तथा इसके संवैधानिक ढांचे पर लगातार हमले के बारे में कुछ आलोचनात्मक खबरें दिखलाता था. अब एक घातक रिपोर्ट तथा खतरनाक आर्थिक गिरावट से जूझ रहा अडानी अपने आर्थिक साम्राज्य को भारत का राष्ट्रीय हित व गौरव बताकर आपनी हिफाजत करना चाहता है.
अडानी ग्रुप के काॅरपोरेट अपराध के बारे में हिंडेनबर्ग के आरोप मोदी सरकार की तरफ से त्वरित कारवाई की मांग करते हैं. आरबीआई और ‘सेबी’ जैसी भारतीय नियामक संस्थाएं काॅरपोरेट घोटाले की ऐसी विस्तृत व गंभीर रिपोर्ट पर कैसे खामोश रह सकती हैं ? एसबीआई और एलआइसीआई जैसे भारत के सबसे बड़े बैंक और वित्तीय संस्थाओं ने अडानी ग्रुप को भारी भरकम ट्टण दिये हैं, और इस बड़ी गड़बड़ी व गिरावट के परिणामस्वरूप एलआइसी को अडानी ग्रुप में अपने शेयरों में भारी नुकसान हो गया है. ये संस्थाएं आम लोगों की गाढ़ी कमाई से की गई बचतों और पेंशन फंड के सबसे बड़े भंडारों में गिनी जाती हैं. फिर भी आम भारतीयों के हितों की रक्षा करने के बजाय इन संस्थाओं का इस्तेमाल अडानी ग्रुप को संकट से उबारने में किया जा रहा है.
आम जनता के हितों और भारतीय अर्थतंत्रा के हितों को गौतम अडानी सरीखे क्रोनी पूंजीपतियों के जालसाज व्यावसायिक स्वार्थों के लिए गिरवी नहीं रखा जा सकता है. हिंडेनबर्ग शब्द 6 मई 1937 को हुई एक हवाईजहाज दुर्घटना से जुड़ा हुआ है, जब हाइड्रोजन से भरे एक जर्मन हवाईजहाज, जिसका नामकरण हिटलर को जर्मनी के चांसलर पद पर नियुक्त करने वाले जर्मन राष्ट्रपति पाॅल वाॅन हिंडेनबर्ग के नाम पर किया गया था, में उस समय आग लग गई थी जब वह हवाईजहाज अमेरिका में उतर रहा था. उस दुर्घटना में कम से कम 35 चालकों व यात्रियों को जान गंवानी पड़ी थी. इस रिसर्च ग्रुप ने बच सकने लायक मानव-रचित दुर्घटना की उपमा के बतौर हिंडेनबर्ग नाम का इस्तेमाल किया है. सचमुच, मोदी शासन लगातार हो रही दुर्घटनाओं का शासन रहा है. मोदी-अडानी ध्रुव को इस ताजातरीन दुर्घटना में अवसर तलाशने की इजाजत हर्गिज नहीं देना चाहिए. उनसे उत्तर पाने और उनकी जवाबदेही तय करने का समय आ गया है.