वर्ष - 32
अंक - 2
07-01-2023

ऐपवा के शिक्षा रोजगार अधिकार अभियान की शरूआत

उत्तर प्रदेश

सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन के अवसर पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीकेटी क्षेत्र में महिलाओं तथा छात्राओं के बीच ऐपवा, लखनऊ द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किये गए, जिनमें महिला शिक्षा तथा रैडिकल समाज सुधार के क्षेत्र में उनकी तथा फातिमा शेख की ऐतिहासिक भूमिका को याद किया गया.

हाड़ कंपाती ठंड के बीच भवानीपुर में महिलाओं ने उत्साह के साथ भागेदारी किया. दूसरा कार्यक्रम शांति पब्लिक इंटर काॅलेज में हुआ, जहां छात्राओं ने गर्मजोशी और उत्सुकता के साथ अपने इन पुरखों के बारे में जाना, जिनके संघर्षों की बदौलत उन्हें आज न सिर्फ शिक्षा पाने का अधिकार मिला है, बल्कि जिसकी बदौलत आज महिलाएं साहित्य, संस्कृति व विज्ञान से लेकर, नौकरशाही और राजनीति के शिखर तक का सफर तय कर रही हैं, एवरेस्ट फतह से लेकर चांद तक पहुंच रही हैं.

कार्यक्रम में महिलाओं ने सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की साझी विरासत को आगे बढ़ाने, जाति-धर्म में नहीं बंटने तथा शिक्षा, बराबरी के लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया.

कार्यक्रम ऐपवा के राष्ट्रीय आह्वान के तहत सावित्री बाई फुले के जन्मदिन3 जनवरी से लेकर उनकी सहयोगी फातिमा शेख के जन्मदिन 9 जनवरी तक चलने वाले शिक्षा-रोजगार अधिकार अभियान का हिस्सा है.

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के बतौर महिलाओं तथा छात्राओं को सम्बोधित करते हुए ऐपवा, लखनऊ की संयोजिका व राज्य सहसचिव मीना ने कहा कि आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज के वर्चस्वशाली ताकतों को चुनौती दी थी और लड़कियों की शिक्षा के लिए तथा कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का बीड़ा उठाया था, जिससे आज लड़कियों को शिक्षा का अधिकार मिला है. इसके लिए उन्हें समाज की शक्तिशाली दकियानूसी ताकतों के कड़े विरोध और हमले का सामना करना पड़ा था. लेकिन महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर उन लोगों ने सफलता पूर्वक इन चुनौतियो का मुकाबला किया और देश में महिलाओं के लिए आधुनिक शिक्षा के दरवाजे खोल दिये. वे सही मायने में भारत में महिला शिक्षा की अग्रदूत हैं.

महिला नेताओं ने कहा कि उस दौर में जो शक्तियां सावित्रीबाई और फातिमा शेख के खिलाफ खड़ी थीं, उनके उत्तराधिकारी आज भी समाज में सक्रिय हैं और महिला अधिकारों को कुचलने में लगे हुए हैं. लेकिन हम महिलाएं जानती हैं कि ये वे पितृसत्तात्मक शक्तियां हैं जो महिलाओं पर अपना नियंत्रण रखने के लिए ‘धर्म और संस्कृति’ का सहारा लेती हैं. इन तथाकथित धर्म रक्षकों को अपने समाज में होने वाली ऑनर या हाॅरर किलिंग, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, देवदासी प्रथा, डायन के नाम पर हत्या जैसी अनेकानेक कुरीतियों से कोई फर्क नहीं पड़ता और उन्हें ये जायज ठहरा देते हैं लेकिन महिलाएं यदि शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक जीवन में बराबरी का अवसर, अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार या नागरिक अधिकारों की मांग करें तो इनका धर्म खतरे में पड़ जाता है और महिलाओं पर हिंसा की जाती है. आज इन पितृसत्तात्मक शक्त्यिों की संरक्षक भाजपा की साम्प्रदायिक और फासीवादी सरकार केंद्र में है.

उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख की विरासत का महत्व आज और बढ़ गया है, जब आजादी के 75 साल बाद भी शिक्षा, खासतौर पर महिला शिक्षा, में देश फिसड्डी बना हुआ है. मोदी राज में तो शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि अब गरीबों, मजदूरों और महिलाओं के पहुँच से बाहर ही होती जा रही हैं .

कार्यक्रम के माध्यम से सरकार से मांग की गई कि के.जी से पी.जी तक लड़कियों की शिक्षा मुफ्त की जाये, देश की हर लड़की शिक्षा प्राप्त कर सके इसके लिए हर पंचायत में हाईस्कूल और हर प्रखंड में काॅलेज बनाया जाये, शिक्षा का निजीकरण बंद हो, सभी लड़कियों के लिए रोजगार की गारंटी हो, सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख का जीवन संघर्ष स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये.

