ऑक्सफैम द्वारा 16 जनवरी, 2023 को जारी वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2022 का शीर्षक “सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट” है. ‘वर्ल्ड इकनोमिक फोरम’ में दुनियाभर के रईसों और ताकतवर लोगों के होने वाले सालाना जलसे के समय आयी यह रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है कि रईसों की बढ़ती आय और लोगों के बीच धन की असमानता कोविड-19 महामारी के दौरान खतरनाक रूप से बढ़ी है. नवउदारवादी जमाने की प्रतिगामी टैक्सों के जरिये ऐसे हालात कायम कर दिए गए हैं कि जहां गरीबों पर भारी टैक्स का बोझ डाल दिया गया है, वहीं अमीरों से बहुत कम टैक्स वसूला जा रहा है. दुनियाभर के ये हालात मोदी के न्यू इंडिया में और भी भयानक है जहां धनाढ्य वर्ग और सुपर रिच महाजश्न मना रहे हैं.
2011 के ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट आंदोलन ने ‘हम 99 प्रतिशत हैं’ के नारे के साथ बढ़ती असमानता की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था. ऑक्सफैम की रिपोर्ट हमें बताती है कि महामारी के दौरान सबसे अमीर 1प्रतिशत लोगों की संपत्ति तेजी से बढ़ी है. 2020 से पहले टॉप 1 प्रतिशत वर्ग की अर्जित धन में आधे की दावेदारी थी जो महामारी के दौरान और उसके बाद बढ़कर लगभग दो-तिहाई हो गयी है, याने कि नीचे के 99 प्रतिशत लोगों द्वारा अर्जित किये जाने वाले धन का लगभग दुगना. दैनिक आधार पर गणना की जाए तो अरबपतियों की संपत्ति प्रतिदिन 2.7 अरब डॉलर बढ़ी है. दुनियाभर में सबसे अमीर 1 प्रतिशत के पास वैश्विक संपत्ति का 45.6 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि नीचे के आधे लोगों को केवल 0.75 प्रतिशत से ही काम चलाना पड़ता है. भारत में महामारी (2020-2022) के बीच अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 166 हो गई, वहीं टॉप 1 प्रतिशत के पास अब कुल संपत्ति का 40.6 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि नीचे के आधे के पास केवल 3 प्रतिशत है.
रिपोर्ट के मुताबिक भोजन और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों से गरीबों के लिए आर्थिक संकट चौतरफा बढ़ा है. निगमों के लिए इसका मतलब अप्रत्याशित लाभ है जिसे 2018-21 के बीच उनके शुद्ध लाभ में औसतन 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है. खाद्य और ऊर्जा से जुड़े 95 कंपनियों ने 2018-21 के औसत की तुलना में 2022 में 306 अरब डॉलर का अप्रत्याशित मुनाफा कमाया, जो ढ़ाई गुना से ज्यादा है. जनता की पीड़ा को को कॉर्पारेट मुनाफे में तब्दीली को रिपोर्ट ने लालच-मुद्रास्फीति (ग्रीडफ्लेशन) कहा है याने कि बढ़ती मंहगाई के दौरान निगमों द्वारा अपने उत्पादों का मूल्य निर्धारण ज्यादा कर मुनाफा कमाना. इन निगमों के मुनाफे में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जबकि आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने 2020 में 7 करोड़ से अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है.
नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के नरेंद्र मोदी जैसे पैरोकार और दुनिया भर में उनकी तरह के लोग चाहते हैं कि हम इस अप्रत्याशित लाभ को धनसृजन के उचित इनाम के रूप में मनाएं और इस बढ़ोतरी को नीचे के तबकों तक पहुंचने की प्रतीक्षा करें. लेकिन वार्षिक असमानता रिपोर्ट से साफ तौर से जाहिर होता है कि इस बढ़ोतरी से धन नीचे नीचे फैलने की बजाय टॉप 1 प्रतिशत के पास जमा हो रहा है. सरकार टैक्स के जरिये कुछ हद तक इस संपत्ति का पुनर्वितरण कर सकती थी, पर टैक्सेशन की नीतियां फैलती असमानता को और ज्यादा बढ़ा रही हैं. ऑक्सफैम रिपोर्ट इस बिंदु पर वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े रईस एलोन मस्क का उदाहरण पेश करती है, जिसने 2014 से 2018 तक सिर्फ 3 प्रतिशत की वास्तविक टैक्स रेट से भुगतान किया, जबकि उत्तरी युगांडा में चावल, आटा और सोया बेचने वाले एक दुकानदार एबर क्रिस्टीन को प्रति माह 80 डॉलर का लाभ अर्जित करने पर 40 प्रतिशत की दर से भुगतान करने को बाध्य किया जा रहा है.
यह रिपोर्ट अरबपतियों की संपत्ति पर लगाम रखने और जन-कल्याणकारी मदों के राजस्व कोष को बढ़ाने वाली टैक्सेशन नीति का पुरजोर आग्रह करती है. वेल्थ टैक्स, इनहेरिटेंस टैक्स या अति-अमीरों की संपत्ति पर एकमुश्त टैक्स, और अमीरों की आय, पूंजीगत लाभ और अप्राप्त पूंजीगत लाभ पर टैक्सेशन को यदि प्रभावी रूप से लागू किया जाता है तो बढ़ती असमानता कम करने में बड़ा फर्क आएगा. रिपोर्ट में मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का उदाहरण पेश करते हुए बताया गया है कि कैसे इन दो अरबपतियों से महज 5 प्रतिशत नेट वेल्थ टैक्स, लाभांश पर 60 प्रतिशत और पिछले पांच साल अप्राप्त पूंजीगत लाभ पर 20 प्रतिशत एकमुश्त टैक्स लगा कर 150 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया जा सकता है. सिर्फ गौतम अडानी के पिछले पांच साल के अप्राप्त पूंजीगत लाभ पर टैक्स लगाने से भारत में 50 लाख से अधिक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को एक वर्ष के लिए रोजगार मिल सकता है, जबकि भारत के अरबपतियों पर तीन प्रतिशत सम्पत्ति कर के बतौर लिया जाय तो तीन वर्षों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की सारी आर्थिक जरूरतें पूरी हो सकती हैं. भारत में 98 सबसे अमीर अरबपति परिवारों पर एक प्रतिशत संपत्ति कर भारत सरकार के राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कोष आयुष्मान भारत को सात साल से अधिक समय तक वित्तपोषित कर सकता है.
प्रगतिशील टैक्सेशन का मामला भारत में सबसे जरूरी हो जाता है क्योंकि यहां अभी भी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबों (228.9 मिलियन) का घर है. लेकिन नरेंद्र मोदी के शासनकाल में अमीरों पर टैक्स लगातार कम हो रहे हैं जबकि गरीबों को जीएसटी के माध्यम से अप्रत्यक्ष कराधान का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक कुल जीएसटी में दो-तिहाई का योगदान नीचे के 50 प्रतिशत, एक-तिहाई बाद के 40 प्रतिशत और टॅप 10 प्रतिशत की इसमें हिस्सेदारी सिर्फ तीन से चार प्रतिशत है. भले ही ऑक्सफैम असमानता रिपोर्ट यह जाहिर करती है कि भारत सरकार की टैक्सेशन की नीतियां गहरी असमानता और गरीबी को बढ़ा रही है, पर मोदी सरकार प्रतिदिन 300 डॉलर प्रति व्यक्ति का भुगतान करके इक्यावन दिनों के लिए परम विलासिता से भरे बनारस से डिब्रूगढ़ तक दुनिया की सबसे लंबी नदी लग्जरी क्रूज शुरू करने घोषणा गर्व के साथ करती है. भारत के संदर्भ में ऑक्सफैम इंडिया की नवीनतम वैश्विक ब्रीफिंग का नाम वास्तव में ‘सबसे दौलतमंदों का जशन’ दिया जाना चाहिए.