लखनऊ के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में ऐपवा की जिला अध्यक्ष व प्रदेश सहसचिव गीता पांडे के नेतृत्व में कई जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किया गया तथा लखीमपुर के पलिया में ऐपवा जिला अध्यक्ष व प्रदेश उपाध्यक्ष आरती राय के नेतृत्व में कार्यक्रम किया गया .

झारखंड

बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के साडम बाजार में ऐपवा की बोकारो जिला कमिटी के जिला अध्यक्ष शोभा देवी की अध्यक्षता में सावित्री बाई फुले का जयंती मनाया गया. इस दौरान सर्वप्रथम सावित्री बाई फुले के तस्वीर पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित किया.

ऐपवा जिला अध्यक्ष शोभा देवी ने कहा कि 3 जनवरी 1831 को सतारा जिले के नया गांव में जन्मी सावित्री बाई फुले ने शिक्षा के महत्व को समझा तथा महिलाओं और बालिकाओं के लिए शिक्षा को सरल और सहज बनाने की मुहिम चलाई. उनके बताये गए रास्ते पर चलकर ही समाज को समृद्ध और विकसित किया जा सकता है .

उन्होंने बताया कि 9 जनवरी को सयुंक्त रूप से सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की जयंती मनाई जायेगी. मौके पर मैमून खातून, शीला देवी, गीत देवी, शर्मीला देवी, सविता देवी, शहादून खातून, फुलवा देवी, शकुंतला देवी, वसंती देवी, तारा देवी, रजिया खातून, पुतूल देवी, रीता देवी के अलावा दर्जनों महिलाएं उपस्थित थीं.

गिरिडीह जिले के धनवार स्थित भाकपा(माले) कार्यालय में महिला नेत्री जयंती चौधरी, कौशल्या दास, पिंकी भारती, रविना खातून, यशोध्दा देवी के नेतृत्व में आधुनिक भारत में महिला शिक्षा की ऐतिहासिक नींव रखने  वाली, प्रथम छात्रा और शिक्षिका, ऊंच-नीच, छुआछूत व लिंग विभेद के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करने वाली अदम्य योद्धा व समाज सुधारक राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती मनाई गई.

रामगढ़ में अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) जिला कमेटी के नेतृत्व में जिला सचिव नीता बेदिया एवं जिला अध्यक्ष कांति देवी सहित सीता देवी, धनमति देवी, वीणा देवी, देवंती देवी, आंगनबाड़ी सेविका ललिता देवी, सहिया बीणा देवी, मीना देवी, अंजली देवी सहित सैकड़ों महिलाओं ने मिलकर सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई. पतरातू प्रखंड के बारीडीह गांव में सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को याद में सभा आयोजित हुई जिसका संचालन ऐपवा के नेत्री सीता देवी ने किया.

इस मौके पर ऐपवा नेत्री नीता बेदिया ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से स्वयं को शिक्षित किया और आगे चलकर लड़कियों को शिक्षा देने का काम किया. यह काम उन्होंने तब किया जब मनुवादी सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को शिक्षित करने पर निषेध था. उन्होंने कहा कि लंबे संघर्षों के परिणाम है कि आज महिलाओं की शिक्षा व रोजगार के अधिकार मिलने लगे हैं. लेकिन यह प्रर्याप्त नहीं है और महिलाओं को संघर्ष जारी रखना होगा.

मांडू प्रखंड के पड़रिया में भी सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को याद किया गया. कार्यक्रम में सुगिया देवी, सलमतिया देवी, मुलैया देवी, सुनीता देवी, रीता देवी, भारती देवी, रजनी देवी समेत अन्य दर्जनों महिलाएं शामिल हुईं.

बिहार 

भागलपुर में भाकपा(माले) व ऐक्टू ने प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयन्ती मनायी. स्थानीय मोहनपुर स्थित कामरेड जगदीश स्मृति आवास में आयोजित कार्यक्रम में सावित्री बाई फुले की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया और सामूहिक रूप से दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. इस अवसर मौजूद स्थानीय छात्र-छात्राओं ने देश-समाज को उनके योगदान पर परिचर्चा का आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकपा(माले) के नगर प्रभारी व ऐक्टू के राज्य सचिव का. मुकेश मुक्त ने की.

कामरेड मुकेश मुक्त कहा कि किसी भी समाज में व्यक्ति के समग्र विकास की पहली और आवश्यक शर्त शिक्षा ही है. शिक्षा किसी भी देश के सजग और समग्र विकास का मजबूत आधार होता है. हमारे देश में भी समावेशी और वैज्ञानिक शिक्षा की नींव रखने वाली सावित्रीबाई फुले की गौरवमयी विरासत मौजूद है.

भाकपा(माले) नगर सचिव विष्णु कुमार मंडल ने कहा कि सावित्रीबाई फुले जाति और पितृसत्ता के गठजोड़ को उसकी समग्रता में समझती थी. इसलिए उन्होंने सहस्रों पीड़ा झेल कर भी महिलाओं को शिक्षित करने की जोखिम उठाया था. युवा पीढ़ी को इसके लिए आगे आना होगा.

परिचर्चा में असंगठित कामगार महासंघ (ऐक्टू) के राज्य सचिव सुभाष कुमार, ऑटो यूनियन के प्रवीण कुमार पंकज, लूटन तांती, प्रमिला देवी, महेश प्रसाद, मितेश कुमार, जितेंद्र कुमार दास, नूतन कुमारी, सपना कुमारी, कोमल नेहा, रविकिशन, सोमराज कुमार, मनीषा कुमारी, शालू, राजकुमार राजा, जिगर राजहंस, साजन कुमार, सुमित कुमार, लालू कुमार आदि शामिल रहे.

समस्तीपुर के ताजपुर में महिला शिक्षा की क्रांतिदूत सावित्रीबाई फुले एवं फातिमा शेख की याद में रहीमाबाद के ईमली चौक पर एक समारोह आयोजित किया गया.

सावित्रीबाई फुले व फातिमा शेख को दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि देने के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गई. तत्पश्चात उपस्थित महिलाओं ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया और महिला नेताओं ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तारपूर्वक चर्चा किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता ऐपवा नेत्री सुखिया खातुन ने की. मोमिना खातुन, रूखसाना खातुन, जमीला खातुन, शमीमा खातुन, गुलशन परवीन, रजिया देवी, रधिया देवी, रजनी देवी, भाकपा(माले) नेता सुरेंद्र प्रसाद सिंह, प्रभात रंजन गुप्ता, मो. एजाज, मो. शकील, मो. रफीक आदि मौजूद थे.

मौके पर मौजूद ऐपवा जिला अध्यक्ष बंदना सिंह ने कहा कि सावित्रीबाई फुले-फातिमा शेख जयंती सप्ताह में देश की महिलाओं और बच्चियों के लिए उनके किए योगदान को हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को बताना चाहिए ताकि इतिहास के धुंधले पन्ने साफ किए जा सके और उसकी लिखावट पढ़ी जा सके.

दरभंगा में बहादुरपुर-देकुली पंचायत के देकुली के आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 10 के प्रांगण में सावित्रीबाई फुले जयंती को आइसा, इनौस व ऐपवा के संयुक्त बैनर से संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया.

राजधानी पटना पटना के दीघा इलाके में शिक्षा-रोजगार अधिकार अभियान की शुरूआत करते हुए भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया.

गया जिले के डोभी में 5 जनवरी 2023 को सावित्रीबाई फुले व फातिमा शेख की याद में कार्यक्रम हुए. ऐपवा जिला अधयक्ष  शीला वर्मा, कलावती देवी, गीता देवी, रूबी देवी, शीला देवी आदि इसमें शरीक थीं.

गया शहर के गेवालविगहा मोहल्ला में ऐपवा जिला सचिव रीता बर्णवाल की मौजूदगी में सावित्रीबाई फुले व फातिमा शेख को याद किया गया.

राज्य में अन्य कई जगहों पर भी कार्यक्रम हुए.

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सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की साझी विरासत को आगे बढ़ायें!
जाति-धर्म में नहीं बटेंगे!  शिक्षा, बराबरी के लिए संघर्ष करेंगे!!
शिक्षा–रोजगार अधिकार अभियान

3-9 जनवरी 2023

बहनो, भाइयो,

हम जानते हैं कि आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज के वर्चस्वशाली ताकतों को चुनौती दी थी और लड़कियों की शिक्षा के लिए और कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का बीड़ा उठाया था, जिससे आज लड़कियों को शिक्षा का अधिकार मिला है.

सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के पुणे के निकट नायगांव में एक शुद्र परिवार में हुआ था. उनका विवाह 9 वर्ष की उम्र में हो गया था. अपने पति ज्योतिराव फुले की प्रेरणा से सावित्रीबाई ने जब पढ़ना शुरू किया तब ब्राह्मणवादी हिंदू समाज ने इसे धर्म के विरुद्ध बताया और दोनों पति-पत्नी को घर-समाज से बहिष्कृत कर दिया. उस समय उनके साथ खड़े हुए और आश्रय दिया फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने.

फातिमा शेख का जन्म पुणे में 9 जनवरी 1831 को हुआ था. फातिमा देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका मानी जाती हैं. सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने साथ-साथ टीचर्स ट्रेनिंग की और 1848 में ज्योति राव फुले द्वारा खोले गए स्कूल में दोनों ने पढ़ाना शुरू किया. सावित्रीबाई, फातिमा शेख और सगुना बाई की मदद से ज्योतिराव फुले ने 1848 से 1852 के बीच 18 स्कूल खोले.

फातिमा शेख और सावित्रीबाई को किस कदर विरोध झेलना पड़ा था हम सब इसकी कहानियां जानते हैं लेकिन इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और घर-घर जाकर लड़कियों को बुलाकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया. इन्होंने छुआछूत का विरोध करते हुए सभी जाति की लड़कियों को एक साथ पढ़ाने और लड़कियों को आधुनिक शिक्षा-विज्ञान और गणित पढ़ाने पर जोर दिया था. सावित्रीबाई सिर्फ एक शिक्षिका ही नहीं, समाज सुधारिका और कवियित्री भी थीं. उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. विधवा महिलाओं के लिए आश्रम खोला और कई सवर्ण विधवा, गर्भवती महिलाओं को आत्महत्या करने से बचाया. बिना दहेज और बिना पुरोहित अंतरजातीय विवाह करवाए. शुद्र, अतिशुद्र (पिछड़ी, अति पिछड़ी, अनुसूचित जाति) और महिलाओं की गुलामी के खिलाफ समाज में अभियान चलाया. अस्पताल खोला जहां प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए 1897 में सावित्रीबाई का निधन हुआ.

उस दौर में जो शक्तियां सावित्रीबाई और फातिमा शेख के खिलाफ खड़ी थीं, उनके उत्तराधिकारी आज भी समाज में सक्रिय हैं और महिला अधिकारों को कुचलने में लगे हुए हैं. लेकिन हम महिलाएं जानती हैं कि ये वे पितृसत्तात्मक शक्तियां हैं जो महिलाओं पर अपना नियंत्रण रखने के लिए ‘धर्म और संस्कृति’ का सहारा लेती हैं. इन तथाकथित धर्म रक्षकों को अपने समाज में होने वाली ऑनर या हाॅरर किलिंग, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, देवदासी प्रथा, डायन के नाम पर हत्या जैसी अनेकानेक कुरीतियों से कोई फर्क नहीं पड़ता और उन्हें ये जायज ठहरा देते हैं लेकिन महिलाएं यदि शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक जीवन में बराबरी का अवसर, अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार या नागरिक अधिकारों की मांग करें तो इनका धर्म खतरे में पड़ जाता है और महिलाओं पर हिंसा की जाती है. आज इन पितृसत्तात्मक शक्तियों की संरक्षक भाजपा की साम्प्रदायिक और फासीवादी सरकार केंद्र में है. इस सरकार के शासन काल में कानूनों में बदलाव कर लड़कियों के अपनी मर्जी से जीवन जीने के अधिकार को खत्म किया जा रहा है और मनुस्मृति को सही ठहराया जा रहा है जिसके अनुसार दलित और स्त्री को हमेशा अधीनता में रहना चाहिए. इसलिए आश्चर्य जनक नहीं है कि सरकार आशाराम, रामरहीम जैसे बलात्कारी बाबाओं और स्वामियों को संरक्षण देती है और भाजपा के नेता उनका आशीर्वाद लेते हैं.

यह सरकार सिर पर स्कार्फ बांधने वाली मुस्लिम लड़कियों का स्कूल-काॅलेजों में प्रवेश रोक देती है और बिलकिस बानो के बलात्कारियों को संस्कारी ब्राह्मण बताकर जेल से रिहा कर देती है. सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर धारदार चाकू रखने और दुश्मनों का सिर काटने की बात करती है. ये लोग हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के बीच एक दीवार खड़ी कर देना चाहते हैं. हमें इनकी चाल को समझने और इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करने की जरूरत है.

इस देश में अगर झांसी की रानी और बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में शहादत दी तो सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने शिक्षा और समाज सुधार आंदोलन चलाया. साझी शहादत, साझी विरासत की इस परंपरा को हमें याद रखने की जरूरत है.

आइए, सावित्रीबाई के जन्मदिन 3 जनवरी से लेकर फातिमा शेख के जन्मदिन 9 जनवरी तक एक अभियान चलाकर इन दोनों पुरखिनों की विरासत को आगे बढ़ाएं, पितृसत्ता और मनुवाद की गुलामी से मुक्ति के लिए अपना संघर्ष तेज करें और शिक्षा व बराबरी के अपने अधिकार की दावेदारी जताएं. इसलिए, आइए हम सरकार से तत्काल मांग करें –

1. के.जी से पी.जी तक लड़कियों की शिक्षा मुफ्त करो.
2. देश की हर लड़की शिक्षा प्राप्त कर सके, इसके लिए हर पंचायत में हाईस्कूल और हर प्रखंड में काॅलेज बनाओ.
3. शिक्षा का निजीकरण बंद हो.
4. सभी लड़कियों के लिए रोजगार का प्रबंध करो.
5. सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख का जीवन संघर्ष स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करो.

निवेदक
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा)